दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकारी स्कूलों के ख़राब होने की छवि को तो तोड़ा है. इन स्कूलों में आम आदमी पार्टी की सरकार ने काफ़ी पैसे लगाए, ताकि इनकी स्थिति बेहतर हो. ये काम करना उनके लिए काफ़ी आसान था. लेकिन, अभी भी दिल्ली के सरकारी स्कूलों को कई बुनियादी समस्याओं से आज़ाद कराने की ज़रूरत है.
2015 के दिल्ली विधान सभा चुनाव चुनावों में दिल्ली ने ज़बरदस्त जीत हासिल की थी. 2015 के चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के तमाम चुनावी वादों में से एक वादा बेहद अहम था. और वो था कि अगर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई, तो वो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की दशा पूरी तरह सुधार देगी. एक फ़ौरी नज़र डालें, तो पता चलता है कि लीक से अलग हट कर चलने वाली आम आदमी पार्टी ने इस महत्वपूर्ण चुनावी वादे को पूरे करने में निराश नहीं किया है.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने ‘एजुकेशन फ़र्स्ट’ जैसे नारों की मदद से राजधानी की मुर्दा शिक्षा व्यवस्था में एक नई जान फूंक दी है. ख़ास तौर से सरकारी स्कूलों में. अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र को सबसे ज़्यादा फंड आबंटित किए. मनीष सिसोदिया ही दिल्ली के शिक्षा मंत्री भी हैं. उन्होंने दिल्ली की सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए नए टीचर ट्रेनिंग कोर्स शुरू किए. और काफ़ी पैसे का निवेश करके बीमार शिक्षा व्यवस्था के ढांचे को न सिर्फ़ ढहने से रोका, बल्कि उसे नए सिरे से मज़बूत किया है. कुल मिला कर कहें तो, केजरीवाल सरकार के इन प्रयासों के नतीजे सामने दिख रहे हैं. मिसाल के तौर पर, दिल्ली सरकार द्वारा चलाए जाने वाले एक स्कूल, द्वारका स्थित राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय को देश के सभी सरकारी स्कूलों में नंबर वन की रैंकिंग दी गई है. जबकि दिल्ली के दो और सरकारी स्कूल 2019 में की गई स्कूलों की इस रैंकिंग में टॉप टेन में शामिल रहे हैं.
यहां पर हम आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा में सुधार और नए प्रयासों की एक संक्षिप्त समीक्षा करेंगे, जो आप की सरकार ने पिछले पांच वर्षों में किए हैं.
शिक्षाकेलिएज़्यादाफंडकीव्यवस्था
आम आदमी पार्टी की सरकार ने शिक्षा और सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने को अपने प्रशासनिक फ्रेमवर्क की सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाया है. 2015 के बाद से दी, आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय सुधारों की शुरुआत के लिए अलग से रखा. 2015-16 में आप की सरकार ने स्कूल और उच्च शिक्षा के लिए 6208 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया था. 2016-17 में केजरीवाल सरकार ने शिक्षा के लिए इस सालाना बजट को और बढ़ा कर 8642 करोड़ रुपए कर दिया. 2017-18 में केजरीवाल सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में 9888 करोड़ रुपए ख़र्च किए. और 2018-19 में शिक्षा सेक्टर का फंड बढ़ कर 11,201 करोड़ रुपए (पुन: अनुमानित) कर दिया गया. 2019-20 के वित्तीय वर्ष में केजरीवाल सरकार ने शिक्षा का बजट और भी बढ़ा कर पंद्रह हज़ार 133 करोड़ रुपए (प्रस्तावित) कर दिया.
