Published on Sep 21, 2022 Updated 25 Days ago
समावेशी प्रजातंत्र की राह: भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का मूल्यांकन (1951-2019)

यह पेपर भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की मतदाताओं, प्रत्याशियों, विधायकों के रूप में भागीदारी का विश्लेषण करता है, जिसके लिए 1951 के प्रथम और 2019 के बीच हुए राज्य विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. यह पेपर पाता है कि इन तीनों भूमिकाओं में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में अभूतपूर्व वृद्धि के लिहाज़ से भारत अपने लोकतंत्र को मज़बूत होते देख रहा है. भारतीय लोकतंत्र के इन 73 वर्षों में, पुरुषों के मुक़ाबले महिला मतदाताओं के वोट डालने में बड़ी वृद्धि हुई है. निर्वाचकों और मतदाताओं के बीच लैंगिक खाई तेज़ी से और लगातार कम हुई है, और पिछले 10 वर्षों में पूरी तरह गायब हो गयी है. लेखक दी गयी समयावधि में, महिला प्रत्याशियों वाले निर्वाचन क्षेत्रों के साथसाथ विधानसभा में प्रवेश कर रहीं महिला विधायकों की संख्या में वृद्धि को स्पष्ट रूप से सामने लाते हैं.


एट्रीब्यूशन:  मुदित कपूर, शमिका रवि, “समावेशी लोकतंत्र की राह: भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का मूल्यांकन (1951-2019)” ओआरएफ़  ओकेज़नल पेपर नं 361, अगस्त 2022, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.


1.परिचय

तथ्यात्मक साक्ष्य 2006 को ‘लोकतंत्र में गिरावट’ के वैश्विक रुझान के ‘प्रारंभिक वर्ष’ के रूप में चिह्नित करते हैं.[1] आधुनिक उदार लोकतंत्रों को तीन मूलभूत संस्थाएं रखने के रूप में परिभाषित किया जाता है: राज्य, जिसके पास शांति बनाये रखने, क़ानूनों को लागू करने और सुरक्षा व बुनियादी सार्वजनिक वस्तुएं (पब्लिक गुड्स) मुहैया कराने का एकाधिकार होता है; क़ानून का शासन, जो राज्य और अभिजात वर्ग की शक्तियों को सीमित करता है; और लोकतांत्रिक जवाबदेही, जहां मुक्त और स्वतंत्र चुनाव यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य, समुदाय के हित में काम करे.[2] दुनिया भर में लोकतांत्रिक प्रणालियों में दीर्घकालिक गतिरुद्धता के मौजूदा तरीकों को समझने के लिए विभिन्न देशों के बीच तुलना की जानी महत्वपूर्ण है, लेकिन निर्दिष्ट देशों, ख़ासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों, में लोकतंत्र की दशा का विश्लेषण किया जाना भी उतना ही प्रासंगिक है.

यह पेपर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, जहां 90 करोड़ से ज़्यादा निर्वाचक हैं, का अध्ययन करता है. लोकतांत्रिक जवाबदेही में लैंगिक समानता, जो नागरिक और राजनीतिक अधिकार हासिल करने में सहायक है, एक महत्वपूर्ण आयाम है, जिसकी इस परिप्रेक्ष्य में छानबीन किये जाने की ज़रूरत है कि समय के साथ खाई भरी अथवा कम हुई है या नहीं.

यह पेपर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, जहां 90 करोड़ से ज़्यादा निर्वाचक हैं, का अध्ययन करता है. लोकतांत्रिक जवाबदेही में लैंगिक समानता, जो नागरिक और राजनीतिक अधिकार हासिल करने में सहायक है,[3] एक महत्वपूर्ण आयाम है, जिसकी इस परिप्रेक्ष्य में छानबीन किये जाने की ज़रूरत है कि समय के साथ खाई भरी अथवा कम हुई है या नहीं. यह पेपर चुनाव प्रक्रिया में तीन स्तरों पर – बतौर मतदाता, बतौर प्रत्याशी, और बतौर चुनाव विजेता – महिलाओं की भागीदारी के ज़रिये महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण में दशकीय रुझानों (1951 में प्रथम राज्य चुनाव से लेकर 2019 तक) को परखता है.

यह विश्लेषण राजनीतिक भागीदारी में लैंगिक खाई पर भारतीय संदर्भ में मौजूद उन शोध कार्यों के लिए पूरक बनना चाहता है, जिन्होंने अपना ध्यान मुख्यतया: राजनीतिक पदों पर महिलाओं के निर्वाचन और सामाजिक नतीजों (सोशल आउटकम्स) पर उनके प्रभावों तक सीमित रखा है. उदाहरण के लिए, शोध कार्यों ने दिखाया है कि सार्वजनिक वस्तुएं मुहैया कराये जाने, और सार्वजनिक ख़र्च पर महिला राजनीतिक नेताओं का एक अलग लैंगिक प्रभाव है;[4] जिससे नवजात मृत्यु दर में कमी आयी है;[5] शैक्षणिक उपलब्धियों में सुधार हुआ है;[6] और महिलाओं की भावी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा मिला है.[7] इस बीच, दूसरे शोध कार्यों ने लैंगिक आधार पर सार्वजनिक वस्तुएं मुहैया कराये जाने पर महिला नेताओं का या तो कोई प्रभाव नहीं पाया है, या वास्तव में, विपरीत प्रभाव पाया है.[8]

महिला नेताओं पर इस तरह का ख़ास फोकस 2017 की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट  में भी देखा गया,[9] जिसने राष्ट्रीय संसदीय और मंत्रीय पदों में महिला-पुरुष अनुपात पर नज़र डालते हुए राजनीतिक सशक्तीकरण में लैंगिक खाई को उजागर किया. यहां तक कि इकोनॉमिस्ट  लोकतंत्र सूचकांक भी,[10] लोकतंत्र के मानदंड के रूप में राजनीतिक भागीदारी को विश्लेषित करते हुए, संसद में महिलाओं की भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करता है. हालांकि, निश्चित रूप से, मतदान में महिला वोटरों की भागीदारी के अध्ययन में भी रुचि बढ़ रही है.[11] [12] [13] [14]

राजनीतिक सशक्तीकरण में लैंगिक खाई की ज़्यादा समग्र समझ बनाने के लिए, यह आवश्यक है कि महिलाओं के बतौर राजनीतिक नेता या मतदाता होने से परे जाया जाए, और विश्लेषण को महिलाओं को देश भर में चुनावों में राजनीतिक दावेदारों (प्रत्याशियों) के बतौर शामिल किये जाने तक विस्तृत किया जाए.  

