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Published on Apr 11, 2025 Updated 7 Days ago

भारत में सी-सेक्शन के बढ़ते मामले बताते हैं कि किस तरह से आर्थिक प्रोत्साहन और सांस्कृतिक कारक प्रसव को एक व्यावसायिक प्रक्रिया बना रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य दिवस, 2025 हमें यह पड़ताल करने का मौका दे रहा है.

भारत में C-सेक्शन का बढ़ता चलन, प्रसव पर मुनाफ़ा कमाने का खेल!

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यह लेख "स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य" शृंखला का हिस्सा है.


भारत में प्रसव दो दुनिया के बारे में बताता है- एक निजी और दूसरी सार्वजनिक, यानी सरकारी. निजी अस्पतालों में, गर्भवती स्त्री को निजी देखभाल के साथ शानदार सुविधा मिल सकती है, लेकिन वहां ऑपरेशन करके प्रसव कराने की आशंका अधिक होती है. सरकारी अस्पतालों में मुमकिन है कि पर्याप्त उपकरण न हों या कर्मचारियों की कमी हो, लेकिन गैर-ज़रूरी ऑपरेशन प्रायः नहीं किए जाते. साल 2019 से 2021 के दौरान, सरकारी अस्पतालों में 14.3 प्रतिशत मामलों में ही सीजेरियन-सेक्शन (सी-सेक्शन), जिसे आम बोलचाल में ऑपरेशन द्वारा प्रसव कराना कहते हैं, किए गए, जबकि निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा 47.4 प्रतिशत था. हाल के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) में भी बताया गया है कि ज़्यादातर राज्यों में निजी अस्पताल अब प्रसव संबंधी आधे से अधिक मामलों में सी-सेक्शन करते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर 10 से 15 प्रतिशत के बीच है.

हाल के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) में भी बताया गया है कि ज़्यादातर राज्यों में निजी अस्पताल अब प्रसव संबंधी आधे से अधिक मामलों में सी-सेक्शन करते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर 10 से 15 प्रतिशत के बीच है.

इस लिहाज़ से विश्व स्वास्थ्य दिवस, 2025 की थीम ‘स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य’ मानव-जीवन के एक महत्वपूर्ण पड़ाव को सामने रखती है, जो है- मातृत्व. बेशक, सी-सेक्शन से जोख़िम वाले मामलों में जान बचाई जा सकती है, लेकिन इस तरीके के अत्यधिक प्रयोग से यह सवाल भी पैदा होता है कि क्या जन्म देने की प्रक्रिया को हद से अधिक चिकित्सीय बनाया जा रहा है? शोध से पता चलता है कि C-सेक्शन की दरें, जो 19 प्रतिशत से अधिक हैं, मातृ और नवजात मृत्यु दर में आई गिरावट की तरह कम नहीं हो सकतीं. अध्ययनों के मुताबिक, प्रसव-दर्द के डर से, कथित सुरक्षा के लिए, पिछले प्रसव के नकारात्मक अनुभवों को देखकर या ज्योतिष के आधार पर प्रसव का दिन चुनने जैसी सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण महिलाएं ऑपरेशन कराना पसंद कर सकती हैं. शिक्षित महिलाओं की नज़र में सी-सेक्शन अधिक सुरक्षित और कम कष्टदायक प्रक्रिया है. इसीलिए, सुविधा या फ़ायदे के बजाय स्वास्थ्य की ज़रूरतों के आधार पर फ़ैसला लेने की मानसिकता को बढ़ावा देना, मां और बच्चा, दोनों के हित में है.

जन्म का व्यापार

C-सेक्शन महामारी के कारणों की खोज करने से पहले, यह समझना भी ज़रूरी है कि सी-सेक्शन जीवन बचाने वाली एक प्रक्रिया है और इसने अनगिनत जानें बचाई हैं. इसलिए, सवाल इसके इस्तेमाल पर न होकर, इसके गलत इस्तेमाल पर है। आखिर क्यों कम जोख़िम वाली गर्भावस्थाओं में भी ऑपरेशन का विकल्प चुना जा रहा है?

