पिछले महीने, यूक्रेन संघर्ष ने अपनी पहली वर्षगांठ थी. लेकिन आज भी इस संघर्ष और शत्रुता का कोई स्पष्ट अंत होता नहीं दिख रहा है. विशेषज्ञों की इस मामले पर राय अलग-अलग हैं : एक ओर यूक्रेन के ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख किरिल बुडानोव युद्ध के इस साल के अंत तक समाप्त होने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं, जबकि पश्चिमी अधिकारियों की राय है कि युद्ध ख़त्म होने में अभी कई साल लग सकते हैं.
शुरूआत से ही, यूक्रेनी सशस्त्र बल उस रूसी सेना का डटकर मुकाबला करने में जुट गए थे जिसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में दूसरे स्थान पर कायम रहने वाली सेना का रुतबा हासिल है.
सैन्य मोर्चा
यूक्रेन की ओर से किया जा रहा प्रतिकार एक ऐसी घटना बन गया है जिसकी उसके पश्चिमी भागीदारों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. एक और जहाँ पश्चिमी देशों की राय इस बात को लेकर आश्वस्त थीं कि यूक्रेन 72 घंटों में हार जाएगा वहीं व्लादिमीर पुतिन की योजना के अनुसार दो या तीन दिनों में कीव पर कब्ज़ा और कुछ हफ्तों में पूरे यूक्रेन को अपने अधिकार में ले लिया जाना था.
शुरूआत से ही, यूक्रेनी सशस्त्र बल उस रूसी सेना का डटकर मुकाबला करने में जुट गए थे जिसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में दूसरे स्थान पर कायम रहने वाली सेना का रुतबा हासिल है. यूक्रेनी सेना की सफ़लता उसे मिली रणनीतिक जीत की संख्या में परिलक्षित होती है, जिसने युद्ध के रुख को ही मोड़ दिया: यूक्रेनी मिसाइलों द्वारा काला सागर बेड़े के प्रमुख क्रूजर अर्थात युद्धपोत ‘‘मोस्कवा’’ का विनाश; झिमिनी द्वीप की मुक्ति; क्राइमिया के पुल को ध्वस्त करना; सुमी, कीव, शेर्निहिव्स्का ओब्लास्ट और बाद में खारकिव ओब्लास्ट और खेरसॉन शहर की मुक्ति; क्राइमिया और रूसी रणनीतिक हवाई क्षेत्र ‘‘एंगेल्स’’ में सैन्य सुविधाओं पर हमले; और यूक्रेन के पूर्व में रूसी आक्रमण की सफ़लता से रक्षा और निवारण आदि को इसमें शामिल किया जा सकता हैं.
इन रणनीतिक जीतों ने यूक्रेन के अपने देश की रक्षा करने की क्षमता को लेकर संशयवादी रहे पश्चिमी अधिकारियों के एक वर्ग को इस बात को लेकर आश्वस्त कर दिया है कि यूक्रेन में रूस को रोकने का जज्बा है. यूक्रेन को सैन्य सफ़लता और उसके राजनयिक प्रयासों के दो मोर्चों पर मिली सफ़लता के परिणामस्वरूप ही उसे मिलने वाले मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय समर्थन, रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों की शुरूआत, और सैन्य सहायता का प्रावधान किए जाने का रास्ता साफ़ हुआ था.
अमेरिका की पहल पर 21 अप्रैल 2022 को जर्मनी में अमेरिकी नियंत्रण वाले हवाई अड्डे पर विभिन्न देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में ही यूक्रेन को सैन्य सहायता के प्रावधान को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ आया था. रामस्टीन प्रारूप का मुख्य उद्देश्य संघर्ष के वर्तमान चरण और उसके बाद लंबे समय तक सैन्य-तकनीकी सहायता के लिए प्रयासों का समन्वय करना है. एक वर्ष के दौरान, रमस्टीन प्रारूप को लेकर आठ बैठकें हुईं, जिसने दुनिया के 50 से अधिक देशों को एकजुट करने का काम किया.
