Author : Titli Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Sep 26, 2023 Updated 0 Hours ago

सुरक्षा से लेकर व्यापार तक ज़्यादातर मामलों में चीन का दबदबा अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया ट्राइलेटरल के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है.

अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया के बीच कैंप डेविड बैठक: अहमियत और चुनौतियां

क्या उत्तर पूर्व एशिया के सुरक्षा परिदृश्य को कैंप डेविड (अमेरिका राष्ट्रपति का दूसरा आधिकारिक आवास) नए सिरे से निर्धारित करेगा? इसमें कोई संदेह नहीं है कि कैंप डेविड उत्तर पूर्व एशिया के रणनीतिक वातावरण में एक निर्णायक पल के बारे में सबसे अहम सच्चाई को व्यक्त करता है. फिर भी, एक बड़ा सवाल जो है कि अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया त्रिपक्षीय समूह नियम-क़ानून पर आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था को बरक़रार रखने में कितना कारगर सिद्ध होगा? साथ ही राष्ट्रपति बाइडेन के 'लोकतंत्र एवं तानाशाही के बीच मुक़ाबले' में अपनी जीत दर्ज़ करने में यह कितना क़ामयाब होगा?

अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया ने इंडो-पैसिफिक डायलॉग की स्थापना करने समेत उच्च स्तरीय नेतृत्व पर अपने इस त्रिपक्षीय को संस्थागत बनाने का काम किया है.

ऐसी परिस्थितियों में जब बीजिंग द्वारा ईस्ट एशिया में अमेरिका की अगुवाई वाले क्षेत्रीय व्यवस्था को चोट पहुंचाई जा रही है और इस क्षेत्र में चीन-रूस-उत्तर कोरिया गठजोड़ अपना दबदबा क़ायम कर रहा है, तब वाशिंगटन की ओर से इसको लेकर त्वरित प्रतिक्रिया जताई गई है. अमेरिका ने 18 अगस्त को अपने एशियन अलायंस नेटवर्क को और अधिक प्रभावी बनाकर अपने हितों के मुताबिक़ रणनीतिक बढ़त बनाए रखने के अपने दृढ़ इरादों को ज़ाहिर कर दिया है. अमेरिका के लिए यह कोई नई बात नहीं हैं, वर्ष 1969 के निक्सन-सातो कोरिया क्लॉज के माध्यम से भी वाशिंगटन की एक सशक्त त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग की इच्छा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया ने इंडो-पैसिफिक डायलॉग की स्थापना करने समेत उच्च स्तरीय नेतृत्व पर अपने इस त्रिपक्षीय को संस्थागत बनाने का काम किया है. हालांकि, इस ट्राइलेटरल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह घरेलू राजनीति, ख़ास तौर पर वाशिंगटन के दो प्रमुख पूर्वी एशियाई सहयोगियों के बीच अनसुलझे ऐतिहासिक मसलों एवं वहां की घरेलू राजनीति के प्रति यह कितना नरम रुख अपनाता है.

