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भारतीय नीति निर्माता अब चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ 'टू फ्रंट वॉर' यानी दोतरफा युद्ध की अप्रिय संभावना पर विचार कर रहे हैं।
यह लेख The China Chronicles श्रृंखला का 50 वीं हिस्सा है।
जहाँ चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ भारत के रिश्ते लगातार ख़राब हो रहे हैं, इन दोनों के साथ दो तरफ़ा युद्ध की संभावना पर भी विचार किया जा रहा है। क्या ऐसी युद्ध की सूरत में पाकिस्तान और चीन एक दुसरे का खुल कर साथ देंगे यानी क्या पहले से तय्यारी के साथ वो भारत पर हमला कर सकते हैं या फिर मौके के हिसाब से सहयोग होगा, दोनों ही हालत में भारतीय सेना इस चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयारी नहीं है। दो देशों की मिली जुली सैन्य क्षमता (पाकिस्तान की सेना और चीन की सेना का कुछ हिस्सा) समय के साथ बढ़ी भी है और बदली भी है। चीन अपनी सेना का आधुनिकीकरण तेज़ी से कर रहा है साथ ही सेना के बजट में बढ़ोतरी से सेना की संख्या भी बढ़ी है। इस के मुकाबले भारत की सेना अभी असमंजस से जूझ रही।
इस लेख में दो तरफ़ा सैनिक क्षमता का अनुपात IISS Military Balance के आंकड़ों के आधार पर आँका गया है। (२०११ के अंक के आंकड़े २०१० के मिलटरी बैलेंस अंक में इस्तेमाल किया गए हैं)। इस लेख का मुख्या विश्लेषण ये है की दो तरफ़ा सेना का अनुपात कभी भी भारत के पक्ष में नहीं था और समय के साथ इसका झुकाव विरोधियों की तरफ होता जा रहा है। वो भी तब जब हम ये मान कर चल रहे हैं की चीन की सेना का एक बहुत ही छोटा हिस्सा इस दो तरफ़ा युद्ध में शामिल होगा।
इस लेख में जो नतीजे सामने आये हैं उस के साथ एक सावधानी भी बरतनी ज़रूरी है। इस में सिर्फ ७ हथियारों को ध्यान में रखा गया है। और पुख्ता नतीजों के लिए और गहरा अध्यन चाहिए होगा। इस के बावजूद जो नतीजे सामने आये हैं वो चिंताजनक हैं। भविष्य में चीन और पाकिस्तान के खतरे की सूरत में भारतीय सेना की संख्या और क्वालिटी दोनों में सुधार की तत्काल प्रभाव से ज़रूरत है।
भारत के खिलाफ दो तरफ़ा युध्ह ३ तरीके से शुरू हो सकता है। सबसे पहले तो पाकिस्तन भारत और चीन के टकराव का फायदा उठा सकता है। दूसरा अगर भारत और पाकिस्तान के बीच परंपरागत युध्ह की हालत बनी तो चीन पाकिस्तान की मौके के मुताबिक मदद करेगा। तीसरा चीन और पाकिस्तान दोनों भारत के खिलाफ इकठ्ठा होकर पूर्वी और पश्चिमी बॉर्डर पर एक साथ हमला कर दें। इन तीनो में पहला विकल्प सबसे ज्यादा संभव लगता है चूँकि चीन खुले आम एक आक्रामक देश नहीं नज़र आना चाहता और न ही मौकापरस्त दिखना चाहता है चूँकि वो एशिया में एक सुपरपावर के तौर पर खुद को साबित करने में लगा हुआ है। इसलिए भी पहली स्थिति ज्यादा मुमकिन लगती है क्यूंकि अगर चीन को भारत पर हमला करना होगा तो वो ऐसा अकेले ही कर सकता है। हो सकता है की भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर युध्ह हो और पाकिस्तान इसका फायदा उठा कर कश्मीर के खिलाफ युद्ध छेड़ दे क्यूंकि वैसे तो उसकी सेना अनुपात में भारत से कमज़ोर है।
