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नीति निर्माण में बहुआयामी गरीबी सूचकांक का सक्रिय रूप से इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ अगर एक पूरक बहुआयामी संवेदनशीलता सूचकांक का भी उपयोग किया जाए तो वंचित समूहों की कमज़ोरियों को ख़त्म करने और उन्हें फिर से गरीबी के दुष्चक्र में फंसने से रोकने में मदद मिल सकती है
Image Source: Getty
स्वतंत्रता से लेकर अब तक भारत में गरीबी मापने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. आज़ादी से पहले गरीबी को जीवन निर्वाह आधारित आंकलनों से मापा जाता था, लेकिन अब इस प्रक्रिया में जीवन की गुणवत्ता में प्रभाव डालने वाले आयामों को शामिल किया गया है. 2021 में, नीति आयोग ने भारत के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी किया, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के क्षेत्रों में एक साथ होने वाली कमियों को मापता है. ये सूचकांक वंचित व्यक्ति या समाज की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाता है. आल्किर-फॉस्टर पद्धति के आधार पर ये सूचकांक बहुआयामी गरीबी की घटना और तीव्रता दोनों को दिखाता है. भारत के एमपीआई में 12 महत्वपूर्ण संकेतकों को शामिल किया गया है, जो राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं. इसके बाद घरों को उनके संचयी नुकसान या कमियों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है.
2021 में, नीति आयोग ने भारत के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी किया, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के क्षेत्रों में एक साथ होने वाली कमियों को मापता है. ये सूचकांक वंचित व्यक्ति या समाज की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाता है.
बहुआयामी गरीबी सूचकांक ओवरलैपिंग कमी को पहचानने में महत्वपूर्ण साबित हुआ है. इसके आधार पर लक्षित हस्तक्षेप की नीतियां बनाने में मदद मिली है. अगर 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और 2019-21 के सर्वेक्षण के आधार पर बुनियादी एमपीआई की तुलना की जाए तो बहुआयामी गरीबों का अनुपात 24.85 प्रतिशत से घटकर 14.96 प्रतिशत हो गया. इसका अर्थ ये हुआ कि करीब 135 मिलियन यानी लगभग 13 करोड़ से ज़्यादा लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल गए. इस क्षेत्र में हुई प्रगति को देखने के लिए आंकड़ों की सूक्ष्मता और हर एक संकेतक के माध्यम से क्षेत्रीय कमी को अलग किया जा सकता है. इसके बाद राज्य समर्थित मिशन पहल और प्रमुख सरकारी योजनाओं के तहत लक्षित हस्तक्षेपों से इसे संबोधित किया जा सकता है. इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), जल जीवन मिशन, और स्वच्छ भारत मिशन समेच कुछ अन्य योजनाएं शामिल हैं. हालांकि, संकेतकों को ध्यान से देखें तो प्रगति की दर असमान बनी हुई है. स्वास्थ्य संबंधी कमी सिर्फ 0.6-6 प्रतिशत अंक की गिरावट के साथ कम हो रही है, जबकि जीवन स्तर के संकेतकों के लिए 15-25 प्रतिशत अंक की तेज़ गिरावट देखी गई है.
चित्र 1: भारत की वो आबादी, जो हर तरह के सूचकांक से वंचित है
स्रोत: नीति आयोग
स्वास्थ्य योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान के लिए तय प्रक्रियाओं में कुछ कमियां हैं. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) और एनएफएसए- 2013 योजना के पात्र लोगों की पहचान के लिए आय के प्रॉक्सी के आधार पर सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना- 2011 का उपयोग किया जाता है. हालांकि, एक दशक से ज़्यादा पुराना ये डेटा लक्षित योजनाओं के लिए अपर्याप्त मापदंड है. वहीं अगर इसके लिए व्यापक प्रॉक्सी मापदंड बनाए जाते हैं तो इससे भी उन लोगों के लाभार्थियों की सूची से बाहर रहने का ख़तरा है, जिन्हें इसकी ज़रूरत हो सकती है. उदाहरण के लिए, एक घर जिसमें एक गाड़ी है, वो भारत सरकार की आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लिए अयोग्य हो सकता है. हालांकि, ऐसे घरों में स्वास्थ्य संबंधी कमी प्रचलित है. इसके अलावा, ये ढांचा गरीबी की अलग-अलग तीव्रता को भी नहीं पहचान पाता. एक सरकारी ऑडिट में ये पाया गया कि राज्यों द्वारा लाभार्थी पहचान की जो प्रक्रिया अपनाई गई, वो व्यवस्थित या वैज्ञानिक नहीं थी.
