30 मई को डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ फैसला आया. अमेरिकी कानून और राजनीति के इतिहास में सबसे निर्णायकों क्षणों में मैनहट्टन की ज्यूरी ने ट्रंप को 34 अपराधों के लिए दोषी ठहराया. ट्रंप अब न्यूयॉर्क राज्य में दोषी के रूप में हैं और 11 जुलाई को सज़ा सुनाए जाने का इंतज़ार कर रहे हैं जिसमें उन्हें चार साल के लिए जेल की सज़ा हो सकती है. 2016 में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान पोर्न स्टार स्टॉर्मी डैनियल को हश मनी (खुद को शर्मिंदगी से बचाने के लिए किसी को चुप कराने के एवज में पैसे का भुगतान) के भुगतान के मामले में ट्रंप को दोषी करार दिया जाना ट्रंप के पद छोड़ने के बाद उनके इर्द-गिर्द घूम रही राजनीति को लेकर कानूनी और राजनीतिक चुनौतियों में एक और मोड़ का प्रतीक है. दो दिनों में 9 घंटे की चर्चा के बाद ज्यूरी के द्वारा मुकदमे को वैध माने जाने के बाद भी मामले को लेकर कानूनी लड़ाई फैसले से काफी दूर है. उम्मीद की जाती है कि ट्रंप की कानूनी टीम फैसले के ख़िलाफ़ निश्चित तौर पर अपील करेगी. वहीं निर्णय के बाद से उनकी लोकप्रियता में काफी बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में आगे एक लंबी राजनीतिक लड़ाई है.
अगर ट्रंप राष्ट्रपति पद की रेस में बने रहने का फैसला करते हैं तो इसमें कोई कानूनी रुकावट नहीं है क्योंकि अमेरिका का संविधान इस संबंध में उम्मीदवारों के लिए कोई शर्त या मानदंड तय नहीं करता है.
वैसे तो वो महाभियोग की अदालत में दोषी करार दिए जाने वाले पहले राष्ट्रपति बने लेकिन रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप जूनियर की राष्ट्रपति पद की महत्वाकांक्षाओं के भविष्य को लेकर सवाल बने हुए हैं. ये सवाल न सिर्फ राष्ट्रपति पद के लिए ट्रंप की संभावित दावेदारी को मुश्किल बनाते हैं बल्कि उनके चुनाव जीतने के बाद पैदा होने वाली किसी कानूनी चुनौती को भी. अगर ट्रंप राष्ट्रपति पद की रेस में बने रहने का फैसला करते हैं तो इसमें कोई कानूनी रुकावट नहीं है क्योंकि अमेरिका का संविधान इस संबंध में उम्मीदवारों के लिए कोई शर्त या मानदंड तय नहीं करता है.
ट्रंप का दोषी होना
ज़्यादातर बहस इस बात पर केंद्रित है कि क्या ट्रंप को जेल जाना होगा. हालांकि इसकी संभावना नहीं लगती है. न्यूयॉर्क में बिना किसी आपराधिक इतिहास के केवल बिज़नेस रिकॉर्ड में धोखाधड़ी के लिए जिन लोगों को दोषी पाया जाता है, उन्हें शायद ही कभी जेल की सज़ा सुनाई गई है. इसके बदले आम तौर पर जुर्माना या प्रोबेशन (किसी विशेष अधिकारी के सामने एक तय समय तक नियमित रूप से उपस्थित होना) जैसी सज़ा दी जाती है. इसकी वजह से ट्रंप की कानूनी लड़ाई भले ही महत्वपूर्ण हो लेकिन उनकी उम्मीदवारी के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकती है.
वैसे तो चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को दोषी करार दिए जाने के राजनीतिक परिणाम को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. एक तरफ अमेरिका के मतदाताओं में ये भावना बढ़ रही है कि एक दोषी राष्ट्रपति उनके समर्थन के योग्य नहीं है. ओपिनियन पोल से संकेत मिलता है कि दोषी करार देने का फैसला ऐसे चुनाव में उन्हें महत्वपूर्ण वोट का नुकसान करा सकता है जहां कड़े मुकाबले वाले राज्यों में कम अंतर से निर्णय होने की संभावना है. अप्रैल में कराए गए रॉयटर्स/इप्सॉस के ओपिनियन पोल से पता चला कि रिपब्लिकन पार्टी के चार में से एक वोटर ने कहा कि अगर आपराधिक मुकदमे में ट्रंप को दोषी करार दिया जाता है तो वो उन्हें वोट देने से परहेज करेंगे. उसी सर्वे में 60 प्रतिशत स्वतंत्र मतदाताओं, जो किसी पार्टी से जुड़े नहीं हैं, ने कहा कि अगर ट्रंप को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है तो वो उन्हें वोट नहीं देंगे.
