Author : Vinitha Revi

Published on Oct 13, 2022 Updated 24 Days ago

आईएमएफ की कठोर राहत पैकेज (बेलआउट) शर्तों और चीन के अलग दृष्टिकोण को देखते हुए, श्रीलंका की आर्थिक सुधार की राह लंबी और कठिन रहने वाली है.d

श्रीलंका: एशिया की भू-राजनीति से कैसे निपटेगा

श्रीलंका धीरे-धीरे अकल्पनीय उथल-पुथल और अनिश्चितता के दौर से बाहर निकल रहा है. गंभीर ईंधन, भोजन और दवा की कमी, कमर तोड़ते कर्ज, नकारात्मक विकास, आसमान छूती मुद्रास्फीति और घटते विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से श्रीलंका अपनी आजादी के बाद के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा था. हालांकि अब उसने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ प्राथमिक समझौता, जिसे ‘स्टाफ लेवल एग्रीमेंट’ कहा जा रहा है, कर लिया है. इसके तहत उसे अब विस्तारित कोष सुविधा यानी एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईईएफ) से 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध हो जाएंगे. यह श्रीलंका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों, जो विविध और स्वाभाविक रूप से आपस में जुड़ी हुई है, से निपटने की दिशा में केवल एक छोटा और विनम्र पहला कदम है. संकट के वापसी की आहट देखकर श्रीलंका अब इस तूफान से निपटने के लिए बड़े कर्जदारों की ओर बड़ी आशा के साथ देख रहा है.

आईएमएफ से राहत रामबाण इलाज नहीं

कोविड महामारी के दौरान आय में घाटा और पोषण में भारी कमी के कारण यह द्वीप राष्ट्र सफलतापूर्वक उबर नहीं पाया है. पटरी पर लौटने की कोशिश करते देश के राष्ट्रपति एवं वित्त मंत्री रानिल विक्रमसिंघे मानते हैं कि आईएमएफ से मिली राहत से ही श्रीलंका की सभी समस्याएं हल नहीं हो जाएंगी. पहले तो इस राहत पैकेज को आईएमएफ के वरिष्ठ प्रबंधन से मंजूरी मिलेगी. इसके बाद भी काफी महीनों तक यह कोष उपलब्ध नहीं हो सकेगा. श्रीलंका के पर्यटन मंत्री हरिन फर्नाडो ने एक साक्षात्कार में संकेत दिया कि उन्हें उम्मीद है कि, ‘‘आईएमएफ का राहत पैकेज अगले वर्ष की शुरुआत में ही श्रीलंका को उपलब्ध हो सकेगा.’’

आईएमएफ चाहेगा कि अब वह इस संकट का उपयोग श्रीलंका में दीर्घकालीन बुनियादी सुधार पर बल देने के लिए करें. आईएमएफ मानता है कि, ‘जब कोई देश आईएमएफ से उधार लेता है, तो वह आर्थिक और संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने के लिए नीतियां बनाने को लेकर प्रतिबद्ध होता है.’’

आईएमएफ के राहत पैकेज आमतौर पर देश की वित्तीय आवश्यकताओं, उस देश की कर्ज लौटाने की क्षमता और आईएमएफ संसाधनों को लेकर उसके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को लेकर निर्देशित होते हैं. चूंकि श्रीलंका के सात दशकों के इतिहास में उसका यह 17वां आईएमएफ राहत पैकेज हैं, अत: आईएमएफ चाहेगा कि अब वह इस संकट का उपयोग श्रीलंका में दीर्घकालीन बुनियादी सुधार पर बल देने के लिए करें. आईएमएफ मानता है कि, ‘जब कोई देश आईएमएफ से उधार लेता है, तो वह आर्थिक और संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने के लिए नीतियां बनाने को लेकर प्रतिबद्ध होता है.’’

अस्थायी व्यवस्था के तहत दी जाने वाली राहत की तुलना में ईईएफ अपने दीर्घकालीन रवैये की वजह से विशेष हो जाता है. आईएमफ की अन्य व्यवस्थाओं की तुलना में ‘दीर्घकालीन संवाद और दीर्घकालीन पुर्नभुगतान अवधि’ व्यवस्था के कारण ईईएफ संरचनात्मक  सुधारों पर ध्यान केंद्रीत करता है. धीमे विकास या सीधे संरचनात्मक बाधाओं से जुड़े भुगतान संतुलन की कठिनाइयों का सामना कर रहे देशों की मदद करने की दृष्टि से स्थापित किए गए ईईएफ में विशिष्ट शर्तें और प्रमुख नीति सुधार शामिल होंगे. केवल समय ही राहत पैकेज से जुड़ी शर्तों की प्रकृति और कठोरता को उजागर करेगा. लेकिन उचित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के बगैर श्रीलंका के लोगों के दैनिक जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. विक्रमसिंघे ने जनता को बिल्कुल सही चेतावनी ही दी थी कि चीजें बेहतर होने से पहले बहुत खराब हो जाएंगी.