यूक्रेन के पश्चिमी भागीदारों ने हथियारों का प्रावधान करने के लिए जिस सावधानी और संतुलन का प्रदर्शन किया था, उसे देखते हुए यूक्रेन के समर्थन में पश्चिम की ओर से उठाया गया यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम कहा जाएगा. दरअसल, पश्चिमी देशों का यह मानना था कि रूसी सेना काफी जल्दी यूक्रेन को अपने कब्ज़े में ले लेगी. अत: पहले वे यूक्रेन की सेना को गुरिल्ला युद्ध के लिए तैयार करने की योजना पर काम कर रहे थे. लेकिन एक ही वर्ष में वे इस योजना से आगे बढ़कर यूक्रेनी सेना के सैनिकों को नाटो के ठिकानों पर पूर्ण प्रशिक्षण देने लगे और साथ ही यूक्रेन को उच्च तकनीक वाले पश्चिमी हथियार देने का प्रावधान करने संबंधी निर्णय भी लेने लग गए.
दुर्भाग्य से, पश्चिमी साझेदार युद्ध के जारी रहने की स्थिति में रूस के साथ टकराव में शामिल होने की अनिच्छा को लेकर, स्वयं ही भयभीत थे. इसी वज़ह से उन्होंने यूक्रेन को सहायता करने का निर्णय लेने में देरी लगाई थी. यही कारण था कि यूक्रेन के सैकड़ों नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और यूक्रेन में बड़े पैमाने पर आवासीय भवनों और बुनियादी ढांचे का विनाश भी हुआ था. उदाहरण के लिए, एक वर्ष के दौरान, रूसी सेना ने यूक्रेन के क्षेत्र में 5,000 मिसाइल और 3,500 हवाई हमले करने के अलावा 1,000 यूएवी भी लॉन्च किए थे. यूक्रेन के ऊपर ‘‘आसमान को बंद करने’’ का अनुरोध वसंत के बाद से ही सुना जा रहा है, लेकिन यूक्रेन को पैट्रियट वायु रक्षा प्रणाली जैसी प्रमुख वायु रक्षा प्रणाली प्रदान करने का निर्णय, रूसी संघ द्वारा जानबूझकर यूक्रेन की ऊर्जा प्रणाली को 50 प्रतिशत नष्ट करने के बाद ही किया गया था.
वर्तमान में, यूक्रेनी सेना टैंकों और बख्तरबंद वाहनों की सैकड़ों इकाइयों की प्रतीक्षा कर रही है, जिनमें लेपर्ड, अब्राम्स, ब्रैडली और मार्डर शामिल हैं. कई महीनों की हिचकिचाहट और परामर्श के बाद पश्चिमी साझेदार इन्हें प्रदान करने के लिए सहमत हुए हैं. अब पश्चिमी शक्तियों को पश्चिमी लड़ाकू विमान और लंबी दूरी की मिसाइलें मुहैया करवाने पर निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है.
‘‘सैन्य’’ शैली में कूटनीति
यूक्रेनी कूटनीति, यूक्रेन को बहुपक्षीय और द्विपक्षीय स्तरों पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण घटक बन गई है. इस संघर्ष ने यूक्रेनी राजनयिकों को मार्शल लॉ प्रारूप को अपनाने पर मजबूर कर दिया : न केवल उनके कपड़ों की शैली अब ‘‘सैन्य’’ शैली में बदल गई है, बल्कि अब देश की विदेश नीति के तौर पर उनका मुख्य लक्ष्य भी देश की सुरक्षा को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करने का हो गया है.