राजनीतिक सशक्तीकरण में लैंगिक खाई की ज़्यादा समग्र समझ बनाने के लिए, यह आवश्यक है कि महिलाओं के बतौर राजनीतिक नेता या मतदाता होने से परे जाया जाए, और विश्लेषण को महिलाओं को देश भर में चुनावों में राजनीतिक दावेदारों (प्रत्याशियों) के बतौर शामिल किये जाने तक विस्तृत किया जाए. यह पेपर भारत में 1951 में हुए पहले राज्य विधानसभा चुनावों से लेकर 2019 में हुए हालिया चुनावों तक, तीनों कोणों से – बतौर मतदाता, प्रत्याशी, और विजेता – महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के दशकीय रुझानों की व्यवस्थित छानबीन करता है. इसके लेखकों ने निर्वाचन क्षेत्र स्तरीय आंकड़े राज्य विधानसभा चुनावों से लिये हैं, और चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी के दशकीय रुझानों का विश्लेषण किया है.

पहला, महिलाओं के बतौर मतदाता अध्ययन के लिए, लेखकों ने निर्वाचकों (लोग जो मतदान के लिए योग्य हैं) के लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाएं) के साथ मतदाताओं (लोग जो वोट डालते हैं) के लिंग अनुपात का वक्र (कर्व) खींचा है. इन दोनों लिंग अनुपातों के बीच का अंतर वास्तविक मतदाता भागीदारी में लैंगिक अंतर को दिखाता है. दूसरा, महिलाओं के बतौर प्रत्याशी अध्ययन के लिए, लेखकों ने समय के साथ महिलाओं के चुनाव लड़ने की संभाव्यता का विश्लेषण किया है. तीसरा, लेखकों ने समय के साथ महिलाओं के चुनाव जीतने की संभाव्यता का विश्लेषण करते हुए, महिलाओं का बतौर विजेता अध्ययन किया है.

2.कार्यपद्धति (Methodology)

1.परिणाम कारक

तीन आउटकम वेरिएबल्स ऐसे हैं जो इस विश्लेषण के लिए दिलचस्पी के हैं. पहला, निर्वाचकों और मतदाताओं का लिंग अनुपात. निर्वाचक वे नागरिक हैं जो मतदान के लिए पंजीकृत हैं, और लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुष निर्वाचकों पर महिला निर्वाचकों की संख्या है. मतदाता उन्हें कहा जाता है जो चुनाव में अपना वोट डालते हैं, और लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुष मतदाताओं पर महिला मतदाताओं की संख्या है. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए, लेखकों ने निर्वाचकों और मतदाताओं के लिंग अनुपात की गणना की है. किसी निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर दूसरा आउटकम (नतीजा) यह है कि क्या वहां से कम से कम एक महिला चुनाव लड़ रही थी या नहीं. यह एक डमी वेरिएबल है जिसका मान (वैल्यू) महिला प्रत्याशी के होने पर ‘1’, अन्यथा ‘शून्य’ होता है. जिस तीसरे आउटकम में दिलचस्पी है, वह यह है कि चुनाव की विजेता महिला थी या नहीं. इसके लिए लेखकों ने दो सब आउटकम को ध्यान में रखा है : (a) बिना-शर्त विजेता, जिसका मान चुनाव में महिला की जीत पर ‘1’ होता है, अन्यथा ‘शून्य’, इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उस निर्वाचन क्षेत्र से किसी महिला ने चुनाव लड़ा था या नहीं; और (b) सशर्त विजेता, जहां विश्लेषण केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों में नतीजों तक सीमित है, जहां महिलाओं ने चुनाव लड़ा. सटीक ढंग से –

इसका निहितार्थ यह है कि समय के साथ, ज़्यादा महिलाएं निर्वाचित हो सकती हैं क्योंकि ज़्यादा महिलाएं सीटों के लिए लड़ रही हैं. हालांकि, महिलाओं के चुनाव जीतने की प्रायिकता (जो चुनाव लड़ने की शर्त से बंधी है) घट सकती है, क्योंकि समय के साथ, महिलाओं के चुनाव जीतने की संभावना (प्रोबेबिलिटी) के मुक़ाबले महिलाओं के चुनाव लड़ने की संभावना ज़्यादा तेज़ी से बढ़ सकती है.

2.आंकड़े

यह अध्ययन भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के आंकड़ों का इस्तेमाल करता है. ईसीआई 1950 में स्थापित एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है, जो भारत में लोकसभा (राष्ट्रीय संसदीय चुनाव), राज्यसभा (राष्ट्रीय संसद का उच्च सदन), राज्य विधानसभाओं, राज्य विधान परिषदों, भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के चुनावों के लिए ज़िम्मेदार है. यह विश्लेषण 1951, जब पहली बार राज्यों के चुनाव हुए, से लेकर 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों पर आधारित है. पर्यवेक्षण की इकाई के रूप में निर्वाचन क्षेत्र को लिया गया है, जहां लैंगिक बंटन के लिए ये आंकड़े उपलब्ध हैं – (a) चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों की संख्या, (b) मतदान के लिए ईसीआई के पास पंजीकृत निर्वाचकों की संख्या, और (c) मतदाताओं की संख्या, जिन्होंने वोट डाला.

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की अपनी कोशिश में, प्रत्येक चुनाव के बाद, ईसीआई निर्वाचन क्षेत्र स्तरीय आंकड़ों को अपनी वेबसाइट पर पोर्टेबल डॉक्युमेंट फॉर्मेट (पीडीएफ) में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराता है. लेखकों ने ये आंकड़े ईसीआई की वेबसाइट से हासिल किये हैं. प्रत्याशियों के लैंगिक बंटन का आंकड़ा हर निर्वाचन क्षेत्र चुनाव के लिए उपलब्ध है. हालांकि, निर्वाचकों और मतदाताओं के लैंगिक बंटन का आंकड़ा केवल 1969 से उपलब्ध है. इसके अलावा, 166 निर्वाचन क्षेत्र चुनाव (0.37 प्रतिशत) ऐसे हैं, जिनके लिए लैंगिक बंटन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. इनमें से 132 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे जहां केवल एक प्रत्याशी था, इसलिए मतदान नहीं हुआ. बाकी के 34 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए, निर्वाचकों और मतदाताओं के लैंगिक बंटन के आंकड़ों को ईसीआई ने रिपोर्ट नहीं किया है.

3.सांख्यिकीय विश्लेषण

लेखकों ने दो स्तरों, अखिल-भारतीय और राज्य, पर सांख्यिकीय विश्लेषण किया. पहले नतीजों के लिए, जो मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात पर ग़ौर करता है, लेखकों ने एक पूल्ड क्वांटाइल रिग्रेशन चलाया. [a] उन्होंने STATA MP 15 (StataCorp 1985-2015) के qreg कमांड का इस्तेमाल करते हुए, निम्नलिखित क्वांटाइल रिग्रेशन चलाया,

 

 

जहां sex ratioc,t चुनाव के साल t  में निर्वाचन क्षेत्र c के स्तर पर लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाएं) है. State fixed effects  उन अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करते हैं जो राज्यों में मौजूद होते हैं.  चुनाव होने के दशक और निर्वाचकों या फिर मतदाताओं के लिंग अनुपात के इंडीकेटर वेरिएबल के बीच एक अंत:क्रियात्मक पद (इंटरेक्शन टर्म) है. यह अंत:क्रिया इजाज़त देती है कि मतदाताओं के लिंग अनुपात, और निर्वाचकों के लिंग अनुपात के लिए दशकीय रुझान अलग-अलग हो सकें.     

