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ऐतिहासिक रूप से, भारत में शहरी परिवहन योजना में सारा ध्यान मांग और आपूर्ति को संतुलित करने पर रहा है. सस्टेनेबिलिटी यानी स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण पक्ष की अक्सर अनदेखी की गई. जो भी परिवहन नीतियां बनीं, वो मुख्य रूप से "लोगों के बजाए चलते वाहनों" पर केंद्रित थीं. इसका नतीजा ये हुआ कि सार्वजनिक परिवहन (पीटी) प्रणालियों पर कम ध्यान दिया गया, जबकि वास्तविकता ये है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली ही यातायात से जुड़ी समस्याओं, जैसे कि भीड़भाड़, पार्किंग की कमी और दुर्घटनाओं को कम कर सकती थीं. भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन में मुख्य रूप से बस-आधारित प्रणालियां शामिल हैं. इनमें शहरी बसें और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) के साथ ही रेल-आधारित प्रणाली जैसे कि मेट्रो रेल, उपनगरीय रेल, ट्राम नेटवर्क और पैराट्रांजिट या इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांसपोर्ट (आईपीटी) सिस्टम के तहत साझा गतिशीलता सेवाएं शामिल हैं. आजकल सार्वजनिक बाइक-शेयरिंग, ओला और उबर जैसी जिन सेवाओं की काफ़ी तारीफ की जा रही है, ये पहल भी अक्सर सार्वजनिक परिवहन के पारंपरिक तरीकों की पूरक मानी जाती हैं.
हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन, कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT), और ग्रीन अर्बन ट्रांसपोर्ट स्कीम (GUTS) समेत कई ऐसी पहल शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन का बढ़ाना है. इन योजनाओं के कुछ अन्य उद्देश्य भी हैं.
हालांकि, 2006 में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (एनयूटीपी) के कार्यान्वयन के बाद इस योजना में थोड़ा बदलाव आया है. इस नीति में वाहनों की बजाए लोगों को चलाने यानी उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर ध्यान दिया गया है. हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन, कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT), और ग्रीन अर्बन ट्रांसपोर्ट स्कीम (GUTS) समेत कई ऐसी पहल शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन का बढ़ाना है. इन योजनाओं के कुछ अन्य उद्देश्य भी हैं.
इन तमाम प्रयासों के बावजूद, टियर-3 शहरों में सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा सिर्फ 4 प्रतिशत है. हालांकि टियर-1 और टियर-2 शहरों में सार्वजनिक परिवहन द्वारा दी जा रही सेवा उनकी यात्रा ज़रूरतों का 33 प्रतिशत है. बस मॉडल की हिस्सेदारी में काफ़ी अंतर दिखता है. सूरत में ये महज 3 प्रतिशत है, जबकि बैंगलोर में 43 प्रतिशत. शहरी परिवहन नीति के दिशानिर्देशों के अनुसार, 10 लाख से ज़्यादा आबादी वाले शहरों में सार्वजनिक यातायात मॉडल की हिस्सेदारी 40-45 प्रतिशत होनी चाहिए. 50 लाख से अधिक की आबादी वाले शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की हिस्सेदारी उनकी गतिशीलता की मांग का 75 प्रतिशत होना चाहिए.
एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली की आवश्यकता
भारत की मुख्य समस्या ये रही है कि यहां पैदल चलने वालों, साइकिल चलाने वालों और सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर निवेश करने की बजाए राजमार्गों और पार्किंग को प्राथमिकता दी गई है. इसने मुख्य रूप से भारतीय शहरों में परिवहन प्रणालियों की अक्षमता बढ़ाने में योगदान दिया है. इसके अलावा, भारत में सार्वजनिक परिवहन के विकास में समन्वय की कमी रही है. इसका विकास शहर के आकार और जनसंख्या की ज़रूरतों के हिसाब से नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से हुआ है. यही वजह है कि 2006 के बाद प्रस्तावित राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति को विरोधाभासी उद्देश्यों का सामना करना पड़ा. इसका नुकसान ये हुआ कि इस नीति के अपेक्षित परिणाम नहीं आए.
