नग़मा – पाकिस्तान एवं चीन के गहरे संबंध एवं चीन द्वारा भारी निवेश के बावजूद चीनी नागरिक पाकिस्तान को छोड़ कर जा रहें है, इस स्थिति में पाकिस्तान कैसे चीन का भरोसा जीतें?
समीर पाटिल – हाल ही में कराची विश्वविद्यालय में आतंकवादी हमला हुआ जिसमें चीनी नागरिकों की मृत्यु हुई, कराची में हुए हमले से पूर्व दो हमले पहले भी हो चुके है, जिससे चीन काफ़ी खफ़ा है कि पाकिस्तान चीनी नागरिकों को सुरक्षा का विश्वास नहीं दिला पा रहा जिसके चलते चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा एक चक्रव्यूह में फँसता नजर आ रहा है.
पांच वर्ष पूर्व जब चीन द्वारा बलूचिस्तान जैसे क्षेत्र में निवेश किया जा रहा था तब ऐसे सवाल उठे थे की इन क्षेत्रों में चीन क्यों निवेश कर रहा है तब पाकिस्तान द्वारा चीन को यह विश्वास दिलाया गया की इन क्षेत्रों में आतंकवादी गतिविधियों के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है, और वो चीन की सुरक्षा करने में कामयाब रहेगा. लेकिन इन हमलों को देखते हुए पाकिस्तान पुरी तरह से नाकाम हुआ एवं पाकिस्तान की सुरक्षा नीति खस्ता हाल हो रही है.
वर्तमान में पाकिस्तान भी आर्थिक संकट से गुजर रहा है, पाकिस्तान को तो चीन से मदद की उम्मीद है किन्तु चीन को लगता है कि पाकिस्तान लोन की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पायेगा.
दूसरी ओर हम आर्थिक स्थिति की बात करें तो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का कार्य बहुत ही धीमी गति से चल रहा है और इसका प्रमुख कारण पूर्व में इमरान ख़ान सरकार रही है, क्योंकि जब पाकिस्तान में इस योजना को लाया गया था तब नवाज़ शरीफ की पार्टी द्वारा लाया गया था और इमरान ख़ान सरकार ने राजनीतिक कारणों के चलते इस योजना को पूर्ण नहीं होने दिया जिसकी वजह से चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारा रुक सा गया है. हाल ही में एक रिपोर्ट आयी है, जिसमें कहा गया है की 2015 से लेकर अब तक 300 मिलियन डॉलर तक के प्रोजेक्ट लागू हो चुका है जबकि यह कुल मिलाकर दो अरब डॉलर का प्रोजेक्ट था, तो इससे यह पता चलता है कि पाकिस्तान सरकार ने यह कैसा रवैया अपनाया है, जिससे चीन खफ़ा है. वर्तमान में पाकिस्तान भी आर्थिक संकट से गुजर रहा है, पाकिस्तान को तो चीन से मदद की उम्मीद है किन्तु चीन को लगता है कि पाकिस्तान लोन की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पायेगा. दूसरी ओर हम ग़ौर करें तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी अपने प्रोग्राम अभी रोक दिए है, क्योंकि IMF चाहता है कि पाकिस्तान में पहले आर्थिक हालात बेहतर हो जाएं. और वर्तमान में शाहबाज़ शरीफ़ सरकार यह चाहती है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक गालियारा का कार्य फिर से शुरू करें लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान सेना की ओर से यह भी दबाव आया है कि, यदि चीन की ओर बढ़ते है तो पाकिस्तान – अमेरिका संबंध की समस्या ख़डी हो जाती है. जिसके फलस्वरूप चीन -पाकिस्तान आर्थिक गालियारा एक चक्रव्यूह में फँसता जा रहा है.
नग़मा – पाकिस्तान की पूर्व सरकार के अमेरिका के साथ बिगड़े संबंधो के चलते वर्तमान सरकार अमेरिका से उम्मीद ना लगाकर चीन से मदद की उम्मीद की जा रही है, वहीं चीन यह मांग कर रहा है कि पाकिस्तान, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLI) पर जवाबी कार्यवाही करें, पाकिस्तान के पास क्या विकल्प है?
समीर पाटिल – BLI के साथ पाकिस्तान नें शान्ति का प्रयास कई बार किया है एवं BLI नें पाकिस्तान पर लगातार सुरक्षा बल और एनर्जी पाइप लाइन पर प्रतिदिन हमले किए. किन्तु जब से पाकिस्तानी सेना ने जवाबी कार्यवाही की तब उन्होंने सुरक्षा बल की जगह चीनी नागरिकों को अपना निशाना बनाया, क्योंकि उन्हें भी इस गंभीरता का आभास है की चीनी नागरिकों पर किए हमले से पाकिस्तान पर दबाव बना रहेगा एवं चीनी नागरिक यह जगह छोड़ने को विवश होंगे, यही उनकी रणनीति है, हालांकि, बीजिंग से दबाव रहेगा किन्तु पाकिस्तान अपनी ओर से पूरी कोशिश कर चुका है.