निर्वाचकों और मतदाताओं के लिए लैंगिक बंटन के आंकड़े 1969 से उपलब्ध हैं, और इसलिए दशकों को पांच की संख्या में बांटा गया है : 1970 का दशक [1970-79], 1980 का दशक [1980-89], 1990 का दशक [1990-99], 2000 का दशक [2000-09] और 2010 का दशक [2010-19]. एरर टर्म उन संभावित सह-संबंधों को व्याख्यायित करने के लिए राज्य और चुनाव के वर्ष में समूहित (क्लस्टर) किये जाते हैं, जो एक राज्य के भीतर और चुनाव होने के उस वर्ष में निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूद हो सकते हैं. क्वांटाइल रिग्रेशन चलाने के बाद, लेखकों ने, क्रमश:, निर्वाचकों और मतदाताओं के लिए, प्रत्येक दशक के लिए औसत पूर्वानुमानित मान की गणना के वास्ते margins कमांड का इस्तेमाल किया है. लेखक इसके बाद मतदाताओं के और निर्वाचकों के लिंग अनुपात में अंतर की गणना करते हैं, और जांचते हैं कि क्या ये एक दूसरे से 5% के सामान्य प्रचलित स्तर पर भिन्न थे. इसके लिए p values का इस्तेमाल chi square टेस्ट से किया गया है. इसी तरह का विश्लेषण हरेक राज्य के स्तर पर अलग-अलग किया गया है.[15]

दूसरे तथा तीसरे नतीजों के लिए, लेखक, क्रमश:, महिलाओं के चुनाव लड़ने की संभावना, और महिलाओं के चुनाव जीतने की ,संभावना का विश्लेषण लॉजिस्टिक रिग्रेशन एनालिसिस के इस्तेमाल के ज़रिये करते हैं. लेखकों ने निम्नलिखित रिग्रेशन को चलाया,

जहां y वो आउटकम है जिसमें दिलचस्पी है; निर्वाचन क्षेत्र c में और समयावधि t में, क्रमश:, (a) क्या किसी महिला ने कोई चुनाव लड़ा, और (b) क्या महिलाओं ने चुनाव जीता. जैसा पहले कहा गया है, State fixed effects  राज्यों में मौजूद अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करते हैं. वर्षों को सात दशकों में बांटा गया है: 1950 का दशक [1951-59], 1960 का दशक [1960-69], 1970 का दशक [1970-79], 1980 का दशक [1980-89], 1990 का दशक [1990-99], 2000 का दशक [2000-09], और 2010 का दशक [2010-19]. पहले ही की तरह error terms राज्य और वर्ष में क्लस्टर किये जाते हैं. महिलाओं के कोई चुनाव जीतने के लिए लॉजिस्टिक रिग्रेशन के वास्ते, लेखकों ने अतिरिक्त लॉजिट रिग्रेशन चलाया है, जहां आंकड़े केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित हैं जहां महिलाओं ने चुनाव लड़ा. इस विश्लेषण का उद्देश्य महिलाओं की किसी चुनाव में जीत की सशर्त संभावना के लिए प्रयोग सिद्ध रुझान मुहैया कराने हैं. प्रत्येक रिग्रेशन के बाद, हरेक दशक के लिए औसत पूर्वानुमानित संभावनाओं की गणना के लिए margins STATA कमांड का इस्तेमाल किया गया. इसी तरह का विश्लेषण हर राज्य के लिए संचालित किया गया है.

3.परिणाम

1951 से 2019 तक 55,690 निर्वाचन क्षेत्रों से मिले चुनाव परिणामों को भारत के 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) में विश्लेषित किया गया. 55,690 निर्वाचित विधायकों में से 2,720 (4.9 प्रतिशत) महिलाएं थीं. 55,690 निर्वाचन क्षेत्रों में से 14,522 (26.1 प्रतिशत) में कम से कम एक महिला प्रत्याशी थी. कुल 4,55,956 प्रत्याशी थे, जिनमें से 20,440 (4.5 प्रतिशत) महिलाएं थीं. लेखकों ने पाया कि महिला प्रत्याशियों के अनुपात में सुव्यवस्थित और महत्वपूर्ण वृद्धि हुई, जो 1950 के दशक के 1.6 प्रतिशत से बढ़कर 2010 के दशक में 8.1 प्रतिशत हो गया. इस बीच, कम से कम एक महिला उम्मीदवार वाले निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में ख़ासी वृद्धि हुई. 1950 के दशक के 7.7 प्रतिशत से बढ़कर 2010 के दशक में यह 54.1 प्रतिशत हो गयी. इसी तरह महिला विजेताओं का अनुपात 1950 के दशक के 3.9 प्रतिशत से बढ़कर 2010 के दशक में 8.6 प्रतिशत हो गया (तालिका 1 देखें). (तालिका S1 प्रत्येक चुनाव के लिए परिणामों को दिखाती है).

