Published on Aug 22, 2024 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार के पतन के बाद सेंट मार्टिन द्वीप को लेकर नई चिंताएं उत्पन्न हुई हैं. कहा जा रहा है कि इस द्वीप पर अमेरिका की रुचि है. अमेरिका की संभावित भागीदारी की अटकलों ने नए क्षेत्रीय संघर्ष की आशंकाओं को जन्म दिया है .

सेंट मार्टिन द्वीप: बंगाल की खाड़ी में ताकतवर देशों के संघर्ष का नया बिंदु

बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की सरकार के पतन के बाद आ रही ख़बरों में कहा गया कि उन्हें सत्ता से हटाने के पीछे विदेशी हाथ है. हालांकि शेख़ हसीना ने ये बात आधिकारिक तौर पर यानी ऑन रिकॉर्ड नहीं कही है, लेकिन माना जा रहा है कि ये उनका ही बयान है. हो सकता है शायद ये गलत हो. चूंकि शेख़ हसीना को 5 अगस्त को अपने देश से भागने पर मज़बूर होना पड़ा, इसलिए उनके इस कथित बयान की अहमियत और ज़्यादा बढ़ गई है. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री को स्पष्ट रूप से ये स्वीकार करते हुए दिखाया गया है कि “वो सत्ता में बनी रह सकतीं थीं अगर उन्होंने बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण सौंपने की अमेरिका की मांगों को स्वीकार कर लिया होता”. हालांकि शेख़ हसीना के बेटे सजीब वाज़िद जॉय ने अपनी मां द्वारा दिए गए ऐसे किसी भी बयान की संभावना को खारिज़ किया है, लेकिन सजीब खुद पहले इशारों-इशारों में इस तरह के आरोप लगा चुके हैं.

शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”.

शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”. शेख़ हसीना ने आगे कहा कि "यहां कोई विवाद नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. ये भी शायद मेरा एक अपराध है". हालांकि, शेख़ हसीना ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन ये स्पष्ट है कि सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका की रुचि थी. 2023 में भी ये अफ़वाह सामने आई थी कि अमेरिका ने अवामी लीग सरकार का समर्थन करने के बदले इस द्वीप की मांग की थी.

सेंट मार्टिन द्वीप का सामरिक महत्व

सेंट मार्टिन द्वीप खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है. ये द्वीप बांग्लादेश में कॉक्स बाजार के टेकनाफ़ तट से करीब 9 किमी दक्षिण में और उत्तर-पश्चिमी म्यांमार से 8 किमी पश्चिम में है. (चित्र 1). ये द्वीप बंगाल की खाड़ी में निगरानी की दृष्टि से आदर्श जगह पर है. बंगाल की खाड़ी में निगरानी रखना अमेरिका के लिए इसलिए भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि हाल के वर्षों में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में आक्रामक नीति अपनाते हुए महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है. चीन खाड़ी के तटीय देशों में अपना निवेश लगातार बढ़ा रहा है. चीन का मक़सद ये है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत वो खाड़ी के इन तटीय देशों में अपनी स्थिति मज़बूत करे. हाल ही में इसे लेकर एक अहम घटनाक्रम हुआ था. चीन ने बांग्लादेश में पहला पनडुब्बी बेस बनाने में मदद की थी. बीएनएस शेख़ हसीना नाम का ये पनडुब्बी बेस कॉक्स बाजार के तट पर बन रहा है. 2023 में इसका उद्घाटन हुआ और इसने बंगाल की खाड़ी में चीन की पनडुब्बियों के संचालन की संभावना को खोल दिया. 2023 में ही इस तरह की रिपोर्ट्स सामने आईं थीं कि चीन ने म्यांमार के कोको द्वीप पर मलक्का जलसंधि के पास ख़ुफिया सुविधाएं बनाने की मंजूरी हासिल की है. चीन के लिए ये एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट है क्योंकि उसके ऊर्जा आयात का लगभग 80 प्रतिशत यहीं से होकर गुज़रता है. खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति व्यापक हिंद महासागर क्षेत्र और भारत-प्रशांत में उसकी विस्तारित समुद्री भूमिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. एक तरह से ये आधार रेखा है. इस क्षेत्र में चीन का मज़बूत होना भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी हितों के ख़िलाफ है. अमेरिका इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सीमित करना चाहता है.

