पिछले कई दशकों से चीन के शहरीकरण का सबसे उल्लेखनीय पहलू इसकी बेजोड़ गति रही है. इसने देश की जनसांख्यिकी को बदल दिया है. चीन एक विशाल ग्रामीण आबादी वाले देश से मुख्य रूप से शहरी आबादी वाला देश बन गया है. यह शहरीकरण की बेहद तेज़ गति का ही प्रभाव है. यह चीज़ इसलिए भी और आश्चर्यजनक लगती है क्योंकि 1970 के दशक तक चीन कई अन्य विकासशील देशों की तरह शहरीकरण विरोधी पारंपरिक सोच रखता था. इसमें शहरीकरण के खिलाफ एक स्पष्ट पूर्वाग्रह था. यहां के हुकाऊ हाउसहोल्ड रजिस्ट्री सिस्टम (hukou household registry system) से ऐसा स्पष्ट तौर पर दिखता है.
हालांकि, 1980 के दशक में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी)में सर्वोच्च स्तर पर शहरीकरण को लेकर एक मौलिक पुनर्विचार किया गया. शहरीकरण और आर्थिक विकास के बीच जुड़ाव के बारे में मज़बूत चीनी धारणा ने धीरे-धीरे पुरानी सोच से मुक्ति दिलाई और तेज़ गति से शहरीकरण की रणनीति के पक्ष में माहौल बनाया. इसमें ग़रीब ग्रामीण आबादी ने बड़ी भूमिका निभाई. उसने रोज़गार की तलाश और ग़रीबी से मुक्ति के लिए बेतरतीब तरीक़े से शहरों की ओर पलायन किया.
देश में हर स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की सरकार की सोच और प्राथमिकता को बढ़ावा देने के मक़सद को हासिल करने के लिए पूरी शहरी मशीनरी को लगा दिया गया. यह पूरा काम एक पिरामिड की तरह किया गया,जहां सीसीपी के मुख्य सदस्यों के हाथ में शीर्ष स्तर पर शक्ति केंद्रित थी. हालांकि,स्थानीय स्तर पर बदलाव की पर्याप्त गुंजाइश रखी गई जिससे कि अड़ियल रुख़ के कारण अच्छी पहल को हतोत्साहित न किया जा सके.
सरकारी अधिकारियों का मूल्यांकन मुख्य रूप से उनके द्वारा प्रशासित क्षेत्र के आर्थिक प्रदर्शन के मानक पर किया जाता था. जिन अधिकारियों ने अपने शहरों की आर्थिक प्रगति में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया,उन्हें पार्टी पदानुक्रम में तेज़ी से आगे बढ़ाया गया.
सरकारी अधिकारियों का मूल्यांकन मुख्य रूप से उनके द्वारा प्रशासित क्षेत्र के आर्थिक प्रदर्शन के मानक पर किया जाता था. जिन अधिकारियों ने अपने शहरों की आर्थिक प्रगति में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया,उन्हें पार्टी पदानुक्रम में तेज़ी से आगे बढ़ाया गया.
उपरोक्त घटनाक्रम को अमेरिका,चीन और भारत के बीच एक तुलना के ज़रिए बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है. अमेरिका को अपनी आबादी के अनुपात को पलटने में क़रीब दो सदियां (1800 से 2000) लगीं. वहां 18वीं सदी में 80 फ़ीसदी ग्रामीण और 20 फ़ीसदी शहरी आबादी थी जो अब 80 फ़ीसदी शहरी और 20 फ़ीसदी ग्रामीण हैं. हालांकि, चीन में 1950 के दशक में केवल 13 फ़ीसदी आबादी शहरी थी जबकि भारत में 1951 में 17.3 फ़ीसदी आबादी शहरी थी. मौजूदा वक्त में विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक चीन ने 60 फ़ीसदी शहरीकरण को पार कर लिया है, भारत में शहरीकरण की मौजूदा स्थिति 35 फ़ीसदी है. शहरीकरण की रफ़्तार में यह असमानता और स्पष्ट हो जाती है,जब हम इस तथ्य पर विचार करें कि अमेरिका को 20 फ़ीसदी शहरीकरण को 80 फ़ीसदी बनाने में दो सदियां लगीं,वहीं मौजूदा रफ़्तार से भारत को इस लक्ष्य को हासिल करने में ढाई सदी लगेगी,जबकि चीन को इस लक्ष्य को पूरा करने में एक सदी ही लगती दिख रही है.
केंद्रीकृत योजना प्रणाली
तेज़ गति से शहरीकरण के साथ तीव्र आर्थिक विकास के पीछे एक आक्रामक शहरी नियोजन रणनीति का हाथ था. इसके लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाई गई. इस योजना के रेग्युलेशन का काम प्रांत वार भूमि संसाधन मंत्रालय को दिया गया. इसके तहत ही यह तय किया जाता था कि शहरीकरण के लिए अधिकतम कितनी ज़मीन का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके बाद इसे नगर पालिकाओं में बांटा गया.