इन उम्मीदों के कुछ हद तक उलट ट्रंप ने कुशलता से इस पूरे प्रकरण को अपने राजनीतिक संचार के लिए एक शक्तिशाली हथियार में बदल लिया है. उन्होंने पहले ही ये दावा कर दिया है कि कोलंबिया में जन्म लेने वाले जज उनसे “नफरत” करते हैं. ये कहकर वो जज की पृष्ठभूमि के आधार पर पूर्वाग्रह का इशारा कर रहे हैं. इस तरह वो अमेरिका में नस्ल के इर्द-गिर्द राजनीतिक बहस को और तेज़ करते हैं. फैसले के तुरंत बाद ट्रंप के द्वारा ज़ोर देकर ख़ुद को “एक पूरी तरह से निर्दोष व्यक्ति” कहा जाना इस बात को उजागर करता है कि उनके बयान ने स्विंग मतदाताओं (जो किसी एक पार्टी के वफादार वोटर नहीं हैं) के एक बड़े वर्ग को वास्तव में प्रभावित किया है. इस बयान ने रिपब्लिकन पार्टी के मतदाताओं पर भी असर डाला है जो सोचते हैं कि न्यूयॉर्क के मुकदमे ने जान-बूझकर एक दुष्कर्म और अपराध के बीच की रेखा- एक प्रमुख अंतर जो 11 जुलाई के फैसले को तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है- को धुंधला कर दिया. ट्रंप की सज़ा को अब अपील के ज़रिए कानूनी प्रणाली को चुनौती देने और इसका लाभ उठाकर उनके पक्ष में समर्थन जुटाने की रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. ख़ुद को एक पक्षपातपूर्ण कानूनी प्रक्रिया का शिकार बताकर ट्रंप का मक़सद अपने समर्थकों से अधिकतम समर्थन हासिल करना और सज़ा को एक राजनीतिक बदले के रूप में पेश करना है. ये द्वंद्व- सज़ा की वजह से वोट का संभावित नुकसान और लक्ष्य बनाकर राजनीतिक संदेश के ज़रिए अपने आधार को जुटाना- ट्रंप के राजनीतिक भविष्य को लेकर उनकी कानूनी परेशानियों के जटिल और अप्रत्याशित प्रभाव पर ज़ोर देता है.
अप्रैल में कराए गए रॉयटर्स/इप्सॉस के ओपिनियन पोल से पता चला कि रिपब्लिकन पार्टी के चार में से एक वोटर ने कहा कि अगर आपराधिक मुकदमे में ट्रंप को दोषी करार दिया जाता है तो वो उन्हें वोट देने से परहेज करेंगे.
फैसले के ऐलान के कुछ देर के बाद डोनाल्ड ट्रंप के आधिकारिक प्रचार अभियान की वेबसाइट पर फंड जुटाने की भावनात्मक अपील में अचानक तेज़ी देखी गई. यहां तक कि कुछ देर के लिए वेबसाइट क्रैश भी हो गई. ट्रंप के प्रचार अभियान से जुड़े एक वरिष्ठ सलाहकार ब्रायन ह्यूजेस ने बताया कि ट्रंप को दोषी करार दिए जाने के बाद फंड जुटाने के उनके डिजिटल सिस्टम में रिकॉर्ड संख्या में समर्थक आए. ट्रंप बड़ी कुशलता से अपनी कानूनी लड़ाई को एक ऐसे सिस्टम के ख़िलाफ व्यक्तिगत धर्मयुद्ध के रूप में तैयार कर रहे हैं जो सभी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति पद पर उनकी वापसी को नाकाम करने में लगा हुआ है. दो महाभियोगों में ट्रंप को सज़ा दिलाने की नाकाम कोशिशों और 2020 के चुनाव में धांधली को लेकर ट्रंप के दावों को रिपब्लिकन पार्टी के कई प्रमुख सदस्यों के द्वारा दोहराने के बाद रिपब्लिकन पार्टी की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि ट्रंप के प्रति पार्टी की वफादारी की सीमाओं की परीक्षा ली गई है. इस अटूट समर्थन से पता चलता है कि ट्रंप के संभावित दूसरे कार्यकाल में उनके उतार-चढ़ाव से भरे पहले कार्यकाल की तुलना में कम दबाव हो सकता है.
