Expert Speak Raisina Debates
Published on May 07, 2025 Updated 0 Hours ago

वर्ष 2025 में अमेरिका में मीज़िल्स यानी खसरे का प्रकोप यह ज़ाहिर करता है कि कैसे राजनीतिक रंग दी गई ग़लत सूचना और टीका-विरोधी प्रचार विज्ञान को कमज़ोर करते हैं, विश्वास को कम करते हैं, और राष्ट्रीय जन-स्वास्थ्य को ख़तरे में डाल देते हैं. 

चिकित्सा भ्रांतियों का राजनीतिकरण: अमेरिका में खसरे का प्रकोप बढ़ा

Image Source: Getty

इस साल जनवरी में, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में खसरे (एक पैरामिक्सोवायरस) की फिर से वापसी देखी गई. अमेरिका में लगभग 25 साल बाद खसरे की वापसी हुई है. इसके पिछले स्ट्रेन को साल 2000 में खत्म घोषित कर दिया गया था. 

वैसे तो खसरे की वापसी के बाद अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा और टीकाकरण के बुनियादी ढांचे पर एक राष्ट्रीय बहस शुरू होनी चाहिए थी. लेकिन इसके विपरीत यह ग़लत सूचनाओं को चिंताजनक रूप से बढ़ावा देने वाला मंच बन गया है और अब इस तरह के साज़िश के सिद्धांत भी फैलाए जाने लगे हैं की खसरे को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. हालांकि ये दावें वैज्ञानिक रूप से निराधार हैं, फिर भी ये सूचना का राजनीतिकरण करने की खतरनाक प्रवृत्ति और इसके फलस्वरूप, विज्ञान और संस्थानों में जन-विश्वास को जानबूझकर कम करने के चलन को उजागर करते हैं.

वैसे तो खसरे की वापसी के बाद अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा और टीकाकरण के बुनियादी ढांचे पर एक राष्ट्रीय बहस शुरू होनी चाहिए थी. लेकिन इसके विपरीत यह ग़लत सूचनाओं को चिंताजनक रूप से बढ़ावा देने वाला मंच बन गया है.

टीका के विरोध में बयानबाज़ी एक सीमित आंदोलन से बढ़कर एक ऐसा राजनैतिक पहचान बन गया है जिसे गलत सूचना के तंत्र और सोशल मीडिया के इकोचैम्बर्स से ताकत मिल रही है. ऐसे माहौल में - बेहद संक्रामक लेकिन टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों में से एक खसरा - महज़ राजनीतिक मोहरा बन कर रह गया है.

ग़लत सूचना का राजनीतिक फ़ायदे के लिए इस्तेमाल

ग़लत सूचना की इस लहर की केंद्र में रॉबर्ट एफ़ केनेडी (जूनियर) हैं. उन्हें यूएस के नए स्वास्थ्य और मानवसेवा मंत्री के पद पर तैनात किया गया है, लेकिन उन्होंने जन-स्वास्थ्य, खासकर टीकाकरण की पॉलिसी और दवा उद्योग के प्रति विवादास्पद रुख अपनाया है. उनके अभियान से विज्ञान-विरोधी बातों को वैधता मिली है, जनस्वास्थ्य के उपायों को तानाशाही मनमानी के रूप में दिखाया गया है और टीकाकरण के कार्यक्रमों के ज़रिए सरकारी हेरफेर के डर को बढ़ावा मिला है. 

रॉबर्ट एफ़ केनेडी (जूनियर) अक्सर ऐसे वैज्ञानिक विकास जैसे सिंथेटिक बायोलॉजी या सीआरआईएसपीआर (CRISPR या क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट) को लोगों पर सरकारी निगरानी या जनसंख्या नियंत्रण के बारे में डर फैलाने वाली कहानियों से जोड़ कर देखते हैं.

उन्होंने कई बार जन स्वास्थ्य की नीतियों को एक बड़ी 'बायोमेडिकल तानाशाही' के हिस्से की तरह प्रस्तुत किया है. इसके परिणामस्वरूप उनके करीबी टीका-विरोधी समर्थकों ने यह खतरनाक झूठ फैलाया है कि टेक्सास में वर्तमान खसरे का प्रकोप एक 'जैविक हथियार है, जिसे खास तौर पर एक ईसाई एनाबैप्टिस्ट समूह मेनोनाइट्स, को निशाना बनाने के लिए फैलाया गया है.

ऐसे ही आरोप एक फिल्म निर्माता मिकी विलिस ने लगाए जो अपने तथाकथित 'प्लानडेमिक' साक्षात्कार के लिए चर्चा में रहे हैं. प्लानडेमिक मई 2020 में कोविड महामारी के दौरान रिलीज़ की गई वो विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री है जिसने विज्ञान-विरोधी, टीका-विरोधी, और साजिश के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया था. इस साल अप्रैल में एक ऑनलाइन वेबिनार के दौरान विलीस ने कैनेडी जूनियर के साथ बातचीत की जिसमें उन्होंने खसरे की महामारी की उत्पत्ति और उसके प्रभाव को साजिश के घेरे में रखा. इसके साथ ही इस मौके का इस्तेमाल विलिस की कंपनी द्वारा बनाई जाने वाली वैकल्पिक दवाओं को बेचने के लिए भी किया गया.

