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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक्स के बढ़ते उपयोग ने पहचान की चोरी को संभव और आसान बना दिया है. इस चुनौती से निपटने के लिए ठोस, तात्कालिक और समन्वित समाधानों को खोजने की ज़रूरत है.
Image Source: Getty
हाल ही में आई एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल, जैसे कि चैटजीपीटी की मदद से नकली आधार और पैन कार्ड बनाए जा सकते हैं. इस रिपोर्ट ने एआई के संभावित दुरुपयोग की क्षमता के बारे में नई चिंताएं पैदा कर दी हैं. हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने इसे लेकर जनता के मन में बैठे डर को कम करने की कोशिश की है. उनका कहना है कि कुछ सुरक्षा उपायों को अपनाकर इस दुरुपयोग को कम किया जा सकता है. चाहे जो भी हो लेकिन ये रिपोर्ट एक व्यापक और प्रणालीगत समस्या की तरफ ध्यान दिलाती है. जैसे-जैसे एआई प्रौद्योगिकियां ज़्यादा उन्नत और सर्वसुलभ होती जा रही हैं, वैसे-वैसे असामाजिक तत्वों द्वारा इसके दुरुपयोग की आशंका बढ़ती जा रही है. ये एक वास्तविक और निरंतर सामने आने वाला ख़तरा है. इन सब बातों के मद्देनज़र एआई तकनीकी के दोहरे उपयोग के व्यापक निहितार्थों की गंभीरता से समीक्षा की जानी चाहिए.
एआई ने कई उद्योगों के लिए ऐसी सुविधाओं और नवाचार की पेशकश की है, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता है. हालांकि, इसके साथ ही ये भी सच है कि अभूतपूर्व विकास के साथ-साथ एआई ने जटिल नैतिक, सामाजिक और सुरक्षा चुनौतियों को भी जन्म दिया है. समाज ने इस बारे में अभी सिर्फ समझना शुरू किया है, इसका समाधान तो बाद में निकलेगा. हाल के खुलासों से पता चलता है कि एआई मॉडलों जैसे कि चैटजीपीटी में नकली आधार और पैन कार्ड बनाने की क्षमता है. ये एआई के एक चिंताजनक दोहरे उपयोग की आशंका को उजागर करता है. इस समस्या के केंद्र में तकनीक का चरित्र या विशेषता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिजाइनिंग ही ऐसी है कि इससे सृजन और विनाशकारी, दोनों तरह के काम किए जा सकते हैं. एक तरफ एआई स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और लॉजिस्टिक के क्षेत्र में सुविधाओं को बढ़ाता है, वही तकनीक धोखाधड़ी गतिविधियों, साइबर हमलों और गलत जानकारी देने जैसे काम भी इससे बखूबी अंजाम दिए जा सकते हैं. एआई मॉडलों में ऐसी क्षमता है कि वो पहचान के ऐसे नकली दस्तावेज़ बना सकते हैं, जो एकदम असली लगते हैं. एआई की ये विशेषता आपराधिक और आतंकवादी संगठन, दुष्ट देशों को इस शक्ति का दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित करती है. इसका इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक व्यवस्था को कमज़ोर करने के लिए किया जा सकता है.
ये घटनाएं एक ऐसी प्रवृति को उजागर करती हैं जहां दुश्मन देश और आपराधित-आतंकवादी संगठन दोनों ही एआई की दोहरे उपयोग की क्षमताओं का फायदा उठाते हैं.