विकल्पों की खोज

आईएमएफ से जल्दी से जल्दी निधि हासिल करना बेहद अहम होने के बावजूद विक्रमसिंघे वर्तमान संकट से निपटने के लिए केवल इसी राहत पैकेज पर निर्भर रहने में अपना वक्त बर्बाद नहीं कर रहे. वे अल्प और दीर्घकालीन विकल्पों को भी खोज रहे हैं. इसके लिए वे अपने द्विपक्षीय सहयोगियों से बात कर रहे हैं. ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में द्विपक्षीय कूटनीति कितनी अहम होती है यह बात एक बार फिर साफ हो रही है. संभवत:, यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में छोटे देशों के लिए शक्ति संतुलन की प्रवृत्ति को भी दर्शाता है. शक्ति संतुलन सिद्धांत के केंद्र में अति-निर्भरता की स्थिति में स्वतंत्रता बनाए रखने की इच्छा रहती है. विक्रमसिंघे को पता है कि आईएमएफ की ओर से ईईएफ के तहत दी जा रही राहत निधि के कारण श्रीलंका की आर्थिक नीतियां आने वाले अनेक वर्षो तक प्रभावित होती रहेगी. विक्रिमसंघे को उम्मीद है कि शायद कोई भी अतिरिक्त और वैकिल्पक वित्तपोषण त्वरित पुर्नभुगतान और अधिक लचीलापन सुनिश्चित कर सकता है.

राजनीति से परे उठकर भारत की ओर से मुहैया करवाई गई सहायता की सराहना हुई है. विक्रमसिंघे ने बार-बार भारत की जरुरत के समय पर की गई सहायता को स्वीकार किया है. विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने भी कहा, ‘‘भारत ने विशेष रूप से इस महत्वपूर्ण मोड़ पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

विक्रिमसंघे ने बहुत पहले ही एक अंतर्राष्ट्रीय सहायता समूह के माध्यम से वित्तीय सहायता लेने की अपनी प्राथमिकता स्पष्ट करते हुए संकेत दिया था कि वे विदेशी दूतों के साथ इसे लेकर चर्चा कर रहे हैं. इसके बाद संसद में उन्होंने कहा, ‘‘हमें भारत, जापान और चीन के समर्थन की जरूरत है, जो हमारे ऐतिहासिक सहयोगी रहे हैं.’’ ऐसे में यह देखा जा सकता है कि श्रीलंका अपने सभी सहयोगियों तक पहुंच रहा हैं.

भारतीय सहायता : बेहद प्रशंसनीय

आर्थिक संकट के शुरुआती महीनों में विशेष रूप से कर्ज, ऋण स्थगन, उधार देना अर्थात क्रेडिट लाइन तथा मुद्रा की अदला-बदली यानी विनियम के माध्यम से भारत ने श्रीलंका की जो वित्तीय सहायता और सहयोग किया है वह किसी से छुपा नहीं है. राजनीति से परे उठकर भारत की ओर से मुहैया करवाई गई सहायता की सराहना हुई है. विक्रमसिंघे ने बार-बार भारत की जरुरत के समय पर की गई सहायता को स्वीकार किया है. विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने भी कहा, ‘‘भारत ने विशेष रूप से इस महत्वपूर्ण मोड़ पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है… भारत ने इस समय में आगे बढ़कर हमारा समर्थन किया है.’’

भारत के विदेश मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए नई दिल्ली ने 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता मुहैया करवाई है. श्रीलंका को लेकर भारत के साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में  उलझे होने के बावजूद चीन ने भी यह माना कि, “भारतीय सरकार ने एक बड़ा प्रयास किया है…” और कहा कि वह भारत तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है. लेकिन हाल ही में युआन वांग 5 के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचने को लेकर उपजे विवाद के बाद इन दोनों देशों के बीच राजनीतिक गतिशीलता में कुछ तनाव और जटिलता जुड़ गई है.

श्रीलंका की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए चीन ने जो रवैया चुना है वह यह है कि वह श्रीलंका की अपने बेल्ट एंड रोड परियोजना के ढांचे के तहत सहायता करना या फिर अपने हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो बंदरगाह परियोजना के तहत मदद देना या फिर अग्रीम व्यापार के माध्यम से सहायता देना है.