इस वेबिनार में केनेडी जूनियर और विलिस के अलावा डॉ. रिचर्ड बार्टलेट ने भी शिरकत की जिनकी चिकित्सा संबंधी राय भी अक्सर विवादित रहती है. इन्होंने ऐसी दवाओं पर चर्चा की जिनसे खसरा ठीक हो सकता है जबकि ऐसे दावों के समर्थन में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसके अलावा उन्होंने झूठे वैज्ञानिक उपचारों पर भी चर्चा की. इनकी दवा उद्योग को लेकर विचारधारा और विटामिन-ए से खसरे को रोकने जैसी गलत सूचनाओं ने तेज़ी से जनता के भरोसे को हिला दिया है और सभी की सहमति और विज्ञान के आधार तैयार होने वाली नीति को लगभग असंभव बना दिया है.

अमेरिका के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इन सब की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि ये सब एक व्यापक टीका-विरोधी आंदोलन का हिस्सा है जहां ग़लत सूचना का इस्तेमाल राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने, मुनाफ़ा कमाने, या फिर व्यक्तिगत तौर पर मान्यता हासिल करने के लिए किया जाता है.

वैसे तो रॉबर्ट एफ कैनेडी (जूनियर) ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि एमएमआर (मीज़ल्स, मम्प्स और रूबेला) के टीके या वैक्सीन खसरे से बचने के लिए सबसे बढ़िया उपाय है, लेकिन उन्होंने जनता को व्यापक रूप से टीकाकरण कराने के लिए प्रेरित नहीं किया और कहा कि टीका लगवाना एक ‘व्यक्तिगत निर्णय’ हो सकता है. इतना ही नहीं उन्होंने टीकाकरण के संदेश को और कमजोर करते हुए यह जताया कि टीके की प्रभावशीलता हर साल लगभग 5 प्रतिशत घट जाती है लेकिन इसका उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया. इस तरह के बयानों की जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आलोचना की और इसे टीके के विरोध में खास किस्म के उग्रवादी व्यवहार' के रूप में बताया.

टेक्सास में अब तक खसरे के 600 मामले रिपोर्ट किए गए हैं और इनमें 3 बच्चों की मौत शामिल हैं.

टेक्सास में अब तक खसरे के 600 मामले रिपोर्ट किए गए हैं और इनमें 3 बच्चों की मौत शामिल हैं. विशेषज्ञों ने बताया है कि इन बच्चों की मौत सीधे बीमारी के प्रभाव से हुई है, ना कि टीके या किसी और कारण से, जो टीका-विरोधी चरमपंथी विचार वालों द्वारा फैलाया जा रहा है. केनेडी जूनियर ने रोकथाम वाले, वैकल्पिक और समग्र इलाज के प्राकृतिक तरीकों के लिए अधिक राशि मुहैया कराने की वकालत की है. उन्होंने सुझाव दिया है कि अमेरिका में सेहत की सरकारी संस्था, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ, का आधा बजट ऐसे इलाजों पर खर्च किया जाना चाहिए. लेकिन महामारी से जुड़ी गलत जानकारी ना सिर्फ़ झूठी बल्कि बहुत खतरनाक भी हो सकती है. इससे लोग टीका लगवाने से घबरा सकते हैं और कुछ ऐसे वैकल्पिक इलाजों की तरफ बढ़ सकते हैं जो जांचे-परखे नहीं गए हैं, महंगे हैं, और असरदार भी नहीं हैं. इनसे लोगों पर जान का खतरा और भी बढ़ सकता है. 

सेहत के जानकारों नें ने रॉबर्ट एफ़ केनेडी (जूनियर) के इस नज़रिए पर चिंता ज़ाहिर की है. उनका मानना है कि इससे लोगों का टीके पर भरोसा घट सकता है और ऐसी बीमारियों को काबू में लाने की कोशिशों को नुकसान पहुंच सकता है जिन्हें रोका जा सकता था. केनेडी जूनियर के आलोचक कहते हैं कि उनकी बातों में एक दिशा नहीं होती और उनकी नीतियाँ लोगों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकती हैं. 

नैतिक संचार की भूमिका

हालांकि बायो-टेक्नोलॉजी, जैव-सुरक्षा और दवाओं के विकास में सचमुच खतरा जुड़ा होता है लेकिन उन्हें खसरे के प्रकोप जैसे रोज़मर्रा की बीमारियां से जोड़ना भ्रामक और खतरनाक हो सकता है. पिछले कुछ वर्षों में ज़िम्मेदार विज्ञान संचार के महत्व पर प्रमुख चर्चाएं हुई हैं, खासकर आधुनिक बायो-टेक्नोलॉजी का विकास और कोविड 19 से जुड़ी साजिशों के बीच ऐसी चर्चाएं गरम हुई हैं. 

