ये लेख व्यापक ऊर्जा निगरानी: भारत और विश्व सीरीज़ का हिस्सा है.
पृष्ठभूमि
1 जुलाई 2022 को सरकार ने घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर 23,250 रुपये/टन, पेट्रोल एवं एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) के निर्यात पर 6 रुपये/लीटर और डीज़ल के निर्यात पर 13 रुपये/लीटर का विंडफॉल टैक्स लगाने का ऐलान किया. तीन हफ़्तों के बाद सरकार ने डीज़ल एवं एटीएफ के निर्यात पर टैक्स 2 रुपये/लीटर कम कर दिया जबकि पेट्रोल के निर्यात पर टैक्स पूरी तरह हटा दिया. घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर टैक्स घटाकर 17,000 रुपये/टन कर दिया गया. 15 दिनों के बाद सरकार ने एटीएफ के निर्यात पर टैक्स पूरी तरह हटा दिया जबकि डीज़ल के निर्यात पर टैक्स आधा करते हुए 5 रुपये/लीटर कर दिया गया. वहीं घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर टैक्स बढ़ाकर 17,750 रुपये/टन कर दिया गया. विंडफॉल टैक्स लगाने के पीछे आर्थिक दलील ये थी कि भारत का व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है और कमज़ोर रुपये ने भारत के आयात की क़ीमत बढ़ा दी है.
विंडफॉल टैक्स लगाने के पीछे आर्थिक दलील ये थी कि भारत का व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है और कमज़ोर रुपये ने भारत के आयात की क़ीमत बढ़ा दी है.
2008 में जब तेल की क़ीमत बढ़कर 100 अमेरिकी डॉलर/बैरल हो गई थी तो भारत सरकार के कुछ वर्गों की तरफ़ से तेल कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगाने की मांग की गई थी. लेकिन सरकार ने ये कहने से इनकार कर दिया कि इस तरह के टैक्स का कोई आर्थिक औचित्य नहीं है. अगस्त के पहले हफ़्ते में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि मौजूदा भू-राजनीतिक संकट से फ़ायदा उठाना तेल एवं गैस कंपनियों के लिए “अनैतिक” है. उन्होंने तेल एवं गैस कंपनियों से विशेष (विंडफॉल) टैक्स का सामना करने की बात कही. क्या फ़ायदा, ख़ास तौर पर अप्रत्याशित फ़ायदा, एक अत्याचार है जिस पर निश्चित रूप से टैक्स लगना चाहिए या तेल कंपनियों के फ़ायदे पर टैक्स लगाना अत्याचार है?
आर्थिक दलील
दुर्लभ, क़ीमती ऊर्जा संसाधनों जैसे कि तेल एवं प्राकृतिक गैस के उत्पादन पर ‘आर्थिक किराया’ लगता है जो कि प्राकृतिक संसाधन के मूल्यांकन के केंद्र में है. आर्थिक किराये को किसी भी उत्पादन के हिस्से को उसके मौजूदा इस्तेमाल में बनाए रखने के लिए ज़रूरी न्यूनतम रक़म से होने वाला फ़ायदे के रूप में परिभाषित किया जाता है. मोटे तौर पर ये उस फ़ायदे के बराबर है जो उत्पादन के एक हिस्से (उदाहरण के लिए, एक प्राकृतिक संसाधन का भंडार जैसे कि तेल)
की सामान्य आपूर्ति लागत से आगे अर्जित किया जा सकता है. खनिज संसाधनों जैसे कि तेल एवं गैस के खोजे गए भंडार की क़ीमत समय के साथ बढ़ती जाती है क्योंकि उनके कम होने से उनके प्रतिस्थापन की लागत बढ़ जाती है.