भारत के हालिया अनुभवों ने इन चिंताओं को और बढ़ा दिया है. CoWIN (कोरोना वैक्सीनेशन से जुड़ा सॉफ्टवेयर) डेटा लीक ने महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटाबेस में कमज़ोरिया को उजागर किया. इसी बीच एआई द्वारा संचालित डीपफेक के फर्ज़ीवाड़े ने वरिष्ठ अधिकारियों की नकल करके कॉर्पोरेट संस्थाओं में वित्तीय धोखाधड़ी को अंजाम दिया. मैकाफी की रिपोर्ट के अनुसार 83 प्रतिशत भारतीयों ने फर्ज़ी वॉइस कॉल की वजह से पैसे खोए हैं. चुनावी मौसम के दौरान एआई-सक्षम बॉट नेटवर्क और डीपफेक वीडियोज़ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को झूठी जानकारियों से भर दिया. इससे जनमत बदल गया और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ख़तरा उत्पन्न हुआ. इसके अलावा, चीन के एआई ऐप पर प्रतिबंध से ये सामने आया कि एआई-चालित डेटा माइनिंग सीधे देश की संप्रभुता और व्यक्तिगत गोपनीयता को ख़तरे में डालती है. लोन देने वाले प्रीडेटरी ऐप्स ने उपयोगकर्ता के महत्वपूर्ण डेटा की चोरी की और फिर लोन की रिकवरी के लिए ताकत का इस्तेमाल किया. इसके लिए एआई एनालिटिक्स को हथियार बनाया गया. डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म के बढ़ते उपयोग के साथ ठगों को गूगलपे, फोनपे, और पेटीएम जैसे यूपीआई ऐप प्लेटफार्मों के क्लोन बनाने का मौका मिला. इस बीच, चैटजीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मशीन (एलएलएम) का संभावित दुरुपयोग सामने आया. चैटजीपीटी ने नकली आधिकारिक दस्तावेज़ बनाने के लिए साइबर अपराधियों द्वारा पहचान चोरी को और भी सुविधाजनक बना दिया है. ये घटनाएं एक ऐसी प्रवृति को उजागर करती हैं जहां दुश्मन देश और आपराधित-आतंकवादी संगठन दोनों ही एआई की दोहरे उपयोग की क्षमताओं का फायदा उठाते हैं. वो इसका इस्तेमाल या तो खुद को मज़बूत करने के लिए करते हैं या फिर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रणालीगत कमज़ोरियों का फायदा उठाते हैं.
इस सुरक्षा जोखिम का एक और आयाम तब दिखा, जब विदेशी नागरिकों द्वारा भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने के लिए फर्जी दस्तावेज़ बनाए गए. उदाहरण के लिए, कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां बांग्लादेशी शरणार्थियों और रोहिंग्या प्रवासियों ने भारत में बसने के लिए फर्जी पहचान दस्तावेज़ हासिल किए. इसी तरह, कुछ ऐसे मामलों की भी पहचान की गई है जहां पाकिस्तानी नागरिक नकली कागज़ातों के ज़रिए भारतीय अर्धसैनिक बलों में शामिल हो गए. उनका उद्देश्य अपनी पहचान छुपाकर आंतरिक सुरक्षा को अस्थिर करना और गुप्त गतिविधियों को अंजाम देना था.
एआई द्वारा बनाए गए नकली आधार या पैन कार्ड इस ख़तरे को और भी ज़्यादा बढ़ा देते हैं. भारत की सीमावर्ती क्षेत्र, जैसे कि पश्चिम बंगाल, असम, पंजाब, और जम्मू-कश्मीर पहले से ही घुसपैठियों के दबाव से जूझ रहे हैं. नकली दस्तावेज़ों के सहारे अवैध घुसपैठ इस समस्या को और बढ़ा सकती है. डिजिटल और एआई की मदद से बनाए फर्जी दस्तावेज़ों को लेकर आने वाले घुसपैठियों से निपटने में सीमा पर नियंत्रण के पारंपरिक तरीके और सत्यापन की प्रक्रियाएं बहुत कारगर साबित नहीं हो सकती. एआई से संचालित दुनिया में राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की चुनौती और भी ज़्यादा जटिल होती जाएगी.