अमेरिका-कोरिया-जापान संबंध

उल्लेखनीय है कि जापान और दक्षिण कोरिया एक दूसरे की उपयोगिता और महत्व को अच्छे से पहचानते हैं और पारस्परिक प्रगाढ़ संबंधों को तवज्जो भी देते हैं. क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर जापान की जो 2022 नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी  है (NSS) उसमें सियोल को एक 'अत्यधिक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश' का दर्ज़ा दिया गया है. इसी प्रकार से दक्षिण कोरिया की 2023 नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी  में क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर टोक्यो के साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता जताई गई है. देखा जाए तो यह गतिविधियां 'कोरिया-जापान संबंधों को सहज बनाने' और आर्थिक एवं सुरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की गति को और तेज़ करने के इरादों को प्रकट करती हैं. दक्षिण कोरिया में सरकार बदलने के बाद से टोक्यो और सियोल के बीच हाई लेवल की कूटनीति देखने को मिल रही है. दोनों ही देशों ने जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन  एग्रीमेंट (GSOMIA) के अंतर्गत मिलिट्री इंटेलीजेंस साझा करने की प्रक्रिया को पूरी तरह रूप से बहाल किया है. इसके साथ ही जापान द्वारा अपने पसंदीदा निर्यात गंतव्य वाले देशों की सूची में दक्षिण कोरिया फिर से शामिल किया गया है एवं निर्यात नियंत्रण पर नीतिगत चर्चा-परिचर्चा को आगे बढ़ाया गया है. दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉर भी अब थम रहा है. इतना सब होने के बावज़ूद दक्षिण कोरिया की घरेलू राजनीतिक में, ख़ास तौर पर प्रगतिशील विचारधारा वाले धड़े में जापान को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई है. इसी तरह, जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर गुटबाज़ी वाली राजनीति को संतुलित करना, विशेष रूप से कंजरवेटिव गुट, को साधना, प्रधानमंत्री किशिदा के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकता है और उनकी कोशिशों में रुकावटें ला सकता है.

चीन ने वाशिंगटन पर AUKUS, अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया तिकड़ी और क्वाड जैसे गुटों के साथ शीत युद्ध वाली मानसिकता को प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया गया है.

इस बीच, यूएस-जापान-दक्षिण कोरिया ट्राइलेटरल ने निश्चित रूप से कैंप डेविड के स्टेटमेंट में ताइवान को लेकर कही गई बातों के ज़रिए बीजिंग की दुखती रग को दबा दिया है. यह चीन द्वारा की गई आलोचना से भी साफ हो जाता है. चीन ने वाशिंगटन पर AUKUS, अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया तिकड़ी और क्वाड जैसे गुटों के साथ शीत युद्ध वाली मानसिकता को प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया गया है. जबकि ऐसा कहा जाता है कि चीन रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव  इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) और कॉम्प्रिहेंसिव  एंड प्रोग्रेसिव  एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) के साथ अपने जुड़ाव और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाने में जुटा है.

जहां तक अमेरिका की बात है तो यूएस की अक्टूबर 2022 की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी  (NSS) में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि ‘बीजिंग 'इंटरनेशनल ऑर्डर यानी वैश्विक व्यवस्था को नए सिरे से निर्धारित करने की मंशा के साथ आगे बढ़ रहा है, साथ ही इस लक्ष्य को पाने के लिए चीन तेज़ी से आर्थिक, कूटनीतिक, सैन्य और तकनीक़ी ताक़त के तौर पर हर कोशिश कर रहा है और इस लिहाज़ से वो अमेरिका का एकमात्र प्रतिस्पर्धी' है. इसी प्रकार से जापान की दिसंबर 2022 NSS में चीन को टोक्यो के लिए 'असाधारण और सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती' बताया गया है. जापान द्वारा जिस प्रकार के चीन के इर्द-गिर्द बनने वाली वैश्विक व्यवस्था की किसी भी संभावना को पूरी तरह से ख़ारिज़ किया गया है, देखा जाए तो उसकी इस रणनीति के पीछे कहीं न कहीं युद्ध के बाद अमेरिका के साथ उसके मज़बूत संबंध ही हैं. नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी  को एक ओर जहां ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण कोरिया, यूरोप, ASEAN और NATO समेत विभिन्न सहयोगियों एवं एक समान विचारधारा वाले देशों के बीच एक 'बहुस्तरीय नेटवर्क' के साथ ताक़त मिलती है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया और अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया जैसे त्रिपक्षीय फ्रेमवर्क्स का भी पूरा लाभ मिलता है.

