Author : Amoha Basrur

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 15, 2025 Updated 1 Days ago

भारत और पाकिस्तान के संघर्ष में ड्रोन के इस्तेमाल ने टकराव में बढ़ोत्तरी को नए सिरे से परिभाषित कर दिया है. इनकी मदद से सटीक निशाना लगाकर अपना हाथ होने से इनकार भी किया जा सकता है. लेकिन, दोनों देशों के बीच ग़लतफ़हमी का जोखिम भी बढ़ गया है.

भारत-पाक तनाव का नया अध्याय: ड्रोन का इस्तेमाल बना वजह!

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यह लेख "ऑपरेशन सिंदूर - अनावृत" नामक सीरीज़ का हिस्सा है.


भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के हालिया चरण में दोनों ही पक्षों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल पहली पसंद के तौर पर उभरा है. पहलगाम के आतंकी हमले के जवाब में भारत ने जो ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, उसका आरंभ 7 मई 2025 को आतंकवादियों के नौ ठिकानों पर मिसाइल हमले से हुआ था. इस मिसाल हमले को असरदार बनाने में लॉइटरिंग म्युनिशनंस या कामीकाज़े ड्रोन्स का इस्तेमाल काफ़ी कारगर साबित हुआ. इन ड्रोन्स में हमला करने के साथ साथ निगरानी करने की भी क्षमता होती है. इसके जवाब में पाकिस्तान ने ऑपरेशन बुनयान उन मरसूस के ज़रिए भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर पलटवार किया. भारत ने आरोप लगाया कि 8 और 9 मई के दौरान पाकिस्तान ने उसके 36 ठिकानों पर 300-400 ड्रोन से हमला किया था और साथ ही साथ नियंत्रण रेखा (LoC) भारी तोपों से जमकर गोलीबारी भी की थी. भारत ने पाकिस्तान के इन ड्रोन्स को अपने S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करके नाकाम कर दिया  और फिर हार्पी ड्रोन से पाकिस्तान पर पलटवार किया.

 भारत ने आरोप लगाया कि 8 और 9 मई के दौरान पाकिस्तान ने उसके 36 ठिकानों पर 300-400 ड्रोन से हमला किया था और साथ ही साथ नियंत्रण रेखा (LoC) भारी तोपों से जमकर गोलीबारी भी की थी.

भारत ने अपने पलटवार के दौरान पाकिस्तान के चार हवाई रक्षा ठिकानों पर हारोप ड्रोन से हमला किया और उसके एयर डिफेंस रडार को नष्ट कर दिया. पाकिस्तान का दावा है कि भारत ने 9 और 10 मई को भी ड्रोन और लॉइटरिंग म्युनिशंस का इस्तेमाल किया था और पूरे पाकिस्तान में कम से कम दर्जन भर ठिकानों को निशाना बनाया था, इनमें कराची, लाहौर और रावलपिंडी जैसे शहर भी शामिल थे. 10 मई को दोनों देश युद्ध विराम करने पर राज़ी हो गए. लेकिन, सीज़फ़ायर का ऐलान होने के कुछ ही घंटों के भीतर पाकिस्तान ने इसका उल्लंघन भी कर डाला था. हालांकि, अब ऐसा लग रहा है कि दोनों देश इस युद्धविराम का पालन कर रहे हैं. लेकिन, बाड़मेर और अमृतसर में ड्रोन देखे जाने की घटनाओं ने चिंता को दोबारा बढ़ा दिया है. अब लगातार ड्रोन के इस्तेमाल से परिभाषित हो रहे इस संघर्ष में बढ़ता हुए तनाव ने दो एटमी ताक़त वाले पड़ोसी देशों के बीच ड्रोन युद्ध के असर के सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.

 

ड्रोन क्षमताओं का विकास

 हाल के वर्षों में भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने ड्रोन इकोसिस्टम को बढ़ाते रहे हैं और इसके लिए घरेलू निर्माण क्षमता का इस्तेमाल करने के साथ साथ विदेशी सहयोगी देशों से भी ड्रोन आयात करते रहे हैं.

