भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के न्योते पर फिलीपींस के विदेश सचिव एनरिक मनालो चार दिन के दौरे पर 27 जून को भारत पहुंचे. दोनों ने द्विपक्षीय सहयोग पर फिलीपींस-भारत साझा आयोग की अपनी पांचवीं बैठक की. इसके अलावा दिल्ली आने के बाद मनालो भारत के विदेश मामलों से जुड़े विशेष संस्थानों जैसे कि विश्व मामलों की भारतीय परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स यानी ICWA) और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के साथ भी जुड़े. वैसे तो फिलीपींस के विदेश सचिव के दौरे का मकसद फिलीपींस-भारत द्विपक्षीय साझेदारी की स्थिति की समीक्षा और उसे बढ़ाना था लेकिन ये यात्रा बढ़ते क्षेत्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में भी हुई.
फिलीपींस-भारत संबंध इंडो-पैसिफिक की स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व के तौर पर काम करता है. दोनों लोकतांत्रिक देश प्रादेशिक रक्षा और समुद्री सुरक्षा की दिशा में क्षमता मजबूत करने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए भी एक साथ हैं.
ऐसा क्षेत्र जो तेजी से समान विचार पर आधारित सहयोग, साझा हितों और एक जैसी चिंताओं से जाना जा रहा है, वहां फिलीपींस-भारत संबंध इंडो-पैसिफिक की स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व के तौर पर काम करता है. दोनों लोकतांत्रिक देश प्रादेशिक रक्षा और समुद्री सुरक्षा की दिशा में क्षमता मजबूत करने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए भी एक साथ हैं. लेकिन 21वीं शताब्दी की शुरुआत के समय से लगभग पूरे 15 साल के दौरान फिलीपींस और भारत के बीच संबंध अच्छे सामरिक माहौल के बावजूद ज्यादा-से-ज्यादा सौहार्दपूर्ण ही बने रहे.
हालांकि समस्या के केंद्र में घरेलू स्तर पर निर्णय लेने में ध्यान की कमी थी. शीत युद्ध खत्म होने के बाद पहले दो दशकों में भारत के द्वारा अपनी बढ़ती भौतिक क्षमता को मजबूत विदेश नीति में बदलने की हैसियत सीमित थी लेकिन इसके बावजूद उसने दक्षिण-पूर्व एशिया के पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की इच्छा को दिखाने के लिए कोशिश की. लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में फिलीपींस इस समय के दौरान अपने नजदीकी पड़ोसियों जैसे कि वियतनाम, सिंगापुर, म्यांमार और इंडोनेशिया के विपरीत भारत के साथ करीबी सामरिक संबंधों की स्थापना करने के विचार को महत्वपूर्ण रूप से अमल में लाने में नाकाम रहा. इसका आंशिक कारण 2001 से 2016 के बीच फिलीपींस के नेतृत्व के बारे में घरेलू सोच हो सकती है. इस दौरान फिलीपींस की सरकार ने पारंपरिक और तात्कालिक संबंधों के आगे सामरिक साझेदारी के विस्तार पर जोर देने से परहेज किया.
भारत फिलीपींस के बढ़ते संबंध
लेकिन 2016 से फिलीपींस और भारत के बीच संबंधों को काफी बढ़ावा मिला है. इसकी वजह पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते के द्वारा फिलीपींस के सामरिक साझेदारों के विस्तार को प्राथमिकता, खास तौर पर सुरक्षा के क्षेत्र में, देने की इच्छा थी. ये घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया में रिश्तों को बेहतर करने की कोशिश के साथ काफी मिलता-जुलता था. इस समय के दौरान कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां देखने को मिलीं जैसे कि दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा नियमित तौर पर उच्च-स्तरीय यात्रा, 2019 में पहली बार अमेरिका और जापान को शामिल करके दक्षिण चीन सागर में क्वॉड्रिलैटरल (चार देशों का) साझा नौसेनिक अभ्यास और 2022 में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की बिक्री. इस अवधि के दौरान ही भारत ने 2017 में दिल दहलाने वाले मरावी संकट के दौरान फिलीपींस को 5,00,000 अमेरिकी डॉलर की मदद मुहैया कराई. ये पहला मौका था जब भारत ने किसी देश को आतंकवाद के खिलाफ अभियान के लिए सहायता मुहैया कराई थी. इसके अलावा 2020 में फिलीपींस की नौसेना के फ्लैग ऑफिसर इन कमांड वाइस एडमिरल जियोवन्नी कार्लो बकोर्डो ने इस बात पर प्रकाश डाला कि “समुद्र को सेफ और हर किसी के लिए ज्यादा सुरक्षित” रखने के लिए भारत के साथ नौसैनिक सहयोग का विस्तार कैसे महत्वपूर्ण है.
