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6G में नेतृत्व करने की दौड़ तेज़ होने के साथ, यह साफ़ होता जा रहा है कि कोई भी देश अकेले कनेक्टिविटी के भविष्य को आकार नहीं दे सकता.
Image Source: Getty
ये लेख राष्ट्र, नेटवर्क और नैरेटिव: विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस 2025 श्रृंखला का हिस्सा है.
साल 2023 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत 6G युग में प्रवेश करने के लिए खुद को तैयार कर रहा है. हमें यह सफलता कई अन्य उपलब्धियों के आधार पर मिलने जा रही है. दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी जगह बनाने के अलावा, भारत ने विश्व स्तर पर सबसे सस्ती इंटरनेट सेवाएं और मोबाइल डाटा प्लान उपलब्ध कराए हैं. इसके अलावा, इसने दुनिया में सबसे तेज़ी से और सबसे बड़े पैमाने पर 5G तकनीक अपनाई है. प्रधानमंत्री ने कहा था कि 6G दूरसंचार सेवाओं को रोमांच से भरी नई दिशाओं की ओर ले जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने इसे सच बनाने के लिए किस तरह काम शुरू कर दिया है.
सवाल है कि 6G है क्या? और, यह क्यों इतना मायने रखता है?
6G, या छठी पीढ़ी का वायरलेस, मोबाइल संचार का नया मानक बनने जा रहा है. उम्मीद है, यह तकनीक 2030 के दशक के शुरुआती वर्षों में ही 5G को पीछे छोड़ देगी और कनेक्टिविटी में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी. 5G की क्षमताओं को बेहतर बनाते हुए तैयार किए गए 6G नेटवर्क का उद्देश्य है- डाटा को अभूतपूर्व तेज़ गति में उपलब्ध कराना, अल्ट्रा-लो लेटेंसी (बहुत कम समय में डाटा को प्रोसेस करना), काफ़ी बड़ी संख्या में उपकरणों को अनुकूल बनाने की क्षमता पैदा करना और पहले से उन्नत तकनीकों, जैसे बिग डाटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), एक्सटेंडेड रियलिटी (XR) और एक ही समय में कई जगहों की सेंसिंग को आसानी से जोड़ना.
‘6G नेटवर्क डिजिटल, भौतिक और इंसानी दुनिया को एक साथ जोड़ देगा, जिससे अतिरिक्त संवेदी अनुभवों (देखने, सुनने, छूने, स्वाद लेने और गंध महसूस करने के अलावा मिलने वाले अनुभव) के दरवाज़े खुलेंगे.
जैसा कि बेल लेब्स कहती है, ‘6G नेटवर्क डिजिटल, भौतिक और इंसानी दुनिया को एक साथ जोड़ देगा, जिससे अतिरिक्त संवेदी अनुभवों (देखने, सुनने, छूने, स्वाद लेने और गंध महसूस करने के अलावा मिलने वाले अनुभव) के दरवाज़े खुलेंगे. बुद्धिमान मानी जाने वाली ज्ञान प्रणालियों को मज़बूत गणना क्षमताओं से जोड़ा जाएगा, जिससे नेटवर्क, एप्लिकेशन और प्रोसेसर की भूमिकाएं एक साथ आ जाएंगी.’
6G पर अभी अनुसंधान और विकास का काम चल रहा है. हालांकि, ‘अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ’ (ITU) और ‘थर्ड जेनरेशन पार्टनरशिप’ (3GPP) जैसे संगठन जिस तरह 6G के मानक व इसकी रूपरेखा को परिभाषित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं या जिस तरह सुधार के अन्य काम किए जा रहे हैं, उसका मतलब यही है कि 6G नेटवर्क अगले पांच वर्षों में व्यावसायिक तौर पर उपयोग में लाने और अपनाने के लिए तैयार किया जा सकता है.