साल 2023 में मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कई सप्लायर्स से डीएनए के छोटे अंश खरीदें. इन सप्लायर्स में इंटरनेशनल जीन सिंथेसिस कंसोर्टियम (आईजीएससी या IGSC) के सदस्य भी शामिल थे. इन वैज्ञानिकों ने 1918 के फ्लू वायरस के जीन को दोबारा से जोड़ने में सफलता पा ली. उन्होंने दावा किया कि इससे पता चलता है कि ऐसे व्यवहारों को रोकने में इंडस्ट्री में कितनी कमी है. उन्होंने ये भी चिंता जताई कि जीन के खतरनाक कड़ियों को जोड़ना कितना आसान हो सकता है. 

आईजीएससी ने अपनी तरफ से कहा कि शोधकर्ताओं ने इंडस्ट्री की जैव सुरक्षा के प्रति प्रयासों को गलत तरीके से पेश किया है और उन्होंने वैज्ञानिक संवाद के सही संचार की अहमियत पर ज़ोर दिया. आईजीएससी की यह प्रतिक्रिया हमें यह याद दिलाती है कि विज्ञान के बारे में जैसी बात की जाती है वो खुद विज्ञान के जितना ही अहम हैं.

अमेरिका में खसरे की वापसी ना तो कोई रहस्य है ना ही कोई रची गई साजिश. इसे जन-स्वास्थ्य में विफलता के तौर पर देखा जाना चाहिए जो टीकाकरण के लगातार गिरते दर और विनाशकारी गलत सूचनाओं के अभियानों के परिणामस्वरूप देखने को मिला है. खसरे के प्रकोप को लेकर फैल रही अफवाहें और कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति पर फिर से शुरू हुई बहस यह इशारा करती हैं कि अब नीति के स्तर पर तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता आ गई है. ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो न केवल जन-स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार को बेहतर बनाएं, बल्कि चिकित्सा से जुड़ी जानकारी की नैतिकता और तथ्यपरकता को भी सुनिश्चित कर सकें.

विश्व स्तर पर ऐसी कोशिशें देखीं जा सकती हैं. जर्मनी ने कानून लागू किया है जिसके तहत स्कूल जाने वाले बच्चों का टीकाकरण आवश्यक है. वहीं ऑस्ट्रेलिया ने परिवार कल्याण से जुड़ी आर्थिक मदद को टीकाकरण से जोड़ा है. इनके अलावा इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशंस जैसे वैश्विक मानक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जन स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों और गलत सूचनाओं से निपटारा पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है.

लेकिन वैश्विक दिशानिर्देशों को अगर राष्ट्रीय स्तर पर लागू ना किया जाए तो उनका कोई असर नहीं रह जाता है. इस दिशा में भारत ने SACHET (System for Awareness, Counselling, Holistic Education, and Training), यानी जानकारी, सलाह, समग्र शिक्षा और ट्रेनिंग की परिकल्पना से जुड़ी योजना को लागू किया है. इसकी सफलता से ज़ाहिर होता है कि किस तरह डिजीटल प्रयासों से समुदाय की जानकारी और उसके आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सकता है, खासकर तब जब उसे स्थानीय स्तर पर सरकार और विशेषज्ञों के समर्थन से लागू किया जाए. 

ये समझना ज़रूर है कि टीकाकरण केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़ा फैसला नहीं, बल्कि एक नागरिक जिम्मेदारी भी है. ये ना सिर्फ़ किसी व्यक्ति को सुरक्षित रखता है, बल्कि उन लोगों का भी बचाव करता जो कम उम्र के हैं

इस तरह के प्रयासों को यूएस में भी बड़े स्तर पर लागू करना चाहिए जिसे दोनों समूहों का समर्थन हासिल हो और उसकी स्वतंत्र निगरानी की जा सके. साथ ही गलत सूचना को जनता की सेहत के लिए गंभीर चुनौती की तरह देखना चाहिए और जन-स्वास्थ्य पर इसके विपरीत असर को समझना चाहिए.

ये समझना ज़रूर है कि टीकाकरण केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़ा फैसला नहीं, बल्कि एक नागरिक जिम्मेदारी भी है. ये ना सिर्फ़ किसी व्यक्ति को सुरक्षित रखता है, बल्कि उन लोगों का भी बचाव करता जो कम उम्र के हैं, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले हैं, या अन्य चिकित्सीय कारणों से टीका नहीं लगवा सकते हैं. जानकारी की कमी की वजह से टीकाकरण से मना करना व्यक्तिगत आज़ादी नहीं बल्कि इसे सामुदायिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना माना जा सकता है. सार्वजनिक स्वास्थ्य हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक प्रतिरक्षा पर टिकी हुई है. ये एक नाज़ुक संतुलन, है जो उस वक्त टूट जाता है जब कई लोग अपने समुदाय को सुरक्षित रखने में अपनी भागीदारी नहीं रखते हैं.


श्रविष्ठा अजयकुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटेजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.