जापान ने प्रधानमंत्री किशिदा ने कुशलतापूर्वक इस नैरेटिव को गढ़ने में सफलता हासिल की है कि 'आज यूक्रेन है, कल पूर्वी एशिया हो सकता है' (ताइवान और दक्षिण एवं पूर्वी चीन सागर जैसे मुद्दों को देखते हुए). इसके साथ ही प्रधानमंत्री किशिदा सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण यूरोप एवं भारत-प्रशांत क्षेत्र को भी एक साथ लाने में क़ामयाब रहे हैं. ज़ाहिर है कि जापान पूर्वी एशियाई सुरक्षा की दृष्टि से सबसे आगे का देश है, इसलिए उसने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को दोबारा तैयार किया है. उसकी इस रणनीति में जवाबी हमले की क्षमता हासिल करना, रक्षा पर होने वाले ख़र्च को दोगुना करते हुए जीडीपी के 2 प्रतिशत तक पहुंचाना और आर्थिक सुरक्षा से जुड़े विभिन्न मसलों को मुख्यधारा में लाना शामिल है. एक प्रमुख रणनीतिक किरदार के तौर पर टोक्यो की यह सभी गतिविधियां इंडो-पैसिफिक में पावर बैलेंस को उल्लेखनीय रूप से निर्धारित करेंगी.

इस रणनीति में जवाबी हमले की क्षमता हासिल करना, रक्षा पर होने वाले ख़र्च को दोगुना करते हुए जीडीपी के 2 प्रतिशत तक पहुंचाना और आर्थिक सुरक्षा से जुड़े विभिन्न मसलों को मुख्यधारा में लाना शामिल है.

अगर दक्षिण कोरिया पर नज़र डालें तो उसकी 2023 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में सुरक्षा के दृष्टिकोण से पड़ोसी देश उत्तर कोरिया सर्वोच्च प्राथमिकता है. दक्षिण कोरिया के भीतर चीन कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. जिस प्रकार से सियोल की महत्वाकांक्षा  वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख और निर्णायक देश बनने की है, ऐसे में उसके जो भी लक्ष्य हैं, वे अमेरिका के साथ मेल खाते हैं. इसकी वजह यह है कि दक्षिण कोरिया ‘स्वतंत्रता, मानवाधिकार और क़ानून के शासन जैसे व्यापक और सार्वभौमिक मूल्यों के संरक्षण को लेकर और इन्हें बरक़रार रखने के लिए वैश्विक समुदाय के साथ हाथ मिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, ज़ाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था नियमों और सिद्धांतों पर आधारित है.’ दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल की जो राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति है, उसमें बीजिंग के साथ 'पारस्परिक सम्मान और बराबरी के आधार पर बनाए गए स्वस्थ एवं ज़्यादा परिपक्व संबंध' विकसित करने की वक़ालत की गई है. इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) को तैनात किया जाना राष्ट्री सुरक्षा से जुड़ा मामला है. राष्ट्रपति यून ने 'थ्री नोज़' (Three Noes) को मानने से भी इनकार कर दिया है, ज़ाहिर है कि इस पर वर्ष 2017 में बीजिंग ने दक्षिण कोरिया की पिछली मून जे-इन सरकार के साथ समझौता किया था. इस समझौते में जो बातें शामिल थीं, उनमें (A) कोई अतिरिक्त THAAD प्रणाली लागू नहीं करना (B) अमेरिकी मिसाइल डिफेंस नेटवर्क में भागीदारी नहीं करना और (C) वाशिंगटन व टोक्यो के साथ त्रिपक्षीय सैन्य गठबंधन नहीं बनाने का उल्लेख किया गया था. यह नया ट्राइलेटरल इस थ्री नोज़ समझौते और इसके प्रावधानों को दरकिनार करता है और उसे कोई तवज्जो नहीं देता है.