5G और 6G की तुलना
विशेषता |
5G |
6G (संभावित) |
|
---|---|---|---|
1 |
पीक डाटा दर |
~10 Gbps |
1 Tbps तक |
2 |
विलंबता |
~1 मिलीसेकंड |
<0.1 मिलीसेकंड |
3 |
बैंडविड्थ |
mmWave (24–100 GHz) |
THz (100 GHz –10 THz) |
4 |
AI से जुड़ाव |
आंशिक |
जन्मजात और स्थायी |
5 |
कनेक्टिविटी घनत्व |
~1 मिलियन डिवाइस प्रति वर्ग किलोमीटर |
10 मिलियन से अधिक डिवाइस प्रति वर्ग किलोमीटर |
6 |
ऊर्जा दक्षता |
4G से बेहतर |
उल्लेखनीय ध्यान |
स्रोत- विभिन्न स्रोतों से खुद लेखक द्वारा संकलित
पहले की 5G तकनीक और आज की AI की तरह, 6G में भी वर्चस्व की दौड़ शुरू हो गई है. यह समय-पूर्व की कोशिश लग सकती है, क्योंकि 5G तकनीक अभी विकसित हो ही रही है. आंकड़े बताते हैं कि साल 2024 के अंत तक दुनिया भर में 5G के 320 नेटवर्क थे और विश्व की करीब 55 प्रतिशत जनसंख्या तक ही यह तकनीक पहुंच सकी थी. मगर, 6G में आगे बढ़ने के लिए चल रही दौड़ दूरदर्शी भी है और रणनीतिक भी, क्योंकि यह तकनीकी, आर्थिक और भू-राजनीतिक ताकत को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकती है.
2030 के बाद वायरलेस दूरसंचार के लिए 6G एक वैश्विक न्यूनतम मानदंड बन जाएगा. इस कारण, जो देश या गठबंधन इसके विकास की अगुवाई करेगा, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी मानक बनाने का मौका मिलेगा, ठीक उसी तरह, जैसे हुआवेई 5G मानकों को प्रभावित कर रही है. इस तरह के देश यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि उनकी अपनी कंपनियों और प्रौद्योगिकियों के आधार पर यह तकनीक आगे बढ़े. वास्तव में, किसी देश के 6G पारिस्थितिकी तंत्र को विश्व स्तर पर अपनाने से लंबे समय तक उस देश पर दुनिया की निर्भरता बनी रहेगी और उसका भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ जाएगा. इसके अलावा, 6G तकनीक में रोबोटिक्स, ऑटोनॉमस सिस्टम (खुद-ब-खुद काम करने वाले तंत्र), स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग और एक्सटेंडेड रियलिटी जैसे क्षेत्रों में नई पीढ़ी के औद्योगिक साधनों को महत्व दिए जाने के कारण इस तकनीक में दबदबा रखने वाले देश प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में मुकाबलों में आगे रहेंगे. देखा जाए, तो 6G में दबदबा रखने का अर्थ होगा, रक्षा तकनीक और साइबर संचालन के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से आगे रहना.
चीन और अमेरिका पहले से ही 6G में नेतृत्व करने के लिए एक-दूसरे से भयंकर तरीके से उलझे हुए हैं. नवंबर 2020 में चीन की सरकार ने दुनिया का पहला 6G उपग्रह लॉन्च किया, जिसे अल्ट्रा-हाई फ्रीक्वेंसी बैंड का पता लगाने और 6G उपग्रह इंटरनेट सेवा का आकलन करने के लिए तैयार किया गया था. दूरसंचार सेवा देने वाली चाइना मोबाइल, हुआवेई और ZTE कंपनियां 6G तकनीक का शुरुआती प्रयोग कर रही हैं और 2023 के बाद से कई चीनी और विदेशी दूरसंचार व स्मार्टफोन कंपनियों ने देश के 6G प्रयोगों और उसके तकनीकी पहलुओं को लेकर परीक्षण किए हैं. कुल मिलाकर, चीन 6G में अगुवा देश के रूप में उभरता हुआ दिखाई दे रहा है.
ब्रिटेन के ‘द टेलीग्राफ’ ने हाल ही में एक लेख में लिखा कि ‘केवल अमेरिकी नेतृत्व ही चीन के 6G दबदबे वाली इस आपदा को रोक सकता है’.
ब्रिटेन के ‘द टेलीग्राफ’ ने हाल ही में एक लेख में लिखा कि ‘केवल अमेरिकी नेतृत्व ही चीन के 6G दबदबे वाली इस आपदा को रोक सकता है’. दरअसल, 5G के उदय के समय अमेरिका पिछड़ता हुआ और सुस्त पड़ता दिखा था. नए दूरसंचार युद्ध में वह वही गलतियां दोहराना नहीं चाहता. अमेरिका का प्रमुख 6G कार्यक्रम ‘नेक्स्ट G अलायंस’ अलायंस फॉर टेलीकम्युनिकेशंस इंडस्ट्री सॉल्यूशंस (ATIS) के नेतृत्व में चल रहा है. ATIS, जिसके सदस्यों में एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, एटीऐंडटी और क्वालकॉम जैसी तकनीकी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं, 6G के लिए एक कार्य-योजना लागू कर रही है, जिसमें नेटवर्क की विश्वसनीयता, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और टिकाऊपन पर ज़ोर दिया जा रहा है. इसके साथ ही, अमेरिकी रक्षा विभाग 6G अनुसंधान और विकास कार्यक्रम चला रहा है, जिसके माध्यम से 6G के सैन्य उपायों और सुरक्षित ‘एज कंप्यूटिंग’ व युद्ध के मैदान में संचार जैसे दोहरे उपयोग वाले माध्यमों में निवेश किया जा रहा है.
