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पाकिस्तान और चीन के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई को लेकर भारत की घरेलू राजनीति में आम तौर पर विवाद होता है. अब सरकार के पास मौका है कि हालिया सैनिक कार्रवाइयों से मिले सबक के आधार पर वो राजनीतिक आम राय बनाने की कोशिश करें.
Image Source: Getty
मनमोहन सिंह सरकार में गृह और वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने हाल ही में एक बड़ा खुलासा किया. पी चिदंबरम ने कहा कि पाकिस्तान की शह पर किए गए 26 नवंबर, 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद वो सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे. तब कांग्रेस ने नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार थी. चिदंबरम ने कहा, 'मेरे दिमाग में यह बात आई कि हमें भी इस हमले के खिलाफ़ जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए. मैंने प्रधानमंत्री समेत उन सभी लोगों के साथ इस पर चर्चा की, जो निर्णायक पदों पर थे. चिदंबरम के मुताबिक जब हमला चल रहा था (26 से 28 नवंबर 2008 तक तीन दिन), उसी दौरान प्रधानमंत्री ने भी अपने सहयोगियों से इस मामले पर चर्चा की थी. आखिर ये राय बनी कि भारत को हमला नहीं करना चाहिए. चिदंबरम ने कहा कि सैनिक कार्रवाई के खिलाफ़ राय बनाने में विदेश मंत्रालय और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लोगों का प्रभाव था. उन्होंने कहा कि भारत को सैन्य तरीकों से नहीं बल्कि कूटनीतिक उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्होंने कहा: "जवाबी हमला ना करने के पीछे ये तर्क दिया गया कि दुनिया के बड़े देश और अंतर्राष्ट्रीय संगठन भारत पर युद्ध शुरू ना करने का दबाव बना रहे हैं.
भारत के लिए कैलाश रेंज पर कब्ज़े जैसी सैन्य कार्रवाई को दूसरी जगहों पर भी दोहराना बहुत मुश्किल था. इसके लिए भैरव बटालियनों, रुद्र ब्रिगेडों और अभी तक स्थापित नहीं हुए एकीकृत लड़ाकू समूहों (आईबीजी) को ऑपरेशनल बनाया जा रहा है.
पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने के जवाब में, एक प्रमुख रिपोर्ट ने “हवाई शक्ति” का प्रतिशोधात्मक जवाब के तौर पर उपयोग करने की सिफारिश की थी.
मोदी सरकार में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी, ने चिदंबरम के इस बयान पर कहा, कि इसमें कुछ भी नया नहीं है. जोशी ने कहा कि “17 साल बाद, पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने वो बात स्वीकार की है, जो देश पहले से जानता था. लोगों को पता था कि विदेशी शक्तियों के दबाव में 26/11 मुंबई हमले को बहुत गलत तरीके से संभाला गया. भारत की प्रतिक्रिया बहुत कम भी रही और इसमें बहुत देर भी की गई.”
हवाई शक्ति के “फायदे” भूमिगत हमले के विकल्पों से ज़्यादा हैं. यूपीए सरकार के दौरान, इस तरीके को वास्तव में कभी लागू नहीं किया गया. हालांकि, मोदी सरकार वायु शक्ति का दो बार इस्तेमाल कर चुकी है. पहली बार फरवरी 2019 में, जब मोदी सरकार ने पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के ठिकानों पर हवाई हमले किए.
चिदंबरम द्वारा देर से किए गए इस कबूलनामे और उसके बाद की आलोचना और दोषारोपण के बावजूद इससे एक सकारात्मक चीज उभर कर सामने आई है. भारत की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के बीच भविष्य में भारत की प्रतिक्रिया को लेकर सहमति बन सकती है. अगर भारत को भविष्य में पाकिस्तान और चीन के खिलाफ सैन्य शक्ति के इस्तेमाल की ज़रूरत पड़ी तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच सहमति बनाने और उसे मजबूत करने का अवसर और संभावना मौजूद है.