दक्षिण कोरिया की यून सरकार को यह अच्छी तरह से मालूम  है कि चीन के सहयोग से उत्तर कोरिया परमाणु गतिविधियां बढ़ा रहा है, साथ ही साथ उसे चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता के बारे में भी पता है. दक्षिण कोरिया से समक्ष यह व्यापक चुनौती है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका मुक़ाबला करने के लिए यून प्रशासन एक ओर वाशिंगटन के साथ अपने संबंधों को सशक्त कर रहा है, वहीं दूसरी ओर जापान को लेकर अपनी नीति पर नए सिरे से विचार कर रहा है और उसमें बदलाव कर रहा है. बीजिंग की सियोल के ख़िलाफ़ आर्थिक दख़लंदाज़ी ने राष्ट्रपति यून को वाशिंगटन और टोक्यो के नज़दीक जाने पर मज़बूर किया है. दक्षिण कोरिया में चीन की दख़ल देने वाली गतिविधियां, जो वर्ष 2015 में 37 प्रतिशत थीं, वो वर्ष 2023 में बढ़कर 77 प्रतिशत हो गई हैं. दक्षिण कोरिया ने वाशिंगटन और टोक्यो के साथ अपने त्रिपक्षीय सैन्य सहयोग को प्रगाढ़ किया है. उदाहरण के लिए अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच इस बढ़ते त्रिपक्षीय सैन्य सहयोग को एजिस रडार  प्रणाली से लैस डेस्ट्रॉयर्स  के संयुक्त नेवल मिसाइल डिफेंस अभ्यासके ज़रिए समझा जा सकता है. इस सैन्य अभ्यास को उत्तर कोरिया की ओर से मिसाइल हमलों के ख़तरों का मुक़ाबला करने के मकसद से किया गया था. इसी प्रकार से जुलाई के महीने में हवाई में तीनों देशों के सैन्य प्रमुखों के बीच त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की गई थी.

चीन का व्यापारिक महत्व

वैश्विक स्तर पर आपूर्ति श्रृंखलाओं का बहुत अधिक महत्व है, यही वजह है कि हाई-टेक सप्लाई चेन्स के समक्ष आने वाले ख़तरों को कम से कम करना भी शक्ति संतुलन को कहीं न कहीं निर्धारित कर रहा है. यही वजह है कि तीनों देश, यानी अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में शामिल हो गए हैं, साथ ही अमेरिका द्वारा चिप4 गठबंधन (Chip4 alliance) को 'डेमोक्रेटिक सेमिकंडकर सप्लाई चेन' के तौर पर आगे बढ़ाया गया है. कैंप डेविड में, नेताओं द्वारा ट्राइलेटरल इकोनॉमिक सिक्योरिटी डायलॉग के महत्व को रेखांकित किया गया है, साथ ही आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन को मुख्यधारा में लाने, ख़ास तौर पर सेमीकंडक्टर  और बैटरियों की आपूर्ति श्रृंखला के महत्व पर ज़ोर दिया गया है. इतना ही नहीं प्रौद्योगिकी की सुरक्षा और विभिन्न मापदंडों पर भी पूरा ध्यान दिया गया है. उल्लेखनीय है कि इस ट्राइलेटरल ने प्रयोग के तौर पर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की शुरुआत की है, ताकि भविष्य में आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लेकर सूचना के साझाकरण एवं नीतिगत समन्वय को सशक्त किया जा सके, साथ ही आर्थिक दिक़्क़तों को पहले से बनाई गई नीतियों के माध्यम से दूर किया जा सके. अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों पर ग़लत और गैरक़ानूनी तरीक़े से कब्ज़ा करने और उनके उपयोग में बाधा उत्पन्न करने से रोकने के लिए यह तीनों देश यूएस डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी स्ट्राइक फोर्स (US Disruptive Technology Strike Force) एवं जापान और दक्षिण कोरिया की इसी तरह की प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेंगे.

वैश्विक स्तर पर होने वाली सेमीकंडक्टर की कुल बिक्री का लगभग एक तिहाई चीन से आता है. चिप निर्माण क्षमता में चीन ने दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाद जापान को भी पीछे छोड़ दिया है.