वास्तव में, सी-सेक्शन के साथ कई तरह के आर्थिक और व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं. अस्पतालों की कमाई के लिहाज़ से आमतौर पर ऑपरेशन द्वारा प्रसव को सामान्य प्रसव की तुलना में अधिक महत्व दिया जा सकता है. सामान्य प्रसव की तुलना में C-सेक्शन प्रसव में अधिक खर्च होता है. फिर, इसे तय समय में पूरा भी किया जा सकता है. शोध से भी इसकी पुष्टि होती है कि ‘सी-सेक्शन प्रसव में सामान्य प्रसव की तुलना में अधिक खर्च होता है... और मेडिकल बिल अधिक चुकाने पड़ते हैं’, जो निजी अस्पतालों को सर्जरी करने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि इससे उनको फ़ायदा होता है. कई निजी अस्पतालों में C-सेक्शन कहीं जल्दी किए जाते हैं और इसमें सामान्य प्रसव के लिए इंतजार करने की तुलना में डॉक्टरों अथवा नर्सों का कम वक्त बर्बाद होता है. इन्हीं सब वज़हों से भारत में प्रसूती देखभाल का एक ऐसा बाज़ार खड़ा हो गया है, जिसको लेकर कोई नियम ही नहीं है और कुछ क्लीनिक अनावश्यक ऑपरेशन करके आर्थिक लाभ कमाने के लिए सिस्टम से खिलवाड़ करते हैं.

अस्पताल को होने वाले फ़ायदे के अलावा, डॉक्टरों को मिलने वाला प्रोत्साहन और उनकी सुविधा भी सी-सेक्शन प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है. निजी प्रैक्टिस में, प्रसूती विशेषज्ञों पर अपने लक्ष्य को पूरा करने का दबाव हो सकता है या अपने शेड्यूल को देखकर भी वे ऑपरेशन करना पसंद कर सकते हैं. दिन के समय ऑपरेशन करके बच्चे को बाहर निकाल लेना आधी रात तक जगकर स्वाभाविक प्रसव कराने की तुलना अधिक सुविधाजनक माना जाता है. साप्ताहिक दिनों (सोमवार से शुक्रवार तक) में शाम से पहले सी-सेक्शन अधिक होते हैं, जो डॉक्टरों की शेड्यलिंग प्राथमिकताओं का संकेत है. हालांकि, इसका एक रक्षात्मक पक्ष भी है. दरअसल, कुछ डॉक्टर प्रसव की जटिलताओं से बचने के लिए पहले ही सर्जरी का विकल्प चुन लेते हैं.

C-सेक्शन की एक वज़ह स्वास्थ्य बीमा भी हो सकती है. सरकारी पैकेज के तहत सी-सेक्शन की सुविधा आमतौर पर सरकारी अस्पतालों में ही मिलती है, लेकिन सरकारी अस्पतालों द्वारा रेफर किए जाने पर निजी अस्पतालों में भी इसका लाभ उठाया जा सकता है. आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं में सामान्य प्रसव की तुलना में C-सेक्शन के लिए ज़्यादा रकम (लगभग 11,500 रुपये) जारी की जाती है, जबकि निजी अस्पतालों में सामान्य प्रसव में यह सुविधा नहीं मिलती. इससे रोगियों का अपना खर्च कम हो सकता है, लेकिन यह निजी अस्पतालों को बीमा में ज़्यादा भुगतान का दावा करने के लिए सामान्य प्रसव के बजाय सर्जरी का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है. चूंकि गर्भवती स्त्री का बीमा होता है, इसलिए रोगी के परिजन भी सी-सेक्शन की ज़रूरत पर शायद ही सवाल उठाते हैं. ज़ाहिर है, प्रसव में बढ़ते खर्च को देखते हुए मातृ और स्वास्थ्य बीमा उत्पादों की संख्या बढ़ती ही रहेगी. वास्तव में, बीमा उत्पाद अनजाने में अनावश्यक प्रक्रियाओं का भी बीमा करते हैं. इसलिए, जब तक निगरानी नहीं की जाएगी, भुगतान की इस तरह की व्यवस्थाएं जन्म पर अधिक कमाई करने की सोच बढ़ाती रहेगी.

एक अनूठी वज़ह जन्म को लेकर ज्योतिष और अंकशास्त्र को महत्व देना है. कई परिवार जन्म के लिए शुभ तिथियों और समय पर दृढ़ विश्वास रखते हैं. महत्वाकांक्षी माता-पिता के लिए ज्योतिषियों से सलाह लेना और सही ‘मुहुर्त’ पर सी-सेक्शन करवाना आम बात हो गई है.

मांग-संबंधी मानसिकता भी भारत में C-सेक्शन को बढ़ाती है. एक अनूठी वज़ह जन्म को लेकर ज्योतिष और अंकशास्त्र को महत्व देना है. कई परिवार जन्म के लिए शुभ तिथियों और समय पर दृढ़ विश्वास रखते हैं. महत्वाकांक्षी माता-पिता के लिए ज्योतिषियों से सलाह लेना और सही ‘मुहुर्त’ पर सी-सेक्शन करवाना आम बात हो गई है. एक और सांस्कृतिक घटना कुछ शहरी, समृद्ध परिवारों के बीच ‘टू पॉश टु पुश’ की सोच है. इस सोच में प्रसव-पीड़ा के डर से या सुविधा को देखते हुए महिलाएं बिना ज़रूरत के ऑपरेशन कराना पसंद करती हैं.

