देश सभी नागरिकों को 31 दिसंबर 2021 तक कोरोना का टीका लगाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वाकांक्षी फ़ैसला, और सरकार का एलान अब पहुंच के भीतर नज़र आ रहा है. घोषणा के समय, टीकाकरण की ये योजना न सिर्फ़ अविश्वसनीय लग रही थी, बल्कि इस लक्ष्य को हासिल करना भी असंभव लग रहा था. बहुत से लोग, ये विशाल लक्ष्य हासिल करने की भारत की क्षमता और क़ाबिलियत पर सवाल उठा रहे थे. कुछ लोग तो देश के विविध क्षेत्रों में रहने वाली आबादी तक कोरोना की वैक्सीन पहुंचाने की भारत की क्षमता को लेकर भी शक कर रहे थे. कोविन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में तेज़ी से सुधार के चलते भारत ने एक भरोसेमंद टीकाकरण अभियान के प्रबंधन और समाधान की विशाल चुनौती पर जीत हासिल कर ली है. आज कोविन में न सिर्फ़ ऑनलाइन बल्कि ऑफ़लाइन टीकाकरण प्रबंधन की भी क्षमता है, और इससे भरोसेमंद डेटाबेस भी हासिल हो रहा है. सितंबर महीने में भारत ने वैक्सीन की 23 करोड़ ख़ुराक देने में सफलता हासिल की थी. इस दर के साथ, पिछले पांच महीनों में टीके बनाने की क्षमता में इज़ाफ़े के चलते साल के बाक़ी महीनों में अगर वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ती है- तो भारत ने दिखा दिया है कि वो इस वर्ष के आख़िर तक अपने नागरिकों को कोरोना के टीके की 190 करोड़ ख़ुराक देने में सफल हो जाएगा.
आज ज़्यादातर विशेषज्ञ ये मानते हैं कि निम्न मध्यम और कई मध्यम आमदनी वाले अन्य देशों की तुलना में भारत का राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. सितंबर महीने के अंत तक भारत अपने वयस्क नागरिकों को कोरोना के टीके की 89 करोड़ डोज़ दे चुका था.
आज ज़्यादातर विशेषज्ञ ये मानते हैं कि निम्न मध्यम और कई मध्यम आमदनी वाले अन्य देशों की तुलना में भारत का राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. सितंबर महीने के अंत तक भारत अपने वयस्क नागरिकों को कोरोना के टीके की 89 करोड़ डोज़ दे चुका था. सितंबर के अंत में सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों के पास कोरोना के टीके की 4.57 करोड़ ख़ुराक उपलब्ध थी. इसके अलावा उन्हें जल्द ही 84 लाख डोज़ और मिलने वाली थी. अब तक भारत के लगभग तीन चौथाई बुज़ुर्ग नागरिकों को टीके की कम से कम एक ख़ुराक दी जा चुकी है. वहीं 45 से 59 उम्र वाले लोगों के बीच तो टीकाकरण की दर और भी बेहतर है. कुल मिलाकर 45+ उम्र वाले देश के एक तिहाई से ज़्यादा नागरिकों को टीके की दोनों डोज़ मिल चुकी है.
किसी निम्न मध्यम आमदनी वाले देश के लिए ये सराहनीय और अचंभित कर देने वाली उपलब्धि है. मुक्त विश्व के किसी भी अन्य देश में इतना बड़ा टीकाकरण अभियान नहीं देखा गया है. जहां तक कुल वैक्सीन डोज़ की बात है, तो अब जबकि हम (ख़ुद द्वारा तय की गई) समय सीमा के तहत ये लक्ष्य हासिल करने से बस थोड़ी ही दूरी पर खड़े हैं, तो हमारे सामने कुछ नीतिगत सवाल भी उभरे हैं, जिनका जवाब देना ज़रूरी है, ताकि ये लक्ष्य हासिल किया जा सके. और यही लाज़िमी भी होना चाहिए.
वायरस के म्यूटेशन और बिना वैक्सीन वाले लोगों की बड़ी तादाद के चलते इस वायरस के घातक साबित होने और महामारी के ख़तरनाक रुख़ अख़्तियार करने का ख़तरा बना हुआ है.