नीतियां निर्धारित करने वालों के लिए सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में स्थायित्व को बरक़रार रखना सबसे मुश्किल चुनौती बनता जा रहा है. इसकी वजह यह है कि कथित तौर पर वैश्विक स्तर पर सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं पर लगाम लगाने के लिए वाशिंगटन ताइवान और कोरिया के चिप निर्माताओं के लिए निर्यात पर दी जाने वाली छूट को आगे बढ़ा रहा है. सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, एसके हाइनिक्स (SK Hynix) और TSMC सहित कई प्रमुख कंपनियों ने इसको लेकर अमेरिका के सामने अपना पक्ष रखा है, क्योंकि इन कंपनियों के प्रमुख उत्पादन केंद्र चीन में स्थापित हैं. एसके हाइनिक्स कंपनी द्वारा जितना DRAM उत्पादन किया जाता है, उसका क़रीब 40 प्रतिशत प्रोडक्शन चीन स्थित यूनिट में होता है. चिप उत्पादन इकाइयों और इससे जुड़े पूरे इकोसिस्टम को चीन से दूर ले जाने में कुछ समय लगेगा. वैश्विक स्तर पर होने वाली सेमीकंडक्टर की कुल बिक्री का लगभग एक तिहाई चीन से आता है. चिप निर्माण क्षमता में चीन ने दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाद जापान को भी पीछे छोड़ दिया है. इसके अतिरिक्त, एक सच्चाई यह भी है कि चीन न केवल जापान एवं दक्षिण कोरिया और यहां तक कि ताइवान तक का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, बल्कि अमेरिका का भी सबसे बड़ा आयातक है.

आगे क्या

इस सबके बीच यह प्रायद्वीप, महाशक्तियों के लिए ज़बरदस्त होड़ का मैदान बना हुआ है. इतना ही नहीं उत्तर पूर्व क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए परमाणु निरस्त्रीकरण एक सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उभरा है. ज़ाहिर है कि प्योंगयांग ने कोरियाई प्रायद्वीप के लिए 'गंभीर ख़तरा' पैदा करने का काम किया है. ऐसे में अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया ट्राइलेटरल का मकसद प्योंगयांग द्वारा किसी मिसाइल  हमले की स्थिति में रियल टाइम मिसाइल वार्निंग डेटा को साझा करने की शुरुआत करना है. ये तीनों देश उत्तर कोरिया की तरफ से पैदा होने वाले परमाणु एवं मिसाइल ख़तरों का सामना करने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा सहयोग को भी मज़बूत करना चाहते हैं. इन तीनों देशों द्वारा अगस्त के महीने में मिसाइल वार्निंग डेटा के रियल टाइम साझाकरण के लिए समुद्री बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस वार्निंग टेस्ट किया गया था. इस सभी मुद्दों के अलावा साइबर सिक्योरिटी का मसला भी तेज़ी से उभर रहा है और इस ट्राइलेटरल ने उत्तर कोरिया के साइबर ख़तरों का समाधान तलाशने के लिए एक वर्किंग ग्रुप की स्थापना की है.

ऐसे में जब विभिन्न देशों के बीच भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के लेकर मची होड़ उत्तर पूर्व एशियाई सुरक्षा वातावरण में प्रमुख हितधारकों की रणनीतिक पसंद को निर्धारित करने का काम हैं, अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया ट्राइलेटरल का भविष्य दो बातों पर निर्भर करेगा: पहला, अमेरिका में अगले साल होने वाले चुनाव के दौरान प्रमुख दलों के शीर्ष नेताओं द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा में इन गठबंधनों को कितनी अहमियत दी जाती है. और दूसरा, क्या घरेलू स्तर पर होने वाले तमाम उतार-चढ़ाव, जैसे कि युद्ध के समय के भावनात्मक एवं संवेदनशील मुद्दों पर बहस या फुकुशिमा जल को छोड़ने पर मचे कोहराम के बावज़ूद टोक्यो और सियोल के बीच यह सहयोग क़ायम रहेगा?


तितली बसु जवाहरलाल  नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.