पाकिस्तान के टैंक के मुकाबले भारत के टैंक के अनुपात में भारत को जो फायदा था वो कम होता गया है पहले ये अनुपात ०.६ था जो २०१६ तक बढ़ कर ०.८५ हो गया। (बढ़ता सेना अनुपात ये दिखाता है की भारत की स्थिति कमज़ोर हो गयी है, फ़ोर्स रेश्यो का मतलब है भारतीय सेना के सैन्य उपकरणों की एक यूनिट के मुकाबले दुश्मन की ताक़त) चीन के साथ भी यही पैटर्न नज़र आता है। बैटल टैंक यानी MBT अनुपात २००७ में १.८९ से बढ़ कर २०१६ में २.२३ हो गया। लड़ाकू विमानों की स्थति कुछ बेहतर है। २००७ में पाकिस्तान के लिए ये अनुपात ०.६४ था जो १० सालों बाद घाट कर ०.५६ हो गया। इस दौरान चीन और भारत के बीच कुल एयरक्राफ्ट का रेश्यो भी घटा है ३.१२ से २.८७। इस के बावजूद चीन इस छेत्र में भारत पर हावी है।
ये समझना ज़रूरी है की ये विश्लेषण सिर्फ इन दो परिवर्तनशील चीज़ों यानी टैंक और एयरक्राफ्ट के बदलाव पर निर्भर नहीं। हाल ही में रक्षा विश्लेशक प्रवीन साहनी और गज़ाला वहाब ने एक किताब में बताया है की किन तरीकों से चीन भारत से बेहतर स्थिति में है, जैसे उनकी राकेट क्षमता और कमांड की क्षमता पुरानी तोपों पर निर्भर तकनीक की जगह ले चुकी हैं। अमेरिकन पोलिटिकल साइंटिस्ट वाल्टर लाद्विग की रिसर्च में कई और परिवर्तनशील चीज़ों का विवरण है जैसे की भूगोल और आपका नजरिया। भारत की सामरिक श्रेष्ठता के दावे खोखले नज़र आते हैं।
दोतरफा फाॅर्स रेश्यो या सैन्य अनुपात को मापने के लिए इस फार्मूला का इस्तेमाल किया गया है।
TFFR = (XPak + α×XChn)/XInd
यहाँ पाकिस्तानी, चीनी और भारतीय उपकरण दिखाए हैं, जो बदल सकते हैं, जैसे x का मतलब मेन बैटल टैंक या लड़ाकू विमान या कुछ और हो सकता है। गुणक α 0 से १ के बीच का अंक है और ये दिखता है की युध्ह के हालत में चीन के उपकरणों का क्या फ्रैक्शन भारत के खिलाफ इस्तेमाल होगा। इस लेख में गुणक ०.२, ०.३ और ०.४ के बीच है यानी उन स्थितियों की बात है जहाँ चीन २० फीसदी ३० फीसदी या ४० फीसदी अपने उपकरण भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेगा (ये मान कर चलते हैं भारत और पाकिस्तान किसी एक प्रकार के अपने सारे हथियार एक दुसरे के खिलाफ एक समय पर इस्तेमाल करेंगे)।
इस ग्राफ से दो चीज़ें साफ़ हैं, दो तरफ़ा सेना अनुपात २०१० से अब तक काफी बदला है और दुसरे पाकिस्तान को मेन बैटल टैंक के अनुपात के मामले में भारत से बढ़त है अगर भारत और चीन का टकराव होता है।
टेबल १.