इसके बाद, लेखक निर्वाचकों और मतदाताओं के लिंग अनुपात के दशकीय रुझानों को जांचते हैं. विश्लेषण में पाया गया कि निर्वाचकों के लिंग अनुपात में थोड़ी गिरावट आयी है. यह 1970 के दशक के 939 से घटकर 2010 के दशक में 928 पर आ गया. हालांकि, मतदाताओं का लिंग अनुपात महत्वपूर्ण ढंग से बढ़कर 793 से 928 हो गया. समय के साथ मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात में अंतर घटा है. 1970 के दशक में यह -146 (P वैल्यू <0.01) था, जो 2010 के दशक में 0 (P वैल्यू = 0.76) रह गया (तालिका 2 और चित्र 1 देखें). राज्यों के विश्लेषण अनुपूरक तालिकाओं (तालिका S2 और चित्र S1) में दिये गये हैं. प्राप्त तथ्य दिखाते हैं कि लैंगिक खाई में कमी में सबसे बड़ा सुधार बिहार, ओड़िशा और उत्तर प्रदेश जैसे सबसे कम विकसित राज्यों में हासिल हुआ. 2010 के दशक में मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात के बीच का अंतर धनात्मक था, जो बताता है कि पुरुषों के मुक़ाबले महिला मतदाता वोट देने ज्यादा निकलीं. बिहार के लिए यह 86 (P वैल्यू <0.01), ओड़िशा के लिए 37 (P वैल्यू <0.01) और उत्तर प्रदेश के लिए 25 (P वैल्यू <0.01) था. चित्र S2 और चित्र S3 पुरुष और महिला वोटरों के टर्नआउट के रुझान को क्रमश: अखिल भारतीय और राज्यों के स्तर पर दिखाते हैं. लेखक तब निर्वाचन क्षेत्र में किसी चुनाव में कम से कम एक महिला के खड़े होने के ऑड्स रेशियो में दशकीय रुझानों की गणना करते हैं. ये लॉजिस्टिक रिग्रेशन एनालिसिस पर आधारित हैं, जिसका जिक्र इस पेपर में पहले हो चुका है. ऑड्स रेशियो के लिए, संदर्भ काल 1950 का दशक है. प्राप्त तथ्य दिखाते हैं कि 1950 के दशक की तुलना में 2010 के दशक में महिलाओं के चुनाव लड़ने के ऑड्स 16 गुना बढ़ गये हैं. सटीक रूप में, स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स के लिए समायोजन के बाद, ऑड्स रेशियो 16.77 (95% CI; 11.65 to 24.14) था. इसी तरह, महिलाओं के कोई चुनाव लड़ने की औसत पूर्वानुमानित प्रायिकता 1950 के दशक के 7.1% (95% CI; 4.8% to 9.4%) से बढ़कर 2010 के दशक में 54.3% (95% CI; 52.2% to 56.4%) पर पहुंच गयी (तालिका 3 देखें). नतीजों का अगला समुच्चय महिलाओं के चुनाव जीतने के दशकीय रुझान हैं. ऑड्स रेशियो बिना-शर्त (Eq. 1) और सशर्त संभावनाओं (Eq. 2) पर आधारित हैं. लेखकों ने पाया कि 1950 के दशक की तुलना में, 2010 के दशक में महिलाओं के किसी निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जीतने के ऑड्स (महिलाओं के चुनाव लड़ने की बिना-शर्त संभावनाओं पर आधारित) 2.61 गुना अधिक थे, यानी ऑड्स रेशियो 2.61 था. औसत पूर्वानुमानित प्रायिकता के लिहाज़ से, 1950 के दशक में, महिलाएं 3.6 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्रों में जीतीं, जो 2010 में बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गया. हालांकि, सशर्त प्रायिकता के लिहाज़ से, 1950 के दशक में ऑड्स के मुक़ाबले किसी महिला के 2010 के दशक में चुनाव जीतने के ऑड्स 0.18 थे, यानी ऑड्स रेशियो 0.18 था. औसत पूर्वानुमानित प्रायिकता के लिहाज़ से, 1950 के दशक में महिलाएं जितने निर्वाचन क्षेत्रों में लड़ीं उनमें से 50.4 प्रतिशत में जीतीं, जबकि 2010 के दशक में वे 15.9 प्रतिशत में जीतीं. इस कमी का मुख्य कारण महिलाओं के चुनाव लड़ने के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि है (तालिका 4 देखें).

यहां यह स्पष्ट करना अहम है कि विधानसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों और विजेताओं में यह महत्वपूर्ण उछाल सभी भारतीय राज्यों में एक समान नहीं है. ख़ासकर, छोटे पूर्वोत्तर राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड और सिक्किम ने महिला प्रत्याशियों और विजेताओं के लिहाज़ से काफ़ी ख़राब प्रदर्शन किया है.

महिला प्रत्याशियों और विजेताओं के राज्य स्तरीय विश्लेषण के लिए, और अखिल-भारतीय स्तर से तुलना के लिए, परिणाम अनुपूरक चित्रों S2 और S3 में दिये गये हैं (राज्यों के लिए चित्र S4 और चित्र S5 देखें)

हालांकि, यहां यह स्पष्ट करना अहम है कि विधानसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों और विजेताओं में यह महत्वपूर्ण उछाल सभी भारतीय राज्यों में एक समान नहीं है. ख़ासकर, छोटे पूर्वोत्तर राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड और सिक्किम ने महिला प्रत्याशियों और विजेताओं के लिहाज़ से काफ़ी ख़राब प्रदर्शन किया है. विडंबनापूर्ण ढंग से, ये सभी राज्य प्रगतिशील लिंग अनुपात (निर्वाचकों और मतदाताओं का) रिपोर्ट करते हैं जो 1000 से ऊपर है और इन राज्यों में आदिवासी आबादी बाकी भारत की तुलना में पारंपरिक रूप से उच्च अनुपात में रही है. फिर भी, इनमें से हरेक राज्य, विधानसभा चुनाव की महिला प्रत्याशियों और विजेताओं के अनुपात के लिहाज़ से अखिल-भारतीय आंकड़ों से पीछे है. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बरक़रार लैंगिक असमानता का शायद एक चरम उदाहरण नगालैंड राज्य है, जहां आज तक एक भी महिला विधायक निर्वाचित नहीं हुई है.

 

4.चर्चा और निष्कर्ष

वैश्विक तथ्यात्मक रुझान 2006 से एक ‘हल्की, लेकिन दीर्घकालिक लोकतांत्रिक गिरावट’ दिखाते हैं.[16] यह प्राथमिक रूप से, राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता पर ‘फ्रीडम हाउस’ के आंकड़ों पर आधारित है. वैश्विक रुझान जितने अहम हो सकते हैं, उतना ही अहम यह देखना है कि क्या सुस्थापित लोकतंत्रों, ख़ासकर भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, लोकतांत्रिक परंपराएं और संस्थाएं मज़बूत हो रही हैं या कमज़ोर हो रही हैं. चीन जैसे सत्तावादी शासनों के आर्थिक पुनरुदय के साथ, आर्थिक समृद्धि के लिए राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की बलि चढ़ा देने के लालच मौजूद हैं. उभरती अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में, उनकी लोकतांत्रिक प्रणालियों में आम सहमति बनने की धीमी प्रक्रिया को आर्थिक सुधारों और प्रगति के लिए बाधक माना जा सकता है. फिर भी, व्यक्तिगत राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देने के परिप्रेक्ष्य में, लोकतंत्र ख़ुद में एक अंत है, भले ही इसका मतलब अल्प अवधि में धीमी आर्थिक वृद्धि हो. वास्तव में, इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि लोकतंत्र दीर्घ अवधि में आर्थिक वृद्धि के पोषण में मददगार होते हैं.[17]

इसके अलावा, 90 करोड़ से ज्यादा निर्वाचकों वाले, भारत जैसे सुस्थापित बड़े लोकतंत्रों के संदर्भ में, राष्ट्रीय चुनावों से परे जाना और विधानसभा चुनावों पर फोकस करना महत्वपूर्ण है. आख़िरकार, भारत के संघीय ढांचे में, विधायिका की शक्तियां केंद्र और राज्यों के बीच बंटी हुई हैं. इतना ही नहीं, स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र की जड़ें जितनी गहरी होंगी, लोकतंत्र उतना ही फले-फूलेगा.[18]

इसलिए, इस पेपर ने भारत के सभी राज्यों में, शुरू से हर विधानसभा चुनाव का विश्लेषण किया. इसका लक्ष्य राजनीतिक भागीदारी में बरक़रार लैंगिक खाई को जांचना है. उदाहरण के लिए, 1950 के दशक में, 3,522 निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल 272 (7.7 प्रतिशत) निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे, जहां कम से कम एक महिला प्रत्याशी थी. हालांकि, 2010 के दशक तक, महिलाओं ने 8140 निर्वाचन क्षेत्रों में से तक़रीबन 4400 (54.1%) में चुनाव लड़ा, जो सात गुना वृद्धि को दिखाता है.