यूक्रेन के विदेश मंत्री, दमित्रो कुलेबा ने यूक्रेनी राजनयिकों को तीन मुख्य क्षेत्रों की गतिविधियों पर नज़र रखने को कहा है: सहयोगियों के साथ साझेदारी को मज़बूत करना; रूसी संघ पर विशेषत: प्रतिबंधों के संदर्भ में, अपना दबाव सुनिश्चित करना; और यूक्रेनी सेना को हथियारों की आपूर्ति पर समझौतों को लागू करने पर ध्यान देना. शरद ऋतु आते ही इन प्राथमिकताओं में ऊर्जा को भी जोड़ दिया गया. यूक्रेनी राजनयिकों को एक नए कार्य पर भी ध्यान देना पड़ रहा है, उनके लिए नष्ट बिजली व्यवस्था के लिए उपकरण की ख़ोज करना भी ज़रुरी हो गया है. मंत्री कुलेबा कहते हैं कि, ‘‘अब यूक्रेन के राजदूत और मैं दोनों ही 6.3 से 98 केडब्ल्यू की क्षमता के साथ-साथ 50 से 500 केडब्ल्यू की क्षमता वाले जनरेटर के बारे में सब कुछ जल्दी से सीख रहे हैं. मुझे स्वचालित स्विच की बारीकियों के बारे में भी काफ़ी जानकारी हो गई है. इसी प्रकार मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि ट्रांसफॉर्मर और उनके परिवहन से जुड़ी बारीकियों के बारे में भी मुझे समझना होगा. लेकिन अब मैं इस बारे में भी काफ़ी कुछ जानता हूं. यूक्रेन के ऊर्जा मंत्रालय, यूक्रेनर्गो और यूक्रेन के पूरे ऊर्जा उद्योग के साथ मिलकर, हम पहले से ही दुनिया के सभी देशों से, संभवत: कम से कम समय में, ऊर्जा प्रणालियों की बहाली के लिए आवश्यक सब कुछ ला रहे हैं. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि राजनयिक अपनी ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ करेंगे कि एक ओर तो युद्ध के मोर्चे पर हथियार उपलब्ध रहे, जबकि दूसरी ओर यूक्रेन के घरों में बिजली, गर्मी और पानी भी उपलब्ध रहे.’’
दुर्भाग्य से, पश्चिमी साझेदार युद्ध के जारी रहने की स्थिति में रूस के साथ टकराव में शामिल होने की अनिच्छा को लेकर, स्वयं ही भयभीत थे. इसी वज़ह से उन्होंने यूक्रेन को सहायता करने का निर्णय लेने में देरी लगाई थी.
इसके साथ ही, यूक्रेनी कूटनीति संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मंचों पर यूक्रेन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने में भी कामयाब रही है.
यूक्रेनी संकट की वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 141 मतों से ‘‘यूक्रेन में एक न्यायपूर्ण और स्थायी शांति पर’’ संकल्प को अपनाया, जो राष्ट्रपति जेलेंस्की के शांति सूत्र के प्रमुख प्रावधानों को सुनिश्चित करता है. यह 1991 में परिभाषित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने के आधार पर यूक्रेन में शांति की नींव रखने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. यह इस तथ्य के बारे में है कि क्राइमिया, डोनबास, खेरसॉन और जापोरीज्ज्या के क्षेत्रों और इसके कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर लेने की आड़ लेकर रूसी संघ, यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए सौदेबाजी नहीं कर सकेगा.
इसके अलावा, यूक्रेन अपने यूरोपीय और यूरो-अटलांटिक योजना को आगे बढ़ाने में प्रगति कर रहा है: 2022 में, यूक्रेन को एक सरलीकृत प्रक्रिया के तहत यूरोपीय संघ (ईयू) में सदस्यता के लिए उम्मीदवार का दर्जा प्राप्त हुआ और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने के लिए उसने आवेदन किया है. इसी प्रकार युद्ध के बाद की अवधि के लिए उसने दुनिया के प्रमुख देशों से युद्ध के बाद की सुरक्षा गारंटी हासिल करने की दिशा में भी कदम आगे बढ़ा दिए हैं.
