‘अफ्रीका महाद्वीप की स्थिति अच्छी है.’ अफ्रीकन डेवेलपमेंट बैंक ग्रुप के अध्यक्ष डॉक्टर अकिनवुमी ए. एडासिना ने ये बातें अफ्रीका की आर्थिक संभावनाओं पर एक रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखीं हैं. इक्कीसवीं सदी की शुरुआत होने के बाद से ज़्यादातर अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आया है. साल 2000 से 2010 के बीच अफ्रीका महाद्वीप की औसत विकास दर 5.3 प्रतिशत रही है. जबकि इससे पहले के दशकों में अफ्रीका की औसत आर्थिक विकास की दर 2.6 फ़ीसद ही रही थी. अफ्रीका के 12 देशों में औसत आर्थिक विकास की दर 6.1 प्रतिशत से ज़्यादा रही है. इनमें से भी दो देशों, अंगोला और इक्वेटोरियल गिनी की विकास दर तो दो अंकों में रही है. अफ्रीका के जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद की 2018 में विकास दर 3.5 प्रतिशत थी. 2019 में अफ्रीका के विकास की संभावना के बारे में कहा जा रहा है कि इस महाद्वीप की विकास दर 2019 में 4 प्रतिशत और 2020 में 4.1 प्रतिशत रहेगी. पूर्वी अफ्रीका की विकास दर सबसे ज़्यादा है. इसकी औसत आर्थिक विकास दर 5.9 प्रतिशत है, जिसके 2020 में और बढ़कर 6.1 फ़ीसद होने की संभावना है.
इक्कीसवीं सदी की शुरुआत के बाद से अफ्रीका महाद्वीप के विकास की दर में आया ये बड़ा बदलाव है. इससे अफ्रीका की छवि में नाटकीय परिवर्तन आया है. अब अफ्रीका ‘नाउम्मीदी का महाद्वीप’ नहीं रहा, जो इसके बारे में पहले कहा जाता था. अब ये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पाने वाले अव्वल इलाक़ों में से एक है. लेकिन, तेज़ आर्थिक विकास के बावजूद अफ्रीका में भुख़मरी की समस्या में कोई कमी नहीं आई है. बल्कि, आर्थिक विकास के साथ यहां भुखमरी की समस्या और बढ़ गई है. पूर्वी अफ्रीका को छोड़ दें तो इस महाद्वीप के कमोबेश सभी इलाक़ों में भुख़मरी बढ़ गई है (सारणी देखें). हालांकि पूर्वी अफ्रीका के कई देशों जैसे इथियोपिया और डिजीबूती, लंबे समय से पड़ रहे सूखे की वजह से खाद्य सुरक्षा के भयानक संकट का सामना कर रहे हैं. 2019 में हुई बारिश भी औसत से कम ही रही है. इसलिए इस इलाक़े के ज़्यादातर परिवार 2016-17 में पड़े भयंकर सूखे के असर से नहीं उबर पाए हैं.
टेबल: अफ्रीका में साल 2005-17 तक कुपोषण की स्थिती (% में)
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2005 |
2010 |
2012 |
2014 |
2016 |
2017 |
उत्तरी अफ्रीका |
6.2 |
5.0 |
8.3 |
8.1 |
8.5 |
8.5 |
उप-सहारा अफ्रीका |
24.3 |
21.7 |
21.0 |
20.7 |
22.3 |
23.2 |
पूर्वी अफ्रीका |
34.3 |
31.3 |
30.9 |
30.2 |
31.6 |
31.4 |
मध्य अफ्रीका |
32.4 |
27.8 |
26.0 |
24.2 |
25.7 |
26.1 |
दक्षिणी अफ्रीका |
6.5 |
7.1 |
6.9 |
7.4 |
8.2 |
8.4 |
पश्चिमी अफ्रीका |
12.3 |
10.4 |
10.4 |
10.7 |
12.8 |
15.1 |
अफ्रीका |
21.2 |
19.1 |
18.6 |
18.3 |
19.7 |
20.4 |
स्रोत: Food and Agriculture Organisation (2018)
अफ्रीका में भुख़मरी बढ़ने के साथ ही अकाल की तादाद भी बढ़ गई है. 2017 में दक्षिणी सूडान और सोमालिया में अकाल घोषित किया गया था. वहीं उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया अकाल के मुहाने पर खड़ा था. लगातार चल रहे संघर्ष की वजह से दक्षिणी सूडान आज विश्व का सबसे बड़ा खाद्य संकट झेल रहा है. इस देश की 71 लाख की आबादी में से आधे लोग भयंकर भुख़मरी के शिकार हैं. उत्तरी-पूर्वी नाइजीरिया में भी खाद्य सुरक्षा की स्थिति बहुत ख़राब है. यहां के अडामावा, योबे और बोर्नो इलाक़ों के 27 लाख महिलाओं और बच्चों को पोषण के सहयोग की ज़रूरत है. यहां 3 लाख 10 हज़ार बच्चे बेहद भयंकर कुपोषण के शिकार हैं, तो 2 लाख 50 हज़ार बच्चे औसत भयंकर कुपोषण से पीड़ित हैं.[i]