इस व्यवस्था ने शहरीकरण की उस गति को निर्धारित किया जिसका पालन देश को करना होगा. ऐसा देखा जा सकता है कि चीन का प्रारंभिक शहरी नियोजन मॉडल सोवियत रूस के टॉप-डाउन (top-down) यानी शीर्ष स्तर से नीचे की ओर वाले शहरी ढांचे से प्रेरित था. इस सोवियत ढांचे में शारीरिक बल और तकनीक के तर्क और एक स्थानीय शहरी नियोजन प्रणाली को प्राथमिकता दी गई. ये विशेषताएं चीनी शहरी प्रणाली में प्रमुखता से दिखाई देती हैं.
एक बार जब शहरीकरण के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय आयाम निर्धारित हो जाते हैं तो शहरी नियोजन से जुड़ी नीतियां लागू की जाती हैं. चीन का शहरी नियोजन तीन स्तरीय प्रक्रिया पर काम करता है. इसमें पहला है– क्षेत्रीय योजना, जिसके तहत प्रांतीय स्तर पर शहरीकरण की योजना बनाई जाती है. दूसरा है- समग्र योजना, इसके तहत एक नियोजित क्षेत्र के लिए 20 वर्षों के लिए योजना बनाई जाती है. तीसरा है- विस्तृत योजना. इसमें एक शहर को संचालित करने की परिचालन योजना होती है. इन योजनाओं को अलग अलग तैयार नहीं किया गया. ये सभी एक पदानुक्रम यानी ‘हाइरार्की’ में जुड़ी हुई हैं. इसमें निचले स्तर की योजना को निश्चित तौर पर उच्च स्तर की योजना में समाहित किया जाता है. यह प्रक्रिया काफ़ी हद तक भारतीय शहरी नियोजन प्रक्रिया से मेल खाती है. भारत में एक बड़े इलाक़े के शहरीकरण के लिए पहले रिजनल प्लान (आरपी) तैयार किया जाता है. एक शहर के लिए विकास योजना यानी डीपी तैयार की जाती है और शहर के विभिन्न हिस्सों के लिए टाउन प्लानिंग स्कीम्स (टीपीएस) तैयार की जाती है. हालांकि भारतीय संविधान ने स्थानीय सरकार को राज्य सूची में रखा है और संविधान की 12वीं अनुसूची में शहरी नियोजन को एक स्थानीय विषय बताया गया है. इसी कारण चीन के केंद्रीकृत, कड़ाई से नियंत्रित तरीक़े के उलट भारत में कोई भी एक समान केंद्रीकृत शहरी प्लानिंग की परिकल्पना नहीं की गई.
ये सभी एक पदानुक्रम यानी ‘हाइरार्की’ में जुड़ी हुई हैं. इसमें निचले स्तर की योजना को निश्चित तौर पर उच्च स्तर की योजना में समाहित किया जाता है. यह प्रक्रिया काफ़ी हद तक भारतीय शहरी नियोजन प्रक्रिया से मेल खाती है.
समग्र चीनी प्रणाली को ध्यान में रखते हुए चीन ने आवासों, सड़कों, पानी व कचरा निकासी व्यवस्थाओं, बिजली, गैस और अन्य आधारभूत सुविधाओं के नियोजन और निर्माण में एक निश्चित मानक का पालन किया. इसमें स्थानीय संदर्भीकरण यानी ‘कॉन्टेक्सचुअलाइज़ेशन’ की अनुमति दी गई लेकिन इस समायोजन में समग्र दिशानिर्देशों का पालन किया गया. चीन में प्रति निवासी शहरी भूमि उपयोग के लिए भी एक निर्धारित मानक है. इस मानक को राष्ट्रीय दस्तावेज़ यानी ‘शहरी उपयोग और निर्माण के लिए मानक’ द्वारा तय किया जाता है. यह मानक प्रति व्यक्ति लगभग 100 वर्ग मीटर है. हालांकि वास्तविक रूप में यह 60 से 120 वर्ग मीटर के बीच है. शहर के आकार और उसकी विशिष्टताओं की वजह से इस मानक में अंतर देखा जाता है. चीन में भूमि के कार्यात्मक वितरण के लिए भी मानक हैं. जैसे- औद्योगिक, आवासीय, पर्यावरण, वाणिज्यिक, शैक्षिक, प्रशासनिक और अन्य आधारभूत संरचना से जुड़े कार्य. इसके बाद इन्हें ज़ोन में बांट दिया जाता है. आमतौर पर आवासीय, शॉपिंग, सांस्कृतिक और शैक्षणिक ज़ोन आपस में जुड़े होते हैं, जबकि औद्योगिक ज़ोन एक घेरे के अंदर होते हैं. एक बार फिर ज़ोन बनाने की यह अवधारणा भारत के समान है, सिवाय इसके कि यहां पर कोई स्पष्ट तौर पर केंद्रीय निर्देश नहीं है.