केजरीवाल सरकार ने एजुकेशन सेक्टर के इस बढ़े हुए बजट का इस्तेमाल बुनियादी चुनौतियों के निपटारे के लिए किया है. जैसे कि स्कूली शिक्षा के बीमार ढांचे को दुरुस्त करने के लिए, अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था सुधारने के लिए और छात्रों के सीखने के लिए नए कार्यक्रम लागू करने में. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जब 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार सत्ता में आई थी, तो दिल्ली के ज़्यादातर सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद ख़राब थी. ज़्यादा से ज़्यादा अभिभावक, यहां तक कि ग़रीब तबक़ों से ताल्लुक़ रखने वाले लोग भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए निजी स्कूलों में भेज रहे थे. और इसके लिए उन्हें भारी रक़म ख़र्च करनी पड़ रही थी. आम आदमी पार्टी सरकार ने शुरुआत में इसी चुनौती से निपटने में अपनी ताक़त लगाई. ताकि दिखने वाला परिवर्तन लाया जा सके. रोड्स स्कॉलर आतिशी मारलेना, जो शिक्षा और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहकार के तौर पर काम कर रही थीं. उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. केजरीवाल सरकार ने इस बारे में बड़ी तेज़ी से कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए. उदाहरण के तौर पर, शिक्षा के क्षेत्र को ज़्यादा फंड देने के साथ साथ शिक्षा निदेशालय ने आधुनिक सुविधाओं वाले 21 नए स्कूलों का निर्माण किया. और इसी दौरान आठ हज़ार नई कक्षाओं को भी पुराने स्कूलों में जोड़ा गया है. सरकारी स्कूलों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से फंड वित्तीय सहायता प्रदान की गई. ताकि वो नई प्रयोगशालाएं और शिक्षा के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था कर सकें. स्मार्ट क्लासरूम बनाए गए. और ई-मॉड्यूल्स की मदद से पढ़ाई करना दिलचस्प बनाया गया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि छात्रों के लिए पढ़ाई करने को और दिलचस्प और आकर्षक बनाने के लिए केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों में हैपीनेस करीकुलम यानी ख़ुशियों का पाठ्यक्रम भी जोड़ा. इस दिशा में सरकार ने क्लासरूम में दी जाने वाली शिक्षा में कई नई व्यवस्थाएं भी जोड़ीं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्कूलों में तीन स्तरीय पुस्तकालय व्यवस्था का भी निर्माण किया. साथ ही साथ सभी सरकारी स्कूलों में अब पीने के पानी की काम करने वाली व्यवस्था है. और लड़कों व लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय हैं. साथ ही सभी स्कूलों को बिजली के कनेक्शन मुहैया कराए गए हैं. आज दिल्ली के 88.82 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधाएं हैं.
दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में आम आदमी पार्टी की सरकार ने जो एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव किया है, वो है अध्यापकों के प्रशिक्षण के क्षेत्र में. दिल्ली सरकार ने 2017 में अपनी तरह के बिल्कुल ही अलग टीचर्स ट्रेनिंग कार्यक्रम की शुरुआत पूरे राज्य में की है. राज्य शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने दिल्ली के 36 हज़ार से ज़्यादा सरकारी अध्यापकों की ट्रेनिंग के लिए बुनियादी ढांचे के विकास का विशाल कार्यक्रम विकसित किया है. इनमें से 26 हज़ार प्रशिक्षित ग्रेजुएट टीचर (TGT) हैं और दस हज़ार पोस्ट ग्रेजुएट टीचर्स (PGT) हैं. ये सभी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. क्लासरूम में पढ़ाने में लाए गए नए बदलावों को देखते हुए, समूह पर आधारित प्रशिक्षण व्यवस्था अध्यापकों को ट्रेनिंग देने में भी लागू की गई है. ताकि, ये अध्यापक जो नई तकनीक सीखें, वो उनके माध्यम से कक्षाओं और छात्रों तक भी पहुंच सके.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को और सुधारने के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार ने टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम की भी शुरुआत की. ताकि अध्यापकों के तालीम देने की क्षमता का विकास किया जा सके. अध्यापकों के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मक़सद ये था कि टीचर्स को अपने विषय की नए दौर की जानकारियों से वाबस्ता रखा जा सके. 2018 में 200 अध्यापकों को दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षकों यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एजुकेशन, से ट्रेनिंग दिलाई गई. प्रशिक्षण का अपना कोर्स पूरा करने के बाद इन 200 अध्यापकों को ‘मेंटर टीचर’ का दर्जा दिया गया. इन प्रशिक्षित सरकारी अध्यापकों को पांच या छह स्कूल दिए गए. जहां पर वो नियमित रूप से जा कर अध्यापकों के पठन-पाठन की बारीक़ियां देखते थे. और फिर मौक़े पर ही अन्य अध्यापकों को प्रशिक्षित करते थे.