| वर्ष | भारत | पाकिस्तान | चीन |
| 2007 | 4,059 | 2,461 | 7,660 |
| 2008 | 4,065 | 2,461 | 7,660 |
| 2009 | 4,047 | 2,461 | 6,550 |
| 2010 | 4,117 | 2,386 | 7,050 |
| 2011 | 3,233 | 2,411 | 7,400 |
| 2012 | 3,274 | 2,411 | 7,430 |
| 2013 | 2,874 | 2,501 | 6,840 |
| 2014 | 2,874 | 2,531 | 6,540 |
| 2015 | 2,974 | 2,561 | 6,540 |
| 2016 | 3,024 | 2,561 | 6,740 |
हालाँकि पाकिस्तान की MBT क्षमता लगभग एक जैसी रही है, पिछले १० सालों में १०० टैंक इसमें जुड़े हैं, भारत के टैंक क्षमता घटी है, १००० टैंक कम हुए हैं। अमेरिकी विद्वान शेन मसों ने ये तर्क दिया है की चीन के खिलाफ सेना की माउंटेन डिवीज़न तैयार करने की ये कीमत भारत को चुकानी पड़ी है की उसके टैंक कम हुए हैं क्यूंकि इसके लिए बजट कम किया गया है। इस समस्या को दूर करने के लिए भारत सर्कार ने प्रस्ताव दिया है की पुराने T 72 टैंक की जगह FRCV या फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल लाये जाएँ। चीन के टैंक की संख्या में कमी की वजह है शी जिनपिंग के अंतर्गत सेना के ढाँचे में फेर बदल, जिसमें थल सेना से ज्यादा ध्यान PLA की वायु शक्ति और नौ सेना को मज़बूत करना है जिसमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी, पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयर फ़ोर्स और आर्मी राकेट फ़ोर्स शामिल है।
फिगर ३ का दूसरा पॉइंट ख़ास ध्यान देने वाला है। मान लिजिय की चीन भारत से युद्ध या टकराव की स्थिति में अपने MBT या मेन बैटल टैंक का 30 फ़ीसदी इस्तेमाल करता फीसदी कम है। दो तरफ़ा सैन्य अनुपात में भारत की टैंक क्षमता १.०९ से २०१६ में १.५२ हो गयी है , जो की ३९.४। इस लिए भारत चीन टकराव में पाकिस्तान को पश्चिमी सीमा पर हमला करना आसन पड़ेगा। जबकि फिगर १ के मुआबिक भारत और पाकिस्तान के टैंक अनुपात में भारत बेहतर स्थति में है, जिस कारण शायद पाकिस्तान भारत पर हमले की नहीं सोंचता अगर चीन फैक्टर नहीं होता।
दूसरा दो तरफ़ा सैन्य अनुपात आर्टिलरी क्षेत्र में है। जिसके आंकड़े फिगर 4 में दिखाए गए हैं।
यहाँ भी वही तस्वीर है, २० फीसदी चीनी तैनाती से भी आर्टिलरी का अनुपात २००७ में ०.६९ से बढ़ कर १० सालों बाद ०.७३ हो गया। लेकिन ये अकेला सैन्य अनुपात है जो भारत के लिए एक से कम है। भारत के तोपों की संख्या घाट कर १६१८ हो गयी लेकी चीन की तोपों की संख्या में भी तेज़ी से गिरावट आई है इसलिए ये सैन्य अनुपात ऐसा है २००७ से २०१६ के बीच पाकिस्तान की आर्टिलरी शक्ति भी धीरे बढ़ी है ४२९१ से ४४७२ ,इसी दौरान PLA ने आर्टिलरी को घटा कर यानि तोपों को घटा कर ४४८२ कर दिया। २०१५ में PLA के दुसरे आर्टिलरी कोर को फिर से कमीशन किया गया जिसमें तोपों की जगह कम और माध्यम दूरी की स्ट्राइक मिसाइल ने ले ली। भारत में अभी कुछ ऐसे बदलाव की उम्मीद नहीं है।
TFFR को परख करने के लिए, उनके पीछे कच्ची संख्या को देखना महत्वपूर्ण है।
टेबल २.
