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Published on Mar 24, 2023 Updated 0 Hours ago

भारतीय सेना को अगर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की सेना का प्रभावी ढंग से मुक़ाबला करना है तो उसे धीरे-धीरे सुधार नहीं बल्कि एक वास्तविक कायापलट की ज़रूरत है.

सामरिक प्राथमिकताओं के लिए संसाधनों का इंतज़ाम: अमेरिकी मरीन कोर और भारतीय सेना की चिंताएं

यूनाइटेड स्टेट्स मरीन कोर (USMC) इस समय कायापलट के बीच या कम-से-कम महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत करने के कगार पर है जो मरीन कोर की बनावट या संरचना में अहम बदलाव लाएगा. USMC ने इसे फोर्स डिज़ाइन 2030 का नाम दिया है. मरीन कोर एक असाधारण बल है जो कि अमेरिकी नौसेना (USN) का एक हिस्सा है और अमेरिका पर आए किसी भी संकट या सैन्य ज़रूरत के मामले में सबसे पहले जवाब देती है. USMC कई विशेष क्षेत्रों जैसे कि सेंसर तकनीक, सिग्नल प्रोसेसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एवं उसके वेरिएंट मशीन लर्निंग (ML), AI एवं ML के रोबोटिक एप्लिकेशन, गोला-बारूद की डिलीवरी और इंटेलिजेंस, निगरानी एवं टोह लेने (ISR) के मिशन के रूप में सस्ते ड्रोन के काम में ख़तरे की आशंका देखती है. इसके अतिरिक्त USMC हवाई, समुद्री, अंतरिक्ष और साइबर स्पेस या आम तौर पर "ज़मीन आधारित, लंबी दूरी, प्रेसिज़न एंटी-सरफेस एवं एयर डिफेंस" के साथ जुड़े इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम (EMS) की क्षमता को देखती है और इस तरह मित्र देशों को एंटी-एक्सेस एंड एरिया डिनायल (A2AD) रणनीति के ज़रिए काफ़ी मारक क्षमता और हमला करने की ताक़त मुहैया कराती है. ये मानते हुए कि कोई दुश्मन या एक से ज़्यादा दुश्मन एंटी-एक्सेस रणनीति को भेद देते हैं तो A2AD को लागू करने वाला देश परंपरागत व्यापक ज़मीन संरचना, उनके युद्ध अभ्यास और साजो-सामान की मदद के ख़िलाफ़ संगठित तौर पर लंबी दूरी के सटीक हमले कर सकता है.

मरीन कोर एक असाधारण बल है जो कि अमेरिकी नौसेना (USN) का एक हिस्सा है और अमेरिका पर आए किसी भी संकट या सैन्य ज़रूरत के मामले में सबसे पहले जवाब देती है.

ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि USMC की सोच के पीछे चीन का ख़तरा है लेकिन USMC ये अनुमान भी लगाती है कि कुछ ग़ैर-सहयोगी देशों तक भी एंटी-एक्सेस क्षमता की पहुंच होगी. वर्तमान में USMC जिन क्षेत्रों में बहुत ज़्यादा निवेश कर रही है लेकिन उसके सामने जवाबदेही है वो हैं हथियारबंद भारी संरचना या युद्धक टैंक जो कि साजो-सामान पर केंद्रित भी हैं, कम दूरी की कम क्षमता वाले अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV), खींचने वाला तोपखाना, हेलीकॉप्टर स्क्वॉड्रन की एक अच्छी संख्या और कुछ इन्फैंट्री बटालियन. इसके परिणामस्वरूप USMC विरासत में मिले इन प्लैटफॉर्म और क्षमताओं को छोड़ना चाहती है. उनकी जगह पर USMC के द्वारा सोचे गए नए बल के प्रमुख घटकों में शामिल हैं: लंबी दूरी के आर्टिलरी रॉकेट एवं एयर डिफेंस सिस्टम (ADS), लंबी दूरी की मिसाइल और हमले के साथ-साथ अंतरिक्ष, साइबर स्पेस एवं इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) की क्षमताओं से लैस ISR (इंटेलिजेंस, निगरानी एवं टोह) मिशन का काम करने वाले ज़्यादा क्षमता के UAV. ये मरीन कोर के लिए योजना बनाने वालों को बाध्य करते हैं कि वो धीरे-धीरे बदलाव की जगह महत्वपूर्ण कायापलट करने का काम करें. ये सभी बदलाव इस विचार के साथ करने की कोशिश की जा रही है कि भविष्य के युद्ध काफ़ी दूरी से होने की उम्मीद है.