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ये सबसे चिंताजनक संभावित ख़तरा है. अगर आतंकवादी नकली दस्तावेज़ हासिल कर लेते हैं तो इसके नतीजे बहुत भयंकर साबित हो सकते हैं. इन दस्तावेज़ों के सहारे परमाणु संयंत्रों, सैन्य ठिकानों या महत्वपूर्ण सरकारी भवनों जैसे संवेदनशील जगहों में उनका प्रवेश संभव हो सकता है. सुरक्षा जांच की जो भी प्रक्रियाएं हैं, वो मुख्य रूप से दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता पर निर्भर करती हैं. आज उन्नत एआई के ज़माने में जो नकली दस्तावेज़ होते हैं, वो बिल्कुल असली लगते हैं. इनकी पहचान के जो पारंपरिक तरीके हैं, वो इनकी सत्यता नहीं जांच सकते. ऐसे में घुसपैठिए हमलों की योजना बना सकते हैं. महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा सकते हैं या गुप्त जानकारी हासिल कर सकते हैं. इस संदर्भ में देखें तो राष्ट्रीय सुरक्षा को ज़्यादा ख़तरा पारंपरिक युद्ध से नहीं, बल्कि तकनीकी कुशलता द्वारा सक्षम सूक्ष्म, अदृश्य घुसपैठों के माध्यम से से है.
इस संदर्भ में देखें तो राष्ट्रीय सुरक्षा को ज़्यादा ख़तरा पारंपरिक युद्ध से नहीं, बल्कि तकनीकी कुशलता द्वारा सक्षम सूक्ष्म, अदृश्य घुसपैठों के माध्यम से से है.
हालांकि मुख्यधारा यानी जो बड़े एआई प्लेटफार्मों हैं, उनमें अवैध या दुर्भावनापूर्ण सामग्री के निर्माण को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय हैं, लेकिन साइबर अपराधी इनमें भी कुछ कमज़ोरियों खोज लेते हैं. वो ऐसे एआई मॉडलों का दुरुपयोग करते हैं, जिनमें कम नैतिक प्रतिबंध होते हैं और जिनमें गलत सामग्री के निर्माण को रोकने के उपाय नहीं होते हैं. पारंपरिक साइबर अपराध में एक्सपर्ट लोगों की ज़रूरत होती थी लेकिन एआई संचालित आपराधिक गतिविधियों को शौकिया अपराधी भी अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं. इस ख़तरे की आशंका और आवृत्ति दोनों में वृद्धि हो रही है. ऐसे में एआई संचालित अपराध रोकने के लिए सक्रिय शासन ढांचे, नैतिक निगरानी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ज़रूरत है. एआई के दोहरे उपयोग से पैदा होने वाला असमंजस राष्ट्रीय सुरक्षा को अस्थिर करता है, लोगों के विश्वास को कमज़ोर करता है. इसके साथ ही ये आधुनिक समाज की मौलिक संरचनाओं को ख़तरे में डालता है.
एआई के दोहरे इस्तेमाल की क्षमता से सबसे बड़ा ख़तरा सामाजिक सुरक्षा ढांचे का कमज़ोर होना है. एआई द्वारा बनाए गए फर्ज़ी दस्तावेज़ों में हुई ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी सामाजिक सुरक्षा ढांचे पर बुरा प्रभाव डाल सकती है. डीपफेक तकनीकी का उभार वित्तीय क्षेत्र के सामने एक अनूठा ख़तरा पेश कर रहा है. इसने पहचान सत्यापन प्रणालियों को ज़ोखिम में डालकर विश्वास का संकट पैदा कर दिया है. पहचान के जो पारंपरिक तरीके हैं, जैसे कि वॉइस ऑथेंटिकेशन, बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन और पर्सनल इंटरेक्शन. एआई ने इन सबको ख़तरे में डाल दिया है. एआई की मदद से व्यक्तियों की प्रभावी नकल की जा सकती है.