पिछले कुछ महीनों के दौरान हमने महामारी की नई लहर झेलने वाले देशों के दो विशिष्ट लक्षण देखे हैं; तुलनात्मक रूप से अमीर देशों में महामारी की लहर थोड़ी कम ख़तरनाक है. वहीं ग़रीब देश आम तौर पर महामारी के सबसे भयंकर रूप का सामना कर रहे हैं. इससे विश्व स्तर पर वैक्सीन के मोर्चे पर बनी खाई भी साफ़ दिखाई देती है. अमेरिका का मामला बिल्कुल ही अलग है. जहां पर एक साथ ये दोनों की बातें देखने को मिल रही हैं. अमेरिका में टीका लगवाने और न लगवाने वालों के बीच का फासला, मोटे तौर पर राजनीतिक और वैचारिक कारणों से दिख रहा है. लेकिन, इसके नतीजे बहुत नुक़सानदेह साबित हो रहे हैं.
विशेषज्ञों ने ये पाया है कि तमाम देशों के बीच महामारी के मंज़र में बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है. जिन देशों और समुदायों के पास वैक्सीन है, वो संक्रमण की रफ़्तार को धीमा करने (केस की संख्या) और लोगों को गंभीर रूप से बीमार होने, अस्पताल में भर्ती होने और मौत के शिकार होने से रोकने में सफल रहे हैं. अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को टीका लगा चुके कई देश अब इस नए कोरोना वायरस को एक मौसमी बीमारी वाले वायरस की तरह देख रहे हैं. हालांकि, मोटे तौर पर पूरी दुनिया में संक्रमित मामले कम हुए हैं, और महामारी का गंभीर असर भी सीमित हुआ है. लेकिन, ये मान लेना ख़तरे से ख़ाली नहीं कि हम इस महामारी के आख़िरी दौर से गुज़र रहे हैं. वायरस के म्यूटेशन और बिना वैक्सीन वाले लोगों की बड़ी तादाद के चलते इस वायरस के घातक साबित होने और महामारी के ख़तरनाक रुख़ अख़्तियार करने का ख़तरा बना हुआ है. आज भी देश के सभी वयस्क और किशोर उम्र नागरिकों को टीका लगाना, एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए.
भारत में बच्चों को लगाने की इजाज़त पाने वाली पहली वैक्सीन होने के कारण, इसका कम से कम 2021 में टीकाकरण पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ने वाला है.
मई महीने में वैक्सीन की क़ीमत की उदार नीति और राष्ट्रीय त्वरित कोविड-19 टीकाकरण रणनीति को रफ़्तार देने के शुरुआती दिनों में भारत में हर दिन बीस लाख टीके लग रहे थे. तब से देश ने लंबा सफर तय कर लिया है और सितंबर में हर दिन औसतन 75 लाख वैक्सीन लगाई गई थी. टीकाकरण अभियान की शुरुआत से अब तक हर महीने लगे टीकों के विश्लेषण (ग्राफ 2) से पता चलता है कि टीकाकरण की रफ़्तार में काफ़ी तेज़ी आ गई है. जहां मई में 6.1 करोड़ डोज़ लगाई गई थी. वहीं सितंबर में ये संख्या बढ़कर 23 करोड़ पहुंच गई. ये वैक्सीन लगाने की क्षमता में क़रीब 400 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी का प्रभावशाली आंकड़ा है.
भारत ने देश के सभी वयस्क नागरिकों को 31 दिसंबर 2021 तक कोरोना का टीका लगाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया था. इसका मतलब था लगभग 95 करोड़ लोगों को टीके की दो ख़ुराक या कुल मिलाकर 1.90 अरब डोज़. सितंबर महीने के अंत तक, भारत इसमें से 88.9 करोड़ टीके लगाने में सफल रहा है. इनमें से 65 करोड़ पहली डोज़ है. तो, 23.9 करोड़ दूसरी ख़ुराक है.
इस साल के बाक़ी बचे हुए दिनों में भारत को वैक्सीन की एक अरब ख़ुराक देनी है, वो भी दो प्रमुख टीकों- कोविशील्ड और कोवैक्सिन की डोज़ दिए जाने के सही समय चक्र के अनुसार, जो इस समय देश के टीकाकरण अभियान के प्रमुख टीके हैं. इसका मतलब ये होगा कि भारत को अब अगली लंबी छलांग लगाते हुए हर दिन औसतन 1.1 करोड़ से ज़्यादा टीके लगाने होंगे. ये पिछले तीन महीनों की दर से 46.5 प्रतिशत ज़्यादा है. [1] अब जैसे जैसे वैक्सीन बनाने की क्षमता बढ़ रही है. नए केंद्रों से उत्पादन शुरू हो रहा है, और चूंकि टीकाकरण अभियान से बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है, तो पुराने तजुर्बों के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि ये बिल्कुल मुमकिन है.