 

चित्र 1 : बंगाल की खाड़ी में सेंट मार्टिन द्वीप की स्थिति

स्रोत: ये मैप जया ठाकुर ने बनाया है. वो एक इंडिपेंडेंट रिसर्चर और ओआरएफ, कोलकाता की पूर्व जूनियर फेलो हैं

चीन जिस तरह हिंद महासागर क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे है, उसे देखते हुए लगता है कि अगले दशक में चीन इस क्षेत्र में महान शक्ति बन सकता है. संख्या के लिहाज़ से देखें तो समुद्री जहाज बनाने के मामले में चीन पहले ही अमेरिका से आगे निकल गया है. यानी समुद्री शक्ति के मामलों में अमेरिका और चीन में जो अंतर था, वो कम होता जा रहा है. अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है. म्यांमार और बांग्लादेश में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करने के साथ ही चीन को मलक्का जलसंधि और बंगाल की खाड़ी के आसपास भी बढ़त मिली हुई है. जापान के योकोसुका में अमेरिकी नौसेना के सेवेंथ फ्लीट की मौजूदगी की वजह से तुलनात्मक रूप से अमेरिका की स्थिति भी इस क्षेत्र में मज़बूत है लेकिन अमेरिका चाहता है कि बंगाल की खाड़ी के आसपास भी उसका एक सैनिक अड्डा हो, जहां वो आपातकालीन परिस्थिति उत्पन्न होने पर तुरंत प्रतिक्रिया दे सके और ख़ुफिया जानकारी इकट्ठा करने में भी सुविधा हो. हिंद महासागर से अमेरिका की भौगोलिक दूरी बहुत ज़्यादा है. यहां से अमेरिका का सबसे करीबी सैनिक अड्डा डिएगो गार्सिया में है, जो बहुत दूर है. ऐसे में हिंद महासागर के पास एक मिलिट्री बेस अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से बहुत ज़रूरी है. इस हिसाब से देखें तो सेंट मार्टिन द्वीप इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अमेरिका की सामरिक स्थिति मज़बूत करने के लिए आदर्श जगह है. इसके अलावा अमेरिका की भारत-प्रशांत रणनीति, विशेष रूप से हिंद महासागर में, व्यापार-तकनीक-सुरक्षा दृष्टिकोण की प्रमुखता दी गई है. वरीयता के इस क्रम में अमेरिका ने प्रशांत क्षेत्र के लिए क्लासिक भू-राजनीति को छोड़ दिया है. अगर अमेरिका वास्तव में बंगाल की खाड़ी में अपनी उपस्थिति मज़बूत करना चाहता है तो वो ऊपर बताए गए तीन घटकों में से सुरक्षा घटक को संतुलित कर सकता है. हालांकि, शीत युद्ध के बाद से हिंद महासागर क्षेत्र ने पारंपरिक रूप से एक अलग तरह से महान शक्ति की भूमिका निभाई है. 1970 के दशक में क्षेत्रीय धारणा के मंथन के बाद 'शांति क्षेत्र' का संकल्प सामने आने के बाद ऐसा संभव हुआ.

अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है.