| वर्ष | भारत | पाकिस्तान | चीन |
| 2007 | 565 | 360 | 1,762 |
| 2008 | 603 | 383 | 1,653 |
| 2009 | 632 | 383 | 1,617 |
| 2010 | 665 | 426 | 1,687 |
| 2011 | 798 | 453 | 1,693 |
| 2012 | 870 | 423 | 1,903 |
| 2013 | 866 | 422 | 2,193 |
| 2014 | 881 | 450 | 2,239 |
| 2015 | 881 | 450 | 2,306 |
| 2016 | 803 | 451 | 2,307 |
टेबल २: भारत, पाकिस्तान और चीन — कॉम्बैट केपबल एयरक्राफ्ट
२०१२ से २०१६ के बीच भारतीय लड़ाकू विमानों की संख्या कम हो गयी है; ८७० से ८०३, लेकिन इसी दौरान PLA की वायु सेना में २१ फीसदी की बढ़ोतरी हुई। फिगर ५ की तुलना अगर फिगर २ से की जाए तो साफ़ है की पाकिस्तान मिलिट्री की वजह से कितनी ताक़त बढ़ रही है। २०१६ में पाकिस्तान भारत का अनुपात ०.५६ से बढ़ कर १.१४ हो गया, यानी अगर दो तरफ़ा टकराव होता है तो चीन की २० फीसदी भागीदारी होगी।
अब तक जिन परिवर्तनशील फैक्टर्स को लेकर आंकलन किया गया है वो कई लोगों को संतुष्ट नहीं करेगा और पूरी कहानी भी नहीं बता रहा है। इसलिए २ और चीज़ों पर ध्यान देने की ज़रूरत है, हथियारबंद गाड़ियाँ जो युद्ध में सैनिकों को एक से दूसरी जगह ले जाती हैं और कुल संख्या लड़ाकू विमानों की। हथियारबंद लड़ाकू गाड़ियों का अनुपात फिगर ६ में है।
२०१२ में चीन के ३० फीसदी शामिल होने पर दो तरफ़ा सैन्य अनुपात IFV और APC का १.६२ था, ये घाट कर २०१६ में १.४३ हो गया। इसकी वजह भारतीय सेना की इन्फेंट्री में हो रहा आधुनिकीकरण भी है जिसकी वजह से २०१५ से २०१६ के बीच IFV १४५५ से बढ़ कर २५०० हो गयी। इस दौरान चीन और पाकिस्तान के हथियारबंद गाड़ियों की संख्या वही की वही रही।
दूसरा फैक्टर है लड़ाकू विमान, ख़ास कर के जो ज़मीनी हमले के रोले में हों। इसे फिगर ७ में दिखाया गया है।
२०१२ में भारत की FGA और FTR की ताक़त ७९९ विमान थे। २०१६ तक ये नंबर घाट के ६१३ हो गए जबकि इस श्रेणी में चीन की संख्या वही बनी रही।
भारतीय वायुसेना बुरे हाल में है, जो की हर बार नई खरीद के मामले में विवादों में उलझता रहा, सरकारी झगड़ों में फंसता रहा। वजह जो भी हो अगर भारतीय वायु सेना इसी तरह कमज़ोर होती गयी तो दो तरफ़ा युध्ह जीतने की थ्योरी भी नामुमकिन हो जायेगी। पिछले साल एयर मार्शल बी एस धनोआ ने कहा था की हमारी संख्या इतनी नहीं है की दो तरफ़ा जंग में पूरा हवाई हमला कर सकें। दो तरफ़ा युद्ध के हालत बन सकते हैं लेकिन क्या इसके लिए संख्या काफी है, नहीं। और ये विश्लेषण एयर मार्शल के दावे को साबित करता है।
हो सकता है इस विश्लेषण के गणित में कुछ कमी हो, लेकिन फिर भी इस विश्लेषण से ये साफ़ है की भारत दो तरफ़ा युद्ध के लिए तैयार नहीं। हाँ कुछ लोग छाती ठोंककर ये दावा ज़रूर कर सकते हैं लेकिन इस में तथ्य नहीं। भारत के दो पडोसी परमाणु हथियारों से लैस हैं, दो तरफ़ा ख़तरा भारत के दो सीमाओं पर मंडरा रहा है, ऐसे में भारत को अपनी कुल सकल घरेलु उत्पाद का १.६२ फ़ीसदी से ज्यादा सेना पर खर्च करना चाहिए। ज्यादा चिंताजनक है की भारत एक विश्व शक्ति होने का दावा करता है लेकिन उसकी सैन्य क्षमता वैसी नहीं बढ़ रही है। डेंग शेओपिंग ने एक बार अपने देश को कहा था अपनी असली शक्ति छुपा कर रखो और अपने लिए और समय हाथ में लो। भारत अपना समय गँवा रहा है लेकिन उसकी शक्ति खोखली पड़ती जा रही है।
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Abhijnan Rej is an Indian scientist, researcher, and writer. He is the Founder & Chief Scientist of Tarqeq Research LLP, a research and advisory firm ...
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