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मोबिलिटी क्षेत्र में डिजिटल मैनिपुलेशन यानी छेड़छाड़ की उभरती युक्तियों से निपटने के लिए सख़्त और ठोस उपाय करने पड़ेंगे.
Image Source: Getty
राइड हेलिंग यानी यात्रा या सफ़र करने के लिए उपयोगी ऐप्स के आगमन की वजह से अर्बन मोबिलिटी में महत्वपूर्ण बदलाव आया है. इस श्रेणी में आने वाले ऐप्स ऑन डिमांड सर्विसेस अर्थात सेवा उपलब्ध करवाते हैं जो यात्रा करने वाले व्यक्ति को वाणिज्यिक वाहनों के ड्राइवर से जोड़ते हैं. इन ऐप्स ने परंपरागत टैक्सी उद्योग में एक तरह की खलबली मचा दी है. इन ऐप्स के कारण ग्राहकों को सुविधाजनक, कुशल और अधिकांश मामलों में किफ़ायती परिवहन के पर्याय उपलब्ध हुए हैं. हालांकि इन ऐप्स की लोकप्रियता में इज़ाफ़े के पीछे इनके द्वारा चिंताजनक रूप से 'डार्क पैटर्न्स' या भ्रामकता का उपयोग होने को लेकर चर्चा तेज हुई है. ये ऐप्स इन भ्रामक तरीकों का उपयोग करते हुए ग्राहकों के बर्ताव को चालाकी से अपने पक्ष में मोड़ रहे हैं.
इस लेख में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि कैसे राइड हेलिंग ऐप्स टैंक यात्रा उपलब्ध करवाने वाले ऐप्स डार्क पैटर्न का उपयोग बढ़ाने में जुटे हुए हैं. इसके अलावा डार्क पैटर्न को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे का विश्लेषण करते हुए इसके संभावित प्रभावों पर यहां नज़र डाली गई है.
कुछ खबरों के अनुसार Uber चालकों के बर्ताव को चालाकी से नियंत्रित करते हुए अपने साथ जुड़े रहने पर बाध्य करता है. इसके लिए वह मनोवैज्ञानिक तिकड़म का उपयोग करता है. इसमें से एक यह है कि Uber चालकों को उनकी 'अनवर्कड् टाइम' यानी 'गैर कार्य अवधि' को 'संभावित लाभ की बजाय वित्तीय नुक़सान' निरूपित करता है. इसी तरह ये ऐप्स अपनी सदस्यता छोड़ने की प्रक्रिया को जान बूझकर जटिल बनाते हैं. सदस्यता छोड़ने वाले उपयोगकर्ता को काफ़ी प्रक्रियाएं पूर्ण करने पर मजबूर किया जाता है. उन्हें भ्रमित करने वाले प्रांप्टस यानी संकेत देकर गुमराह किया जाता है ताकि वे आसानी से सदस्यता न छोड़ सके.
इस लेख में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि कैसे राइड हेलिंग ऐप्स टैंक यात्रा उपलब्ध करवाने वाले ऐप्स डार्क पैटर्न का उपयोग बढ़ाने में जुटे हुए हैं. इसके अलावा डार्क पैटर्न को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे का विश्लेषण करते हुए इसके संभावित प्रभावों पर यहां नज़र डाली गई है.
डार्क पैटर्न का मतलब कोई भी ऐसी प्रक्रिया या ईमानदारी के बगैर उठाया जाने वाला कदम जो किसी भी प्लेटफार्म यानी मंच पर यूजर इंटरफेस (UI)/ यूजर एक्सपीरियंस (UX) इंटरेक्शंस का उपयोग करते हुए उपयोगकर्ता को कुछ ऐसा करने के लिए बाध्य करना चाहता है जो उपयोगकर्ता करने का इच्छुक नहीं है या करना नहीं चाहता. इस प्रक्रिया का उपयोग करते हुए उपयोगकर्ता की स्वायत्तता, निर्णय क्षमता या उसकी पसंद को प्रभावित और खराब किया जाता है. हाल के दिनों में मोबिलिटी ऐप्स की ओर से डार्क पैटर्न के बढ़ते उपयोग को लेकर चिंताएं जताई जा रही है.
एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स कौंसिल ऑफ़ इंडिया (ASCI) की ओर से पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि उसने भारत में मोबिलिटी क्षेत्र समेत विभिन्न क्षेत्रों में लोकप्रिय 53 ऐप्स का विश्लेषण किया है. इससे पता चला कि इसमें शामिल ऐप्स में से 98 फ़ीसदी ऐप्स ने कम से कम एक डिसेप्टिव पैटर्न यानी भ्रमित करने वाली प्रक्रिया का उपयोग किया था. इस रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक एप में औसतन 2.7 ऐसे पैटर्न का उपयोग किया जा रहा है. राइड हेलिंग ऐप्स में डिसेप्टिव पैटर्न के औसतन 3 मामले पाए गए. इसी प्रकार हाल ही में 33,000 उपयोगकर्ताओं के ताजा सर्वे में यह देखा गया कि राइड हेलिंग प्लेटफॉर्म्स में चिंताजनक ट्रेंड्स है. इस सर्वे में 42% उपयोगकर्ताओं को हिडन चार्जेस यानी छुपे हुए शुल्क अदा करना पड़ा, जबकि 84 फ़ीसदी ने कहा कि उन्हें जबरन यात्रा कैंसिल करने पर मजबूर किया गया. 78 फ़ीसदी लोगों ने पाया कि उन पर गुमराह करने वाला वेटिंग पीरियड लादा गया था.
मोबिलिटी ऐप्स में डार्क पैटर्न्स के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह ज़रूरी हो गया है कि इन्हें नियंत्रित करने वाले मौजूदा नियामक ढांचे का परीक्षण किया जाए और यह समझने की कोशिश की जाए कि डार्क पैटर्न्स के मुद्दे पर विभिन्न प्राधिकार क्षेत्र का दृष्टिकोण क्या है. भारत में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 (CPA), तथा गाइडलाइंस फॉर प्रीवेंशन एंड रेगुलेशन ऑफ़ डार्क पैटर्न्स 2023 (द गाइडलाइंस) डिजिटल अर्थव्यवस्था में डार्क पैटर्न्स के उपयोग को रोकने के लिए कानूनी ढांचा उपलब्ध करवाते हैं. गाइडलाइंस यानी दिशा निर्देशों में शामिल एनेक्सचर यानी परिशिष्ट में सूचीबद्ध डार्क पैटर्न प्रैक्टिसेस का उपयोग करने से लोगों को प्रतिबंधित किया गया है. इसमें 13 डार्क पैटर्न्स के विषयों की एक सूची शामिल है जिसमें सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटक्शन अथॉरिटी (CCPA) यानी केंद्रीय ग्राहक संरक्षण प्राधिकरण संशोधन कर सकता है. इसमें आमतौर पर बास्केट स्नीकिंग, फोर्सड एक्शन तथा फॉल्स अर्जेंसी प्रचलित हैं.
हालांकि यह गाइडलाइंस कानूनी रूप से बाध्य विनियमन की बजाय निर्देश ही अधिक कहे जाएंगे. ऐसे में इन्हें कानूनी तौर पर लागू करना मुश्किल हो जाता है. वैधानिक दंडात्मक व्यवस्था के अभाव में डार्क पैटर्न्स का उपयोग करने वाले प्लेटफॉर्म्स केवल दिशा निर्देशों के आधार पर दंडित नहीं किया जा सकता.
ड्रिप प्राइसिंग- यह एक डार्क पैटर्न है जिसमें सुविधा शुल्क, सेवा शुल्क या प्रतीक्षा-समय लागत जैसी अतिरिक्त लागतें धीरे-धीरे लगाई जाती है, जिससे अंततः किराया शुरुआती कीमत से काफ़ी अधिक होता है.