आप की सरकार ने 2016 में एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘चुनौती’ की शुरुआत की. इसका मक़सद था कि छात्रों के स्कूल छोड़ने की तादाद कम की जाए. और सबसे कमज़ोर छात्रों पर ज़ोर देकर उनकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया
सार्वजनिक शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के अन्य उपायों में आम आदमी पार्टी की सरकार ने कई शृंखलाबद्ध छोटे मगर काम के क़दम भी उठाए. ताकि छात्रों के पठन-पाठन को बेहतर बनाया जा सके. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों पर हुए तमाम सर्वे पहले जहां ये बताते थे कि वो अलग-अलग कक्षाओं और उम्र के अलग-अलग स्तर पर अपने विषय की बुनियादी अवधारणाओं को ही नहीं समझते थे. और न ही उन्हें पढ़ पाते थे. वहीं, आप की सरकार ने 2016 में एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘चुनौती’ की शुरुआत की. इसका मक़सद था कि छात्रों के स्कूल छोड़ने की तादाद कम की जाए. और सबसे कमज़ोर छात्रों पर ज़ोर देकर उनकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जाए. चुनौती का मुख्य लक्ष्य ये था कि अपर प्राइमरी स्कूल के सभी छात्र पढ़ और लिख सकें और बुनियादी गणित के सवाल हल कर सकें. ऐसा बताया जाता है कि चुनौती प्रोजेक्ट ने कक्षा नौवीं तक के छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता और उनके उत्तीर्ण होने के प्रतिशत में काफ़ी सुधार किया है. इसी तरह, कक्षा ग्यारह के नतीजे भी पास होने के प्रतिशत के मामले में काफ़ी प्रभावित करने वाले रहे हैं. जहां 2017-18 में छात्रों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 71 रहा था, वहीं, 2018-19 में ये बढ़ कर 80 प्रतिशत हो गया. प्रजा फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2015 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से, कक्षा 12 के नतीजों में भी लगातार सुधार आता दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर, आम आदमी पार्टी के शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के प्रयासों की वजह से आज स्कूली शिक्षा, प्रशासनिक व्यवस्था के केंद्र में आ गई है.
बड़ीचुनौतियां
हालांकि, आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के स्तर में उल्लेखनीय सुधार किया है. लेकिन, ये जीत अभी भी अधूरी है. केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों की बनी-बनाई छवि को तोड़ने में तो कामयाबी हासिल की है. इसके लिए ज़्यादा फंड की व्यवस्था करके कुछ ऐसे लक्ष्य हासिल किए हैं, जिन्हें प्राप्त करना आसान था. लेकिन, अभी भी दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कई बुनियादी समस्याओं का निदान किया जाना बाक़ी है. उदाहरण के तौर पर, अपने तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार अपने स्कूलों में नए छात्रों का पंजीकरण घटने से रोकने में नाकाम रही है. मार्च 2019 में प्रकाशित, प्रजा फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट (स्टेट ऑफ़ पब्लिक स्कूल एजुकेशन इन दिल्ली) के मुताबिक़, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छात्रों का पंजीकरण 2013-14 से 2017-18 के बीच आठ प्रतिशत घट गया है. कक्षा एक के लिए पंजीकरण 2017-18 में 4.8 प्रतिशत घट गया. प्रजा फ़ाउंडेशन के एक और सर्वे से पता चलता है कि 2014-15 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कक्षा नौ में दाख़िला लेने वाले दो लाख, 59 हज़ार 705 छात्रों में से 56 प्रतिशत 2017-18 में बारहवीं कक्षा तक नहीं पहुंच सके थे. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सरकारी स्कूल छात्रों को अपने साथ जोड़े रखने में किस तरह नाकाम हो रहे हैं. दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्रालय की अपनी वेबसाइट edudel के आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में 55 प्रतिशत छात्र कक्षा दस में नहीं गए. इन छात्रों ने 2016-17 में नौवीं कक्षा में दाख़िला लिया था. इसका मतलब ये होता है कि नौवीं कक्षा में बड़ी तादाद में छात्र फेल हुए थे.