चीन ने श्रीलंका की आधारभूत संरचना विकास को पूरा करने की कोशिश की थी. और यही कार्य क्वॉड देश पूरा कर सकते हैं, किन्तु यहाँ गौर करें कि अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन, जिसका प्रस्ताव श्रीलंका को दिया था जिसको क्वॉड प्रमोट करता है, उस प्रस्ताव को श्रीलंका नें सिरे से ख़ारिज किया था.
नग़मा – भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका भी चीन के कर्ज़ जाल में फंस गया है, एवं चीन की वन-बेल्ट-वन-रोड परियोजना एवं कर्ज़ जाल नीति के तहत श्रीलंका, अफ़्रीकी देश एवं दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में कई द्वीप कर्ज़ के जाल में फँसे है, भारत क्वॉड के साथ मिलकर कैसे अपनी व पड़ोसी देशों की सुरक्षा करेगा?
समीर पाटिल – वर्तमान में श्रीलंका की आर्थिक स्थिति की जड़ें काफ़ी पहले की है, गौर करें 2009 में जब महिंदा राजपक्षे नें गृह युद्ध के चलते श्रीलंका में आर्थिक सुधार करने के लिए, आर्थिक विकास के लिए प्रयास किए, तब चीन ने आर्थिक मदद की थी. किन्तु यह चीन की रणनीति थी जिसमें चीनी तकनीक़, चीनी श्रमिक, चीनी मशीन एवं चीनी कंपनी हो, जिससे चीन को अधिकाधिक लाभ हो, यही रणनीति चीन ने श्रीलंका में लागू की जिसकी वज़ह से श्रीलंका की क्षेत्रीय कंपनी को कोई लाभ नहीं हुआ एवं राजपक्षे सरकार ने चीन से नज़दीक एवं अपने राजनीतिक फायदे के लिए हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्ष तक चीन को लीज पर दे दिया. चीन ने श्रीलंका की आधारभूत संरचना विकास को पूरा करने की कोशिश की थी. और यही कार्य क्वॉड देश पूरा कर सकते हैं, किन्तु यहाँ गौर करें कि अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन, जिसका प्रस्ताव श्रीलंका को दिया था जिसको क्वॉड प्रमोट करता है, उस प्रस्ताव को श्रीलंका नें सिरे से ख़ारिज किया था. अब यह मान सकते है की श्रीलंका के सम्मुख चीन के अलावा ओर भी स्त्रोत है किन्तु यह निर्णय श्रीलंका की सरकार को ही लेना होगा क्योंकि वे ही श्रीलंका के सूत्रधार है. दूसरी तरफ भारत एवं जापान ने भी एक बार पहले बंदरगाह विकास का प्रस्ताव दिया था जिसको भी श्रीलंका ने ख़ारिज किया था. अतः हम यह मान सकते हैं कि श्रीलंका के सम्मुख चीन के अलावा और भी देश है जिससे आर्थिक हालात सुधारे जा सकते है किन्तु निर्णय श्रीलंका को ही लेना होगा.
नग़मा – हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सामरिक रूप से श्रीलंका की बहुत अहमियत है, वहीं श्रीलंका की अस्थिरता सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए एवं हिन्द प्रशांत क्षेत्र के लिए कहाँ तक चिंता का विषय है?
समीर पाटिल – हिन्द प्रशांत क्षेत्र की महत्ता को देखे तो हंबनटोटा बंदरगाह जो सप्लाई चैन एवं फ्री लाइन ऑफ कम्युनिकेशन की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है, यदि यह चीन के प्रभाव में है तो सप्लाई चैन इससे निश्चित रूप से प्रभावित होगी. पिछले वर्षो से कई रिपोर्ट ऐसी आयी है जिसमें बताया गया है की चीन की पनडुब्बीयाँ हम्बनटोटा एवं कोलम्बो बंदरगाह पर नज़र आयी है जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि चीन द्वारा हिन्द प्रशांत क्षेत्र में युद्धपोत दिखानें के कारण न सिर्फ़ भारत की सुरक्षा बल्कि पुरे सामरिक क्षेत्र के लिए चिंता का विषय है. अतः वहाँ जल्द ही स्थिति का सुधरना आवश्यक है.
प्रधानमंत्री मोदी ने लुम्बिनी में जाकर उस स्थान पर इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर फॉर बुद्धिस्ट कल्चर एंड हेरिटेज को खोला है, जिसके द्वारा विवादों को ख़त्म करने का प्रयास किया गया है एवं यह भी दर्शाया गया की भारत यह मानता है की लुम्बिनी में ही बुद्ध का जन्मस्थान है.
नग़मा – भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें हाल ही नेपाल का 5 वां दौरा किया, यह दौरा बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर किया गया, चीन द्वारा नेपाल में किया गया निवेश एवं बढ़ते संबंधो को भारत किस तरह देखता है एवं इस दौरे की अहमियत क्या होगी?