ये दिखाता है कि बहुआयामी गरीब सूचकांक के अस्तित्व में होने के बावजूद स्वास्थ्य नीति में इसका कम इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा, एमपीआई स्वास्थ्य-संबंधी कमज़ोरियों के सभी आयामों को शामिल नहीं करता है. 40 से ज़्यादा देशों के अनुभव एमपीआई की संभावनाओं को दर्शाते हैं, जबकि एक पूरक बहुआयामी संवेदनशीलता सूचकांक (एमवीआई) के लाभों को भी उजागर करते हैं. इससे एक ऐसी प्रणाली बनाने में मदद मिलती है, जिससे लोगों को बेहतर सुविधा मिले.
स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुंच ना होने, स्वास्थ्य बीमा के कम इस्तेमाल और एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि बड़ी चुनौती बनी हुई है.
एक पूरक बहुआयामी संवेदनशीलता सूचकांक ऐसी आबादी की पहचान करने में मदद कर सकता है, जो स्वास्थ्य या दूसरी सेवाओं से वंचित हैं. ऐसे लोगो की पहचान कर उन्हें गरीबी के दुष्चक्र में गिरने से रोकने के लिए सक्रिय लक्षित प्रयासों करने में मदद मिलती है. लोग जैसे-जैसे गरीबी के निम्न स्तरों को छूते हैं, वैसे-वैसे गरीबी को ख़त्म करना मुश्किल होता जाता है. इसके लिए दोनों बहुआयामी सूचकांकों, एमपीआई और एमवीआई, के इस्तेमाल की ज़रूरत होती है, जैसा कि बांग्लादेश ने उच्च आय वाला राष्ट्र बनने के कोशिश में किया. कुछ समय पहले बहुआयामी गरीबी पर प्रकाशित 92 रिपोर्ट्स की व्यवस्थित समीक्षा की गई. इस समीक्षा में ये सिफारिश की गई कि इसका इस्तेमाल लक्षित नीति बनाने, प्रोफाइलिंग और स्थानीय बजट आवंटन में किया जाए. नीति निर्माण में सक्रिय रूप से एमपीआई का उपयोग करने और इसके साथ ही पूरक एमवीआई के इस्तेमाल से कमियों को दूर किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इससे ये भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि लोग फिर से गरीबी के दुष्चक्र में ना फंसे.
भारत सरकार ने वैश्विक सूचियों के सुधार और कार्रवाई पहल के तहत बहुआयामी गरीबी सूचकांक को मान्यता दी है. भारत सरकार का ये मानना है कि एमपीआई प्रणालीगत सुधारों और विकास को संचालित करने के लिए एक उपकरण के रूप में काम करता है. एजेंडा-2030 एजेंडा के प्रति इसकी प्रतिबद्धता, केंद्र सरकार की लक्षित योजनाओं का असर मापने के उपकरणों को मज़बूत करके अगर इसका इस्तेमाल किया जाए तो इससे मदद मिल सकती है. हालांकि, इसके लिए सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं से सबक लेने होंगे और उन्हें स्थानीय संदर्भों के हिसाब से ढालना होगा. ये 2047 तक भारत को पूरी तरह से विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विकसित भारत मिशन के साथ भी मेल खाता है.
