सेमीकंडक्टर (semiconductor) बनाने के कारखाने विशाल और पेचीदा संस्थान होते हैं. इन्हें चलाने के लिए चौबीसों घंटे पानी और बिजली (energy) की आपूर्ति तो चाहिए ही. इसके साथ-साथ आला दर्ज़े के केमिकल, गैस और खनिजों की भी नियमित आपूर्ति की दरकार होती है. सेमीकंडक्टर बनाने वाले कारखानों (factory) से ज़हरीले रसायन और गैस तो निकलती ही हैं. इन केद्रों से निकलने वाले ख़तरनाक कचरे के अलावा भारी पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन भी होता है, जिसे सुरक्षित रूप ठिकाने लगाने की ज़रूरत होती है. इससे भी बड़ी बात ये है कि चिप (chip) बनाने के इस पूरे चक्र के दौरान काफ़ी तादाद में लोगों और मशीनों और तक़नीक (technology) की भी ज़रूरत पड़ती है और दोनों को ही सुस्ताने का वक़्त बहुत कम मिल पाता है. सेमीकंडक्टर जिसे आम तौर पर वेफर कहा जाता है, उसे बनाने में समय का बहुत ख़याल रखना पड़ता है. अंतिम उत्पाद तैयार होने से पहले चिप (chip) को कई प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है. इसके अलावा, दुनिया भर में सेमीकंडक्टर बनाने के ज़्यादातर केंद्र 1990 के आख़िरी दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों में स्थापित किए गए थे. ऐसे में ये हैरानी की ही बात है कि उन्हें पर्यावरण में प्रदूषण कम से कम फैलाने की नीयत से नहीं तैयार किया गया था. न ही उन्हें जलवायु के हिसाब से टिकाऊ बनाया गया था. आज जब भारत सेमीकंडक्टर बनाने के सफ़र पर चल निकला है, तो भारी पूंजी निवेश, उच्च तकनीक और भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने वाले चिप बनाने के कारखाने स्थापित करने की ज़रूरत होगी. ऐसे में भारत दुनिया को दिखा सकता है कि इस बेहद अहम तकनीक को टिकाऊ तरीक़े से भी निर्मित किया जा सकता है. इससे बाक़ी दुनिया को भी भारत का मॉडल अपनाने का हौसला मिलेगा और वो सेमीकंडक्टर बनाने के मौजूदा कारखानों को अपग्रेड कर सकें और सुधारकर नए सिरे से निर्मित कर सकें.
आज जब भारत सेमीकंडक्टर बनाने के सफ़र पर चल निकला है, तो भारी पूंजी निवेश, उच्च तकनीक और भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने वाले चिप बनाने के कारखाने स्थापित करने की ज़रूरत होगी.
भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर बनाने के इन केंद्रों को स्थापित करने की महत्वाकांक्षी और बहुत सोची-समझी योजना को लागू करने की राह पर चल पड़ा है. इस कोशिश को सही तरीक़े से बनाई गई नीतियों और योजनाओं के पैमाने पर कसा गया है. इससे निर्माण केंद्रों को तैयार करने और निवेश आकर्षित करने में मदद मिल सकेगी. आज बहुत सी विशाल कंपनियां इस क्षेत्र में दिलचस्पी दिखा रही हैं.
निर्माण के इस अहम वर्ग को आगे बढ़ाने में दो प्रमुख बातों पर ख़ास तौर से ज़ोर दिया जा सकता है. ये दो बातें, नियम और प्रक्रियाएं हैं. किसी भी प्रयास की कामयाबी के लिए एक सटीक नीति सबसे अहम होती है अगर उसे पूरी मेहनत और भविष्य के नज़रिए से लागू किया जाए. जहां तक नीति की बात है तो इंडियन सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) की स्थापना, विदेशों में बड़ी तादाद में इन उच्च तकनीक के क्षेत्रों में काम कर रहे भारतीय मूल के विशेषज्ञों और भारत के नीति निर्माताओं की ताक़त से इस पहलू को पूरी योजना लागू करने में शामिल किया जा सकता है. इन नीतियों में कौशल विकास को भी शामिल किया जा सकता है. आज की तारीख़ में कौशल विकास की ये प्रक्रिया जारी ही है, जिसका ज़ोर इस वक़्त प्रक्रिया को टिकाऊ बनाना है. नियम क़ायदों के साथ साथ, इन नीतियों में सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आविष्कार, रिसर्च और विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट रूप से प्रोत्साहन को शामिल किया जा सकता है. इन नीतियों को बनाने में उच्च तकनीक के इस्तेमाल को सीमित न करने के बजाय टिकाऊ प्रक्रिया को दिमाग़ में रखा जा सकता है.