इस अवधि के दौरान फिलीपींस और भारत के बीच द्विपक्षीय साझेदारी के लिए नई शुरुआत देखी गई और दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ साझेदारी की कीमत को स्वीकार किया. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि फिलीपींस ने परंपरागत सुरक्षा और रक्षा के मुद्दों के लिए अपनी सामरिक गणना (स्ट्रैटेजिक कैलकुलस) में भारत को शामिल करने के विचार को भी अपना लिया है. ये अतीत के संबंधों से बिल्कुल उलट है जब अक्सर दोनों देशों के रिश्ते निचले स्तर पर राजनीति के क्षेत्रों तक सीमित थे. इसके अलावा, 2022 में राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर की चुनावी जीत के साथ इस बात की संभावना है कि दो बहुत महत्वपूर्ण कारणों से दोनों देशों के बीच गतिशीलता बनी रहेगी.
इस वास्तविकता के बीच फिलीपींस और भारत के लिए इस तरह के विस्तारित बहुपक्षीय ढांचे के भीतर नजदीकी तौर पर काम करने का एक मौका है. भारत जहां अमेरिका का एक बड़ा रक्षा साझेदार है वहीं वो जापान के साथ एक वैश्विक और सामरिक साझेदारी और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक व्यापक सामरिक साझेदारी साझा करता है.
पहला कारण ये है कि फिलीपींस की प्रादेशिक रक्षा और समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता देने की कोशिश के तहत मार्कोस जूनियर फिलीपींस के परंपरागत सहयोगी अमेरिका के साथ अपने देश की सुरक्षा भागीदारी में तेजी ला रहे हैं. एनहांस्ड डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (EDCA) के विस्तार से लेकर साउथ चाइना सी में साझा समुद्री गश्त के लिए एक रूपरेखा बनाने तक फिलीपींस और अमेरिका अपनी साझेदारी के दायरे को गहरा और व्यापक करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. अंत में इसका नतीजा जापान के साथ त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास और ऑस्ट्रेलिया के साथ संभावित तौर पर क्वॉड जैसी एक साझेदारी की शुरुआत के रूप में निकला जिसमें ये क्षमता है कि स्थापित व्यवस्था को सुरक्षित करने में बेहतर कार्यक्षमता के लिए इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के हब-एंड-स्पोक्स नेटवर्क (ऐसा गठबंधन जहां सहायता के बदले व्यापार के जरिए सैन्य सुरक्षा और आर्थिक पहुंच दी जाती है) के भीतर संचालन की कमी को दूर किया जा सकता है.
इस वास्तविकता के बीच फिलीपींस और भारत के लिए इस तरह के विस्तारित बहुपक्षीय ढांचे के भीतर नजदीकी तौर पर काम करने का एक मौका है. भारत जहां अमेरिका का एक बड़ा रक्षा साझेदार है वहीं वो जापान के साथ एक वैश्विक और सामरिक साझेदारी और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक व्यापक सामरिक साझेदारी साझा करता है. इंडो-पैसिफिक के ये चारों बड़े लोकतंत्र यहां शांति और स्थिरता की रक्षा के उद्देश्य से अलग-अलग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यवस्थाओं में जुड़े हुए हैं. इसलिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक व्यापक बहुपक्षीय नेटवर्क के संदर्भ में फिलीपींस और भारत के बीच क्षेत्र विशेष को लेकर सहयोग की रूपरेखा की दिशा में कोशिशों में तालमेल की गुंजाइश संभव है क्योंकि इसका बुनियादी संचालन (ऑपरेशनलाइजेशन) 2019 में देखा गया था. सभी शामिल देशों के बीच गहरे तालमेल को देखते हुए इस तरह की गतिविधियों को भविष्य में दोहराया और फिर से तैयार किया जा सकता है.
दूसरा कारण ये है कि फिलीपींस ने जहां अमेरिका के हब-एंड-स्पोक्स सिस्टम के साथ अपने जुड़ाव को गहरा करने का विकल्प चुना है, वहीं वो चीन के साथ रिश्तों को बनाए रखने को लेकर भी अटल बना हुआ है. 5 मई को मार्कोस जूनियर ने इस बात पर जोर दिया कि फिलीपींस के द्वारा अपनी समुद्री सुरक्षा की क्षमताओं को बढ़ाने की इच्छा का उद्देश्य किसी भी तरह से चीन से अलग होना और संबंधों को खत्म करना नहीं है. 9 जून को ये बात फिर से दोहराई गई जब फिलीपींस के राष्ट्रपति ने प्रकाश डाला कि कैसे फिलीपींस चीन से दूर नहीं होगा. इसी तरह, 27 जून को इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में अपने लेक्चर के दौरान मनालो ने बताया कि किस तरह चीन के साथ समुद्री विवाद फिलीपींस और चीन के द्विपक्षीय संबंधों के महत्वपूर्ण स्वरूप को परिभाषित नहीं करता है. इसके अलावा, गुटबाजी की राजनीति में पड़ने की अनिच्छा के उदाहरण के तौर पर फिलीपींस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने कहा कि ताइवान स्ट्रेट में चल रहे तनाव में फिलीपींस नहीं पड़ना चाहता है.