मतदाताओं के लिहाज़ से, 1950 के दशक में, प्रति 1,000 पुरुष निर्वाचकों पर 939 महिलाएं थीं, लेकिन जिन लोगों ने वास्तव में अपना वोट डाला, उनके लिहाज़ से अनुपात 1000 पुरुष मतदाताओं पर 793 महिलाओं का था. यानी, प्रति 1000 पुरुषों पर 146 महिलाओं का अंतर जिन्होंने अपना वोट नहीं डाला. 2010 के दशक तक, मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात में लैंगिक खाई कम होकर शून्य पर आ गयी थी, जो बताता है कि महिला वोटरों के मतदान के लिए निकलने में बड़ा उछाल आया (चित्र S2 and चित्र S3). इसी तरह, महिलाओं के चुनाव जीतने के लिहाज़ से बात करें तो, 1950 के दशक में वे केवल 137 (3.9 प्रतिशत) निर्वाचन क्षेत्रों में जीतीं और 2010 के दशक तक, उन्होंने 698 (8.6 प्रतिशत) निर्वाचन क्षेत्रों में सीटें हासिल कीं.

इन रुझानों को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखना अहम है : वैश्विक रुझान 2006 से लोकतंत्र में एक स्पष्ट गिरावट दिखाते हैं, जिसके विपरीत भारत महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के लिहाज़ से लोकतांत्रिक परंपराओं और संस्थाओं को मज़बूत होते देख रहा है. हालांकि, इसके साथ ही साथ, इन सुधारों को ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर देखने को लेकर सतर्क रहना होगा. भले ही ये मज़बूत रुझान लैंगिक खाई में आयी स्पष्ट कमी को दिखाते हैं, लेकिन लैंगिक समानता अब भी हासिल होनी बाकी है. इन लगातार बरक़रार असमताओं के अंतर्निहित कारणों को समझने, तथा इन्हें दूर करने के लिए और अधिक शोध की ज़रूरत है.

2010 के दशक तक, मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात में लैंगिक खाई कम होकर शून्य पर आ गयी थी, जो बताता है कि महिला वोटरों के मतदान के लिए निकलने में बड़ा उछाल आया (चित्र S2 and चित्र S3). इसी तरह, महिलाओं के चुनाव जीतने के लिहाज़ से बात करें तो, 1950 के दशक में वे केवल 137 (3.9 प्रतिशत) निर्वाचन क्षेत्रों में जीतीं और 2010 के दशक तक, उन्होंने 698 (8.6 प्रतिशत) निर्वाचन क्षेत्रों में सीटें हासिल कीं. 

इस पेपर का कहना है कि पूरे भारत में राज्य विधानसभा चुनावों के स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी – बतौर मतदाता, प्रत्याशी और विजेता – में सुव्यवस्थित और समग्र रूप से बढ़ते रुझान हैं. सबसे प्रभावशाली सुधार मतदाताओं और प्रत्याशियों के रूप में महिलाओं की भागीदारी में आया. लोकप्रिय मीडिया (राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय) का अत्यधिक फोकस चुनावों में महिलाओं की जीत पर होने के चलते ये रुझान बड़ी आसानी से अनदेखे रह जाते हैं. नागरिक स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देने के अन्य उपायों के अलावा, राजनीतिक अधिकारों के लिहाज़ से लैंगिक असमानता में कमी के दशकीय रुझानों में महिलाओं की मुक्ति व समग्र स्वतंत्रता में वृद्धि के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र के मज़बूत होने का ज़्यादा व्यापक और अधिक सच्चा प्रतिबिंब शामिल है.


डॉ मुदित कपूर भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.

डॉ शमिका रवि ओआरएफ़ में वाइस प्रेसीडेंट हैं.


तालिका 1: सार-संक्षेप

तालिका 2: विभिन्न दशकों में निर्वाचकों और मतदाताओं का लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाएं)

नोट: निर्वाचकों और मतदाताओं के लिंग अनुपात की गणना क्वांटाइल रिग्रेशन के आधार पर की गयी है, जहां लिंग अनुपात डिपेंडेंट वेरिएबल है. एक्स्प्लैनेट्री वेरिएबल में राज्य की विशेषताओं में अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करने के लिए ‘स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स’ शामिल हैं, और हरेक दशक के लिए एक डमी वेरिएबल है जिसने निर्वाचकों और मतदाताओं के लिंगानुपात के साथ अंत:क्रिया की. निर्वाचकों और मतदाताओं के लिंग अनुपात के बीच ‘पी वैल्यू’ के अंतरों की गणना अंतर के X2 टेस्ट पर आधारित है.

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चित्र 1: विभिन्न दशकों में मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाएं) के बीच अंतर

 

नोट: यहां वर्टिकल बार 95% कॉन्फिडेंस इंटरवल हैं.

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तालिका 3: महिला प्रत्याशियों के ऑड्स रेशियो और औसत पूर्वानुमानित संभावनाएं

नोट: ऑड्स रेशियो की गणना निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर लॉजिस्टिक रिग्रेशन चलाकर की गयी है, जहां अगर कम से कम एक महिला प्रत्याशी चुनाव लड़ रही है तो डिपेंडेंट वेरिएबल का मान 1 होता है, अन्यथा 0. एक्स्प्लैनेट्री वेरिएबल्स में राज्य की विशेषताओं में अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करने के लिए ‘स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स’ शामिल हैं, और हरेक दशक के लिए एक डमी वेरिएबल है, जहां 1950 का दशक [1951 to 1959] रिफरेंस ग्रुप है. मानक त्रुटियों को राज्य और चुनाव के साल के लिए क्लस्टर किया गया है. कम से कम एक महिला प्रत्याशी वाले निर्वाचन क्षेत्रों के अनुपात की गणना प्रत्येक दशक के लिए किसी महिला प्रत्याशी की औसत पूर्वानुमानित प्रायिकताओं के रूप में की गयी है. कॉन्फिडेंस इंटरवल 95% हैं.