भारतीय सेना के लिए विशेष रूप से तात्पर्य: अग्निवीर योजना को भरोसेमंद बनाइए

अमेरिकी मरीन के कमांडेंट, जनरल डेविड बर्जर ने भविष्य में USMC फोर्स के डिज़ाइन के बारे में कहा: “इस धारणा के तहत काम करते हुए कि हमें अतिरिक्त संसाधन नहीं मिलेंगे, हमें हर हाल में कुछ मौजूदा क्षमताओं और ताक़तों को ज़रूरी नई क्षमताओं के लिए संसाधन जुटाने के उद्देश्य से छोड़ देना चाहिए.” वास्तव में भारत की सरकार और भारतीय सेना ठीक इसी तरह नहीं तो इससे मिलती-जुलती धारणा के तहत आगे बढ़ी है कि कम-से-कम निकट भविष्य या कुछ समय बाद भारतीय सेना के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं होंगे और जब तक आधुनिकीकरण के लिए सेना के पास ज़्यादा पैसे नहीं होते हैं, तब तक उसे बेहतर क्षमता से लैस करने के लिए सेना की पुनर्संरचना का ही विकल्प होगा. अमेरिकी मरीन की तरह भारतीय सेना पर भी बहुत ज़्यादा सैनिकों और रिटायर सैनिकों के बड़े समूह का बोझ है जिनके वेतन और पेंशन में सेना के सालाना बजट का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है. इस तरह ज़्यादा सक्षम और लंबी दूरी तक सटीक हमला करने के लिए तैयार लड़ाकू बल के लिए संसाधनों की उपलब्धता पर संकट खड़ा हो जाता है. वास्तव में अगर भारतीय सेना को चीन के साथ लंबी और विवादित ज़मीनी सरहद पर चीन की सेना का मुक़ाबला करना है तो उसे धीरे-धीरे सुधार की नहीं बल्कि एक वास्तविक कायापलट की ज़रूरत है. तीन अहम क्षेत्र हैं जहां भारतीय सेना को ज़्यादा निवेश करने की ज़रूरत है: लंबी दूरी की आर्टिलरी, मिसाइल और ड्रोन. इस संदर्भ में अग्निवीर योजना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सरकार को सैनिकों पर आने वाली लागत को कम या सीमित करने में मदद करती है और इससे बचने वाले पैसे का इस्तेमाल सेना के आधुनिकीकरण में किया जा सकता है. इससे वेतन और पेंशन पर बचत करने में सहायता मिलती है क्योंकि नए भर्ती होने वाले सैनिकों के सेवा कार्यकाल को बुनियादी ट्रेनिंग समेत चार साल तक ही सीमित किया गया है. सैनिकों पर होने वाले खर्च में कटौती से होने वाली बचत से लंबी दूरी की आर्टिलरी, मिसाइल और ज़्यादा क्षमता के ड्रोन की ख़रीदारी के लिए पैसे की मदद मिलेगी. ये क़दम भारतीय सेना के डिजिटाइज़ेशन का रास्ता भी तैयार कर सकता है. 

वास्तव में अगर भारतीय सेना को चीन के साथ लंबी और विवादित ज़मीनी सरहद पर चीन की सेना का मुक़ाबला करना है तो उसे धीरे-धीरे सुधार की नहीं बल्कि एक वास्तविक कायापलट की ज़रूरत है. तीन अहम क्षेत्र हैं जहां भारतीय सेना को ज़्यादा निवेश करने की ज़रूरत है: लंबी दूरी की आर्टिलरी, मिसाइल और ड्रोन.