 

भारत ने 2021 में ड्रोन से जुड़े नियम लागू किए थे, ताकि इस क्षेत्र में विनियमन की स्थिति को स्पष्ट करके ड्रोन के आविष्कार में तेज़ी लाते हुए इनकी तैनाती को बढ़ाया जा सके. रक्षा समेत तमाम सेक्टरों में तकनीकी निर्माण के लिए 2022 के ड्रोन शक्ति मिशन ने स्टार्टअप, इनक्यूबेटर्स और निजी एवं सरकारी क्षेत्र की साझेदारी ने घरेलू इकोसिस्टम में नई जान डाल दी. 2024 के मध्य तक भारत ने अपने बेड़े में दो हज़ार से 2,500 तक ड्रोन शामिल कर लिए थे और इस मद में उसका ख़र्च 36.145 करोड़ से बढ़ 42.169 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था

 

भारत के ड्रोन बेड़े में मुख्य रूप से इज़राइल में बने जासूसी करने वाले मानव रहित हवाई वाहन (UAV) जैसे कि IAI सर्चर और हेरोन ड्रोन और इनके अलावा लॉइटरिंग म्युनिशन यानी हार्पी और हारोप ड्रोन शामिल हैं. भारत द्वारा ड्रोन को सामरिक रूप से अपनाने का एक बड़ा क़दम तब उठाया गया था, जब उसने 4 अरब डॉलर में अमेरिका से 31 MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन ख़रीदने का सौदा किया था. भारत के पास नागास्त्र-1 जैसे स्वदेशी सुसाइड ड्रोन, रुस्तम-2 मध्यम ऊंचाई का लंबे समय तक उड़ान भर सकने वाला ड्रोन और आर्चर-NG हथियारबंद रणनीतिक ड्रोन जैसे कई स्वदेशी ड्रोन भी मौजूद हैं और इन सबने अपनी तकनीकी क्षमता को साबित भी किया है. भारत स्वार्म ड्रोन की रणनीति भी विकसित कर रहा है, जिसमें बड़ी तादाद में छोटे छोटे UAV से हमला करके दुश्मन के एयर डिफेंस पर हावी होकर उसे नाकाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

 भारत स्वार्म ड्रोन की रणनीति भी विकसित कर रहा है, जिसमें बड़ी तादाद में छोटे छोटे UAV से हमला करके दुश्मन के एयर डिफेंस पर हावी होकर उसे नाकाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

रक्षात्मक मोर्चे पर भारत के एकीकृत एयर डिफेंस सिस्टम में L-70 एंटी एयरक्राफ्ट गन, Zu-23 मिलीमीटर तोपें, सिल्का सिस्टम और हमलावर ड्रोन से निपटने के लिए विशेष तौर पर तैयार किए गए काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम (CUAS) शामिल हैं. पाकिस्तान के हमलावर ड्रोन्स का पता लगाकर नष्ट करने के लिए भारत इन सबका इस्तेमाल करता रहा है. दुनिया के सबसे उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम्स में से एक S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भी 8 और 9 मई को पाकिस्तान के हमलों के दौरान एक्टिवेट किया गया था.

 

अग्रणी मोर्चे पर तैनात इन हथियारों की मदद के लिए जो मूलभूत ढांचा पीछे था, उसमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से लैस निशाना साधने वाले एल्गोरिद्म, GPS से मुक्त नेविगेशन सिस्टम और और बेड़े के स्तर पर निर्देश देने के एनक्रिप्टेड प्रोटोकॉल शामिल हैं, जिन्हें कंट्रोल सेंटर्स से जोड़ा जा रहा है, ताकि अभियान के जटिल माहौल में ड्रोन हमेशा कारगर बने रहें.

 

वहीं दूसरी तरफ़, पाकिस्तान ने अपनी ड्रोन क्षमताओं का विकास 2009 में ही शुरू कर दिया था और चीन से लाइसेंस लेकर बुर्राक़ ड्रोन का निर्माण कर रहा था. इस बुनियाद पर पाकिस्तान ने स्वदेशी शाहपार सीरीज़ के ड्रोन का विकास किया. अपने घरेलू प्रयासों को और मज़बूत करने के लिए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय साझीदारों और मुख्य रूप से तुर्की और चीन से भी UAV का आयात किया. इनमें चीन से CH-4 और विंग लूंग II ड्रोन और तुर्की से बैरक्तार TB2 और अकिंची ड्रोन की ख़रीदारी शामिल है. शुरुआती ख़बरें बताती हैं कि 8 और 9 मई की रात पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए जिन ड्रोन्स का इस्तेमाल किया उनमें तुर्की से ख़रीदे गए असीसगार्ड सोनगार ड्रोन भी शामिल थे. ये ऐसे UAV हैं जो हमले के वीडियो का साथ साथ प्रसारण करते जाते हैं और इनको कई हथियारों से लैस भी किया जा सकता है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान पाकिस्तान ने निगरानी के साथ साथ भारत के भीतर हथियार, गोला-बारूद और ड्रग्स गिराने के लिए भी UAV का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इन प्रयासों के दौरान अक्सर बहुत उन्नत तकनीकों जैसे कि ड्रोन के झुंड या फिर रात के वक़्त रडार की पकड़ से नीचे की फ्रीक्वेंसी पर उड़ान भरना शामिल है, ताकि उनको पकड़ा जा सके.

 

ड्रोन युद्ध का असर क्या होगा?