किसी भी भारतीय सरकार द्वारा सैन्य कार्रवाई के इस्तेमाल से ज़्यादा ज़रूरी और कोई मुद्दा नहीं है, फिर चाहे सरकार किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित हो. महत्वपूर्ण बात ये है कि, चीन और पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य विकल्पों का अर्थ पूर्ण युद्ध शुरू करने से नहीं है. सीमित सैन्य विकल्प भविष्य में सीमा पर अस्थिरता और एलओसी या एलएसी के उल्लंघनों को दंडित करने के लिए बाध्यकारी उपकरण के रूप में काम कर सकते हैं. पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने के जवाब में, एक प्रमुख रिपोर्ट ने “हवाई शक्ति” का प्रतिशोधात्मक जवाब के तौर पर उपयोग करने की सिफारिश की थी. हवाई शक्ति के “फायदे” भूमिगत हमले के विकल्पों से ज़्यादा हैं. यूपीए सरकार के दौरान, इस तरीके को वास्तव में कभी लागू नहीं किया गया. हालांकि, मोदी सरकार वायु शक्ति का दो बार इस्तेमाल कर चुकी है. पहली बार फरवरी 2019 में, जब मोदी सरकार ने पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के ठिकानों पर हवाई हमले किए. दूसरी बार तब, भारत ने अप्रैल 2025 में पहलगाम में 28 पर्यटकों की हत्या के बाद "ऑपरेशन सिंदूर" शुरू किया. इस तरह देखा जाए, तो पाकिस्तान के खिलाफ़ सैन्य शक्ति के इस्तेमाल के लिए सहमति की कसौटी दो अवसरों पर पूरी हुई.
भारत के लिए कैलाश रेंज पर कब्ज़े जैसी सैन्य कार्रवाई को दूसरी जगहों पर भी दोहराना बहुत मुश्किल था. इसमें और जटिलता तब आई, जब कोविड-19 महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने चीनी हमलों के जवाब में भारतीय सेना की प्रतिक्रिया में देरी कर दी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब नई रणनीति बनाई जा रही है.
पाकिस्तान प्रायोजित हर आतंकवादी हमले और इसके बाद भारत की प्रतिक्रिया के बाद राजनीतिक वाद-विवाद होता ही है. फिर चाहे पाकिस्तान हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई की गई हो या निष्क्रिय रहा गया हो. ऐसे में अब राजनीतिक टकराव की परवाह किए बिना, सैन्य शक्ति के इस्तेमाल पर गहरी और स्थायी सहमति बनाने का एक ठोस अवसर मौजूद है. इसका आधार ये है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ़ लगातार इस्लामिक आतंकवाद का संचालन किया है, फिर चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो. कोई भी भारतीय सरकार आने वाले कई साल तक रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय) के आतंकवादी और क्षेत्रीय रूप से आक्रामक एजेंडे का सामना करने से नहीं बच सकती. इसलिए भारत की दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों, बीजेपी और कांग्रेस, का ये कर्तव्य है कि वे पाकिस्तान के खिलाफ बल प्रयोग के इस्तेमाल पर सहमति को मज़बूत करें.
हालांकि भारत को अब पाकिस्तान से आगे देखने की भी ज़रूरत है. इस रिपोर्ट में चीन द्वारा पेश की जा रही चुनौती का भी ज़िक्र है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह चीन की तरफ से भारतीय सीमा पर कब्जे की कोशिश की जा रही है, उसका जवाब दिया जाना भी ज़रूरी है. युद्ध रणनीति की दृष्टि से जहां भी संभव और लाभदायक हो, भारत को भी चीन के क्षेत्र पर इस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए. अप्रैल-मई 2020 में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पांच जगहों पर कब्ज़ा कर लिया. भारतीय सेना की 15-16 जून 2020 में गलवान घाटी में चीन की सेना साथ हथियारबंद झड़प हुई, जिसमें कई भारतीय और चीनी सैनिकों की जान गई. गलवान संघर्ष ने भारत को एलएसी के पूरे क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती करने के लिए मज़बूर किया. भारतीय सेना ने अगस्त 2020 के आखिर में एक हैरतअंगेज अभियान में कैलाश रेंज पर कब्जा कर लिया, जिस पर चीन अपना दावा करता है. फरवरी 2021 में, चीन ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से चरणबद्ध वापसी पर सहमति जताई, और भारत ने भी कैलाश रेंज से ऐसा करने पर सहमति दी. इस क्रमिक आपसी वापसी में भारी उपकरण और बड़ी संख्या में सैनिक शामिल थे. एलएसी पर कई क्षेत्रों में चीन के कब्जे के जवाब में जब भारतीय सेना ने कैलाश रेंज पर कब्जा किया, तो कांग्रेस की तरफ से कम से कम शुरू में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. हालांकि, मोदी सरकार को कुछ क्षेत्रों से आलोचना का सामना करना पड़ा. आलोचना करने वालों वो ऐसे आलोचक भी शामिल थे, जिन्होंने मनमोहन सिंह सरकार के दौरान ऐसे ही तरीकों के इस्तेमाल की सिफारिश की थी. इस बार उन्होंने मोदी सरकार की प्रतिक्रिया को घरेलू राजनीतिक कारणों से प्रेरित बताया. फिर भी, ये अगर पूरी तरह से नहीं तो, कम से कम 'एक के बदले दूसरी' यानी एक तरह की कार्रवाई के जवाब में उसी तरह की प्रतिक्रिया की मूल सिफारिश के अनुरूप थी.