‘चेंगशी बी’– शहर की बड़ी समस्या का समाधान
शहरीकरण की प्रक्रिया में चीन के शहरों ने बेरोज़गारी और ग़रीबी पर काबू पा लिया. ऐसा आय और रोज़गार में बढ़ोत्तरी के अवसर पैदा करने से हुआ. हालांकि,ऐसा नहीं है कि चीन में शहरीकरण में कोई समस्या नहीं आई बल्कि इन समस्याओं से सीख लेते हुए आगे सुधार किए गए. उदाहरण के लिए शंघाई और बीजिंग जैसे महानगरों की बेतहाशा वृद्धि ने चीन के नीति निर्माताओं के बीच इनके टिकाऊपन और प्रबंधन के मुद्दे को उठाया. देर से ही सही,लेकिन एक ऐसी सोच या राय भी है जो यह कहती है कि चीन को नए सिरे से रणनीति बनाने की ज़रूरत है. इसी में से एक पसंदीदा राय यह है कि बड़े शहरों से निर्माण से छोटे शहरों और कस्बों को जोड़ा जाए, जिससे कि ग्रामीण प्रवासियों को पहले से ही अत्यधिक आबादी का बोझ ढो रहे शहरों से दूर रखा जा सके.
शंघाई और बीजिंग जैसे महानगरों की बेतहाशा वृद्धि ने चीन के नीति निर्माताओं के बीच इनके टिकाऊपन और प्रबंधन के मुद्दे को उठाया. देर से ही सही,लेकिन एक ऐसी सोच या राय भी है जो यह कहती है कि चीन को नए सिरे से रणनीति बनाने की ज़रूरत है
चीन की सरकार ने हाल ही में तीन लाख़ से कम आबादी वाले शहरों को प्रवासी आवेदकों को स्थानीय हुकाऊ (hukou) प्रदान करने की अनुमति देने वाले नियमों में बदलाव किया है. चीन में घरों के रजिस्ट्रेशन सिस्टम को हुकाऊ (hukou) कहा जाता है. छोटे शहरों की ओर जाने के लिए इस प्रोत्साहन को स्थानीय हुकाऊ से जोड़ा गया, क्योंकि बीजिंग जैसे महानगरों को केवल शिक्षित लोगों, उद्यमियों और निवेशकों के रहने के हिसाब से डिज़ाइन किया गया था. साथ ही इस बात के भी सबूत हैं कि चीन ने बीजिंग और शंघाई की आबादी को सीमित करने का भी फैसला लिया. इसके साथ ही चेंगशु बिंग (बड़े शहरों की बीमारी) की समस्या को दूर करने के लिए काफी तोड़फोड़ भी की गई.
दूसरी तरफ़ बड़े महानगर जो पहले से विकसित हैं और अन्य जो विकास करने वाले हैं उन्हें आसियान, बेल्ट एंड रोड रीजन के साथ-साथ अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ क्षेत्रीय व्यापार और निवेश साझेदारी में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार किया जा रहा है. 14वीं पंचवर्षीय योजना चीन के शहरी विकास के नए लक्ष्य को तय करती है. इस योजना में करीब आधी ग्रामीण प्रवासी आबादी को पांच सुपर सिटी क्लस्टर में बसाने का लक्ष्य है. इन्हें बीजिंग-तियांजिंग-हेबेई (Beijing-Tianjin-Hebei) क्षेत्र, यांगत्जे नदी डेल्टा (Yangtze River Delta), यांगत्जे नदी क्षेत्र (Yangtze River), ग्रेटर बे (Greater Bay) क्षेत्र और हाल ही में घोषित चोंगक्विक-चेंगदू (Chongqing-Chengdu) सिटी कलस्टर में बसाने की योजना है. इन सभी जगहों को इस तरह डिज़ाइन किया जाएगा ताकि वे घरेलू गतिविधियों के साथ-साथ चीन और वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच बाहरी गतिविधियों का केंद्र बने.
हालांकि, शहरी विचारक इस मॉडल पर सवाल भी उठाते हैं. वे केंद्रीय स्तर पर कुछ हद तक मार्गदर्शन और रणनीतिक प्लानिंग की बात स्वीकार करते हैं लेकिन वे बेहद केंद्रीकृत शहरी वास्तुकला के पक्ष में नहीं हैं. वे बेहद कड़े भू-उपयोग के नियम और बड़े पैमाने पर ज़ोन बनाने को भी पसंद नहीं करते. आलोचक मिक्स लैंड यूज़ यानी मिश्रित भूमि प्रयोग को लेकर अलग ज़ोन बनाने और ज़ोन निर्माण में कुछ हद तक लचीला रुख़ अपनाने के पक्ष में हैं, जिस से कि ज़मीनी स्तर पर स्थानीय विकास हो सके. शहर के बारे में राय रखने वाले विचारक और पर्यवेक्षक यह भी पाते हैं कि शहरी नियोजन का चीनी मॉडल एक जटिल विज्ञान के दायरे में है, जिसमें सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं को हाशिए पर रखा गया है.
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