कोविड के इस्तेमाल किए जा रहे टीके और टीकाकरण अभियान पर इसका प्रभाव
लेकिन, असली चुनौती तो कहीं और है. भारत के टीकाकरण अभियान की रीढ़ है, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की वैक्सीन कोविशील्ड. अब तक देश में दी गई लगभग 88 प्रतिशत डोज़ इसी वैक्सीन की हैं. इसके दोनों टीकों को 12 हफ़्तों के अंतराल पर दिया जाता है (ग्राफ 3). एक अक्टूबर तक देश में 30 करोड़ से ज़्यादा वयस्क ऐसे थे, जिन्हें कोरोना के टीके की पहली ख़ुराक भी नहीं मिली थी. इनमें से कुछ लोगों को कोवैक्सिन या स्पुतनिक-V टीके भी लगाए जा सकते हैं (इन दोनों ही टीकों की ख़ुराक एक महीने या इससे कम समय के अंतर पर दी जा सकती है). हालांकि अगर हम सिर्फ़ कोविशील्ड वैक्सीन ही देते हैं, तो उसकी दो ख़ुराक में 12 हफ़्ते के अंतराल का पालन करने के चलते, इनमें से ज़्यादातर को जनवरी में ही टीका लग पाएगा.
ऐसे में नीतिगत चुनौती सिर्फ़ ये नहीं हो सकती कि वैक्सीन लगाने की क्षमता में 47 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो. हालांकि ये पूरी तरह से संभव है. असली चुनौती ये है कि ख़ुराक के अंतर के चलते ये फ़ैसला करना है कि कौन सी वैक्सीन दी जाए.
ऐसे तीन सवाल उठते हैं, जिन पर स्वास्थ्य मंत्रालय विचार कर सकता है. पहला तो ये कि क्या इस बात की कोई वास्तविक संभावना है कि कोवैक्सिन आख़िरकार अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर देश की ज़रूरत पूरी कर सकेगी? अगर वो अपना उत्पादन बढ़ाकर दोगुना भी कर लेते हैं, तो भी हमारे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को अभी टीका लगाना है. ये स्थिति तभी बदल सकती है, जब स्पुतनिक-V के उत्पादन में भी ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी हो. दूसरा विकल्प ये है कि कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच का अंतर कम किया जाए. इससे, नवंबर और दिसंबर महीने में कोविशील्ड की ज़्यादा तादाद का इस्तेमाल लोगों को दूसरी डोज़ देने के लिए हो सकता है. और तीसरा सवाल तो निश्चित रूप से यही है कि अक्टूबर के आख़िर तक ज़्यादा क्षमता (ख़ुराक) के साथ भारत के वैक्सीन अभियान में किसी नए टीके का दाख़िला हो.
अन्य सभी वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने में काफ़ी देरी होने के चलते, कोविशील्ड के उत्पादन में सीरम इंस्टीट्यूट का प्रदर्शन ही भारत के टीकाकरण अभियान में मददगार रहा है. कोविशील्ड का उत्पादन पांच महीने पहले के सबसे उम्मीद भरे अनुमान से भी बेहतर रहा है.
जहां तक भारत में आने वाले समय में उपलब्ध होने वाले अन्य प्रमुख टीकों की बात है, तो सीरम इंस्टीट्यूट के मुताबिक़, कोवोवैक्स के आपातकालीन इस्तेमाल की इजाज़त, 2021 के आख़िर तक ही दिए जाने की उम्मीद है. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम है कि हमारे विश्लेषण की टाइमलाइन पर कोई ख़ास फ़र्क़ पड़ेगा. इसी तरह ख़बरें आ रही हैं कि रूस में नए संक्रमण की संख्या बढ़ने से भारत में स्पुतनिक-V की योजना पर भी असर पड़ेगा. हालांकि, इस टीके की दो ख़ुराक के बीच सबसे कम यानी 21 दिनों का ही अंतर एक आदर्श विकल्प है, ख़ास तौर से कम समय में टीकाकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिहाज़ से. बायोलॉजिकल-ई द्वारा जॉनसन ऐंड जॉनसन की वैक्सीन का उत्पादन इस साल के अंत तक ही शुरू होने की संभावना है. इसकी उपलब्धता की समयसीमा को लेकर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. वहीं, ज़ायडस कैडिला की तीन ख़ुराक वाली वैक्सीन कब तक उपलब्ध हो सकेगी, इसकी कोई जानकारी नहीं है. वैसे भी ज़ायडस कैडिला की वैक्सीन की शुरुआत एक महीने में एक करोड़ ख़ुराक के मामूली उत्पादन के साथ होगी; और भारत में बच्चों को लगाने की इजाज़त पाने वाली पहली वैक्सीन होने के कारण, इसका कम से कम 2021 में टीकाकरण पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ने वाला है. हालांकि, ज़ायडस कैडिला के टीके वयस्कों को लगाने के लिए भी उपलब्ध हो सकते हैं. लेकिन चूंकि ये बच्चों को लगाने की मंज़ूरी पाने वाली इकलौती वैक्सीन है, तो इसकी शुरुआती खेप ऐसे बच्चों को लगाई जानी चाहिए, जिन्हें अन्य बीमारियां भी हैं.