एआई की वजह से पहचान की प्रमाणिकता पर जो ख़तरा पैदा हुआ है, उसका सबसे ज़्यादा असर वित्तीय संस्थाओं पर दिख रहा है. ये वित्तीय संस्थान अपने लेनदेन, अनुपालन और ग्राहक से जुड़ने के लिए आइडेंटिटी ऑथेंटिकेशन पर निर्भर करती है. ये भरोसे का संकट उनके काम को बहुत हद तक प्रभावित कर सकता है. हैकर्स डीपफेक का दुरुपयोग करके सुरक्षा प्रोटोकॉल को दरकिनार कर सकते हैं. धोखाधड़ी वाले लेनदेन शुरू कर सकते हैं, वित्तीय बाज़ारों में हेरफेर कर सकते हैं. प्रोफेशनल लोगों को भी धोखा दे सकते हैं. एआई और साइबर क्राइम का संयुक्त प्रभाव आतंकवाद और अपराध के एक नए युग की शुरुआत कर सकता है. एक ऐसा युग जहां विकेंद्रित, गुमनाम लेकिन बहुत ही प्रभावी टेरर फंडिंग नेटवर्क होगा. इस नेटवर्क को पारंपरिक आतंकवाद-रोधी तरीकों से ख़त्म करना बहुत मुश्किल होगा.
इसके अलावा, जब व्यक्तिगत डेटा को पहचान वाले जाली दस्तावेज़ों के साथ मिलाया जाता है, तो डार्क वेब पर अवैध बाज़ारों में ये एक बेहद मूल्यवान वस्तु बन जाता है. पहचान की चोरी को इकट्ठा करने, उसकी पैकेजिंग और बिक्री को एआई बढ़ा सकता है. पहचान की चोरी पहले से ही एक गंभीर मुद्दा है. अब ये तेज़ी से बढ़ सकता है. ये उन लाखों लोगों को भी मुश्किल में डालेगा, जिन्होंने अपराध नहीं किए होंगे.
ऐसे में एक समग्र सुरक्षा ढांचे की ज़रूरत होती है, जो तकनीकी नवाचार को मानव चौकसी के साथ मिलाता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वित्तीय क्षेत्र एक प्रणालीगत पतन का ख़तरा पैदा होता है.
इस तरह के माहौल में डिजिटल पहचान पर भरोसा कम हो रहा है. वित्तीय संस्थानों पर लोगों का जो विश्वास है, उसके भी कमज़ोर होने का ख़तरा है. वित्तीय संस्थान जैसे-जैसे ज़्यादा डिजिटल प्लेटफार्मों को अपनाते हैं, वैसे-वैसे डीपफेक और एआई ऐप्स वैध और अवैध इंटरैक्शन के बीच की रेखा को धुंधला कर देते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि पहचान की सत्यापन के पारंपरिक तरीके अपर्याप्त साबित होने लगते हैं. ऐसे में एक समग्र सुरक्षा ढांचे की ज़रूरत होती है, जो तकनीकी नवाचार को मानव चौकसी के साथ मिलाता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वित्तीय क्षेत्र एक प्रणालीगत पतन का ख़तरा पैदा होता है. आखिरकार ये उन आर्थिक प्रणालियों में भरोसे का संकट उत्पन्न कर देते हैं, जो पहचान सत्यापन पर निर्भर करती हैं.
इस तरह की बहुआयामी चुनौतियों का सामना करने के लिए मज़बूत, तात्कालिक और समन्वित समाधान की ज़रूरत है. इस दिशा में पहला कदम तो उन्नत एआई प्रशासन ढांचों का विकास करना है. नीति निर्धारकों को स्वैच्छिक आचार संहिताओं से आगे बढ़कर ऐसे बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की ओर बढ़ना चाहिए जो एआई प्रणालियों के कार्यान्वयन, पहुंच और क्षमताओं को विनियमित करें. एआई का विकास करने वालों को “फेल-सेफ मैकेनिज्म” को इसमें अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए. फेल-सेफ मैकेनिज्म ऐसे डिज़ाइन को कहते हैं, जो किसी गड़बड़ी की सूरत में खुद को सेफ मोड में चला जाए, जिससे बहुत ज़्यादा नुकसान ना हो. इन उपायों में गतिशील निगरानी और रीयल टाइम ऑडिटिंग शामिल है, जिससे हानिकारक सामग्री के पैदा होते ही उसका पता लगाया जा सके. सरकारों को भी ऐसे एजेंसियों में निवेश करना चाहिए, जो एआई की निगरानी करने के लिए स्पेशलाइज्ड हों. इन एजेंसियों को नियमों को लागू करने, दुरुपयोग की जांच करने और तकनीक के विकास के साथ नियमों को नई परिस्थितियों के हिसाब से बदलने का अधिकार हो.