बेहतर लक्ष्य निर्धारण के लिए संकेतकों का विस्तार
अगर स्वास्थ्य से संबंधित कमियों को लेकर एक समग्र तस्वीर बनानी है तो उसके लिए सबसे पहले ज़ोखिम वाले समूहों के स्वास्थ्य में संवेदनशीलता में अंतर की पहचान करनी होगी. उसके बाद इसे पूरक डेटासेट और बहुआयामी सूचकांकों के साथ एकीकृत करना होगा. उदाहरण के लिए, कोलंबिया के एमपीआई और एमवीआई में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, फेफड़ों की पुरानी बीमारी और कैंसर पीड़ितों के बारे में आंकड़े शामिल किए जाते हैं. ये जानकारी क्षेत्रीय संकेतकों के साथ ट्राएंगुलेट की जाती है, जैसे कि स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, भीड़भाड़, और जनसांख्यिकीय विशेषताएं. ऐसा इसलिए किया जाता है कि उसी हिसाब से कमज़ोरियों को दूर करने के उपायों के वितरण का आकलन किया जा सके. अफ़ग़ानिस्तान के एमपीआई में आय, उत्पादन, और सुरक्षा को लगने वाले झटकों को शामिल किया जाता है. डोमिनिकन गणराज्य का एमपीआई स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, स्वास्थ्य बीमा कवरेज और प्रत्येक परिवार के समर्थन को शामिल करता है. चिली पर्यावरणीय स्थितियों पर संकेतकों को एकीकृत करता है, जबकि पनामा का एमपीआई बच्चों से जुड़े संकेताओं का इस्तेमाल करता है.
भारत में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में जो चुनौतियां हैं, उनका समाधान करने के लिए वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को भारतीय परिस्थितियों के मुताबिक संशोधित कर अपनाया जा सकता है. पिछले एक दशक में अपनी जेब से इलाज पर लगने वाले खर्च में कमी आई है. ये खर्च 62.6 प्रतिशत से कम होकर 39.4 प्रतिशत हो गया. इसके बावजूद स्वास्थ्य पर आपातकालीन खर्च ने हर साल करीब 32 से 39 मिलियन लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेला है. स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुंच ना होने, स्वास्थ्य बीमा के कम इस्तेमाल और एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि बड़ी चुनौती बनी हुई है. भारत की डेमोग्राफी में बड़ा बदलाव आ रहा है. कुल आबादी में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है. छह में से पांच बहुआयामी गरीब व्यक्ति अनुसूचित जनजातियों या जातियों के हैं. ऐसे में बुजुर्गों और हाशिए पर पड़े समूहों के लिए विशिष्ट संकेतकों को अपनाने की आवश्यकता है.
भारत में तेज़ी से विकसित हो रहे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर इकोसिस्टम (डीपीआईई) की वजह से अब आंकड़े जुटाना कुछ आसान हो गया है. अब अगर भारत चाहे तो सबके लिए एक जैसे समाधान की बजाए लक्षित समूह के हिसाब से नीतियां बना सकता है.
राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं के आधार पर, भारत कुछ अन्य संकेतकों पर विचार कर सकता है. इनमें सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकी विशेषताएं, विकलांगता, सह-रोग (को-मॉर्बिडिटीज), टीकाकरण, प्रवासन की स्थिति, अनौपचारिक रोजगार, अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों का क्षेत्रीय डेटा और सामाजिक सुरक्षा कवरेज शामिल हैं. राज्य इन संकेतकों को अपनी क्षेत्रीय परिस्थितियों के हिसाब से ढाल सकते हैं.
नियमित रूप से संकलित किए गए सटीक आंकड़े कमज़ोर वर्गों की वास्तविकताओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है. कोलंबिया के सूचकांकों ने घरेलू सर्वेक्षणों को प्रशासनिक रिकॉर्ड और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ जोड़ा. भारत भी मौजूदा राष्ट्रीय सर्वेक्षणों का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य-विशिष्ट संकेतकों को शामिल करते हुए बहुआयामी सूचकांकों का विस्तार कर सकता है. मेक्सिको ने दिशानिर्देश जारी करके और आंकड़ों को सार्वजनिक कर सूचकांक को संस्थागत बनाया. इससे पारदर्शिता में सुधार हुआ. इसी तरह, भारत एक स्वतंत्र निकाय स्थापित कर सकता है जो नियमित रूप से बहुआयामी सूचकांकों के लिए गुणवत्तापूर्ण आंकड़े एकत्र और संकलित करे.
भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश के लिए व्यापक आंकड़े इकट्ठा करना मुश्किल काम है, लेकिन अगर ऐसा किया जाता है तो इसके लाभ काफ़ी ज़्यादा हैं. हालांकि, भारत में तेज़ी से विकसित हो रहे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर इकोसिस्टम (डीपीआईई) की वजह से अब आंकड़े जुटाना कुछ आसान हो गया है. अब अगर भारत चाहे तो सबके लिए एक जैसे समाधान की बजाए लक्षित समूह के हिसाब से नीतियां बना सकता है. 145 करोड़ लोगों के लिए एक जैसी नीति बनाना कारगर और व्यावहारिक नहीं है. भारत में लोग भी विविध पृष्ठभूमि से आते हैं और उनकी समस्याएं भी एक-दूसरे से काफ़ी अलग हैं. सरकार एक सोशल रजिस्ट्री बनाने पर विचार कर रही है, जो आधार कार्ड से लिंक होगा. इसका डेटाबेस रीयल टाइम में अपडेट होगा. इससे ज़रूरत-आधारित लक्षित और अनुकूलित सामाजिक सुरक्षा की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी. जब इसे आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत डिजिटल स्वास्थ्य पहचान पत्र के साथ एकीकृत किया जाता है, तो इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को सामाजिक प्रोफाइल से जोड़ा जा सकता है. जन धन खाता-आधार नंबर-मोबाइल की त्रिमूर्ति का फायदा उठाते हुए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है. इसके अलावा, अपील करने का एक तंत्र होना चाहिए, जहां परिवारों को आकस्मिक रूप से बाहर करने के खिलाफ़ चुनौती दी जा सके. कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत पहले से ही एक यूनिफाईड इंटरऑपरेबल डेटा इकोसिस्टम की नींव रख रहा है. इससे एमपीआई, एमवीआई और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का एकीकरण एक उभरती हुई वास्तविकता बन रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रीय एमपीआई पर आधारित माइक्रोसिम्योलेशन ने कोविड-19 से गरीबी स्तरों पर प्रभाव का अनुमान लगाया. इसने सामाजिक सुरक्षा उपायों को तेज़ी से लागू करने के लिए मार्गदर्शन का काम किया. होंडुरस ने 2020 में एक एमवीआई लॉन्च किया, जिससे डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के संभावित लाभार्थियों की पहचान की जा सके. दो लाख साठ हज़ार सबसे गरीब लोगों को कोरोना महामारी के दौरान बीमारी की रोकथाम वाली सुविधाओं तक पहुंचने के लिए वाउचर दिए गए. दक्षिण अफ्रीका ने अपनी वैक्सीनेशन रणनीति के लिए एमवीआई का इस्तेमाल किया. वैक्सीनेशन में बुजुर्गों और उच्च ज़ोखिम वाले समुदायों को प्राथमिकता दी गई. भारत भी इसी तरह एमपीआई और एमवीआई को अपनाकर ना सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों का प्रभावी ढंग से मुक़ाबला कर सकता है बल्कि अन्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीतियों को उसी हिसाब से बना सकता है.
अगर एमपीआई और एमवीआई ढांचे को गहन अध्ययन करके ध्यान से बनाया जाए तो स्वास्थ्य-संबंधित गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी. आज के दौर में ऐसा किया जाना बहुत ज़रूरी है.