चूंकि मई से सितंबर महीने के बीच हर दिन टीके लगाने की तादाद में क़रीब 400 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी, तो आगे भी वैक्सीन लगाने की दर बढ़ाना असंभव नहीं है. हाल ही में कोविशील्ड ने ऐलान किया था कि उसके टीके बनाने की क्षमता 16 करोड़ डोज़ प्रति माह से बढ़कर 20 करोड़ ख़ुराक प्रति महीने हो गई है.
ख़बरें हैं कि कोवैक्सिन, अक्टूबर महीने से अपनी उत्पादन क्षमता 3.5 करोड़ डोज़ से बढ़ाकर 5.5 करोड़ तक ले जा रही है. भारत सरकार ने भी सफ़ाई दी है कि अभी कोविशील्ड के टीकों की दो ख़ुराक के बीच तीन महीने के अंतर को कम करने की कोई योजना नहीं है. हालांकि, जैसे जैसे राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के लिए और डोज़ उपलब्ध होंगी, तो इस विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है.
भारत के टीकाकरण अभियान के संभावित विकल्प
आने वाले महीनों में भारत के सामने जो नए विकल्प उभर सकते हैं, हम इस विश्लेषण के दौरान उनमें से दो संभावित विकल्पों के बारे में चर्चा कर लेते हैं, जिससे भारत अपने सभी वयस्क नागरिकों को टीकों की दोनों डोज़ देने में सफल हो सके.
(टेबल 1) अब तक उपलब्ध जानकारी ये संकेत देती है कि टीकाकरण अभियान की दिसंबर वाली समय सीमा पर तीन बातें असर डाल रही हैं. पहली तो टीकों के उत्पादन की क्षमता, जो तेज़ी से सुधर रही है; दूसरी है कोविशील्ड की दो ख़ुराक के बीच तीन महीने का अंतर; और निर्यात के लिए सरप्लस वैक्सीन की उपलब्धता की ज़रूरत. पहले परिदृश्य के तहत ये मानकर चला जा रहा है कि वैक्सीन की उपलब्धता सितंबर 2021 के स्तर पर बनी रहेगी, जो क़रीब 23 करोड़ डोज़ प्रति माह है. ऐसी परिस्थिति में भारत के सभी वयस्क नागरिकों को फ़रवरी 2022 तक ही टीकों की दोनों ख़ुराक दी जा सकेगी, और दिसंबर 2021 तक भारत में 32.1 करोड़ टीकों की कमी होगी (टेबल 1).
दूसरे आकलन में ये मान कर चला जा रहा है कि सितंबर 2021 की तुलना में वैक्सीन लगाने की दर औसतन 46.5 प्रतिशत बढ़ेगी. चूंकि मई से सितंबर महीने के बीच हर दिन टीके लगाने की तादाद में क़रीब 400 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी, तो आगे भी वैक्सीन लगाने की दर बढ़ाना असंभव नहीं है. हाल ही में कोविशील्ड ने ऐलान किया था कि उसके टीके बनाने की क्षमता 16 करोड़ डोज़ प्रति माह से बढ़कर 20 करोड़ ख़ुराक प्रति महीने हो गई है. पहले ही ख़बरों के मुताबिक़ सीरम इंस्टीट्यूट अक्टूबर में 22 करोड़ टीके उपलब्ध कराने वाला है. इससे पिछले महीनों की तरह ही टीकों की तादाद में काफ़ी इज़ाफ़ा होता दिख रहा है. दूसरे मंज़र के आकलन के हिसाब से, भारत दिसंबर 2021 तक अपने हर वयस्क नागरिक को वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ देने में सफल होगा, और जनवरी 2022 तक कोविशील्ड वैक्सीन की 25.1 करोड़ अतिरिक्त डोज़ की उपलब्धता से सबको टीके की दोनों ख़ुराक देने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा.