यूरोपीय संघ (EU) भी अपनी ‘होराइजन यूरोप इनीशिएटिव’ के माध्यम से 6G में अनुसंधान और नवाचार (इनोवेशन) के लिए पर्याप्त आर्थिक मदद दे रहा है. नोकिया की सहायता से 6G अनुसंधान में चल रही ‘हेक्सा-X’ नाम की यूरोपीय पहल में 6G के लिए ढांचा, एआई-संचालित नेटवर्क और नए स्पेक्ट्रम के निर्माण के लिए 25 सहयोगी औद्योगिक कंपनियों को एक साथ जोड़ा गया है. फैक्टरी ऑटोमेशन और इंडस्ट्री 4.0 को आगे बढ़ाने पर ‘6G BRAINS’ का ज़ोर है. 6G BRAINS यूरोपीय संघ की आर्थिक मदद से चलने वाला एक कार्यक्रम है, जो 6G में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेंसिंग को जोड़ने की दिशा में काम कर रहा है.
दुनिया के दूसरे हिस्से, यानी पूर्वी एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया की 6G क्षमता भी तेज़ी से विकसित हो रही है. दोनों देश अनुसंधान व विकास के मज़बूत कार्यक्रम चला रहे हैं और प्रयोग भी कर रहे हैं.
महाशक्तियों की आपसी होड़ से दूर, भारत भी 6G क्षेत्र में अग्रणी देश बनने की दिशा में लगातार काम कर रहा है. जैसा कि देश के संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं, ‘यह हमारा विश्वास और हमारी प्रतिबद्धता है कि भारत, जिसने 4G में दुनिया का अनुसरण किया और 5G में साथ-साथ आगे बढ़ा, 6G में विश्व का नेतृत्व करेगा.’
हालांकि, अभी प्रगति का आकलन करना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन भारत अपने 6G पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सक्रियता से बुनियाद तैयार कर रहा है. इसके लिए दूरदर्शी नीतियां तो बनाई ही गई हैं, उसके अनुसार रणनीतिक निवेश भी जुटाए जा रहे हैं. सरकार, शिक्षाविदों व उद्योग के बीच साझेदारी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.
मार्च 2023 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘भारत 6G विज़न डॉक्यूमेंट’ जारी किया था, जो 6G विकास का एक रोडमैप है और 6G के तीन सिद्धांतों- सामर्थ्य, स्थिरता और सर्वव्यापकता पर ज़ोर देता है. विज़न डॉक्यूमेंट में बहु-हितधारकवाद (इस तकनीक से प्रभावित होने वाले सभी समूहों, लोगों अथवा संगठनों के बीच सहयोग करके फ़ैसले लेना) पर ज़ोर दिया गया है. इसे 6G पर एक नवाचार समूह TIG-6G ने तैयार किया है, जिसमें मंत्रालयों, शोध संस्थानों, मानकीकरण निकायों, दूरसंचार सेवा देने वालों और तकनीकी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल थे. इस विज़न का मुख्य मक़सद यह सुनिश्चित करना है कि भारत न केवल 6G तकनीक विकसित करें, बल्कि इसकी तरक्क़ी में प्रमुख योगदान देने वाला देश भी बने. इसके साथ-साथ भारत ने उभरती हुई 6G तकनीक के परीक्षण और सत्यापन के लिए शिक्षाविदों, उद्योगपतियों और स्टार्टअप के लिए एक मंच के रूप में ‘6G R&D टेस्ट बेड’ भी लॉन्च किया है. इससे 6G नवाचार, क्षमता निर्माण और इसे तेज़ी से अपनाने में मदद मिलने की उम्मीद है.