शीत युद्ध के बाद जैसे-जैसे बहुपक्षवाद का युग शुरू हुआ, अमेरिका ने हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा का बोझ साझा करने का दृष्टिकोण अपनाया. इससे सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानांतरित हो गई और क्षेत्रीय भागीदार इसका नेतृत्व करने लगे. भारत ने इस क्षेत्रीय रणनीति में एक नई भूमिका ग्रहण की, जो अमेरिका के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की वज़ह से और सशक्त हुई. हालांकि सार्क (साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ रीज़नल कोऑपपेशन) के नेतृत्व में क्षेत्रवाद की विफलता ने द्विपक्षीय और लघुपक्षीय तंत्र को मज़बूत करने के दरवाज़े खोल दिए. भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए क्वाड का दृष्टिकोण इस विकास का हिस्सा है. इसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिका समेत दूसरी बड़ी शक्तियों ने हिंद महासागर क्षेत्र में दादागीरी वाली भूमिका निभाने से परहेज किया क्योंकि इस क्षेत्र के देशों में अस्थिरता और आम सहमति की कमी है. ऐसे में सेंट मार्टिन द्वीप अमेरिका को एक रणनीतिक निरंतरता-पांचवें फ्लीट-डिएगो गार्सिया-सेंट बनाने के लिए एक आदर्श स्थान प्रदान करेगा. हालांकि इस बात की संभावना कम है कि अमेरिका बंगाल की खाड़ी में एक नई सुविधा स्थापित करने में निवेश करेगा. अगर नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी यानी डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं तो इसकी संभावना और भी कम हो जाएगी. ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि वो अमेरिकी सेना को बाहरी देशों में उलझाने और उस पर खर्च करने के इच्छुक नहीं हैं.

 

राजनीतिक मंथन के बीच सुरक्षा सुनिश्चित करना

अगर सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिकी की रूचि की कथित आरोपों से परे जाकर देखें तो ये द्वीप हमेशा विवाद का केंद्र रहा है. ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेशी मछुआरों पर म्यांमार की नौसेना द्वारा अक्सर समुद्री सीमा के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता था. ये एक ऐसा मुद्दा था जिसका समाधान 2012 में समुद्र के कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (आईटीएलओएस) द्वारा निकाला गया. हाल ही में म्यांमार में एक विद्रोही समूह अराकान सेना ने इस द्वीप पर अपना दावा किया. अराकन सेना के लोग म्यांमार की जुंटा सरकार  द्वारा की गई कार्रवाई के बाद भागकर सेंट मार्टिन द्वीप में जाना चाहते थे. हालांकि बांग्लादेश ने आधिकारिक तौर पर उसके दावे को खारिज़ कर दिया, फिर भी उसने अपने युद्धपोतों को इस द्वीप के आसपास तैनात किया. एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश को मूल्यवान संसाधन, व्यापार के अवसर और महत्वपूर्ण पर्यटन क्षमता प्रदान करता है. इसलिये, सेंट मार्टिन क्षेत्र में उथल-पुथल की मौजूदा स्थिति, शक्ति संतुलन में बदलाव और जटिल भू-राजनीति परिस्थितियों को देखते हुए सेंट मार्टिन द्वीप की सुरक्षा करना बांग्लादेश सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो. 

सेंट मार्टिन क्षेत्र में उथल-पुथल की मौजूदा स्थिति, शक्ति संतुलन में बदलाव और जटिल भू-राजनीति परिस्थितियों को देखते हुए सेंट मार्टिन द्वीप की सुरक्षा करना बांग्लादेश सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो. 

घरेलू राजनीतिक समस्याओं के लिए 'विदेशी हाथ' को ज़िम्मेदार ठहराना राजनीतिक कूटनीति का पुराना तरीका है. खासकर शीत युद्ध के समय 'विदेशी हाथ' के बहाने का काफी इस्तेमाल किया जाता था. फिलहाल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश कर रही है. ऐसे में उसे आर्थिक और शासन के असली मुद्दों का समाधान करने की ज़रूरत है, जिन्होंने छात्रों के आंदोलन को एक जन आंदोलन में बदल दिया और जिसकी वजह से पंद्रह साल पुरानी शेख़ हसीना सरकार का पतन हुआ.

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Authors

Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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