अमेरिका एक ऐसे चौराहे पर है जहां संभावित रूप से दो कमज़ोर दावेदार उन परिस्थितियों में व्हाइट हाउस के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं जो अमेरिकी न्यायिक प्रणाली और उसकी लोकतांत्रिक जड़ों की गहराई की परीक्षा ले सकती हैं.
ट्रंप एक जटिल परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां पीड़ित होने और संस्थागत शक्तियों की अवहेलना का नैरेटिव उनके समर्थकों के साथ गहराई से मेल खाता है और इस तरह मतदाताओं में और अधिक ध्रुवीकरण होता है और लोकतांत्रिक स्थिरता ख़तरे में आती है. इससे भी बड़ी चिंता फैसले के बाद ट्रंप के समर्थकों के द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा से पैदा होती है जो कानून-व्यवस्था के साथ-साथ अमेरिका के द्वारा सदियों से बरकरार रखे गए लोकतांत्रिक मूल्यों को ख़तरे में डालती है. लगता है कि वो दौर बीत गया जब रिपब्लिकन पार्टी की राजनीति पर उदारवाद का महत्वपूर्ण प्रभाव था. ट्रंप के द्वारा मुकदमे में धांधली के आरोपों के बाद उनके समर्थकों की तरफ से हिंसक प्रतिक्रिया की आशंका है. फैसले के बाद ट्रंप के समर्थकों की तरफ से हिंसक बयानबाज़ी, जिनमें लोकतंत्र को उखाड़ फेंकने और न्यायिक अधिकारियों को नुकसान पहुंचाने की धमकी शामिल हैं, मौजूदा राजनीतिक माहौल की अस्थिरता को उजागर करती है. हालांकि ये देखते हुए कि कोर्ट की तरफ से ट्रंप पर चुप रहने का आदेश लागू है और सज़ा सुनाया जाना बाकी है, ऐसे में समर्थकों से संयमित व्यवहार की उम्मीद की जाती है. संभावित परिणाम का अमेरिकी लोकतंत्र की स्थिरता और अखंडता पर दूरगामी प्रभाव हो सकता है.
निष्कर्ष
अमेरिका एक ऐसे चौराहे पर है जहां संभावित रूप से दो कमज़ोर दावेदार उन परिस्थितियों में व्हाइट हाउस के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं जो अमेरिकी न्यायिक प्रणाली और उसकी लोकतांत्रिक जड़ों की गहराई की परीक्षा ले सकती हैं. इतिहास हमें बताता है कि भले ही संस्थानों ने अतीत के राष्ट्रपतियों की व्यक्तिगत नैतिक विफलताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया हो लेकिन वो व्यवस्थात्मक विश्वासघात को नहीं भूलते हैं. बिल क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप- दोनों को शपथ लेकर झूठ बोलने की भारी कीमत चुकानी पड़ी.
वैसे तो अमेरिका की संस्थागत संरचना मज़बूत है लेकिन वो इस तरह के संकटों की उथल-पुथल से अछूती नहीं है. भले ही अमेरिकी संस्थाएं इस प्रकरण के कारण आसानी से हिल नहीं पाई हैं लेकिन उसकी व्यवस्था की मज़बूती का ये भी मतलब है कि इन ‘स्टॉर्मी’ (तूफानी) अनिश्चितताओं का सामना करना तेज़ी से मुश्किल होता जा रहा है. इन संस्थानों की मज़बूती की गंभीरता से परीक्षा होगी क्योंकि ये अभूतपूर्व चुनौतियों के सामने लोकतंत्र के सिद्धांतों को बरकरार रखते हैं. आख़िरकार ये मामला या तो अमेरिकी लोकतंत्र की मज़बूती की पुष्टि करेगा या उसकी कमज़ोरियों को उजागर करेगा.
विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.
पंकज फणसे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के CIPOD में डॉक्टरल स्कॉलर हैं.
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