श्रीलंका अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. देश की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है. जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी कर पाने में सरकार असफल हो गई है. पेट्रोल-डीजल से लेकर दूध और दूसरी खाद्य सामग्रियां इतनी महंगी हो गई हैं कि लोग ख़रीद नहीं पा रहे हैं. श्रीलंका की जनता राजशाही के ख़िलाफ उठ खड़ी हुई है. ऐसे में सवाल उठता है कि श्रीलंका की इस दुर्दशा के लिए लोकशाही कितना दोषी है. कभी पर्यटन के लिए दुनिया में मशहूर यह आइलैंड आज आर्थिक रूप से कैसे तबाह हो चुका है. श्रीलंका में हालात इतने बुरे हैं कि आजादी के बाद एक बार फिर श्रीलंका गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है. ऐसे में यह जानना उपयोगी हो गया है कि आखिर श्रीलंका के इस हालात के लिए कौन दोषी है? इसके लिए सत्ता पक्ष कितना दोषी है?
वर्ष 2019 में श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन हुआ. गोटाबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिए व्यापक रियायतों का वादा किया था. इस अतार्किक और अविवेकपूर्ण वादों को पूरा करने में समस्या को और विकराल कर दिया.
केंद्रीय सरकार का गलत प्रबंधन
विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है श्रीलंका में यह संकट एक दिन का नतीजा नहीं है. यह कई वर्षों से पनप रहा था. इसकी एक वजह केंद्रीय सरकार का गलत प्रबंधन भी है. पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकारों ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम क़र्ज़ के रूप में ली. उन्होंने कहा कि बढ़ते क़र्ज़ के अलावा कई अन्य कारणों ने देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की. इसके लिए प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित तबाही भी शामिल है. वर्ष 2018 में श्रीलंका में राजनीतिक संकट से स्थितियां और बदतर हो गईं. श्रीलंका में उपजे संवैधानिक संकट के चलते देश की अर्थव्यवस्था को उबरने का मौका नहीं मिला.
प्रो पंत ने कहा कि वर्ष 2019 में श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन हुआ. गोटाबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिए व्यापक रियायतों का वादा किया था. इस अतार्किक और अविवेकपूर्ण वादों को पूरा करने में समस्या को और विकराल कर दिया. वर्ष 2020 में वैश्विक कोरोना महामारी ने इस समस्या को और बदतर कर दिया. इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ को तोड़ दिया. कोरोना महामारी के दौरान चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को भारी नुकसान पहुंचा. श्रीलंका सरकार इस स्थिति से उबर नहीं पाई.
पर्यटन उद्योग भी बड़ा कारण
प्रो पंत ने कहा कि श्रीलंका की इस हालत के लिए पर्यटन उद्योग भी बड़ा कारण रहा है. दरअसल, अप्रैल, 2019 में कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों में ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग हताहत हुए थे. इस घटना के बाद देश में पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है. विदेशी पर्यटक साल 2019 के बाद से ही श्रीलंका में जाने से कतराने लगे हैं. इसका असर उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा. बता दें कि श्रीलंका की सकल घरेलू आय में 10 फीसदी हिस्सा पर्यटन उद्योग का रहा है. ऐसे में श्रीलंका का पर्यटन उद्योग पूरी तरह से चौपट हो गया.
अप्रैल, 2019 में कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों में ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग हताहत हुए थे. इस घटना के बाद देश में पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है.
इसके अलावा वर्ष 2021 में सरकार ने सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातों-रात सौ फीसद जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा कर दी. रातों-रात जैविक खादों की ओर आगे बढ़ जाने के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया. नतीजतन, श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिए देश में एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी. इस फैसले का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा.
चीन की नजदीकी श्रीलंका पर भारी पड़ा है. चीन की रणनीति ऐसी है कि जिस देश में उसने अपने निवेश बढ़ाए हैं, वहां राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है.
श्रीलंका संकट से सबक़
प्रो पंत का कहना है कि श्रीलंका के इस हालात के लिए कहीं न कहीं चीन का निकट होना भी बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि इस बात को नकारा नहीं जा सकता है. चीन की नजदीकी श्रीलंका पर भारी पड़ा है. चीन की रणनीति ऐसी है कि जिस देश में उसने अपने निवेश बढ़ाए हैं, वहां राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और श्रीलंका इसके ज्वलंत उदाहरण है. उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है. प्रो पंत ने कहा कि श्रीलंका ने चीन के साथ जाने की रणनीतिक भूल की है.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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