Author : Ayjaz Wani

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 06, 2024 Updated 0 Hours ago

ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) का ख़ात्मा हो जाने के बावजूद चीन, शिंजियांग सूबे में वीगर मुसलमानों के साथ अपने बेहद ख़राब बर्ताव को ETIM के नाम पर जायज़ ठहराता रहा है.

आतंकवाद से लड़ने की आड़ में वीगरों की आवाज़ दबाता चीन

Image Source: Getty

27 सितंबर 2024 को न्यूयॉर्क में चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने अपने तीसरे शिखर सम्मेलन के दौरान, अफ़ग़ानिस्तान में ठिकाना बनाने वाले पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन (ETIM) जैसे आतंकवादी संगठनों को लेकर चिंता जताई थी. उनका कहना था कि ऐसे आतंकवादी समूह इलाक़े की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. ETIM के बारे में माना जाता है कि इसकी स्थापना, चीन के उत्तरी पश्चिमी सूबे शिंजियाग के वीगर मुसलमानों ने की थी. शिंजियांग को अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान (Af-Pak) के व्यापक क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है.

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने इस क़दम को जायज़ ठहराते हुए ये दावा किया था कि पिछले एक दशक से इस बात का ‘एक भी पक्का सुबूत नहीं मिला कि ETIM का अस्तित्व अभी भी क़ायम’ है.

शिंजियांग में वीगर मुसलमानों पर अपने ज़ुल्म के लिए चीन बार बार ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट का हवाला देता रहा है. इशकी वजह से ही 2020 में अमेरिका की डॉनल्ड ट्रंप सरकार ने दो दशकों के अंतराल के बाद ETIM को आतंकवादी संगठनों की अपनी सूची से बाहर कर दिया था. अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने इस क़दम को जायज़ ठहराते हुए ये दावा किया था कि पिछले एक दशक से इस बात का ‘एक भी पक्का सुबूत नहीं मिला कि ETIM का अस्तित्व अभी भी क़ायम’ है. चीन, विदेश में रहने वाले सभी उन सभी वीगरों को ETIM का सदस्य मानता है, जो वीगर मुसलमानों के ऊपर उशके ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं.

 

ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट: वास्तविक ख़तरे से काल्पनिक भय तक

 

1996 में चीन ने शिंजियांग में स्थिरता स्थापित करने के लिए सख़्त कार्रवाई करनी शुरू की थी. चीन की सुरक्षा एजेंसियों ने तथाकथित अलगाववादी हरकतों और अवैध धार्मिक गतिविधियों के नाम पर वीगरों को निशाना बनाना शुरू किया था. जिसकी वजह से शिंजियांग के बहुत से वीगर मुसलमानों ने भागकर अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों में पनाह ली थी. ETIM का ज़िक्र पहली बार साल 2000 में हुआ था. तब रूस के एक अख़बार ने ख़बर दी थी कि ओसामा बिन लादेन ने 1999 में इस संगठन को आर्थिक मदद देने का वादा किया था. ख़बरों के मुताबिक़, ETIM की स्थापना काशगर के रहने वाले एक वीगर मुसलमान हसन महसूम ने की थी, जिसने 1997 में चीन छोड़ दिया था. हसन ने पहले मदद हासिल करने के लिए सऊदी अरब और तुर्की का रुख़ किया था, हालांकि जब इन दोनों ही देशों से उसे कोई मदद नहीं मिली, तो हसन ने आख़िरकार, चीन के ज़ुल्म से बचने के लिए भागे दूसरे वीगर मुसलमानों के साथ अफ़ग़ानिस्तान को अपना ठिकाना बनाया था.

 

दिसंबर 2000 में पाकिस्तान में चीन के राजदूत लू शुलिन ने कंधार में तालिबान के नेता मुल्ला मुहम्मद उमर से मुलाक़ात की थी. इस अहम मुलाक़ात के दौरान लू शुलिन ने मुल्ला उमर से इस बात का भरोसा मांगा था कि तालिबान, चीन के ख़िलाफ़ सक्रिय किसी भी आतंकवादी संगठन को अपने यहां ठिकाना नहीं बनाने देगा. वैसे तालिबान ने इस छोटे से वीगर उग्रवादी समूह को अपने यहां से निष्कासित तो नहीं किया. लेकिन, उन्हें अपने कैंप स्थापित करने से रोक ज़रूर दिया. इसके बाद, ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट ने अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान क्षेत्र में सक्रिय दूसरे आतंकवादी संगठनों के साथ हाथ मिला लिया. जब 2003 में ETIM के संस्थापक हसन महसूम को पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान सीमा पर मार डाला, तो इस संगठन का दूसरे आतंकवादी समूहों में पूरी तरह से विलय हो गया था.  