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तालिका 4 : महिला विजेताओं के ऑड्स रेशियो और औसत पूर्वानुमानित संभावनायें 

नोट: ऑड्स रेशियो की गणना निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर लॉजिस्टिक रिग्रेशन चलाकर की गयी है, जहां निर्वाचन क्षेत्र में महिला के जीतने पर डिपेंडेंट वेरिएबल का मान 1 होता है, अन्यथा 0. सशर्त रिग्रेशन्स के लिए हम अपने विश्लेषण को उन निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित रखते हैं जहां महिलाओं ने चुनाव लड़ा. एक्स्प्लैनेट्री वेरिएबल्स में राज्य की विशेषताओं में अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करने के लिए ‘स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स’ शामिल हैं, और हरेक दशक के लिए एक डमी वेरिएबल है, जहां 1950 का दशक [1951 to 1959] रेफरेंस ग्रुप है. मानक त्रुटियों को राज्य और चुनाव के साल के लिए क्लस्टर किया गया है. महिलाओं की जीत वाले निर्वाचन क्षेत्रों के अनुपात की गणना प्रत्येक दशक के लिए किसी महिला प्रत्याशी की औसत पूर्वानुमानित प्रायिकताओं के रूप में की गयी है. कॉन्फिडेंस इंटरवल 95% हैं.

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तालिका S2: विभिन्न दशकों में निर्वाचकों और मतदाताओं का लिंग अनुपात (अखिल भारतीय और राज्य)

Sex ratio of electors

(col 1)

Sex ratio of voters

(col 2)

Diff

(col 2 – col 1)