लंबे समय की सीमांत लागत से ज़्यादा मूल्य को ‘एकाधिकार लाभ’ कहा जाता है जो केवल उत्पादकों के बीच सांठगांठ या सरकारी आदेश के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. ‘आर्थिक किराया’ और ‘एकाधिकार लाभ’ के बीच अंतर केवल मतलब से जुड़ा नहीं है. आर्थिक किराया हमेशा बढ़ने वाली प्रतिस्थापन लागत के अनुरूप नई आपूर्ति के लिए आवश्यक प्रोत्साहन और नकद प्रवाह प्रदान करता है. घटते संसाधन के साथ जुड़े आर्थिक किराये को अस्वीकार करने का नतीजा भविष्य में संसाधन की कमी है. आर्थिक किराया किसी भी तरह से ऊर्जा ईंधन तक सीमित नहीं है. फिर भी ऊर्जा का सामाजिक एवं आर्थिक महत्व आर्थिक किराये की तरफ़ लोगों के विरोध को भड़काता है जो आम तौर पर ऊर्जा उद्योग और विशेष रूप से तेल उद्योग के हिस्से में आता है. तेल उद्योग को हमले के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है क्योंकि इसे आर्थिक किराया एवं एकाधिकार लाभ- दोनों के लाभार्थी के रूप में देखा जाता है. एकाधिकार लाभ के लाभार्थी के रूप में इसलिए क्योंकि ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) के साथ सांठगांठ एकाधिकार में योगदान देता है.
कुछ विवेचनाओं के मुताबिक़ ‘विंडफॉल प्रॉफिट’, ‘आर्थिक किराया’ और ‘एकाधिकार लाभ’- दोनों से पूरी तरह हटकर है और इसकी परिभाषा ‘संबंधित कंपनी के नियंत्रण के बाहर की परस्थितियों के माध्यम से अप्रत्याशित अर्जित लाभ’ के रूप में दी जाती है.
कुछ विवेचनाओं के मुताबिक़ ‘विंडफॉल प्रॉफिट’, ‘आर्थिक किराया’ और ‘एकाधिकार लाभ’- दोनों से पूरी तरह हटकर है और इसकी परिभाषा ‘संबंधित कंपनी के नियंत्रण के बाहर की परस्थितियों के माध्यम से अप्रत्याशित अर्जित लाभ’ के रूप में दी जाती है. चूंकि लाभ की न तो उम्मीद की जाती है और न ही ये कंपनी की कोशिशों का नतीजा है, तो ऐसे में ये मान लिया जाता है कि उस पर टैक्स लगाने से कंपनी को नुक़सान नहीं होगा. एक महीन अंतर इस मामले में भी हो सकता है कि क्या विंडफॉल प्रॉफिट बाज़ार के आवर्ती स्वरूप के कारण हो रहा है या उद्योग की संरचनात्मक विशेषताओं के कारण. अध्ययनों से पता चला है कि उद्योग के संरचनात्मक स्वरूप के कारण होने वाला विंडफॉल प्रॉफिट कंपनी के बर्ताव को प्रभावित नहीं करता है जबकि कम अवधि या आवर्ती कारणों से होने वाले प्रॉफिट पर टैक्स कंपनी के बर्ताव को प्रभावित करता है जिसका नतीजा संसाधनों के ग़लत आवंटन एवं विकृति के रूप में निकलता है और इससे परहेज करना चाहिए.
तेल के मामले में अनुभव वाली प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या तेल की आपूर्ति की जाती है और सभी समय के लिए सीमित है. अगर तेल की आपूर्ति पर क़ीमत का असर पड़ता है और इसलिए संकेत देता है कि ज़्यादा तेल की आपूर्ति उच्च क़ीमत पर होती है तो विंडफॉल प्रॉफिट पर टैक्स अर्थव्यवस्था में संसाधनों के ग़लत आवंटन को प्रेरित करता है और इसकी वजह से लोक कल्याण में कमी आती है.