जहां तक प्रक्रिया की बात है तो तकनीक को बहुत बड़े दायरे में लागू किया जा सकता है. जहां तक ऊर्जा की ज़रूरत है, तो नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को इन प्रक्रियाओं का हिस्सा बनाया जा सकता है. इससे आगे चलकर बिजली के भंडारण की प्रक्रिया को और कुशल बनाया जा सकता है, जिससे इन सुविधाओं का कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी.
आज जब भारत, G20 की अध्यक्षता के साथ-साथ दुनिया में ‘सेमीकंडक्टर के निर्माण का बड़ा देश’ बनने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में ESG पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से इस ख़ास क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया के मिसाल बन सकता है.
भारत के लिये अवसर
चिप निर्माण की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की काफ़ी संभावनाएं हैं. ये काम सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन की सुविधाएं स्थापित करके हो सकता है. प्रक्रिया के हिस्से के तहत अन्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) और रोबोटिक्स के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे भविष्य के निर्माण केंद्रों में चिप बनाने की प्रक्रिया को छोटा किया जा सकता है. ये काम निर्माण प्रक्रिया के लिए ऐसी भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण से किया जा सकता है, जिसमें स्वदेशी संसाधन ज़्यादा लगें और लॉजिस्टिक्स की चुनौती कम से कम हो, ताकि अगर विश्व स्तर पर कोई उथल-पुतल मचे तो उसका असर भारत की अपनी निर्माण प्रक्रिया पर न पड़े. पानी को दोबारा इस्तेमाल करने की तकनीक इस्तेमाल करके और कचरे के स्थायी निस्तारण की प्रक्रिया अपनाना ही चिप निर्माण की पूरी प्रक्रिया को बदल देगा. ज़हरीली गैसों के उत्सर्जन के मानक एक और चुनौती हैं. इस समस्या से निपटने के लिए बिजली की खपत और कम नुक़सानदेह गैसों का इस्तेमाल बढ़ाया जा सकता है. चिप बनाने के कारखाने लगाने के दौरान वो सबसे अच्छे तरीक़े अपनाए जाएं, जो संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्य से मेल खाते हों. ऐसा करना, उच्च तकनीक की क्षमता की बुनियाद बन सकता है.
आज की तारीख़ में कौशल विकास की ये प्रक्रिया जारी ही है, जिसका ज़ोर इस वक़्त प्रक्रिया को टिकाऊ बनाना है. नियम क़ायदों के साथ साथ, इन नीतियों में सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आविष्कार, रिसर्च और विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट रूप से प्रोत्साहन को शामिल किया जा सकता है.
आज जब भारत, G20 की अध्यक्षता के साथ-साथ दुनिया में ‘सेमीकंडक्टर के निर्माण का बड़ा देश’ बनने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में ESG पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से इस ख़ास क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया के मिसाल बन सकता है. अकादेमिक क्षेत्र में नए नए प्रयोगों के लिए ESG के स्पष्ट दिशा-निर्देश और उद्योंगों द्वारा इन प्रयोगों का इस्तेमाल होने से न केवल औद्योगिक क्रांति 4.0 की सही राह होगी, बल्कि इससे भारत के सेमीकंडक्टर पर आधारित हरित भविष्य की नींव भी रखी जा सकेगी. दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक्स की डिज़ाइन और निर्माण की आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए उद्योगों के संगठन SEMI ने हाल ही में सेमीकंडक्टर क्लाइमेट कंसर्शियम (SCC) बनाया है. 1 नवंबर 2022 को हुए एलान के मुताबिक़, इसमें 60 से अधिक संस्थापक सदस्य हैं. इसके लिए भारत अपने सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के तहत ESG की समिति या उद्योग के लिए एक अलग संगठन बना सकता है. ये संगठन या समिति भारत में चिप निर्माण के कारखाने स्थापित करने में अहम सुझाव दे सकते हैं. चूंकि आज के भू-राजनीतिक दौर में चिप को ‘खरा सोना’ कहा जा रहा है. क्योंकि आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो रही हैं और कुछ ख़ास देशों और कंपनियों का इस कारोबार पर एकाधिकार होने की आशंका भी ज़ाहिर की जा रही है. ऐसे में चिप निर्माण के क्षेत्र में अगर भारत टिकाऊ प्रक्रिया को अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना लेता है, तो फिर बाक़ी दुनिया को उसी रास्ते पर चलना पड़ेगा.
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