दूसरी ओर 2022 में यूरोपियन डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड (EDPB) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंटरफेस में डार्क पैटर्न्स के उपयोग को लेकर एक गाइडलाइन जारी की. इसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में उपयोग किए जाने वाले डार्क पैटर्न्स का विश्लेषण करते हुए प्रैक्टिकल यानी व्यवहारिक सिफ़ारिशें की गई. ये सिफ़ारिशें काफ़ी विस्तृत और थका देने वाली हैं, लेकिन इनमें मौजूदा डार्क पैटर्न्स की शिनाख़्त की गई है और यह भी बताया गया है कि कैसे इनका विश्लेषण करते हुए इससे बचा जा सकता है. हाल ही में लागू किए गए डिजिटल सर्विसेज एक्ट (DSA) ऑनलाइन डार्क पैटर्न्स को निशाना बनती है या उन्हें रोका गया है. DSA के आर्टिकल 25 के तहत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को डिसेप्टिव पैटर्न्स का उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है.
उधर यूनाइटेड स्टेट्स में डार्क पैटर्न्स के साथ निपटने का दृष्टिकोण विस्तृत नहीं है. वर्तमान में कोई भी संघीय कानून डार्क पैटर्न्स को सीधे निशाना नहीं बनाता है, लेकिन 2022 में फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) ने एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी. ब्रिंगिंग डार्क पैटर्न्स टू लाइट शीर्षक के साथ जारी इस रिपोर्ट में यह साफ़ कर दिया था कि डार्क पैटर्न अब पूर्णता FTC की रडार पर है. इसके अलावा कैलिफोर्निया प्राइवसी राइट्स एक्ट(CPRA), द कोलोराडो प्राइवसी एक्ट (CPA)और द कनेक्टिकट डाटा प्राइवसी एक्ट इन सभी में डार्क पैटर्न्स के माध्यम से हासिल किए गए अनुबंधों को वैधानिक सहमति की व्याख्या से बाहर रखा गया है. इन विनियमनों का पालन करने में विफ़ल रहने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है.
राइड हेलिंग ऐप्स में डार्क पैटर्न्स के बढ़ते उपयोग की वजह से इन ऐप्स के उपयोगकर्ताओं के लिए इन ऐप्स की सेवाओं का अच्छी तरह से उपयोग करना मुश्किल हो रहा है. टेबल 1 में गाइडलाइंस के अनुसार मोबिलिटी ऐप्स की ओर से अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है. यह विश्लेषण ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर डार्क पैटर्न्स की मौजूदगी को दर्शाता है.
टेबल 1 : मोबिलिटी ऐप्स में देखें गए डार्क पैटर्न्स
टेबल 1 : मोबिलिटी ऐप्स में पाए गए डार्क पैटर्न
डार्क पैटर्न |
विवरण |
मोबिलिटी ऐप्स में प्रयोजन |
बास्केट स्नीकिंग |
किसी उपयोगकर्ता की ऑनलाइन शॉपिंग कार्ट में उनकी स्पष्ट सहमति के बिना अनवांटेड आइटम जोड़ना. |
उदाहरण के लिए, जब Uber पर राइड बुक करते हैं, तो उपयोगकर्ता देख सकते हैं कि एक छोटा बीमा शुल्क (लगभग INR3 प्रति ट्रिप) बिना स्पष्ट सहमति के किराए में स्वचालित रूप से जोड़ दिया जाता है. जबकि इस शुल्क का उल्लेख Uber की नीति में किया गया है, यह अक्सर पहले से ही चयनित होता है, जिसका अर्थ है कि यदि उपयोगकर्ता इसके लिए भुगतान नहीं करना चाहते हैं, तो उन्हें मैन्युअल रूप से ऑप्ट आउट करना होगा. सक्रिय उपयोगकर्ता सहमति के बिना का लागत सूक्ष्म जोड़ बास्केट स्नीकिंग का एक उदाहरण है, क्योंकि उपयोगकर्ता अनजाने में उस सेवा के लिए भुगतान कर सकते हैं जिसे उन्होंने जानबूझकर नहीं चुना था. इसी तरह, विभिन्न ओला उपयोगकर्ताओं ने अपने अनुभव ऑनलाइन साझा किए, जहां ऐप ने उनकी सहमति के बिना डिफ़ॉल्ट रूप से उनकी राइड बीमा सक्षम कर दी थी. |