अमेरिका का अनुभव
80 के दशक में विंडफॉल टैक्स लागू करने के अमेरिकी उदाहरण का व्यापक रूप से ज़िक्र होता है. जब कार्टर सरकार सत्ता में आई तो क़ीमत से नियंत्रण हटाना तेल की बढ़ती मांग पर रोक लगाने का एकमात्र उपलब्ध तरीक़ा था. उस वक़्त तेल की आपूर्ति का संकट था जिसकी शुरुआती वजह 1973 में अमेरिका और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ ओपेक के द्वारा लगाया प्रतिबंध और बाद की वजह 1979 में ईरान की क्रांति थी. घरेलू तेल की क़ीमत पर नियंत्रण हटाने से उम्मीद की गई कि 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा यानी तेल कंपनियों के लिए 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का अतिरिक्त लाभ. ‘विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स’ लगाने का उद्देश्य इस अतिरिक्त लाभ को प्राप्त करना था.
विश्व युद्धों के दौरान इकट्ठा किए गए ‘एक्सेस प्रॉफिट टैक्स’, जो कि कंपनियों की आमदनी पर एक अतिरिक्त टैक्स था, से हटकर कच्चे तेल पर अमेरिका में जमा विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स का प्रॉफिट से कोई मतलब नहीं था. ये तेल की क़ीमत पर लगाया गया एक टैक्स था और किसी तेल कंपनी के द्वारा अर्जित लाभ की गणना से पहले भुगतान किया जाता था. 1979 में तेल की क़ीमत को मुनासिब माना जाता था और उस क़ीमत से ज़्यादा दाम पर 15 से 70 प्रतिशत के बीच की दर से टैक्स लगाया जाता था. 1979 में जब विंडफॉल टैक्स बिल पर चर्चा हो रही थी तो वॉशिंगटन पोस्ट ने टिप्पणी की कि प्रस्तावित टैक्स महज़ ‘उत्पादित तेल के हर बैरल पर एक एक्साइज़ टैक्स’ है. जब बिल को पारित किया गया तो वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इसे ‘तर्क की मौत’ के रूप में परिभाषित किया था जिसने ‘देश की सुरक्षा को राजस्व के लिए उसकी प्यास के नाम बलिदान’ कर दिया था.
अमेरिका में कच्चे तेल पर विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स का अध्ययन करने वाले ज़्यादातर विश्लेषक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इसे बड़ी कामयाबी नहीं मिली.
अमेरिका में कच्चे तेल पर विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स का अध्ययन करने वाले ज़्यादातर विश्लेषक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इसे बड़ी कामयाबी नहीं मिली. 10 वर्षों के दौरान 300 अरब अमेरिकी डॉलर के राजस्व के अनुमान के विपरीत सिर्फ़ 80 अरब अमेरिकी डॉलर राजस्व के रूप में मिला. 80 के दशक में उम्मीद के मुताबिक़ तेल की क़ीमत में बढ़ोतरी नहीं हुई लेकिन मुद्रास्फीति से सूचीबद्ध आधार मूल्य में बढ़ोतरी जारी रही. इसके अतिरिक्त टैक्स को लागू करना उम्मीद से ज़्यादा जटिल और महंगा साबित हुआ. जितने समय तक ये टैक्स अस्तित्व में रहा, उस दौरान विदेशी तेल पर अमेरिका की निर्भरता 32 प्रतिशत से बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई. इस बढ़ोतरी की एक वजह विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स के कारण घरेलू उत्पादन में आई रुकावट थी.