P Value

Diff

India
  1970s: [1969 to 1979] 939 (937 to 941) 793 (791 to 795) -146 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 931 (929 to 933) 817 (815 to 820) -114 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 930 (928 to 932) 837 (835 to 839) -93 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 936 (934 to 938) 871 (869 to 873) -65 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 928 (926 to 930) 928 (926 to 931) 0 0.76
Andhra Pradesh
  1970s: [1969 to 1979] 1,009 (1,004 to 1,014) 917 (912 to 922) -92 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 1,011 (1,006 to 1,015) 926 (922 to 930) -85 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 1,007 (1,002 to 1,013) 932 (927 to 937) -75 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 1,025 (1,019 to 1,030) 975 (970 to 980) -49 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 1,011 (1,005 to 1,016) 1,002 (996 to 1,007) -9 0.03
Arunachal Pradesh
  1970s: [1969 to 1979] 979 (919 to 1,039) 865 (803 to 927) -113 0.01
  1980s: [1980 to 1989] 948 (905 to 990) 858 (814 to 901) -90 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 925 (900 to 949) 926 (901 to 951) 2 0.93
  2000s: [2000 to 2010] 988 (958 to 1,018) 1,035 (1,003 to 1,066) 47 0.04
  2010s: [2010 to 2019] 1,021 (991 to 1,051) 1,063 (1,031 to 1,095) 42 0.06
Assam
  1970s: [1969 to 1979] 867 (858 to 876) 726 (717 to 735) -142 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 882 (873 to 891) 819 (810 to 828) -63 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 900 (891 to 909) 862 (853 to 871) -38 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 934 (925 to 943) 895 (886 to 904) -39 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 936 (927 to 944) 927 (918 to 935) -9 0.16
Bihar
  1970s: [1969 to 1979] 926 (917 to 935) 566 (557 to 575) -360 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 912 (901 to 923) 619 (608 to 630) -293 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 894 (883 to 905) 707 (696 to 718) -187 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 879 (869 to 889) 731 (721 to 740) -148 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 867 (855 to 880) 949 (937 to 962) 82 <0.01
Chhattisgarh
  2000s: [2000 to 2010] 990 (983 to 997) 932 (926 to 939) -57 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 984 (977 to 991) 981 (974 to 987) -3 0.48
NCT OF Delhi
  1970s: [1969 to 1979] 755 (742 to 767) 759 (746 to 772) 4 0.65
  1980s: [1980 to 1989] 766 (748 to 784) 782 (764 to 800) 16 0.21
  1990s: [1990 to 1999] 798 (787 to 809) 698 (687 to 710) -100 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 791 (780 to 803) 753 (741 to 764) -38 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 811 (800 to 822) 791 (779 to 802) -20 0.01
Goa
  1970s: [1969 to 1979] 1,022 (996 to 1,048) 1,001 (975 to 1,027) -21 0.27
  1980s: [1980 to 1989] 981 (961 to 1,002) 952 (932 to 972) -29 0.05
  1990s: [1990 to 1999] 966 (943 to 989) 934 (911 to 957) -32 0.05
  2000s: [2000 to 2010] 990 (968 to 1,013) 967 (944 to 990) -23 0.15
  2010s: [2010 to 2019] 1,022 (999 to 1,045) 1,086 (1,063 to 1,109) 64 <0.01
Gujarat
  1970s: [1969 to 1979] 985 (979 to 992) 825 (818 to 832) -161 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 984 (977 to 990) 795 (789 to 802) -188 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 953 (947 to 958) 831 (825 to 836) -122 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 954 (947 to 961) 858 (852 to 865) -96 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 922 (915 to 929) 863 (856 to 870) -59 <0.01
Haryana
  1970s: [1969 to 1979] 893 (886 to 900) 803 (796 to 810) -90 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 879 (873 to 886) 803 (796 to 809) -77 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 854 (848 to 861) 799 (793 to 806) -55 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 836 (830 to 841) 808 (803 to 813) -28 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 860 (853 to 867) 845 (838 to 851) -15 <0.01
Himachal Pradesh
  1970s: [1969 to 1979] 947 (918 to 976) 826 (797 to 855) -121 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 978 (949 to 1,007) 964 (935 to 994) -14 0.51
  1990s: [1990 to 1999] 976 (952 to 1,000) 960 (936 to 984) -16 0.36
  2000s: [2000 to 2010] 973 (944 to 1,002) 1,019 (990 to 1,048) 46 0.03
  2010s: [2010 to 2019] 950 (921 to 979) 1,030 (1,001 to 1,059) 80 <0.01
Jammu & Kashmir
  1970s: [1969 to 1979] 861 (838 to 885) 704 (680 to 728) -157 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 859 (836 to 883) 766 (742 to 790) -93 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 863 (832 to 894) 621 (590 to 652) -242 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 904 (882 to 926) 761 (739 to 783) -143 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 901 (870 to 932) 915 (884 to 946) 14 0.54
Jharkhand
  2000s: [2000 to 2010] 904 (889 to 919) 801 (787 to 816) -103 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 913 (899 to 928) 957 (942 to 972) 44 <0.01
Karnataka
  1970s: [1969 to 1979] 958 (952 to 963) 842 (836 to 848) -116 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 963 (959 to 968) 851 (846 to 855) -113 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 972 (966 to 977) 882 (876 to 888) -90 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 972 (966 to 977) 911 (906 to 917) -61 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 972 (967 to 978) 944 (939 to 950) -28 <0.01
Kerala
  1970s: [1969 to 1979] 1,017 (1,005 to 1,028) 994 (983 to 1,006) -22 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 1,021 (1,012 to 1,030) 1,011 (1,002 to 1,020) -10 0.11
  1990s: [1990 to 1999] 1,039 (1,028 to 1,050) 1,029 (1,018 to 1,041) -10 0.24
  2000s: [2000 to 2010] 1,068 (1,057 to 1,079) 1,022 (1,011 to 1,033) -46 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 1,071 (1,060 to 1,082) 1,086 (1,075 to 1,098) 16 0.05
Madhya Pradesh
  1970s: [1969 to 1979] 996 (987 to 1,005) 682 (673 to 691) -314 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 983 (974 to 992) 686 (678 to 695) -297 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 949 (942 to 956) 731 (724 to 739) -217 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 912 (901 to 922) 807 (797 to 817) -105 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 911 (900 to 921) 878 (868 to 889) -32 <0.01
Maharashtra
  1970s: [1969 to 1979] 998 (990 to 1,005) 868 (861 to 875) -129 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 994 (987 to 1,001) 824 (817 to 831) -170 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 950 (945 to 956) 871 (865 to 877) -79 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 928 (921 to 935) 849 (842 to 856) -80 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 908 (901 to 915) 855 (848 to 862) -54 <0.01
Manipur
  1970s: [1969 to 1979] 1,034 (1,018 to 1,051) 1,001 (984 to 1,018) -34 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 1,013 (996 to 1,030) 1,033 (1,016 to 1,050) 20 0.1
  1990s: [1990 to 1999] 1,009 (991 to 1,026) 1,029 (1,012 to 1,047) 21 0.1
  2000s: [2000 to 2010] 1,060 (1,047 to 1,074) 1,067 (1,053 to 1,080) 6 0.53
  2010s: [2010 to 2019] 1,043 (1,026 to 1,060) 1,108 (1,091 to 1,124) 65 <0.01
Meghalaya
  1970s: [1969 to 1979] 997 (982 to 1,011) 940 (925 to 955) -57 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 1,005 (990 to 1,019) 946 (931 to 961) -58 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 988 (973 to 1,003) 986 (972 to 1,001) -2 0.87
  2000s: [2000 to 2010] 1,007 (992 to 1,022) 1,016 (1,001 to 1,030) 9 0.4
  2010s: [2010 to 2019] 1,010 (995 to 1,024) 1,050 (1,035 to 1,065) 41 <0.01
Mizoram
  1970s: [1969 to 1979] 1,021 (1,001 to 1,040) 967 (947 to 986) -54 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 978 (958 to 999) 987 (966 to 1,008) 8 0.58
  1990s: [1990 to 1999] 995 (975 to 1,016) 995 (974 to 1,015) -1 0.96
  2000s: [2000 to 2010] 1,013 (993 to 1,034) 1,022 (1,001 to 1,043) 8 0.58
  2010s: [2010 to 2019] 1,018 (997 to 1,039) 1,057 (1,037 to 1,078) 40 <0.01
Nagaland
  1970s: [1969 to 1979] 917 (899 to 934) 902 (885 to 920) -15 0.25
  1980s: [1980 to 1989] 925 (909 to 942) 905 (888 to 921) -21 0.08
  1990s: [1990 to 1999] 939 (919 to 960) 921 (896 to 947) -18 0.27
  2000s: [2000 to 2010] 954 (934 to 975) 936 (915 to 956) -19 0.2
  2010s: [2010 to 2019] 966 (946 to 986) 997 (976 to 1,017) 31 0.04
Odisha
  1970s: [1969 to 1979] 935 (923 to 947) 614 (602 to 626) -321 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 924 (910 to 939) 650 (636 to 665) -274 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 904 (889 to 918) 823 (809 to 838) -80 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 942 (930 to 954) 874 (862 to 886) -68 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 933 (918 to 948) 970 (955 to 985) 37 <0.01
Puducherry
  1970s: [1969 to 1979] 977 (965 to 989) 967 (955 to 980) -9 0.29
  1980s: [1980 to 1989] 959 (944 to 974) 961 (946 to 976) 2 0.86
  1990s: [1990 to 1999] 949 (937 to 961) 954 (942 to 966) 5 0.56
  2000s: [2000 to 2010] 1,035 (1,020 to 1,050) 1,053 (1,038 to 1,067) 18 0.1
  2010s: [2010 to 2019] 1,092 (1,077 to 1,107) 1,119 (1,104 to 1,134) 27 0.01
Punjab
  1970s: [1969 to 1979] 851 (843 to 860) 812 (804 to 821) -39 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 847 (837 to 858) 826 (816 to 836) -22 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 882 (872 to 892) 818 (808 to 828) -64 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 914 (904 to 924) 898 (888 to 909) -16 0.03
  2010s: [2010 to 2019] 889 (878 to 899) 891 (881 to 901) 3 0.73
Rajasthan
  1970s: [1969 to 1979] 945 (935 to 956) 752 (742 to 763) -193 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 934 (924 to 944) 736 (726 to 746) -198 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 903 (894 to 911) 764 (756 to 772) -138 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 910 (900 to 920) 856 (846 to 867) -53 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 901 (891 to 911) 904 (894 to 914) 3 0.66
Sikkim
  1970s: [1969 to 1979] 829 (803 to 854) 825 (799 to 850) -4 0.83
  1980s: [1980 to 1989] 918 (900 to 936) 803 (785 to 821) -115 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 949 (931 to 967) 878 (860 to 897) -71 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 938 (919 to 956) 931 (912 to 950) -7 0.61
  2010s: [2010 to 2019] 963 (944 to 981) 958 (940 to 977) -4 0.74
Tamil Nadu
  1970s: [1969 to 1979] 1,005 (998 to 1,012) 912 (905 to 919) -93 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 990 (984 to 996) 930 (924 to 935) -60 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 990 (983 to 996) 921 (914 to 928) -68 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 1,014 (1,007 to 1,021) 945 (938 to 952) -69 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 1,003 (996 to 1,010) 1,004 (997 to 1,011) 1 0.88
Tripura
  1970s: [1969 to 1979] 946 (935 to 956) 875 (864 to 885) -71 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 967 (956 to 977) 939 (929 to 949) -28 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 945 (934 to 955) 918 (907 to 928) -27 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 943 (933 to 954) 935 (925 to 945) -8 0.27
  2010s: [2010 to 2019] 961 (951 to 972) 995 (985 to 1,005) 34 <0.01
Uttar Pradesh
  1970s: [1969 to 1979] 852 (848 to 856) 667 (662 to 671) -185 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 818 (814 to 822) 666 (662 to 671) -152 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 818 (814 to 822) 667 (663 to 671) -151 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 832 (826 to 837) 709 (703 to 714) -123 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 828 (822 to 833) 852 (847 to 858) 25 <0.01
Uttarakhand
  2000s: [2000 to 2010] 977 (939 to 1,015) 944 (906 to 982) -33 0.22
  2010s: [2010 to 2019] 900 (862 to 938) 992 (954 to 1,030) 91 <0.01
West Bengal
  1970s: [1969 to 1979] 858 (851 to 866) 734 (726 to 741) -124 <0.01
  1980s: [1980 to 1989] 925 (915 to 936) 870 (859 to 880) -56 <0.01
  1990s: [1990 to 1999] 933 (922 to 943) 895 (885 to 906) -37 <0.01
  2000s: [2000 to 2010] 935 (924 to 945) 893 (883 to 903) -42 <0.01
  2010s: [2010 to 2019] 925 (914 to 935) 932 (921 to 942) 7 0.34
Telangana
  2010s: [2010 to 2019] 998 (986 to 1010) 993 (981 to 1005) -5 0.57
 

Note: The p values are computed based on  test of difference

नोट: पी वैल्यू की गणना अंतर के Xटेस्ट पर आधारित है.