यानि, अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति अच्छी नहीं है. इस महाद्वीप के सकल घरेलू उत्पाद में तेज़ी से हो रही बढ़ोत्तरी ने यहां के लोगों की बुनियादी चुनौतियों पर पर्दा डाल रखा है. तेज़ आर्थिक विकास के साथ-साथ यहां भयंकर भुखमरी की विषम स्थिति की वजह अफ्रीका के विकास की दर में ही छुपी है. अफ्रीका का आर्थिक विकास तो तेज़ी से हो रहा है. लेकिन, यहां के लोगों के रोज़गार के सबसे बड़े साधन खेती में कोई सुधार नहीं हो रहा है. अफ्रीका में खेती की उत्पादकता बहुत ही कम है. इसीलिए अफ्रीकी महाद्वीप के लोग अपने खाने-पीने की ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा बाहर से मंगाकर पूरा करते हैं. अफ्रीका में प्रति हेक्टेयर अनाज का औसत उत्पादन महज़ 1394.7 किलोग्राम है. जबकि पूरी दुनिया में अनाज का औसत उत्पादन 3966.8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. यानि अफ्रीका के खेतों में दुनिया के औसत के आधे के बराबर अनाज पैदा होता है. वहीं, ये यूरोपीय देशों (5362.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और उत्तरी अमेरिका के औसत (7318.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अनाज) से तो बहुत पीछे है. अफ्रीका के मुक़ाबले, पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागरीय देशों में अनाज का औसत उत्पादन 5401.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस वक़्त अफ्रीका खाद्य के आयात पर हर साल 35 अरब अमेरिकी डॉलर की रक़म ख़र्च करता है. यही सिलसिला क़ायम रहा तो, 2025 तक अफ्रीका के खाद्य आयात का ख़र्च बढ़कर 110 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा.
यहां ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि 2050 तक दुनिया की आबादी जितनी बढ़ेगी, उसमें आधे से ज़्यादा हिस्सा अफ्रीका का ही होगा. तेज़ी से बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन के असर से भविष्य में अफ्रीका की खाद्य सुरक्षा का संकट और बढ़ने की आशंका है. ज़्यादातर अध्ययनों से ये साफ़ है कि जलवायु परिवर्तन अफ्रीका की तल्ख़ सच्चाई है. पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 2015-16 में भयंकर सूखा पड़ा था. इसकी वजह से लाखों लोगों को खाने की मदद देने की ज़रूरत पड़ी थी. ये ज़बरदस्त अल-निनो का असर था. आने वाले कुछ वर्षों में बारिश कम होगी वहीं जल के दूसरे स्रोत तेज़ी से सूखेंगे. इसका नतीजा ये होगा कि अफ्रीका में और भी सूखा पड़ेगा. अब अफ्रीका में प्रति हेक्टेयर अनाज उत्पादन पहले से ही बाक़ी दुनिया से बहुत कम है. वहीं इस महाद्वीप की खेती का ज़्यादातर हिस्सा बारिश के भरोसे है. तो, जलवायु परिवर्तन का असर यहां के कृषि उत्पादन पर पड़ना तय है.
कुल मिला कर भुखमरी अफ्रीका के विकास के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौती है. विकास की तेज़ रफ़्तार और क़ुदरती संसाधनों के निर्यात से हो रही कमाई से अफ्रीका में भुखमरी को नहीं मिटाया नहीं जा सकता. इसके लिए इस महाद्वीप को अपनी खेती योग्य ज़मीन से बेहतर अनाज उत्पादन के लिए व्यापक रणनीति की ज़रूरत है. इसके जल संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर के खाद्य उत्पादन में तेज़ी से सुधार लाने की आवश्यकता है. तभी, अफ्रीकी देशों से भुखमरी मिटाई जा सकती है. तभी इस महाद्वीप की खान-पान के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है. तभी, अफ्रीका के देश अपने सामने खड़ी जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना कर सकेंगे.
[i] WHO supports one million malnourished children in north-east Nigeria
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