इसी तरह, अपने तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली के सरकारी स्कूल दसवीं कक्षा के बोर्ड के इम्तिहान के नतीजे सुधारने में नाकाम रहे हैं. अकादमिक सत्र 2017-18 में, केवल 68.95 प्रतिशत छात्र ही बेहद महत्वपूर्ण दसवीं के बोर्ड की परीक्षा को पास कर सके. जबकि, इसी अकादमिक सत्र के दौरान केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में दसवीं के 97.03 प्रतिशत छात्र दसवीं का बोर्ड का इम्तिहान पास करने में सफल रहे थे. प्रजा फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट आगे बताती है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों के छात्रों के कॉन्टीन्यूअस ऐंड कॉम्प्रिहेंसिव इवैल्युएशन (CCE) के नतीजे बताते हैं कि इसमें कामयाब होने वाले छात्रों की अधिकतम संख्या छठीं, सातवीं और आठवीं कक्षा में गिरती जा रही है और वो ग्रेड सी के भी नीचे यानी ये क्रमश: 78, 80 और 78 प्रतिशत रह जाती है. इन नतीजों से साफ़ है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छात्रों की शिक्षा के स्तर में कोई ख़ास सुधार नहीं आया है. जो नौवीं कक्षा के ज़्यादातर छात्रों के इम्तिहान पास करके दसवीं कक्षा तक न पहुंच पाने के रूप में परिलक्षित होता है.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता महज़ 57 प्रतिशत नियमित अध्यापकों के रूप में है. जबकि बाक़ी के अध्यापक गेस्ट टीचर के तौर पर काम करते हैं. अध्यापकों के स्वीकृत पदों और भरे हुए पदों के बीच काफ़ी लंबा फ़ासला साफ़ दिखता है
इसी तरह, एक और रिपोर्ट ये इशारा करती है, कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता महज़ 57 प्रतिशत नियमित अध्यापकों के रूप में है. जबकि बाक़ी के अध्यापक गेस्ट टीचर के तौर पर काम करते हैं. अध्यापकों के स्वीकृत पदों और भरे हुए पदों के बीच काफ़ी लंबा फ़ासला साफ़ दिखता है. ये बात अध्यापकों और नॉन टीचिंग स्टाफ़ पर बराबरी से लागू होती है. जनता को सूचना के अधिकार की अर्ज़ियों के तहत मुहैया कराई गई जानकारी के अनुसार, ये कहा जा सकता है कि दिल्ली के 1029 सरकारी स्कूलों में से केवल 301 स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई होती है.
इन कमियों के बावजूद, आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने पहले पांच साल के पूर्ण कार्यकाल में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सार्वजनिक शिक्षा में उल्लेखनीय परिवर्तन लाने में सफल रही है. दिल्ली की शिक्षा प्रणाली को अन्य राज्य भी अपना रहे हैं. सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में कई आमूल-चूल परिवर्तन किए हैं. और अपने पहले कार्यकाल में केजरीवाल सरकार शिक्षा के क्षेत्र की कई बड़ी चुनौतियों से निपटने में सफल रही है. फिर भी, अभी दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कई बड़ी चुनौतियों का निपटारा होना बाक़ी है. हालांकि, आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को सुधारने में सफलता हासिल की है. लेकिन, केजरीवाल सरकार स्थायी शिक्षकों की नियुक्तियां करने में असफल रही है. आप की सरकार ने स्कूली शिक्षा में नए कार्यक्रम तो लागू किए हैं. फिर भी नए छात्रों के दाख़िले की तादाद घट रही है. कुल मिलाकर कहें तो, आम आदमी पार्टी का ये दावा कि उसने दिल्ली की सरकारी शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव कर दिए हैं, अधूरा है. अभी इस दिशा में काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Niranjan Sahoo, PhD, is a Senior Fellow with ORF’s Governance and Politics Initiative. With years of expertise in governance and public policy, he now anchors ...