व्यापक और एकीकृत परिवहन योजना की कमी की वजह से महानगरीय क्षेत्रों में सार्वजनिक यातायात प्रणाली ने पूरक तरीके से काम नहीं किया. इसकी बजाए ये एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगीं. इसका नतीजा ये रहा कि कई शहरों में मल्टीमॉडल परिवहन प्रणालियां तो हैं, लेकिन ये काफी हद तक "पृथक" और "अस्थिर" हैं. इनमें समन्वय और टिकाऊपन की कमी है. नई औपचारिक सार्वजनिक परिवहन प्रणालियां पहले से मौजूद साधनों के साथ परिचालन, संस्थागत और सूचना की स्तर पर एकीकृत नहीं हो पाती. इसके अलावा, अधिकांश भारतीय शहरों में परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच भौतिक और किराया एकीकरण भी नहीं दिखता है.
एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली को परिभाषित करना
एक एकीकृत और टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली (आईएसएमटीएस) निम्नलिखित सुनिश्चित करता है:
महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की शारीरिक सुरक्षा के साथ ही सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए
परिवहन के अलग-अलग साधनों के बीच तुरंत और आसान पहुंच हो. इसमें कोई भौतिक या प्रणालीगत बाधाएं ना आएं और परिवहन के विभिन्न साधनों को बार-बार ना बदलना पड़े.
- ये वहनीय यानी महंगा ना हो, जिससे परिवहन पर ज़्यादा मासिक खर्च ना करना पड़े.
- सफर आरामदायक हो. प्रतिकूल मौसम में भी सड़क किनारे छाया मिले. लाइट की सही व्यवस्था हो. फुटपाथ पर चलने और बस स्टॉप पर बैठने की जगह हो. भीड़भाड़ कम हो, जिससे लोगों पर कोई नकारात्मक असर ना पड़े.
- यात्री ये योजना बना सकें कि वो अपने गंतव्य तक कब पहुचेंगे और परिवहन के विभिन्न मॉडल तक तुरंत और आसानी से पहुंच सकें.
- इस चीज को भी सुनिश्चित किया जाए कि कार्बन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण के मामले में इस प्रणाली द्वारा की गई यात्रा की पर्यावरणीय लागत एक निजी वाहन से की गई यात्रा की तुलना में कम हो.
आईएसएमटीएस सड़क में जगह के उचित वितरण की सुविधा भी प्रदान करता है. ये निजी वाहनों की तरफ नहीं झुका है. भारतीय महानगरों में इस तरह की नीति की गारंटी के लिए, मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के घटकों के बीच बातचीत को समझना और एक सामान्य वैचारिक ढांचा प्राप्त करना आवश्यक है. यही समझ एक शहर को सतत विकास लक्ष्यों की ओर ले जाती है.
एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के घटक
एक मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के इकोसिस्टम में जैविक और अजैविक दोनों तरह के घटक शामिल हैं. अजैविक घटकों में परिवहन का बुनियादी ढांचे शामिल है. इसमें फुटपाथ, बाइक लेन, ट्रांजिट रोड, इंटरचेंज, ट्रांसफर स्टेशन, पार्क-और-राइड सुविधाएं और ड्रॉप-ऑफ प्वाइंट शामिल हैं. जैविक घटकों में परिवहन हितधारक यानी संचालनकर्ता और उपयोगकर्ता शामिल हैं. शहरी पारगमन संचालन में शामिल प्रमुख एजेंसियों में स्थानीय सरकारें, सार्वजनिक और निजी परिवहन सेवा प्रदाता, क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण और उपक्रम, पार्क-एंड-राइड ऑपरेटर, कार-शेयरिंग संगठन और आईपीटी ऑपरेटर शामिल हैं. बात अगर उपयोगकर्ता पक्ष की करें तो इसमें पैदल चलने वालों, साइकिल चालक, निजी वाहन चालकों, कैप्टिव ट्रांजिट राइडर्स, पैराट्रांजिट उपयोगकर्ताओं और कार-शेयरिंग यात्रियों को शामिल किया गया है. चित्र-1 में मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के इकोसिस्टम का एक योजनाबद्ध प्रतिनिधित्व दिखाया गया है.