भारत में इलाज पर होने वाले खर्च का वित्तीय बोझ अभी भी गरीबी का एक प्रमुख कारण बना हुआ है. ऐसे में अगर एमपीआई और एमवीआई को मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना के साथ संयोजित करना काफ़ी फायदेमंद हो सकता है. वर्तमान में, ये योजना एक परिवार के लिए अस्पताल में भर्ती होने के लिए पांच लाख रुपये की मदद देती है. ये जनसंख्या के निचले 40 प्रतिशत तबके और 70 साल से अधिक आयु के लोगों के लिए है. हालांकि ये योजना प्रशंसनीय है, लेकिन बाह्य रोगी सेवाओं (ओपीडी) के लिए कवरेज की कमी और आर्थिक मदद की सीमित सीमा उन परिवारों के लिए वित्तीय सुरक्षा को पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ा सकती है जो कई कमज़ोरियों का एक साथ सामना कर रहे हैं. ऐसे में प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों का ख़तरा बहुत ज़्यादा है. ऐसे में परिवारों को उनकी कमजोरियों की तीव्रता और बहुआयामी समस्या के आधार पर विभाजित किया जाना चाहिए. इसी आधार पर स्लाइडिंग स्केल तंत्र के साथ बहुआयामी सूचकांकों को लागू कर संसाधनों का समान आवंटन सुनिश्चित किया जा सकता है. भारत अपने ‘आकांक्षी जिला कार्यक्रम’ के लिए एनालॉग्स कंपोजिट इंडेक्स का इस्तेमाल करता है. भविष्य में एमपीआई और एमवीआई इस तरह की पहलों के लिए समान उपकरण के रूप में काम कर सकते हैं. इससे भौगोलिक क्षेत्रों में कमज़ोरियों की निरंतर पहचान और निगरानी सुनिश्चित होती है.
बहुआयामी सूचकांकों का उपयोग बजट आवंटनों में सुधार करने में मदद कर सकता है. इससे सरकारी संसाधनों के इस्तेमाल में दक्षता और प्रभावशीलता आती है. इसका सबूत 2017 में कोस्टारिका में दिखा. कोस्टारिका ने बजट में अतिरिक्त वृद्धि किए बिना एमपीआई का इस्तेमाल कर गरीबी कम करने की प्रक्रिया को तेज़ किया. गरीबों को कमियों को संबंधित संस्थानों के अधीन कार्यक्रमों से जोड़कर, उनके बीच समन्वय, सहयोग और बजट आवंटन में सुधार कर इस लक्ष्य को हासिल किया गया. दोहराव यानी डुप्लीकेशन से संसाधनों की बर्बादी को रोका गया और लोगों को बचत के लिए सक्षम किया गया. पाकिस्तान का ‘प्रॉक्सी’ एमपीआई प्राथमिकता के माध्यम से जिला स्तर पर संसाधन आवंटन का रास्ता दिखाता है.
स्वास्थ्य नीति में एमपीआई के इस्तेमाल के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय की आवश्यकता है. पनामा ने कई मंत्रालयों को मिलाकर एक सामाजिक मंत्रिमंडल बनाया. इसकी अध्यक्षता राष्ट्रपति ने की. ये सामाजिक मंत्रिमंडल सहयोगात्मक कार्रवाई के लिए संस्थानों को ताक़तवर बनाता है. इसी प्रकार ‘पूरी तरह सरकारी’ दृष्टिकोण भारत को विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय बढ़ाने में मदद कर सकता है. इससे स्वास्थ्य चुनौतियों और उनके सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करने और उनका समाधान करने में मदद मिलेगी.
भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक गरीबी को मापने के तरीके में महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है. ये जिला स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के माध्यम से मौजूदा कमियों को पकड़ता है. हालांकि, अपने वर्तमान रूप में ये स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को एक संकीर्ण नज़रिए से देखता है. इस सूचकांक को बनाने में कई महत्वपूर्ण संवेदनशीलताओं को ध्यान में नहीं रखा गया है. इसके अलावा, स्वास्थ्य नीति बनाने और लक्षित योजनाओं में इसका कम इस्तेमाल किया जाता है. अगर एमपीआई और एमवीआई ढांचे को गहन अध्ययन करके ध्यान से बनाया जाए तो स्वास्थ्य-संबंधित गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी. आज के दौर में ऐसा किया जाना बहुत ज़रूरी है. जिन लोगों को इसकी सबसे ज़्यादा आवश्यकता है, उनके लिए समय पर और लक्षित सामाजिक संरक्षण सुनिश्चित करने में ये काफ़ी मददगार होगा.
निमिषा चड्ढा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की स्वास्थ्य पहल में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Nimisha Chadha is a Research Assistant with ORF’s Centre for New Economic Diplomacy. She was previously an Associate at PATH (2023) and has a MSc ...
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