समीर पाटिल – शेर बहादुर देउबा जब से नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने है तब से यह कयास लगाए जा रहें है कि भारत एवं नेपाल के संबंध और मधुर होंगे क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री के.पी.ओली शर्मा चीन के बहुत नज़दीक थे एवं चीन के प्रभाव को नेपाल में बढ़ाना चाहते थे. इसके फलस्वरूप भारत एवं नेपाल के संबंधो में कड़वाहट आ गयी थी तथा सीमा विवाद को लेकर भी मतभेद हुए थे लेकिन जब से शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने है तब से उनकी कोशिश रही है कि भारत एवं नेपाल के संबंध और बेहतर हो. दोनों प्रधानमंत्री (मोदी एवं देउबा) के बीच संबंध अच्छे हो तथा एक माह पूर्व शेर बहादुर देउबा कि दिल्ली में अधिकारिक यात्रा हुई जिसमें एनर्जी ट्रांसमिशन एवं इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के मुद्दों पर समझौते हुए एवं बीच में हुई कड़वाहट को दूर करने का प्रयास किया गया. दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी नें लुम्बिनी का दौरा किया और एक संदेश दिया की भारत और नेपाल एक संस्कृति एवं विरासत साझा करते है. वहीं नेपाल को एक सवाल वर्षो से खटक रहा था की गौतम बुद्ध के जन्म स्थान को लेकर जो विवाद रहा है वो भी प्रधानमंत्री मोदी ने लुम्बिनी में जाकर उस स्थान पर इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर फॉर बुद्धिस्ट कल्चर एंड हेरिटेज को खोला है, जिसके द्वारा विवादों को ख़त्म करने का प्रयास किया गया है एवं यह भी दर्शाया गया की भारत यह मानता है की लुम्बिनी में ही बुद्ध का जन्मस्थान है. कोशिश यह भी है की उत्तरप्रदेश और बिहार को मिलाकर बुद्धिस्ट सर्किल बनाया जाए और बोद्धगया व सारनाथ को मिलाकर तथा लुम्बिनी के साथ मिलकर एक इतिहास एवं संस्कृति साझा की जाए. वहीं चीन की बात की जाए तो चीन केवल लुम्बिनी में ही उपस्थित है वहीं भारत -नेपाल बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिन्दू धर्म के रूप में भी जुड़े है. पिछले कई वर्षो से यह अनुमान लगाए जा रहे थे कि भारत सॉफ्ट पॉवर का उपयोग नहीं करता किन्तु इस यात्रा के उपरांत यह प्रतीत होता है की प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सॉफ्ट पॉवर का उपयोग किया जा रहा है और इस वजह से भी भारत-नेपाल के संबंध और मधुर हुए है.
भारत की विदेश नीति के तहत मोदी सरकार ने जो ‘पड़ोसी पहले की नीति’ अपनाई थी, अब इसको लागू करने का समय आ गया है एवं SAARC एवं BIMSTEC जैसे मंचों द्वारा इन मुद्दों को सुलझाने का सही समय है.
नग़मा – इस चर्चा का हम निष्कर्ष निकाले तो हम यह पायेंगे की भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान एवं श्रीलंका में राजनीतिक उथल पुथल और आर्थिक संकट मंडराया हुआ है, वहीं अफगानिस्तान पर तालिबान का आधिपत्य है, इन सब परिस्थिति के चलते भारत अपनी सुरक्षा कैसे कर पाएगा?
समीर पाटिल – इन सब परिस्थिति को देखे तो कहीं भी भारत विरोधी गतिविधि शामिल नहीं है. यदि श्रीलंका की बात करें वहाँ चीन का विरोध हो रहा है भारत का नहीं क्योंकि भारत नें श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने में सहायता की है जिसकी बहुत सराहना की जा रही है. वहीं नेपाल में जो स्थिति बनी है, कोविड के समय से नेपाल-चीन के बीच मतभेद हुए है जिसका फायदा भारत अपनी उपस्थिति से उठा रहा है. पाकिस्तान की बात करें तो वहाँ भी पाकिस्तान विरोधी तत्व चीनी नागरिकों को वापस लौटने को विवश कर रहें है तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का कार्य भी रुका हुआ है जिसके चलते चीन -पाकिस्तान में मतभेद हुए है. इन सब में कहीं भी भारत का विरोध नहीं हो रहा यही सबसे अच्छी बात है. भारत की विदेश नीति के तहत मोदी सरकार ने जो ‘पड़ोसी पहले की नीति’ अपनाई थी, अब इसको लागू करने का समय आ गया है एवं SAARC एवं BIMSTEC जैसे मंचों द्वारा इन मुद्दों को सुलझाने का सही समय है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान आधिपत्य करने पर वहाँ की सुरक्षा संबंधित स्थिति काफ़ी नाजुक है वहाँ भी भारत ने यथासम्भव मदद की चाहे वो प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क हो या कोविड के समय टीकाकरण देने का कार्य किया हो. यहाँ तक की अफ़ग़ान सेना के लगभग 80 सैनिको को शरण दी तथा एक और वर्ष तक भारतीय तकनीक कार्यक्रम में हिस्सा ले सकते है एवं भारत में रह सकते है, अतः हम यह मान सकते है की भारत नें दूरदर्शिता दिखाई है.
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