 

2003 में हसन के बाद इस संगठन की कमान अब्दुल हक़ तुर्किस्तानी ने संभाली और वो अल क़ायदा की कार्यकारी परिषद का सदस्य भी बन गया था. हालांकि, मई 2010 में वो भी पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान इलाक़े में मारा गया था. इस दौरान अल क़ायदा के भीतर अपनी हैसियत और जिहाद की इस्लामिक परिकल्पना के बारे में भाषण देने के कौशल की वजह से अब्दुल हक़, अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान क्षेत्र में तालिबान के एक दूसरे के विरोधी धड़ों के बीच विवादों के निपटारे के लिहाज़ से काफ़ी अहम किरदार बन गया था. हालांकि, तब तक अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ पूरी तरह तालमेल की वजह से 2000 के दशक के आख़िरी वर्षों में ETIM का अस्तित्व पूरी तरह से ख़त्म हो चुका था.

 

9/11 के हमलों के बाद अक्टूबर 2001 में अमेरिका की अगुवाई में नैटो देशों की सेनाओं ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी जंग शुरू की और तालिबान को सत्ता से बेदख़ल करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण कर दिया. चीन की सरकार ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए वीगर मुसलमानों और चीन के उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लेकर दुनिया की राय बदलने की शुरुआत कर दी. चीन ने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के बीच वीगरों के ख़िलाफ़ माहौल बनाना शुरू कर दिया. अपने दावे के पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए चीन ने श्वेत पत्र जारी किए और दावा किया कि वीगरों के लिए आवाज़ उठाने वाला ये समूह अल क़ायदा और तालिबान के साथ मिलकर साज़िशें रच रहा है. चीन ने ये भी दावा किया कि शिंजियांग में चीन के शासन और आर्थिक शोषण के ख़िलाफ़ ब़ग़ावत और स्वतस्फूर्त विरोध प्रदर्शन असल में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट की आतंकवादी गतिविधियां हैं. चीन ने ETIM पर आरोप लगाया कि उसने शिंजियांग में 200 से ज़्यादा आतंकवादी हमले किए हैं, जिनकी वजह से 162 लोगों की मौत हुई और 440 लोग गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए.

 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में अपने सैन्य अभियानों के लिए चीन का समर्थन हासिल करने के लिए अमेरिका ने अगस्त 2002 में ETIM को एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. अमेरिका ने सुरक्षा परिषद से ETIM को आतंकवादी संगठन का दर्जा दिलाने में भी चीन की मदद की. पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को आतंकवादी संगठन कहे जाने से चीन को वीगरों के प्रति अपनी सख़्त नीतियों को वाजिब ठहराने में भी मदद मिली. इन नीतियों के तहत चीन ने शिजियाग में वीगों की निगरानी, उनके सांस्कृतिक दमन और हज़ारों लोगों को नज़रबंदी शिविरों में क़ैद कर रखा है. इन बर्बर क़दमों के ज़रिए चीन ने वीगर मुसलमानों के ख़िलाफ़ सांस्कृतिक हिंसा का एक दुष्चक्र चला रखा है.

 

ETIM विदेश में रह रहे वीगरों का दमन

 

चीन के लिए ETIM शिंजियांग के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दमन के लिए एक आसान बहाना है. शिंजियांग में ‘आतंकवाद से लड़ाई’ के नाम पर वीगर मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलाई जा रही मुहिम को जायज़ ठहराने के लिए चीन जान-बूझकर पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन का नाम इस्तेमाल करता है. यही नहीं, पूरी दुनिया में बेवतन रह रहे वीगर मुसलमानों के प्रत्यर्पण की आक्रामक कोशिशों में भी चीन ETIM के नाम का दुरुपयोग करता है. 2002 में बिश्केक में अमेरिकी दूतावास पर हमले की साज़िश रचने के इल्ज़ाम में दो वीगरों को किर्गीज़िस्तान ने चीन के हवाले कर दिया था. जबकि अमेरिकी दूतावास पर ये हमला कभी हुआ ही नहीं. शिंजियांग में चीन के लगातार बढ़ते ज़ुल्म, वीगरों पर चीनी संस्कृति थोपने और शोषण की वजह से हज़ारों वीगरों को शिंजियांग से भागकर दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर होना पड़ा है.