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तालिका S1: अखिल-भारतीय स्तर की तुलना में विभिन्न दशकों और राज्यों में मतदाताओं और निर्वाचकों के लिंग अनुपात (1000 पुरुषों पर महिलाएं) के बीच अंतर

नोट: हरी लाइन अखिल-भारतीय के लिए है. वर्टिकल बार 95% कॉन्फिडेंस इंटरवल हैं.

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चित्र S2: विभिन्न दशकों में महिला और पुरुष मतदाताओं के वोट के लिए निकलने का प्रतिशत (वोटर टर्नआउट), भारत

नोट: महिला और पुरुष वोटर टर्नआउट की गणना क्वांटाइल रिग्रेशन पर आधारित है, जहां वोटर टर्नआउट डिपेंडेंट वेरिएबल है. एक्स्प्लैनेट्री वेरिएबल्स में राज्य की विशेषताओं में अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करने वाले ‘स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स’ शामिल हैं, और हरेक दशक के लिए एक डमी वेरिएबल है जिसने इस बात से अंत:क्रिया की कि वोटर टर्नआउट पुरुष के लिए था या महिला के लिए. बैंगनी लाइन 70% वोटर टर्नआउट की है, 70% से अधिक वोटर टर्नआउट मज़बूत लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्रतिबिंबित करता है.

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चित्र S3 : विभिन्न दशकों और राज्यों में महिला और पुरुष वोटर टर्नआउट

 

नोट: महिला और पुरुष वोटर टर्नआउट की गणना क्वांटाइल रिग्रेशन पर आधारित है, जहां वोटर टर्नआउट डिपेंडेंट वेरिएबल है. एक्स्प्लैनेट्री वेरिएबल्स में राज्य की विशेषताओं में अपर्यवेक्षित अंतरों को व्याख्यायित करने वाले ‘स्टेट फिक्स्ड इफेक्ट्स’ शामिल हैं, और हरेक दशक के लिए एक डमी वेरिएबल है जिसने इस बात से अंत:क्रिया की कि वोटर टर्नआउट पुरुष के लिए था या महिला के लिए. बैंगनी लाइन 70% वोटर टर्नआउट की है, 70% से अधिक वोटर टर्नआउट मज़बूत लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्रतिबिंबित करता है.

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चित्र S4 : अखिल-भारत की तुलना में विभिन्न दशकों और राज्यों में कम से कम एक महिला प्रत्याशी वाले निर्वाचन क्षेत्रों का अनुपात

 

नोट: हरी लाइन अखिल-भारत की है. वर्टिकल बार 95% कॉन्फिडेंस इंटरवल (सीआई) हैं. 95% सीआई की गणना लॉजिट ट्रांसफॉर्मेशन का इस्तेमाल कर की जाती है, जिससे एंड प्वाइंट्स 0 और 1 के बीच होते हैं.

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चित्र S5: अखिल-भारत की तुलना में विभिन्न दशकों और राज्यों में महिलाओं की जीत वाले निर्वाचन क्षेत्रों का अनुपात

नोट: हरी लाइन अखिल-भारत की है. वर्टिकल बार 95% कॉन्फिडेंस इंटरवल (सीआई) हैं. 95% सीआई की गणना लॉजिट ट्रांसफॉर्मेशन का इस्तेमाल कर की जाती है, जिससे एंड प्वाइंट्स 0 और 1 के बीच होते हैं.


Endnotes

[1] Larry Jay Diamond, 2015, “Facing Up to the Democratic Recession,” in Democracy in Decline, Eds. Larry Jay Diamond and Marc F Plattner. Baltimore, Maryland: Johns Hopkins University Press, (December 10, 2020).

[2] Francis Fukuyama, 2015, “Why Is Democracy Performing So Poorly?” in Democracy in Decline?, Eds. Larry Jay Diamond and Marc F Plattner. Baltimore, Maryland: Johns Hopkins University Press (December 10, 2020).

[3]United Nations,” 2011, UN General Assembly resolution on womens political participation.

[4] Raghabendra Chattopadhyay and Esther Duflo, 2004, “Women as Policy Makers: Evidence from a Randomized Policy Experiment in India,” Econometrica 72(5): 1409–43

[5] Sonia Bhalotra and Irma Clots-Figueras, 2014, “Health and the Political Agency of Women,” American Economic Journal: Economic Policy 6(2): 164–97.

[6] Irma Clots-Figueras, 2011, “Women in Politics: Evidence from the Indian States.” Journal of Public Economics 95(7): 664–90.

[7] Sonia Bhalotra, Irma Clots-Figueras, and Lakshmi Iyer, 2018, “Pathbreakers? Women’s Electoral Success and Future Political Participation,” The Economic Journal 128(613): 1844–78.

[8] Pranab Bardhan, Dilip Mookherjee, and Parra Torrado Monica, 2010, “Impact of Political Reservations in West Bengal Local Governments on Anti-Poverty Targeting,” Journal of Globalization and Development 1(1): 1–38.

[9]The Global Gender Gap Report,” 2017, World Economic Forum.

[10]EIU Democracy Index 2019 – World Democracy Report,” 2019.

[11] Praveen Rai, 2011, “Electoral Participation of Women in India: Key Determinants and Barriers.” Economic and Political Weekly 46(3): 47–55.

[12] Mudit Kapoor and Shamika Ravi, 2014, “Women Voters in Indian Democracy: A Silent Revolution.” Economic and Political Weekly 49(12): 63–67.

[13] Prannoy Roy and Dorab R. Sopariwala, 2019, “The Verdict.” Penguin Random House India.

[14] Carole Spary, 2020, “Women Candidates, Women Voters, and the Gender Politics of India’s 2019 Parliamentary Election.” Contemporary South Asia 28(2): 223–41.

[15] Adrian Colin Cameron and P. K. Trivedi, 2010, Microeconometrics Using Stata. College Station, Tex: Stata Press.

[16] Larry Jay Diamond and Marc F Plattner, eds. 2015. Democracy in Decline? Baltimore, Maryland: Johns Hopkins University Press.

[17] Daron Acemoglu, et al., 2018, “Democracy Does Cause Growth.” Journal of Political Economy 127(1): 47–100.

[18] Robert D. Putnam, 2001, Bowling Alone: The Collapse and Revival of American Community. 1. touchstone ed. New York, NY: Simon & Schuster.

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