निष्कर्ष
फिलीपींस का ये दृष्टिकोण भारत के द्वारा लगातार सामरिक स्वायत्तता के पालन के साथ अच्छी तरह मेल खाता है. दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी के साथ पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक ताकतवर सेना वाले भारत ने गुटबाजी की राजनीति में भागीदार बनने का विरोध किया है. इसके बदले भारत ने लगातार साझा चिंताओं, हितों और घरेलू संवेदनशीलता के लिए सम्मान पर आधारित सहयोग को आगे बढ़ाया है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं लेकिन इसके बावजूद भारत ने कूटनीतिक रास्ते खोले हुए हैं, साथ ही वो एक विशेष देश के खिलाफ किसी मुखर गठबंधन में भागीदार नहीं बनने पर जोर देता है. राजनीतिक परिपक्वता के इस स्तर को देखते हुए अमेरिका-चीन के बीच मुकाबले में फंसने की चिंता के बिना फिलीपींस बढ़ते भारत के साथ अपने संबंधों को अधिकतम करने में सक्षम होगा. इसलिए भारत उस वक्त एक सामरिक बफर (दो देशों की टक्कर को रोकने वाला) के तौर पर काम कर सकता है जब फिलीपींस चाहता है कि वो एक तरफ जहां चीन के साथ संबंध बनाए रखे, वहीं दूसरी तरफ अमेरिकी गठबंधन के साथ सुरक्षा संबंधों में बढ़ोतरी करे.
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी के साथ पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक ताकतवर सेना वाले भारत ने गुटबाजी की राजनीति में भागीदार बनने का विरोध किया है. इसके बदले भारत ने लगातार साझा चिंताओं, हितों और घरेलू संवेदनशीलता के लिए सम्मान पर आधारित सहयोग को आगे बढ़ाया है.
इस वास्तविकता को देखते हुए फिलीपींस और भारत के सामने एक अवसर है कि वो अपनी द्विपक्षीय साझेदारी की संभावना को अधिकतम करें. परंपरागत और गैर-परंपरागत सुरक्षा क्षेत्रों में सामरिक सहयोग को बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक संकेत दिए गए हैं. ऐसे क्षेत्रों में एक साइबर सुरक्षा भी है. फिलीपींस के पास साइबर सुरक्षा की सीमित क्षमता को देखते हुए उसके लिए ये महत्वपूर्ण है कि वो अपनी सुरक्षा साझेदारी का इस्तेमाल कर इस लक्ष्य को आगे बढ़ाए. इसे देखते हुए भारत ने फिलीपींस की सेना को काम-काजी साइबर सुरक्षा की ट्रेनिंग देने की पेशकश की. फिलीपींस और भारत ने मनीला में भारतीय डिफेंस अताशे (दूतावास में रक्षा अधिकारी) की संभावित तैनाती को लेकर भी चर्चा की. ये दोनों देशों की तरफ से संकेत है कि वो सुरक्षा सहयोग के नये क्षेत्रों की तलाश करना चाहते हैं. इसलिए इंडो-पैसिफिक में मौजूद सामरिक अनिश्चितताओं को देखते हुए दोनों देशों के लिए ये जरूरी है कि वो अपनी उभरती साझेदारी के उपयोग को अधिकतम करना जारी रखें. लेकिन किसी भी तरह के सामरिक सहयोग में मजबूती लाने में निरंतरता सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है. इस तरह, दोनों देशों के लिए अपने बढ़ते रिश्ते के दायरे को और गहरा एवं व्यापक बनाने के लिए लगातार भागीदारी को बनाए रखना महत्वपूर्ण है.
हर्ष वी. पंत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज एंड फॉरेन पॉलिसी प्रोग्राम के प्रमुख हैं.
फिलीपींस में रहने वाले डॉन मैकलैन गिल भू-राजनीतिक विश्लेषक (जियोपॉलिटिकल एनालिस्ट ), लेखक और डी ला सैले यूनिवर्सिटी (DLSU) के डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में लेक्चरर हैं.
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