सदस्यता जाल |
उपयोगकर्ताओं को छिपी हुई शर्तों और कठिन रद्दीकरण प्रक्रियाओं के साथ आवर्ती सेवाओं या राइड पास में नामांकित करते हैं. |
एक Uber ग्राहक ने हाल ही में एक पोस्ट में बताया कि कैसे मोबिलिटी ऐप ने उनके लिए अपनी Uber One सदस्यता रद्द करना जटिल बना दिया. उपयोगकर्ताओं को सदस्यता में लॉक करने के लिए रद्दीकरण प्रक्रिया को जानबूझकर तकनीकी और कठिन बनाया गया था. यह सब्सक्रिप्शन ट्रैप बनाने का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो उपयोगकर्ताओं की सहमति के बिना उनके लिए बार-बार दोहराया जाता है. |
इंटरफ़ेस में हस्तक्षेप |
जब ऐप में उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस या डिज़ाइन तत्व जटिल और अस्पष्ट होते हैं, तो यह उपयोगकर्ता को महत्वपूर्ण जानकारी से दूर या अवांछित कार्यों की ओर ले जाता है। |
Ola और Uber जैसे मोबिलिटी/टैक्सी ऐप कई चरणों, अस्पष्ट नीतियों और सीमित उपयोगकर्ता नियंत्रण बनाकर रिफंड और समस्याओं की रिपोर्टिंग को जटिल बनाते हैं. रिफंड प्राप्त करने के चरणों को आमतौर पर कई Menu layers (मेनू परतों) के पीछे इन विकल्पों को लगाकर इतना जटिल बना दिया जाता है कि उपयोगकर्ता के लिए इसका लाभ उठाना असुविधाजनक हो जाता है. उदाहरण के लिए, Ola रद्दीकरण के मामले में किराया राशि वापस नहीं करता है, बल्कि उपयोगकर्ता को एक कूपन कोड प्रदान करता है. विभिन्न उपयोगकर्ताओं ने लिंक्ड-इन पर राइड-हेलिंग ऐप्स के साथ अपने अनुभव को भी उजागर किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि इन ऐप्स पर सवारी रद्द करना विकल्पों की तीन परतों के नीचे कैसे छिपा है और उपयोगकर्ताओं के लिए एक बोझिल प्रक्रिया है. |
ड्रिप प्राइसिंग |
यह एक डार्क पैटर्न है जिसमें सुविधा शुल्क, सेवा शुल्क या प्रतीक्षा-समय लागत जैसी अतिरिक्त लागतें धीरे-धीरे लगाई जाती है, जिससे अंततः किराया शुरुआती कीमत से काफ़ी अधिक होता है. |
एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इस डार्क पैटर्न की रिपोर्ट लगभग सभी मोबिलिटी ऐप पर उपभोक्ताओं द्वारा की गई थी, जिसमें BluSmart, InDrive, Rapido, Ola और Uber शामिल हैं. वास्तव में, लगभग 40 प्रतिशत ऐप-आधारित टैक्सी उपयोगकर्ताओं को इस समस्या का सामना करना पड़ा है. कई Ola ग्राहकों ने ऑनलाइन अपनी आपबीती साझा की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे कैब बुक करते समय दिखाई गई शुरुआती कीमत उनके द्वारा दी गई अंतिम राशि से बहुत कम थी. |
स्रोत : लेखक द्वारा संकलित
ऊपर दिए गए डिसेप्टिव डिजाइंस के अलावा भी डार्क पैटर्न्स के कुछ संभावित तरीके पहचान लिए गए हैं. जब मोबिलिटी ऐप्स विभिन्न UI/UX के आधार पर विभिन्न ग्राहकों के लिए अलग-अलग किराया दर्शाते हैं, तो इसे डिफरेंशियल प्राइसिंग कहा जाता है. इस संभावित डिसेप्टिव मेकैनिज्म यानी भ्रमित करने वाले तंत्र की पहचान हाल ही में की गई है. Ola और Uber पर इसका उपयोग करने का आरोप है. यात्रियों ने यह पाया है कि एक ही मार्ग पर एक ही वक़्त में वाहन की बुकिंग करने वाले दो अलग-अलग ग्राहकों को अलग-अलग किराया दिखाया गया. यह किराया इस बात पर तय किया गया कि बुकिंग करने वाला ग्राहक आईफोन का उपयोग कर रहा है या फिर एंड्रॉयड उपकरण का इस्तेमाल कर रहा है.
