Author : Harsh V. Pant

Published on Sep 07, 2022 Updated 24 Days ago

आर्थिक चुनौती केंद्र में रहेगी, ब्रिटिश अर्थव्यवस्था 10 प्रतिशत से ऊपर चल रही मुद्रास्फीति के साथ अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है.

ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री पर देश को उबारने की जिम्मेदारी

सत्ता एक अजीब जानवर की तरह है; काबू में रहने पर सत्ता आपको असीमित सुविधा-सहूलियत देती है, पर जिस क्षण यह आपको छोड़ जाती है, आप तत्काल अर्श से फर्श पर आ जाते हैं. जिस पल ब्रिटिश नेता बोरिस जॉनसन ने जुलाई में कंजरवेटिव पार्टी के नेता के रूप में पद छोड़ने का फैसला किया, वह एक तरह से गायब ही हो गए. हालांकि, वह उत्तराधिकारी चुने जाने तक प्रधानमंत्री के रूप में बने रहे, पर उनकी शक्ति समाप्त हो गई थी. खैर, अब उनकी जगह को लिज ट्रस ने हफ़्तों के कड़े संघर्ष के बाद भर दिया है. अब वह ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री हैं.

वह उत्तराधिकारी चुने जाने तक प्रधानमंत्री के रूप में बने रहे, पर उनकी शक्ति समाप्त हो गई थी. खैर, अब उनकी जगह को लिज ट्रस ने हफ़्तों के कड़े संघर्ष के बाद भर दिया है. अब वह ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री हैं.

बढ़ती उम्र वाली राजशाही से नई प्रधानमंत्री को समन्वय बिठाना होगा. अभी न केवल उनकी पार्टी विभाजित है, बल्कि देश को भी दिशा देने की जरूरत है. एक हद तक जॉनसन के कुशासन और अनुशासन की कमी से भी उन्हें सीखना होगा

मार्गरेट थैचर की साल 1987 की चुनावी जीत के बाद से बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में ही कंजरवेटिव्स को 2019 में सबसे बड़ा राजनीतिक जनादेश प्राप्त हुआ था. जॉनसन जनादेश को एक प्रभावी शासन एजेंडे में तब्दील नहीं कर सके और एक संकट से दूसरे संकट में उलझते चले गए. अब उनकी उत्तराधिकारी ट्रस को पार्टी के अंदर और बाहर उथल-पुथल से जूझना होगा. ट्रस से पराजित हुए ऋषि सुनक को वास्तव में टोरी के अधिकांश सांसदों का समर्थन प्राप्त था, पर वह टोरी के उन 1,60,000 सदस्यों के बीच विश्वास पैदा नहीं कर सके. ट्रस ने खुद को थैचर की स्वयंभू उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर मैदान मार लिया, लेकिन वह लिबरल डेमोक्रेट भी रह चुकी हैं. डेमोक्रेट कभी राजशाही को खत्म करना चाहते थे और यूरोपीय संघ में भी रहना चाहते थे, इसलिए पारंपरिक टोरी उनकी क्षमता पर संदेह करते हैं. ट्रस के सामने चुनौती होगी कि वह नेतृत्व के लिए हुई भीषण लड़ाई के बाद पार्टी को एक साथ लाए. सुनक ने पहले ही साफ कर दिया था कि आर्थिक नीति पर झूठे वादे करके जीतने के बजाय वह नेतृत्व की लड़ाई को हारना पसंद करेंगे.

ब्रिटेन के समक्ष चुनौती

वहां आर्थिक चुनौती केंद्र में रहेगी. ब्रिटिश अर्थव्यवस्था 10 प्रतिशत से ऊपर चल रही मुद्रास्फीति के साथ अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है. ब्रिटिश पाउंड अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर है. आने वाले महीने में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के मंदी में प्रवेश करने के संकेतों के बीच ट्रस ने सत्ता संभालने के एक सप्ताह के भीतर मदद पहुँचाने का वादा किया है. बढ़ती मुद्रास्फीति को संभालने के लिए ऊर्जा खर्च पर लगाम लगाने की भी तैयारी है.

नई ब्रिटिश प्रधानमंत्री टैक्स में कटौती करके अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की इच्छुक हो सकती हैं, पर खतरा यह है कि इससे महंगाई बढ़ सकती है. सड़कों पर व्यवसाय और आजीविका को बचाने के लिए जो मांग हो रही है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. सामाजिक अशांति की आशंका भी अधिक है, क्योंकि आर्थिक संकट एक बड़े सामाजिक संकट में बदल जाता है. आश्चर्य की बात नहीं कि ब्रिटेन की पुलिस इस अशांति को संभालने की आपात योजनायें बना रही है.

ब्रिटेन का आर्थिक संकट कुछ मायने में युक्रेन के सवाल से जुड़ा है, जो ट्रस की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा. जैसे-जैसे सर्दिया शुरू होंगी, पश्चिमी यूरोप की सड़कों पर और अधिक बेचैनी होने की आशंका है और नीति-निर्माताओं को समझौता करना पड़ेगा.

ब्रिटेन का आर्थिक संकट कुछ मायने में युक्रेन के सवाल से जुड़ा है, जो ट्रस की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा. जैसे-जैसे सर्दिया शुरू होंगी, पश्चिमी यूरोप की सड़कों पर और अधिक बेचैनी होने की आशंका है और नीति-निर्माताओं को समझौता करना पड़ेगा. यहां ट्रस कोई अपवाद नहीं होंगी. उन्हें कंजरवेटिव पार्टी को एक बार फिर गंभीर शासन वाली पार्टी के रूप में खड़ा करना होगा. लेबर पार्टी भी सत्ता में अपने लिए संभावना देखने लगी है. खैर, लिज ट्रस के पास अब वह ताकत या सत्ता है, जिसकी वह तलाश कर रही थीं, लेकिन ध्यान रहे, उस सिर में बेचैनी बसती है, जो ताज पहनता है.

भारत के लिए मायने

जहां तक भारत का सवाल है, तो विदेश मंत्री के रूप में ट्रस भारत के अनुकूल रही हैं. दोनों देशों के बीच गर्मजोशी बढ़ी है. आने वाले दिनों में भारत-ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड की दिशा में समझौते को भी गति मिलेगी. वैसे भी भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्ते इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि प्रधानमंत्री कोई हो, खास फर्क नहीं पड़ेगा.

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यह लेख हिंदुस्तान में प्रकाशित हो चुका है.

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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