दूसरा सबक पाकिस्तान और चीन के खिलाफ वास्तविक सैन्य शक्ति के इस्तेमाल को लेकर है. मोदी सरकार इसे काफ़ी प्रभावी ढंग से लागू कर भी चुकी है.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चीनी द्वारा भारतीय ज़मीन पर कब्ज़े के खिलाफ़ रक्षात्मक सैन्य उपाय की बजाए आक्रामक रणनीति अपनाई. चीन के महत्वपूर्ण पर्वतीय क्षेत्रों, जैसे कि कैलाश रेंज पर कब्ज़ा करने की कार्रवाई की. हालांकि, चीन ने कई जगह घुसपैठ और क्षेत्रीय कब्ज़े की कोशिश की. भारत के लिए कैलाश रेंज पर कब्ज़े जैसी सैन्य कार्रवाई को दूसरी जगहों पर भी दोहराना बहुत मुश्किल था. इसमें और जटिलता तब आई, जब कोविड-19 महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने चीनी हमलों के जवाब में भारतीय सेना की प्रतिक्रिया में देरी कर दी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब नई रणनीति बनाई जा रही है. भविष्य में चीन और पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर उल्लंघनों का तेज़ी से जवाब देने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए भैरव बटालियनों, रुद्र ब्रिगेडों और अभी तक स्थापित नहीं हुए एकीकृत लड़ाकू समूहों (आईबीजी) को ऑपरेशनल बनाया जा रहा है. ये सैन्य टुकड़ियां तेज़ी से जवाबी कार्रवाई में सक्षम होंगी. सेना को सामरिक रूप से सक्षम बनाने में ये तरीके बेहद कारगर साबित होंगे.
हालांकि, भारत के लिए विरोधियों से निपटने में दो प्रमुख सबक हैं. पहला, लद्दाख में चीन ने जिस तरह भारतीय ज़मीन पर कब्ज़ा किया, उसके जवाब में मोदी सरकार की प्रतिक्रिया भले ही थोड़ी कम रही, फिर भी इस पर एक सर्वसम्मति बनाने की संभावना बनी हुई है. चीन ने अपनी सैन्य अभ्यास को एक हमले में बदल कर एलएसी के पार क्षेत्र को कब्जाने के लिए अपनी तैनाती के समय को घटा दिया, लेकिन इसका एक कारण ये भी रहा है कोविड-19 के प्रतिबंधों की वजह से भारतीय सेना द्वारा प्रतिक्रिया देने में कुछ देरी हुई. इसी का नतीजा रहा कि चीन अपने इरादों में काफ़ी हद तक सफल रहा. 2020 में, चीन ने फिर वही कार्रवाई की, जैसी उसने अक्टूबर 1962 में की थी. चीन ने एक वैश्विक संकट (कोविड महामारी) का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की. 1962 में भी, चीन ने भारत पर तब हमला किया था, जब पूरी दुनिया का ध्यान क्यूबा मिसाइल संकट पर था. हालांकि, तब अमेरिका ने भारत की मदद की, लेकिन इससे नतीजा नहीं बदला, क्योंकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी और चीन उस समय तक भारतीय भूभाग पर कब्ज़ा कर चुका था. 2020 में भी, चीन ने इसी तरह कोविड 19 महामारी की वजह से पैदा हुई उथल-पुथल का फायदा उठाकर हमला किया. लॉकडाउन की वजह से भारतीय सेना अपनी टुकड़ियों को तुरंत रवाना नहीं कर सकी. लेकिन इससे भारत को ये सबक मिला कि भविष्य में भी किसी वैश्विक संकट के दौरान चीन सैन्य आक्रमण की कोशिश कर सकता है.
दूसरा सबक पाकिस्तान और चीन के खिलाफ वास्तविक सैन्य शक्ति के इस्तेमाल को लेकर है. मोदी सरकार इसे काफ़ी प्रभावी ढंग से लागू कर भी चुकी है. भविष्य की भारतीय सरकारें इस रणनीति में और सुधार कर इन्हें अपना सकती हैं. कुल मिलाकर आखिर में यही कहा जा सकता है कि सैन्य विकल्पों के इस्तेमाल की मुख्य शर्त सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और खुद पर मज़बूत विश्वास रहेगा, फिर चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी या गठबंधन हो.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
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Kartik is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. He is currently working on issues related to land warfare and armies, especially the India ...
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