अदम्य समाज
यह संघर्ष न केवल यूक्रेनी अधिकारियों के लिए बल्कि यूक्रेनी समाज के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गया है. इस संघर्ष की वज़ह से यूक्रेन में एक सामाजिक परिवर्तन देखा गया है. ग्रैडस रिसर्च के विश्लेषकों ने ऐसे आठ प्रमुख सामाजिक रुझानों की पहचान की है जो वर्तमान में यूक्रेन के नागरिकों बीच देखे जा रहे हैं: एक दूसरे पर और देश में बढ़ा हुआ विश्वास; अपनी पहचान को पुख्ता करना (मुख्य रूप से, सोवियत संघ के बाद बची हुई रूसी भाषा और रूसी सांस्कृतिक विरासत को लेकर अस्वीकृति का विकसित होना); नैतिक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता; एक माइग्रेशन अर्थात देशांतर शिफ्ट (लगभग 5-6 मिलियन यूक्रेन के नागरिकों ने युद्ध के कारण यूक्रेन छोड़ दिया था, लेकिन अब 70 प्रतिशत ने वापसी की इच्छा व्यक्त की है); जीत को लेकर विश्वास (87 प्रतिशत आश्वस्त हैं कि यूक्रेन अपने क्षेत्रों को मुक्त करवाने में सफ़ल हो सकता है); सेना के लिए रोज़गार और वित्तीय सहायता की बहाली (64 प्रतिशत यूक्रेन के नागरिक नियमित रूप से सैन्य और मानवीय सहायता के लिए धन दान करते हैं); ख़पत का युक्तिकरण; और मीडिया पर निर्भरता का बढ़ना इसमें शामिल हैं.
दमित्रो कुलेबा ने यूक्रेनी राजनयिकों को तीन मुख्य क्षेत्रों की गतिविधियों पर नज़र रखने को कहा है: सहयोगियों के साथ साझेदारी को मज़बूत करना; रूसी संघ पर विशेषत: प्रतिबंधों के संदर्भ में, अपना दबाव सुनिश्चित करना; और यूक्रेनी सेना को हथियारों की आपूर्ति पर समझौतों को लागू करने पर ध्यान देना.
इस के साथ ही, युद्ध के कारण स्थिरता और सुरक्षा से जुड़े जोख़िमों के बावजूद, 95 प्रतिशत यूक्रेनी नागरिक सैन्य प्रतिरोध जारी रखने के पक्षधर हैं. म्यूनिख सुरक्षा सूचकांक 2023 के अनुसार भले ही रूस सामरिक परमाणु हथियार का उपयोग करने की स्थिति में पहुंच जाएं, लेकिन यूक्रेन के 89 प्रतिशत लोग मॉस्को का विरोध करने के लिए तैयार हैं.
एक स्थिर और न्यायपूर्ण शांति को लेकर यूक्रेनी समाज ने उच्च मापदंड तय किए हैं. रूस को लेकर भरोसे की कमी के चलते ऐसी कोई भी बातचीत, जो रूस के यूक्रेनी क्षेत्र से पूरी तरह बाहर निकलने के पहले होती है, पर सवालिया निशान लगते रहेंगे. इसी प्रकार यूक्रेनी नागरिकों का मानना है कि जब तक यूक्रेन को अपनी रक्षा के लिए और भविष्य में रूसी संघ द्वारा बार-बार होने वाले हमलों को रोकने के लिए उपयुक्त बल और साधन प्रदान नहीं किए जाते हैं, तब तक शांति और स्थिरता का विचार करना भी बेमानी होगा.
अनुत्तरित सवाल
रूसी-यूक्रेनी संघर्ष के पहले वर्ष के प्रभाव को सारांशित करने में 19 फरवरी 2023 को संपन्न म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ था. सम्मेलन का प्रमुख सूत्र इस थीसिस पर आधारित था : ‘‘यूक्रेन को जीतना ही चाहिए; रूस को पराजित होना चाहिए.’’ इसमें अपने स्तर पर कीव के पश्चिमी सहयोगियों ने ‘‘जब तक यह ज़रूरी है’’ तब तक यूक्रेन का समर्थन करने को लेकर अपनी तैयारी पर बल दिया. हालांकि इससे एक अहम सवाल का जवाब नहीं मिलता : यूक्रेन को अभी और कितने समर्थन की आवश्यकता होगी?
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