इसके साथ ही, सुरक्षा प्रोटोकॉल को और ज़्यादा परिष्कृत होना चाहिए. पारंपरिक दस्तावेज़ सत्यापन प्रणाली में सिर्फ देखने से ही उनकी जांच की जाती है. ये तरीका एआई द्वारा बनाए गए नकली दस्तावेज़ों की जांच करने के लिए अपर्याप्त हैं. इस समस्या से निपटने के लिए बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन, ब्लॉकचेन-समर्थित पहचान प्रबंधन और एन्क्रिप्टेड वैरिफिकेशन टोकन ऐसे विकल्प हैं जिन्हें व्यापक रूप से एकीकृत किया जाना चाहिए. सुरक्षा एजेंसियों को भी एआई-संचालित फोरेंसिक उपकरणों से लैस होना चाहिए जो दस्तावेज़ों में सिंथेटिक छेड़छाड़ और मेटाडेटा की असंगतियों का पता लगा सकें. इसके अलावा दस्तावेज़ों की वायरमार्किंग भी की जा सकती है.
अगर अब भी कार्रवाई नहीं की गई, तो इससे उन अपराधियों को एआई पर नियंत्रण देने का ख़तरा है जो व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए इस तकनीकी प्रगति का दुरुपयोग करेंगे.
एक और महत्वपूर्ण समाधान सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता है. नागरिकों को डिजिटल कमज़ोरियों की वास्तविकताओं की जानकारी दी जानी चाहिए. ये भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि एआई के इस युग में दोहरे उपयोग तकनीकों के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ाई इसके विकास के ख़िलाफ नहीं है. असल में ये जंग इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि एआई के क्षेत्र में प्रगति से समाज को सकारात्मक परिणाम मिलें, ना कि अनजाने संकटों का पूर्व संकेत.
फर्ज़ी आधार और पैन कार्ड बनाने की चैटजीपीटी की क्षमता को लेकर जो खुलासा हुआ है, वो अलग-अलग घटनाएं नहीं हैं. ये एक व्यापक और ज़्यादा चिंताजनक प्रवृत्ति को दिखाता है. जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास होगा, इसके दुरुपयोग की आशंकाएं भी बढ़ेंगी. ये समाज के हर पहलू को प्रभावित करेंगी, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय मज़बूती और सामाजिक विश्वास. इन ख़तरों का मुकाबला करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है. बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय नियम, उन्नत एआई-चालित सत्यापन प्रौद्योगिकियां, सशक्त निगरानी एजेंसियां और व्यापक सार्वजनिक जागरूकता एक व्यापक रक्षा तंत्र के आवश्यक अंग हैं. अगर अब भी कार्रवाई नहीं की गई, तो इससे उन अपराधियों को एआई पर नियंत्रण देने का ख़तरा है जो व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए इस तकनीकी प्रगति का दुरुपयोग करेंगे. एआई को नैतिक और प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित करने की ज़रूरत अपने पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गई है, क्योंकि जब हम तकनीक की सुरक्षा करते है तो साथ ही समाज की भी सुरक्षा करते हैं.
सौम्या अवस्थी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटेजी और टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
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Dr Soumya Awasthi is Fellow, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. Her work focuses on the intersection of technology and national ...
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