 

चीन ने अपनी आर्थिक ताक़त का लाभ उठाकर पाकिस्तान, मध्य एशियाई गणराज्यों और अफ़ग़ानिस्तान समेत दुनिया के 81 देशों के साथ प्रत्यर्पण की संधियां की हैं. इन समझौतों में आतंकवाद से लड़ने के मामले में सहयोग पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है. अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा ETIM को एक आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने से चीन को पूरी दुनिया में अपने विरोध में बोलने वाले वीगरों को ख़ामोश करने का हौसला मिल गया है. चीन ने दुनिया के तमाम देशों में हिरासत में लिए गए 1500 से ज़्यादा वीगर मुसलमानों को अपने यहां प्रत्यर्पित किया है. 2017 के बाद से मुस्लिम देशों में 682 वीगरों को गिरफ़्तार किया गया है. कई देशों ने तो चीन के साथ प्रत्यर्पण संधि पर औपचारिक रूप से मुहर लगाए बग़ैर ही वीगरों को क़ैद कर लिया था.

चीन ने दुनिया के तमाम देशों में हिरासत में लिए गए 1500 से ज़्यादा वीगर मुसलमानों को अपने यहां प्रत्यर्पित किया है. 2017 के बाद से मुस्लिम देशों में 682 वीगरों को गिरफ़्तार किया गया है. कई देशों ने तो चीन के साथ प्रत्यर्पण संधि पर औपचारिक रूप से मुहर लगाए बग़ैर ही वीगरों को क़ैद कर लिया था.

चीन, आतंकवाद निरोध के नाम पर वीगर मुसलमानों के प्रत्यर्पण के लिए इंटरपोल की भी मदद लेता है. 2021 में चीन द्वारा इंटरपोल के ज़रिए जारी रेड नोटिस के बाद यिदरेसी ऐशान को मोरक्को से हिरासत में ले लिया गया था. पिछले 20 सालों के दौरान चीन ने 22 अलग अलग देशों में रह रहे वीगरों के लिए 5,530 चेतावनियां, धमकियां और गिरफ़्तारी की गुज़ारिशें जारी की हैं.

 

आतंकवाद से लड़ाई और ETIM के नाम का बेज़ा इस्तेमाल करने के अलावा, चीन विदेश में रह रहे वीगर मुसलमानों को तंग करने, उन पर नज़र रखने और अपने देश लाने के लिए अवैध तौर तरीक़े भी अपनाता रहा है. पिछले दस वर्षों के दौरान चीन ने कई देशों के साथ सुरक्षा के द्विपक्षीय समझौतों के तहत इन देशों में 100 से ज़्यादा पुलिस स्टेशन भी स्थापित किए हैं. इनमें यूरोप के इटली, रोमानिया, क्रोएशिया और सर्बिया जैसे देश भी शामिल हैं.  

वैसे तो अमेरिका ने ETIM को लेकर 2020 में अपना रुख़ बदल लिया था. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र और दूसरे देशों को भी इस ख़त्म हो चुके संगठन के प्रति अपनी नीति का नए सिरे से मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, ताकि वीगर मुसलमानों पर हो रहे सितम कुछ कम हों.


चीन ने शिंजियांग की समस्या के वास्तविक कारणों से निपटने के लिए अब तक कुछ ख़ास नहीं किया है. जबकि ये समस्या आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक है. इसके उलट चीन ने ETIM का शोर मचाकर न केवल शिंजियांग में ज़ुल्मों का सिलसिला जारी रखा है, बल्कि वो विदेश में भी इसी के नाम पर वीगरों को निशाना बना रहा है. इस रणनीति ने चीन के पास पड़ोस ही नहीं दूसरे मुस्लिम देशों में रह रहे वीगरों के विरोध के सुर भी ख़ामोश कर दिए हैं. चीन की सरकार ने अमेरिका की अगुवाई में आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग का इस्तेमाल चीन के भीतर और बाहर वीगरों की वैध आवाज़ों का दमन करने के लिए किया है. वैसे तो अमेरिका ने ETIM को लेकर 2020 में अपना रुख़ बदल लिया था. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र और दूसरे देशों को भी इस ख़त्म हो चुके संगठन के प्रति अपनी नीति का नए सिरे से मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, ताकि वीगर मुसलमानों पर हो रहे सितम कुछ कम हों.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.