Published on Aug 11, 2023 Updated 0 Hours ago

एकीकृत थिएटर कमांड्स को पक्के तौर पर स्थापित करने के लिए सरकार को क़दम बढ़ाकर तीनों सेनाओं के बीच किसी भी लंबित मसले का निपटारा करना चाहिए, साथ ही अफ़सरशाही, CDS और तीनों सेनाओं के मुद्दों का भी हल निकाला जाना चाहिए. 

एकीकृत थिएटर कमांड्स; ‘जल्द साकार हो सकता है सपना!’

भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं- भारतीय थल सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना ने एकीकृत थिएटर कमांड्स (ITCs) की स्थापना को लेकर अपने मतभेद काफ़ी हद तक सुलझा लिए हैं. लिहाज़ा अगस्त 2023 ख़त्म होते-होते मोदी सरकार के तहत देश को पहला ITC मिल सकता है. साथ ही ये वक़्त थिएटर कमांड्स की अनिवार्यता का मूल्यांकन करने और थिएटराइज़ेशन के रास्ते की तमाम चुनौतियों की पड़ताल करने के लिहाज़ से भी माकूल हो जाता है. थिएटराइज़ेशन के संदर्भ में अब तक क्या परिणाम रहे हैं और उनके रास्ते में किस-किस तरह की चुनौतियां हैं, इस बात पर एक नज़र डालते हैं. 

वायुसेना द्वारा परिसंपत्तियों पर नियंत्रण रखने की एक और पूरक वजह है. दरअसल, वायुसेना “हवाई शक्ति की अविभाज्यता” में विश्वास करती है. ये इस धारणा के साथ सटीक बैठती है कि हवाई शक्ति को समंदर और ज़मीनी बलों से स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है.

सर्वप्रथम, भारतीय थलसेना और भारतीय नौसेना ने भारतीय वायुसेना की ये मांग मान ली है कि थिएटर कमांड्स के मातहत कोई हवाई परिसंपत्ति नहीं रखी जाएगी. इसकी बजाए आपात परिस्थितियों में ITCs के परिचालन से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इनका उपयोग किया जाएगा, हालांकि उस मौक़े पर भी ऐसी क़वायदों को वायुसेना के नियंत्रण में ही अंजाम दिया जाएगा. वायुसेना का तर्क है कि चूंकि उनके पास 42 स्क्वैड्र्न्स की स्वीकृत क्षमता के मुक़ाबले सिर्फ़ 31 फाइटर स्क्वैड्र्न्स हैं, लिहाज़ा हवाई परिसंपत्तियों का सेवा-केंद्रित नियंत्रण होना चाहिए. वायुसेना द्वारा परिसंपत्तियों पर नियंत्रण रखने की एक और पूरक वजह है. दरअसल, वायुसेना “हवाई शक्ति की अविभाज्यता” में विश्वास करती है. ये इस धारणा के साथ सटीक बैठती है कि हवाई शक्ति को समंदर और ज़मीनी बलों से स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है. ये सैन्य अहमियत वाले प्रभाव भी पैदा कर सकता है, जिससे परिचालन से जुड़े ठोस परिणाम हासिल हो सकते हैं जो समुद्री और ज़मीनी कार्रवाइयों से स्वतंत्र होते हैं.  

फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले का बदला लेने के लिए बालाकोट हवाई हमलों को अंजाम दिया गया था. इस घटना को इस बात के सबसे स्पष्ट उदाहरण के तौर पर आगे किया जाता है कि क्यों और कैसे हवाई शक्ति को थिएटर कमांड से आज़ाद होकर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. बेशक़, जैसा कि वायु सेना के पूर्व प्रमुख एस. कृष्णास्वामी ने कहा था: “बालाकोट हवाई हमला, पेशेवराना कौशल के प्रदर्शन का सबसे अनोखा उदाहरण है…हमारी वायु सेना रात के घुप अंधेरे में पूरी गोपनीयता के साथ एक ऑपरेशन को सुचारू रूप से पूरा करने में सक्षम रही…विभिन्न बेस और कमांड से तमाम बलों ने उस मिशन में हिस्सा लिया और इस पूरे मिशन की निगरानी ख़ुद वायुसेना प्रमुख द्वारा की गई. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के कार्यालय से ऐसे सुचारू ऑपरेशंस की योजना बनाए जाने और उन्हें क्रियान्वित किए जाने की कल्पना कर पाना भी मुश्किल लगता है. उस सूरत में ऐसी कार्रवाइयों के लिए कंपोनेंट कमांडर, CDS को सलाह देगा और मिशन की योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करेगा, भले ही इसे संयुक्त कमान को सौंपा गया हो”

गोपनीयता और रफ़्तार, दुश्मनों को हैरत में डाल देने वाली क़वायदों के घटक तत्व हैं. ये सैन्य कार्रवाई में सामरिक स्तर पर सबसे प्रभावी उपकरण हैं. भारतीय वायुसेना का बालाकोट हवाई हमला इसकी जीती जागती मिसाल है.