 भारत और पाकिस्तान ने जिन ड्रोन्स का इस्तेमाल इस बार किया, ऐसा लगता है कि उनमें से ज़्यादातर कामीकाज़े ड्रोन हैं. ये वैसे ही ड्रोन हैं जिनका रूस और यूक्रेन के युद्ध में लगातार इस्तेमाल हो रहा है और संभावना है कि आने वाले ज़माने में ये ड्रोन ही मानक हथियार बनने जा रहे हैं.

 

लेकिन, यूक्रेन के युद्ध क्षेत्र में जहां लगभग हर सैन्य अभियान में ड्रोन से जंग केंद्रीय भूमिका में रही है. वहीं इसके उलट, भारत और पाकिस्तान के संघर्ष में इनकी भूमिका बहुत सीमित और प्रतीकात्मक ही रही है. ड्रोन को तैनात करना बहुत निचले स्तर का सैन्य विकल्प है और आम तौर पर इसे टकराव को बढ़ाने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस वक़्त ड्रोन का इस्तेमाल एक दूसरे के डिफेंस सिस्टम का आकलन करने और जवाबी कार्रवाई में लगने वाले समय का अंदाज़ा लगाने के लिए कर रहे हैं. चूंकि, ड्रोन में हथियार कम होते हैं और लड़ाकू विमानों की तुलना में वो सटीक निशाना लगाते हैं, इसीलिए ड्रोन के हमलों को तुलनात्मक रूप से संयमित पलटवार के तौर पर देखा जाता है. हां, ये ज़रूर हो सकता है कि ड्रोन को किसी बड़े संघर्ष के आग़ाज़ से पहले दांव के तौर पर उपयोग किया जा रहा हो. हम इस वक़्त निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं और ड्रोन का युद्ध में मानक के तौर पर इस्तेमाल करने की रणनीति अभी विकसित की जानी है.

 भविष्य में कोई संघर्ष छिड़ने की सूरत में संभावना इसी बात की ज़्यादा है कि हम इस बार से ज़्यादा तरह के ड्रोन का इस्तेमाल होते देखेंगे.

भविष्य में कोई संघर्ष छिड़ने की सूरत में संभावना इसी बात की ज़्यादा है कि हम इस बार से ज़्यादा तरह के ड्रोन का इस्तेमाल होते देखेंगे. वास्तविक समय पर गोपनीय जानकारी हासिल करने, निगरानी और जासूसी के काम के अलावा सटीक निशाना लगाने और दुश्मन के एयर डिफेंस को नाकाम करने में ड्रोन्स बिना इंसानी जान को दांव पर लगाए एक अभूतपूर्व बढ़त मुहैया कराते हैं. लड़ाकू विमानों की तुलना में इनको संचालित करना काफ़ी सस्ता होता है और आसानी से बदलाव किए जाने की वजह से इन्हें फ़ौरन किसी ख़ास मिशन के लिए नए सिरे से भी ढाला जा सकता है. यूक्रेन के युद्ध ने बाक़ी दुनिया के लिए ड्रोन युद्ध की एक मिसाल पेश की है. इस युद्ध ने ड्रोन्स की रणनीतिक अहमियत और व्यापक स्तर पर ड्रोन तैनात करने की सामरिक महत्ता को रेखांकित किया है. ऐसा लग रहा है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही यूक्रेन युद्ध के सबक़ को बड़ी तेज़ी से सीख रहे हैं.

 

निष्कर्ष

भारत और पाकिस्तान के हालिया संघर्ष में ड्रोन का अधिक से अधिक इस्तेमाल एक रणनीतिक बदलाव से कहीं ज़्यादा बड़ी बात है. इसने दो एटमी ताक़तों से लैस दुश्मनों के बीच सीमित युद्ध लड़ने के स्वरूप को पूरी तरह बदल डाला है. जहां ड्रोन्स, टकराव बढ़ाने के मामले में एक संयमित विकल्प उपलब्ध कराते हैं. वहीं, उनका बढ़ता इस्तेमाल बार बार सीमा के आर पार हमले करने की आशंका को भी बढ़ा देता है, जो अनजाने में किसी बड़े युद्ध में भी परिवर्तित हो सकता है. ड्रोन जितना सटीक निशाना लगा सकते हैं और जिस तरह उनके इस्तेमाल के इल्ज़ाम को नकारा जा सकता है, उससे देशों को ऐसे जोखिम लेने की भी प्रेरणा मिल सकती है, जिनसे पारंपरिक युद्ध के दौरान शायद बचने की कोशिश की जाए. ऐसा करके ड्रोन युद्ध ने एक तरफ़ तो संघर्ष की लागत घटा दी है, लेकिन ग़लतियां होने की आशंकाएं भी बढ़ा दी हैं.

 

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