हाल ही में की गई नियामक कार्रवाई जैसे कि CCPA द्वारा Ola और Uber के ख़िलाफ़ किया गया हस्तक्षेप मोबिलिटी क्षेत्र में डिजिटल मैनिपुलेशन की उभरती व्यवस्था को लेकर बढ़ रही चिंता को दर्शाता है. इस कार्रवाई की वजह से यह समझने में आसानी हो रही है कि कैसे डिसेप्टिव डिजाइंस की परंपरागत व्याख्या में मौजूद ख़ामी का डार्क पैटर्न्स डिजाइंस फ़ायदा उठा रही है. अतः ये प्रक्रियाएं डार्क पैटर्न्स की क्लासिक लिस्ट यानी प्राचीनकाल वाली सूची में भले ही ना आती हो, लेकिन इन्हें देखकर यह ज़रूरी हो जाता है कि अब तत्कालकड़े विनियमनों की आवश्यकता है.
ड्रिप प्राइसिंग या सब्सक्रिप्शन ट्रैप्स जैसे प्रचलित डार्क पैटर्न्स के कारण होने वाले नुक़सान का रियल टाइम डाटा एकत्रित कर उसका विश्लेषण करने के बाद अनुसंधानकर्ता ऐसे ठोस सबूत उपलब्ध करवा सकते हैं, जिनका उपयोग करते हुए नीति निर्माता लक्षित और अर्थपूर्ण कार्रवाई कर सकते हैं.
मौजूदा दिशा-निर्देशों में इन मंचों को जवाबदेह ठहराने के लिए आवश्यक प्रवर्तनीयता की कमी है. इस वजह से इस तरह की चालाकी से अपनाई जाने वाली तरकीबों से ग्राहक का बचाव करना संभव नहीं है. उभरती हुई तकनीक के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए भारत को अपने मौजूदा कानून को भविष्य की ओर देखने वाले सिद्धांतों के अनुरूप करते हुए सामंजस्य बिठाने की कोशिश करनी होगी. ऐसा होने पर न केवल एक ऐसा नियामक ढांचा खड़ा करने में मदद मिलेगी जो ग्राहकों के अधिकारों की न केवल आज रक्षा करें, बल्कि भविष्य में पेश आने वाली डिजिटल चुनौतियों के सामने भी प्रभावी बनकर खड़ा रहे.
इसके साथ ही डिसेप्टिव प्रैक्टिस पर प्रकाश डालने वाले गहन मार्केट स्ट्डीज यानी बाज़ार अध्ययनों की भी आवश्यकता है. ड्रिप प्राइसिंग या सब्सक्रिप्शन ट्रैप्स जैसे प्रचलित डार्क पैटर्न्स के कारण होने वाले नुक़सान का रियल टाइम डाटा एकत्रित कर उसका विश्लेषण करने के बाद अनुसंधानकर्ता ऐसे ठोस सबूत उपलब्ध करवा सकते हैं, जिनका उपयोग करते हुए नीति निर्माता लक्षित और अर्थपूर्ण कार्रवाई कर सकते हैं. यह सबूत आधारित दृष्टिकोण एक प्रभावी और निष्पक्ष विनियमन तैयार करने के लिए ज़रूरी है. ऐसे विनियमन तैयार होने के बाद ही डिजिटल माहौल में उपयोगकर्ता को भी सम्मान मिलेगा और बाज़ार की प्रक्रियाएं भी पारदर्शी बन सकेंगी.
तनुशा त्यागी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर डिजिटल सोसाइटीज में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Tanusha Tyagi is a research assistant with the Centre for Digital Societies at ORF. Her research focuses on issues of emerging technologies, data protection and ...
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