इसके अलावा, सी-सेक्शन के बाद अगली बार सामान्य प्रसव को लेकर दी जाने वाली गलत जानकारी भी बार-बार सर्जरी को बढ़ावा देती है. भारतीय परिवारों में (दुर्भाग्य से कई डॉक्टरों के बीच भी) यह धारणा है कि एक बार ऑपरेशन किया गया, तो हर प्रसव में ऑपरेशन ही करना होगा. जिन महिलाओं ने एक बार C-सेक्शन करवाया है, उन्हें अक्सर अगले गर्भधारण के समय सामान्य प्रसव या प्रसव-पीड़ा झेलने के लिए हतोत्साहित किया जाता है. इस कारण सी-सेक्शन के बाद सामान्य प्रसव (VBAC) संबंधी मान्यता समय के साथ ख़त्म हो गई है. 1990 के दशक के मध्य में सी-सेक्शन के बाद सामान्य प्रसव तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक सामान्य बात थी, लेकिन आज 10 में से केवल एक प्रसव में ही ऐसा करने का प्रयास किया जाता है. चिकित्सकीय रूप से भी देखें, तो इन प्रयासों में से अधिकांश (लगभग 75 प्रतिशत) सफल ही होते हैं और गंभीर जटिलताओं (जैसे गर्भाश्य का फटना) का जोख़िम एक प्रतिशत से भी कम होता है. अस्पतालों की यह भी चिंता हो सकती है कि इस तरह के प्रयास यदि विफल होते हैं और मरीज को कुछ नुकसान होता है, तो उनको मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए भी वे फिर से C-सेक्शन को ही प्राथमिकता देना पसंद करते हैं. इसका नतीजा स्पष्ट है, कम VBAC का मतलब है, अधिक महिलाओं का लगातार सी-सेक्शन.

गर्भ को होने वाला नुकसान

बेशक, सी-सेक्शन अब आम बात हो सकती है, लेकिन इसका सेहत पर जो असर पड़ता है, वह काफी महंगा पड़ सकता है. किसी भी महिला के लिए, C-सेक्शन पेट का एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन है, जिसके अपने ख़तरे भी हैं. छोटी अवधि के ख़तरों में संक्रमण, खून निकलना, रक्त के थक्के जमना और एनेस्थीसिया के नुकसान प्रमुख हैं. जबकि, स्तनपान संबंधी जटिलताएं या प्रसव के बाद अवसाद बढ़ने जैसी समस्याएं लंबे समय तक बनी रह सकती हैं और दर्द का कारण बन सकती हैं. सामान्य प्रसव में कम समय के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है और इसमें सेहत में सुधार भी जल्दी होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि गैर-ज़रूरी C-सेक्शन करवाने से कोई लाभ नहीं होता और इसमें सामान्य प्रसव की तुलना में मां के बीमार होने और मृत्यु दर बढ़ने का जोख़िम बना रहता है.

नवजात शिशु देखभाल पर होने वाले अध्ययन बताते हैं कि C-सेक्शन शिशुओं में शुरुआत में आंत की संरचना सामान्य प्रसव से होने वाले बच्चों की तुलना में अलग होती है, क्योंकि वे मां की योनि और आंत में रहने वाले सूक्ष्मजीवों के बजाय अस्पताल या पर्यावरण के रोगाणुओं के संपर्क में सबसे पहले आते हैं.

जहां तक बच्चे की बात है, तो सी-सेक्शन उसके शुरुआती स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. इस तरह जन्म लेने वाला शिशु सामान्य प्रसव की तरह जन्म-नली से नहीं गुजरता, इस प्रकार वह मां की योनि से बाहर नहीं निकलता. नवजात शिशु देखभाल पर होने वाले अध्ययन बताते हैं कि C-सेक्शन शिशुओं में शुरुआत में आंत की संरचना सामान्य प्रसव से होने वाले बच्चों की तुलना में अलग होती है, क्योंकि वे मां की योनि और आंत में रहने वाले सूक्ष्मजीवों के बजाय अस्पताल या पर्यावरण के रोगाणुओं के संपर्क में सबसे पहले आते हैं. माना जाता है कि माइक्रोबायोम के संपर्क में न आने के कारण शुरुआत में बच्चे का प्रतिरक्षा तंत्र उस तरह विकसित नहीं हो पाता, जिस कारण सी-सेक्शन के शिशु कई बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं.