भारतीय सेना को ज़्यादा साइबर एवं अंतरिक्ष सक्षम बल बनने की आवश्यकता है जो लंबी दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम (ADS), आर्टिलरी रॉकेट, मिसाइल एवं सशस्त्र ड्रोन से लैस हो जिसका कि परीक्षण किया जा रहा है जैसे कि एंटी-टैंक मिशन के लिए तैयार PALM 500 रिमोटली पायलटेड व्हीकल (RPV). सेना को युद्ध क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए बैलिस्टिक मिसाइल की भी आवश्यकता है. अच्छी बात ये है कि सेना को ये मिसाइल मिल रही है जैसे कि सतह से सतह पर मार करने वाली प्रलय मिसाइल जिसकी रेंज 150-500 किलोमीटर है. इसके बावजूद कुछ ख़बरों से पता चलता है कि भारतीय सेना को सिर्फ़ 120 प्रलय मिसाइल मिलेगी जो कि बहुत कम है, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान की सेना के द्वारा भारत के ख़िलाफ़ बड़ी संख्या में तैनात की जाने वाली मिसाइल की आशंका को देखते हुए. भारतीय सेना को ऐसी मिसाइल सैकड़ों की संख्या में तैनात करना चाहिए. इसके अलावा भारतीय सेना को अमेरिकी मूल के ट्रक से लॉन्च होने वाले और तीन व्यक्तियों के द्वारा संचालित हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) को हासिल करने पर निश्चित रूप से विचार करना चाहिए जिनकी प्रमाणित रेंज 300 किलोमीटर है और जिसे गोला-बारूद के विकास के बाद बढ़ाकर 500 किलोमीटर तक किया जा सकता है. यूक्रेन की सेना ने रूस के ख़िलाफ़ इसका इस्तेमाल काफ़ी असर और घातकता के साथ किया है. कई देशों ने पहले ही HIMARS को तैनात कर दिया है जैसे कि जॉर्डन, पोलैंड, सिंगापुर, रोमानिया और संयुक्त अरब अमीरात. HIMARS को आसानी से C-130 एयरक्राफ्ट के ज़रिए ले जाया जा सकता है जो कि भारतीय वायु सेना के पास है. 

सीमा पर संघर्ष

अमेरिकी मरीन के द्वारा अपने पुनर्गठन की कोशिशों के विपरीत भारत अभी टैंक से छुटकारा नहीं पा सकता है. वास्तव में न केवल पंजाब के मैदान और राजस्थान के रेगिस्तान बल्कि चीन-भारत सीमा से लगे भू-भाग, विशेष रूप से लद्दाख में, बख्त़रबंद गाड़ियों की तैनाती के लिए अवसर ज़रूरी बनाते हैं. भारत चीन के ख़िलाफ़ अभियान में इस्तेमाल के लिए हल्के टैंक को विकसित करने पर निवेश कर रहा है. हालांकि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की 75वीं ग्रुप आर्मी (GA) पहले से ही भारतीय सेना के ख़िलाफ़ टाइप-15 हल्के टैंक के रूप में इसकी तैनाती कर चुकी है. इसके अलावा न तो चीन, न ही पाकिस्तान की सेना ऐसा कोई स्पष्ट संकेत दे रही है कि वो अपने बलों से टैंक को हटा रही हैं. सैनिकों पर केंद्रित बल होने की वजह से भारतीय सेना के द्वारा जो सोचा गया है उसके अनुसार सबसे महत्वपूर्ण कटौती नियमित पैदल सेना के साथ होगी. लेकिन HIMARS एवं बैलिस्टिक मिसाइल और अंतरिक्ष, साइबर स्पेस, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) एवं AI की क्षमता से लैस ज़्यादा मज़बूत ड्रोन जैसे सटीक लंबी दूरी के मारक हथियार, जो बड़े बदलाव ला सकते हैं, को विकसित या हासिल करने का रास्ता उतना आसान नहीं होगा. अग्निवीर योजना की पहले से ही कड़ी आलोचना के साथ-साथ विरोध भी हो रहा है. इसकी वजह से इसमें संशोधन किया जा रहा है. इससे ये आशंका भी है कि अग्निवीर योजना से उतनी बचत नहीं हो पाएगी जो PRC का मुक़ाबला करने के उद्देश्य से भारतीय सेना के बेहतर सशस्त्र एकीकृत बल बनने के लिए आवश्यक है. ऐसे में ब्रिटेन के एक रक्षा विशेषज्ञ की कहावत का ज़िक्र करें तो “सामरिक प्राथमिकताओं का संसाधनों से मिलान करना सदियों पुरानी समस्या है.”

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