इस विज़न का मुख्य मक़सद यह सुनिश्चित करना है कि भारत न केवल 6G तकनीक विकसित करें, बल्कि इसकी तरक्क़ी में प्रमुख योगदान देने वाला देश भी बने.
बहु-हितधारक सोच को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने ‘भारत 6G अलायंस’ (B6GA) का भी गठन किया है, जिसके सदस्य 6G तकनीक के डिजाइन और उसके इस्तेमाल को लेकर काम कर रहे हैं, जो न सिर्फ़ सस्ता होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों जैसा भी होगा. मानकों को एक समान बनाने के इस अभियान में 6G पर 100 से अधिक घरेलू व अंतरराष्ट्रीय शोध प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है और B6GA ने यूरोप के ‘6G स्मार्ट नेटवर्क्स ऐंड सर्विसेज इंडस्ट्री एसोसिएशन’ (6G-IA) के साथ एक समझौता-पत्र (MoU) पर भी हस्ताक्षर किया है, ताकि आपस में मिलकर प्रोजेक्ट किए जा सकें, ज्ञान के आदान-प्रदान वाले कार्यक्रम चलाए जा सके और मानकों को तैयार किया जा सके.
इसके अलावा, 100 समर्पित सहायक प्रयोगशालाओं की स्थापना और विदेशी तकनीकी कंपनियों की शोध सुविधाओं को आकर्षित करके उच्च-स्तरीय 6G अनुसंधान और विकास पर ध्यान दिया जा रहा है. भारत वैश्विक 6G पेटेंट पुल में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर भी काम कर रहा है. अभी भारत के पास 6G से जुड़े 200 से अधिक पेटेंट हैं और सरकार का लक्ष्य 2030 तक कुल वैश्विक 6G पेटेंट में कम से कम 10 प्रतिशत पेटेंट हासिल करना है.
6G की यह रेस समय-पूर्व की महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक ज़रूरत है. हालांकि, इस दौड़ में ऐसा नहीं होना चाहिए कि तकनीक रूप से विकसित शक्तियां एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाकर अपना फ़ायदा कमाने की सोचें. चीन के अत्याधुनिक 6G प्रयोग और अमेरिका व यूरोपीय संघ के समर्पित कार्यक्रमों से लेकर पूर्वी एशिया के उच्च-प्रभाव वाले परीक्षण-प्रयोग और भारत के उभरते बाज़ार के आधार पर तेज़ विकास के प्रयास- यही बता रहे हैं कि कोई भी देश कनेक्टिविटी का भविष्य अकेले नहीं बना सकता.
साफ़ है, बहुपक्षीय निकायों और सदस्य देशों को अंतरराष्ट्रीय मानक बनाने, स्पेक्ट्रम तक एकसमान पहुंच पर सहमत होने और समावेशी शोध व विकास (R&D) के तंत्र को आगे बढ़ाने के लिए आपस में मिलकर काम करना चाहिए. सार्वजनिक निवेश इस तरह किया जाना चाहिए कि कम समय वाले आर्थिक लाभों की तुलना में लंबे समय वाले नवाचार व क्षमता विकास को महत्व मिले. इतना ही नहीं, पूरी संवेदनशीलता के साथ नीतियां बनानी चाहिए और निजता, साइबर सुरक्षा, नैतिकता, पर्यावरणीय प्रभाव और पुरानी पीढ़ी के नेटवर्क के साथ ताल-मेल से जुड़ी चिंताओं का समाधान तलाशना चाहिए.
6G युग में लोगों की मांग इंटरनेट की गति और पैमाने तक नहीं होगी, बल्कि इससे भी अधिक की होगी, जिसके लिए दूरदर्शिता और ज़िम्मेदारी की ज़रूरत पड़ेगी.
6G युग में लोगों की मांग इंटरनेट की गति और पैमाने तक नहीं होगी, बल्कि इससे भी अधिक की होगी, जिसके लिए दूरदर्शिता और ज़िम्मेदारी की ज़रूरत पड़ेगी. ऐसे में, ‘विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस’ (WTISD) सरकारों, व्यवसायों और अन्य लोगों को यह याद दिलाने का उचित अवसर है कि हमें ‘जीतने’ से आगे सोचना चाहिए और सहयोग के नए रास्ते तलाशने चाहिए.
(अनिर्बान सरमा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर डिजिटल सोसाइटीज के निदेशक हैं)
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Anirban Sarma is Director of the Digital Societies Initiative at the Observer Research Foundation. His research explores issues of technology policy, with a focus on ...
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