NFHS के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि निजी अस्पताल में सी-सेक्शन के लिए औसतन 498 अमेरिकी डॉलर (मार्च, 2025 में एक डॉलर की क़ीमत 87.22 रुपये थी, तो इस हिसाब से 43,000 रुपये) खर्च होते हैं, जबकि सरकारी अस्पताल में यह खर्च 99 अमेरिकी डॉलर (8,600 रुपये) होता है. सामान्य प्रसव में भी खर्च बहुत कम होता है. सरकारी अस्पतालों में सामान्य प्रसव में कम (एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक, 2916 रुपये औसतन) खर्च होते हैं, जबकि निजी अस्पतालों में यह खर्च ऑपरेशन की तुलना में भले कम हो, लेकिन दस हजार के करीब बैठता है.

निजी अस्पातल अक्सर एनेस्थीसिया, सर्जिकल सामग्रियों, जन्म के समय बाल रोग विशेषज्ञ की मौजूदगी और ऑपरेशन के बाद देखभाल के लिए अलग से क़ीमत वसूलते हैं. ये सभी अंतिम बिल को ‘पैकेज’ से अधिक बढ़ा सकते हैं. यदि शिशु को नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) देखभाल की ज़रूरत पड़ती है, जो समय से पूर्व सी-सेक्शन के मामले में कोई असामान्य बात नहीं है, तो मरीज का रोज़ाना का बिल बहुत अधिक बढ़ सकता है. इसके अलावा, अनावश्यक C-सेक्शन से खर्च का एक चक्र शुरू हो सकता है, जिसमें अगला प्रसव भी ऑपरेशन से ही कराया जा सकता है, जिसका मतलब है, एक और बड़ा बिल.

जन्म- एक व्यापारिक फ़ैसला?

प्रसव के तरीके का चयन ज़रूरत और मां की भलाई के अनुसार होना चाहिए, न कि लाभ कमाने और शेड्यूल की सुविधा के अनुसार. डॉक्टर और अस्पताल, जान-बूझकर या अनजाने में, अतिरिक्त कमाई करने संबंधी दबाव में, समय बचाने के लिए, यहां तक कि मुकदमों के डर से ऐसा कर रहे हैं, जिससे मरीजों को सर्जरी की ओर धकेला जा रहा है, भले ही उसकी ज़रूरत न हो. अस्पतालों और डॉक्टरों को अपनी शपथ के प्रति प्रतिबद्धता फिर से दिखाने की ज़रूरत है, जो है- इलाज के दौरान मरीजों को नुकसान से बचाने को महत्व देना.

सामान्य प्रसव बढ़ाने, सी-सेक्शन के बाद अगला प्रसव सामान्य होने और C-सेक्शन के नुकसान के बारे में सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने से ग़लतफ़हमियां और आशंकाएं दूर हो सकती हैं. हर अस्पताल द्वारा सी-सेक्शन की संख्या सार्वजनिक करने, इसके गैर-ज़रूरी उपयोग पर भुगतान रोकने और बीमा ऑडिट करने जैसे कदम भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जो नीति के स्तर पर C-सेक्शन को कमज़ोर बना सकते हैं. सार्वजनिक ज़वाबदेही सुनिश्चित करने वाले तंत्र को प्रोत्साहित करके, जैसे कि बीच-बीच में सी-सेक्शन का ऑडिट करके और कम जोख़िम वाले मामलों में अनिवार्य रूप से दूसरे डॉक्टर से सलाह लेने की व्यवस्था बनाकर हम प्रसव-सर्जरी को लेकर संतुलन बढ़ा सकते हैं.

किसी भी शिशु का जन्म हमेशा एक सेहतमंद व्यक्तिगत अनुभव होना चाहिए और यह ऐसी व्यवस्था के रूप में होना चाहिए, जिसमें बुनियादी मूल्यों का सम्मान किया जाए.

हमारा लक्ष्य C-सेक्शन की आलोचना नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह तो जान बचाने वाली प्रक्रिया है और अब भी अधिकांश माओं के लिए ज़रूरी है. हालांकि, एक सीमा से अधिक सी-सेक्शन मां और नवजात शिशु पर ख़तरा बढ़ाने का काम करता है. इस सीमा से अधिक मामले मानव-स्वास्थ्य और लोगों के बजट, दोनों को अनावश्यक रूप से हानि पहुंचाते हैं. किसी भी शिशु का जन्म हमेशा एक सेहतमंद व्यक्तिगत अनुभव होना चाहिए और यह ऐसी व्यवस्था के रूप में होना चाहिए, जिसमें बुनियादी मूल्यों का सम्मान किया जाए. यह व्यवस्था न सिर्फ स्वस्थ शुरुआत सुनिश्चित करेगी, बल्कि भारतीय माओं और नवजात शिशुओं की नई पीढ़ियों के लिए उज्ज्वल और आशाजनक भविष्य की राह भी तैयार करेगी.


(के.एस. उपलबद्ध गोपाल ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में हेल्थ इनीशिएटिव में एसोसिएट फेलो हैं) 

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