चित्र 1: मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली का इकोसिस्टम
स्रोत : लेखक ने खुद बनाया है
एक मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली की स्थिरता इन हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय से निर्धारित की जाती है. एकीकृत परिवहन का बुनियादी इसमें मदद करता है.
आगे का रास्ता?
एक एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली बनाना काफ़ी जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है. इसमें अलग-अलग हितों वाले विभिन्न हितधारकों को शामिल करना पड़ता है. वर्तमान में, भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में कोई समन्वय नहीं है. परिवहन के विभिन्न मॉडलों के बीच बीच न्यूनतम या फिर कोई एकीकरण नहीं होता है. इससे यात्रियों के सामने बड़ी चुनौतियां पैदा होती हैं. इन चुनौतियों में लास्ट-माइल कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता, पैदल यात्रियों के लिए बुनियादी ढांचे की अनुपस्थिति, जैसे कि फुटपाथ और साइकिल लेन की कमी शामिल है. इसके अलावा यात्रा में लगने वाला लंबा समय और परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच स्थानांतरित करते समय होने वाली असुविधा भी शामिल है.
जैसे-जैसे भारत का तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है, शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों का संस्थागत एकीकरण महत्वपूर्ण हो गया है. इस उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम एकीकृत मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (यूएमटीए) की स्थापना है. कानूनी जनादेश द्वारा इसे स्थापित किया जाना चाहिए. यूएमटीएम को शहर के भीतर परिवहन के सभी साधनों से संबंधित निर्णय लेने का अधिकार दिया जाना चाहिए. ऐसा होने से शहरी गतिशीलता के लिये एक सुसंगत और एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सकेगा.
शहरों को एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रदान करके सूचना एकीकरण प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. मल्टीमॉडल मोबाइल ऐप, सार्वजनिक सूचना प्रदर्शन, मानकीकृत संकेतांक और रीयल-टाइम अपडेट जैसे तरीकों से इसे हासिल किया जा सकता है.
इसके अलावा, विशिष्ट परिवहन परियोजनाओं के लिए शहर के मास्टर प्लान में आईएसएमटीएस के निर्माण को शामिल किया जाना चाहिए. व्यापक गतिशीलता योजना (सीएमपी) और विकास योजना (डीपी) जैसे शहरी नियोजन दस्तावेजों में इसका उल्लेख होना चाहिए. इन योजनाओं को बनाते वक्त पिछले प्रयासों पर विचार करना चाहिए. ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवहन का नया बुनियादी ढांचा मौजूदा प्रणालियों का पूरक हो. सार्वजनिक परिवहन के नए तरीकों की योजना बनाते समय, विभिन्न परिवहन साधनों के भौतिक एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए मल्टीमॉडल हब, एक-दूसरे के पास स्थित स्टेशनों और साझा बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण घटकों के डिज़ाइन और क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, सार्वजनिक परिवहन के सभी साधनों में समय सारिणी और कार्यक्रम का समन्वय करना ज़रूरी है. एक एकीकृत समय सारिणी प्रणाली को लागू करने से इंतज़ार का समय कम हो जाएगा और परिवहन नेटवर्क की समग्र दक्षता में सुधार होगा.
इसके अतिरिक्त, शहरों को एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रदान करके सूचना एकीकरण प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. मल्टीमॉडल मोबाइल ऐप, सार्वजनिक सूचना प्रदर्शन, मानकीकृत संकेतांक और रीयल-टाइम अपडेट जैसे तरीकों से इसे हासिल किया जा सकता है. ये उपाय यात्रियों को सोच-समझकर निर्णय लेने और परिवहन के विभिन्न तरीकों के बीच बेरोकटोक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करने में सक्षम बनाएंगे.
भारतीय शहरों में वास्तव में एकीकृत, उपयोगकर्ता-केंद्रित और टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के निर्माण के लिए समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है. ऐसा करके ही खंडित परिवहन प्रणालियों से जुड़ी चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है.
(नंदन द्वाडा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं).
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