वायु सेना के पूर्व अध्यक्ष ने हवाई हमला मिशनों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में गति और गोपनीयता की अहमियत को लेकर जायज़ बात कही है. बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप के ख़िलाफ़ भारतीय वायुसेना द्वारा अंजाम दिए गए मिशन को ऐसे ही कौशल ने कामयाब बनाया. सीमित सामरिक फोकस या उद्देश्य वाले ऐसे मिशनों की वायुसेना द्वारा योजना बनाई जा सकती है और उसपर अमल भी किया जा सकता है, भले ही इससे एक दुर्भाग्यपूर्ण मिसाल क़ायम होती हो. बहरहाल, थिएटर कमांडर और CDS की भागीदारी के बिना, बड़े आकार वाले जटिल ऑपरेशनों और मिशनों के लिए ऐसे उदाहरण, प्रारूप नहीं बन सकते. सैन्य संचालनों के बाद के उपसमूह में, एक ही कमांडर के मातहत संयुक्त योजना, संयुक्त प्रशिक्षण, इंटर-ऑपरेबिलिटी और क्रियान्वयन लाज़िमी है. यही वजह है कि एकीकृत थिएटर कमांड्स और CDS, युद्धकाल में प्रभावी युद्धक परिणाम हासिल करने को लेकर अहम बन जाते हैं. गोपनीयता और रफ़्तार, दुश्मनों को हैरत में डाल देने वाली क़वायदों के घटक तत्व हैं. ये सैन्य कार्रवाई में सामरिक स्तर पर सबसे प्रभावी उपकरण हैं. भारतीय वायुसेना का बालाकोट हवाई हमला इसकी जीती जागती मिसाल है. परंपरागत युद्धों और जंगी अभियानों के लिए एकीकृत थिएटर कमांड्स के महत्व को ख़ारिज करना दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाली बात है.

सीडीएस का पद

इस दिशा में एक और चुनौती है. देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) दिवंगत जनरल बिपिन रावत ने ITCs के फ़ैसले को ख़ारिज करने की कोशिश की और यहां तक ​​कि भारतीय वायुसेना को “समर्थनकारी शाखा” घोषित कर दिया था. इससे भारतीय वायुसेना (भारतीय सेना की स्वतंत्र शाखा के तौर पर) के भीतर वायुशक्ति के बारे में स्थापित धारणाओं और विचारों को गहरी चोट पहुंची. एक प्रमुख आकलन के मुताबिक असैनिक अफ़सरशाही ने दिवंगत CDS के प्रयासों को बाधित कर दिया. जनरल रावत के कार्यकाल के दौरान थिएटराइज़ेशन की ग़ैर-मौजूदगी के पीछे ITCs की स्थापना में भारतीय वायुसेना का बाधक बनना कारण नहीं रहा, बल्कि इसके लिए “वॉरंट ऑफ प्रिसिडेंस” में अपनी जगह के बारे में अफ़सरशाही की बढ़ती असुरक्षाएं ज़िम्मेदार रही हैं. दरअसल, सभी थिएटर कमांडर, चार सितारा रैंक के अधिकारी होंगे (या होने की उम्मीद है), जिससे वो सेना प्रमुखों के समकक्ष हो जाएंगे, और उन्हें सीधे CDS को रिपोर्ट करना होगा जो चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (COSC) के स्थायी अध्यक्ष हैं. ऐसे में विशेष रूप से असैनिक अफ़सरशाही के भीतर ये चिंता बढ़ रही है कि थिएटर कमांडरों (TC) को चार सितारा रैंक में पदोन्नत किए जाने से वो पिछड़ तो नहीं जाएंगे या TCs की ऐसी वरीयता दिए जाने से वो रक्षा सचिव (DS) से भी ऊपर तो नहीं पहुंच जाएंगे!

सभी थिएटर कमांडर, चार सितारा रैंक के अधिकारी होंगे, जिससे वो सेना प्रमुखों के समकक्ष हो जाएंगे, और उन्हें सीधे CDS को रिपोर्ट करना होगा जो चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष हैं.

ग़ौरतलब है कि रक्षा सचिव, रक्षा मंत्रालय (MoD) में शीर्ष असैनिक नौकरशाह है. बेशक़, नौकरशाही की अपनी आपत्तियां हैं और वो अनिवार्य रूप से अपनी स्थिति सुरक्षित करने के प्रयास कर रही है. बहरहाल, मौजूदा विश्लेषण में जिस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है वो है चुने गए असैनिक अधिकारियों द्वारा बिगड़ैलों जैसी भूमिका निभाना. मोदी सरकार ने CDS और ITCs जैसे पदों को स्थापित करने का बहुत ही सराहनीय और साहसी फ़ैसला लिया है. ये वे लोग हैं, जिन्हें रक्षा मंत्रालय की अफ़सरशाही और आमतौर पर केंद्र सरकार की असैनिक नौकरशाही द्वारा दिखाए जाने वाले प्रतिरोध या यहां तक ​​कि “रुकावटी” चालबाज़ियों पर क़ाबू पाने की ज़िम्मेदारी और बोझ उठाना होगा. ऐसी क़वायदों का अभाव, भारत की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार द्वारा अपने नागरिक कर्तव्यों का त्याग कर देने के समान होगा. आज़ादी के बाद भारत के निर्वाचित नेतृत्व द्वारा नागरिक कर्तव्य का त्याग, देश में सैन्य सुधारों, रणनीति, योजना और सैन्य परिचालन से जुड़ाव जैसे मामलों के लिए अभिशाप बना हुआ है. इस समस्या को दुरुस्त करने के लिए मोदी सरकार को सक्रिय रूप से क़दम उठाने होंगे. साथ ही तीनों सेनाओं के आपसी मसलों के साथ-साथ अफ़सरशाही, CDS और तीनों सेनाओं के बीच के किसी भी लंबित मुद्दे का हल निकालना होगा.

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