भारत का मामला
पेट्रोलियम उद्योग के अपस्ट्रीम सेक्टर (तेल और गैस की खोज एवं उसे निकालने का काम) में उत्पादन में हिस्सा बांटने के समझौते (प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट) से सरकार को तेल की क़ीमत बढ़ने की स्थिति में लाभ का ज़्यादा हिस्सा मिल पाता है. अगर विंडफॉल टैक्स लगाया जाता है तो तेल कंपनियां ये बोझ कम लाभ के रूप में सरकार के ऊपर डाल देंगी. प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा लगाई जाने वाली रॉयल्टी एड-वेलोरम (मौद्रिक मूल्य) के आधार पर होती है. इसका मतलब ये है कि तेल की क़ीमत बढ़ने के साथ सरकार का राजस्व भी बढ़ जाता है. डाउनस्ट्रीम सेक्टर (रिफाइनिंग) एक ‘मार्जिन’ कारोबार है और रिफाइन करने का मार्जिन ज़रूरी नहीं है कि कच्चे तेल की क़ीमत के उतार-चढ़ाव के आधार पर हो. रिफाइनिंग कारोबार के प्रतिस्पर्धी स्वरूप और रिफाइनिंग की क्षमता में वैश्विक कमी के तथ्य को देखते हुए मार्जिन में सुधार के लिए ज़्यादा उत्पादन होने के साथ-साथ बहुत ज़्यादा तेल की क़ीमत नहीं होना ज़रूरी है. इन मूल बातों के आधार पर ये संभव है कि बेहद विस्तारपूर्वक स्तर पर रहा जाए और बैलेंस शीट के सहारे दिखाया जाए कि भारतीय तेल कंपनियों को तेल की ज़्यादा क़ीमत की वजह से ‘विंडफॉल प्रॉफिट’ नहीं हो रहा है. लेकिन इससे भी ज़्यादा उपयोगी कवायद होगी व्यापक सवालों को देखना: तेल कंपनियों पर एक अतिरिक्त टैक्स लगाने से कौन सा उद्देश्य हासिल होगा? क्या ये टैक्स भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान देगा? क्या ये टैक्स धन के समान वितरण और ग़रीबों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा?
चतुर्वेदी समिति की रिपोर्ट में विंडफॉल प्रॉफिट को संसाधन पर किराये की तरह बताया गया है और सिफ़ारिश की गई है कि विंडफॉल टैक्स से आने वाले राजस्व का इस्तेमाल ‘कम अवधि के उपाय’ के रूप में सब्सिडी के तौर-तरीक़े का समर्थन करने के लिए किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘संसाधन पर किराये’ का अधिकार सरकार को है और इस पक्ष में दलील भी दी गई है कि इस राजस्व का इस्तेमाल बजट में होने वाली कमी को पूरा करने और असमानता को दूर करने की नीतियों का समर्थन करने के लिए किया जाए. वैसे तो सुनने में ये वाजिब लग सकता है लेकिन नये राजस्व से सब्सिडी को शुरू करने से केवल बेकार की खपत में बढ़ोतरी होगी. ये सबको पता है कि सब्सिडी के कारण ग़रीबों को मदद मिलने से ज़्यादा मध्यम वर्ग और अमीर घरों में ऊर्जा की खपत में बढ़ोतरी होती है.
बैलेंस शीट के सहारे दिखाया जाए कि भारतीय तेल कंपनियों को तेल की ज़्यादा क़ीमत की वजह से ‘विंडफॉल प्रॉफिट’ नहीं हो रहा है. लेकिन इससे भी ज़्यादा उपयोगी कवायद होगी व्यापक सवालों को देखना
अगर विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स का इस्तेमाल कम अवधि के लिए भी क़ीमत में उठा-पटक या बजट में पैसे की कमी को पूरा करने के लिए किया जाता है तो इससे नीति बनाने वाले बेफिक्र होकर रहेंगे. वो हमेशा राजस्व के इस स्रोत का इस्तेमाल अपनी नीति को बनाए रखने के लिए कर सकते हैं. इसके अलावा विंडफॉल प्रॉफिट टैक्स तेल की घरेलू खोज और कच्चे तेल के उत्पादन पर प्रोत्साहन को कम करेगा जिसके कारण आयात पर निर्भरता में बढ़ोतरी होगी. तेल कंपनियों के लाभ के रास्ते को हटाकर सरकार न सिर्फ़ भारत की ऊर्जा सुरक्षा से समझौता करेगी बल्कि अपनी अक्षमता को भी आगे बढ़ाएगी.
स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल
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