हालांकि इन परिकल्पनाओं में स्पुतनिक-V की अनदेखी की गई है. रूस में केस की संख्या में इज़ाफ़े से वैक्सीन बनाने के लिए ज़रूरी सामान का आयात अटक गया है. एक तथ्य ये भी है कि भारत ने वैक्सीन को अनिवार्य नहीं बनाया है, और कई कारणों से वयस्कों की आबादी का एक बड़ा वर्ग अपनी मर्ज़ी से टीका लगवाने को लेकर अनिच्छुक है. हमारा विश्लेषण ये मानकर चल रहा है कि 18 साल से ज़्यादा उम्र का कोई भी भारतीय वैक्सीन की मांग करने पर तय समय के भीतर दोनों डोज़ हासिल कर सकेगा. ऐसे में वैक्सीन लगाने को लेकर हिचक को इस विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है और ये आकलन सभी उपयुक्त नागरिकों की संख्या के आधार पर है. इस विश्लेषण में भविष्य में कोविड-19 की वैक्सीन को उन लोगों को टुकड़ों में देने की बात भी शामिल नहीं है, जिन्हें ख़तरा कम है. या फिर हमने दो अलग अलग वैक्सीन की डोज़ देने (जो हम भारत में अन्य बीमारियों के मामले में पहले से ही कर रहे हैं) के विकल्प को भी अपने विश्लेषण का हिस्सा नहीं बनाया है. जबकि इनसे सीमित आपूर्ति का दायरा बढ़ाया जा सकता है. मौत की दर भी कम की जा सकती है, और सबको वैक्सीन देने के इस सफ़र को भी गति दी जा सकती है.
जैसा कि इन आंकड़ों से स्पष्ट है, वैश्विक संदर्भ में देखें तो दूसरा मंज़र ज़्यादा व्यवहारिक लगता है. जिसके तहत देश के सभी वयस्क नागरिकों को नवंबर 2021 तक वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ दी जा सकती है. फिर उनकी दूसरी ख़ुराक को 2022 के महीनों में बांटा जा सकता है. 18 साल से ज़्यादा उम्र के 95 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले देश के लिए, सिर्फ़ 11 महीनों में सबको टीके की एक डोज़ से सुरक्षित करना भी तारीफ़ के क़ाबिल उपलब्धि होगी. दूसरी संभावना पर जाएं, तो इससे नवंबर 2021 से भारत के पास निर्यात के लिए पर्याप्त संख्या में सरप्लस वैक्सीन भी उपलब्ध होगी.
अब जबकि भारत अपने वयस्कों के टीकाकरण अभियान को तेज़ कर रहा है, तो बदक़िस्मती से सिर्फ़ वयस्क आबादी के बीच हर्ड इम्युनिटी जैसी कोई चीज़ नहीं होती है. कोविड-19 महामारी के प्रति हर्ड इम्युनिटी संपूर्ण आबादी के स्तर पर ही हासिल की जा सकती है. भारत जैसे काफ़ी युवा देश में इसका मतलब होगा कि 18 साल से कम उम्र वाले लोगों के एक बड़े हिस्से को भी टीका लगा दिया जाए. अगर भारत दिसंबर 2021 तक सभी इच्छुक वयस्क नागरिकों को कोरोना का टीका लगाने में सफल भी हो जाता है, तो भी जब तक देश के करोड़ों बच्चों को वैक्सीन नहीं दी जा सकती, तब तक हम हर्ड इम्युनिटी के क़रीब भी नहीं पहुंच सकेंगे. बाक़ी दुनिया को वैक्सीन निर्यात करने के अपने नए वादे को पूरा करने के साथ साथ बच्चों को भी बड़ी संख्या में टीका लगाना, भारत के लिए अगला बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य होगा. जिससे भारत, कोविड-19 को ऐसे जोखिम के तौर पर ले सके, जिससे टीकाकरण और ज़िम्मेदारी भरे बर्ताव से आसानी से निपटा जा सकता है.
टीकाकरण को लेकर इस विश्लेषण से ये साबित होता है कि सभी वयस्क नागरिकों को 31 दिसंबर 2021 तक टीका लगाने का लक्ष्य, आज उतना अव्यवहारिक नहीं है, जितना शायद पहले लग रहा होगा. अब जबकि भारत पहले की तरह अब भी लगातार कोविशील्ड और कोवैक्सिन का उत्पादन बढ़ा रहा है, तो वो जनवरी 2022 तक सभी वयस्कों को वैक्सीन देने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल कर सकता है. इसके साथ साथ, गंभीर रूप से बीमार लोगों को बूस्टर डोज़ देने के विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.