चीन का मुद्दा : बीआरआई परियोजनाओं को आगे बढ़ाना और एफटीए में तेजी लाना

न्यूयॉर्क में सितंबर माह में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान श्रीलंका के विदेश मंत्री अली सेबरी ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी. यी ने कहा कि चीन और श्रीलंका ‘‘एक दूसरे के रणनीतिक साझेदार और सहयोगी हैं’’, और दोनों देशों ने ‘‘हमेशा सुख-दुख साझा करते हुए ईमानदारी से एक-दूसरे की मदद की है.’’ यी ने इस बात का भी उल्लेख किया कि इस वर्ष दोनों के बीच कूटनीतिक संबंधों को 65 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इसी प्रकार दोनों देशों के बीच हुए राइस-रबर संधि की इस वर्ष 70 वीं वर्षगांठ भी हैं. इस संधि को दोनों देश ऐतिहासिक मानते है. श्रीलंका में तो इसे सबसे उपयोगी, सबसे मजबूत तथा सफल संधि कहा जाता है.

चीन के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद एक बयान में कहा गया है कि, ‘‘कथित चीनी ‘कर्ज जाल’ का दावा एक आधारहीन अफवाह है’’ और इसे ‘‘चुनिंदा देशों ने ‘कर्ज जाल’ की अफवाह को तैयार कर फैलाया है.’’ इसमें कहा गया है कि, ‘‘श्रीलंका ने चीन के साथ ही अन्य देशों से आने वाले सभी देशों के निवेश का स्वागत किया है.’’ हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आपसी समझ और एक-दूसरे के लिए निरंतर समर्थन के समग्र इतिहास के बावजूद, (पहले से दी जा रही मानवीय सहायता में 74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अलावा), चीन ने इस बैठक में वित्तीय सहायता के मामले में कुछ भी ठोस वादा नहीं किया है. बयान में केवल इतना कहा गया है कि, ‘‘श्रीलंका को चीन ने औषधि, चावल, ईंधन और अन्य आपातकालीन मानवीय सहायता मुहैया करवाई है तथा वह अपनी क्षमता के हिसाब से श्रीलंका को वर्तमान मुश्किलों का सामना करने और उससे उबरने में सहायता देता रहेगा.’’

श्रीलंका की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए चीन ने जो रवैया चुना है वह यह है कि वह श्रीलंका की अपने बेल्ट एंड रोड परियोजना (बीआरआई) के ढांचे के तहत सहायता करना या फिर अपने हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो बंदरगाह परियोजना के तहत मदद देना या फिर अग्रीम व्यापार के माध्यम से सहायता देना है. इस संदर्भ में चीन का ध्यान, ‘‘मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत को तेज करना और जल्द से जल्द इस पर समझौता करने पर है, ताकि मजबूत भरोसे, स्थायी उम्मीदों के साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग किया जा सके.’’

जापान : नेतृत्व करने को तैयार

इसी बीच जापान के पूर्व प्रधानमंत्री आबे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए टोकियो की आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और अन्य उच्चाधिकारियों से मुलाकात की थी. विक्रमसिंघे ने जापान से गुजारिश की थी कि वह श्रीलंका के कजर्दारों से उसकी बातचीत की अगुवाई करें. जापान के विदेश मंत्री हयाशी ने भी कहा कि जापान ऐसा करने को लेकर उत्सुक है.

विक्रमसिंघे ने आगे इस बात पर खेद जताया कि दोनों देशों के बीच संबंधों मे दरार आ गई है. इसका मुख्य कारण यह था कि पूर्व की गोटाबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार ने जापान की अनेक निवेश परियोजनाओं को रद्द कर दिया था. सहयोग की दिशा में एक नई शुरुआत का संकेत देते हुए उन्होंने जापान की इन परियोजनाओं को पुन: आरंभ करने को लेकर अपनी उत्सुकता भी व्यक्त की. जापान ने श्रीलंका को 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर्स की मानवीय सहायता दी है और कहा जाता है कि 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर्स की अतिरिक्त सहायता और दी जाने वाली है.

एक ओर जहां सेबरी ने यी के साथ अपनी बैठक में श्रीलंका की आर्थिक स्थिति में सुधार में बीआरआई परियोजना की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया, वहीं प्रधानमंत्री किशिदा ने विक्रमसिंघे के साथ अपनी मुलाकात का उपयोग यह कहने में किया कि ‘‘इस वर्ष जापान और श्रीलंका के बीच राजनायिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ है. अत: उन्हें उम्मीद है कि स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की प्राप्ति की दिशा में’’ काम करके दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लाया जा सकता है.

एक ओर जहां भारत और जापान आईएमएफ के साथ श्रीलंका की योजनाओं का समर्थन करने को तैयार हैं, वहीं चीन पुनर्गठन पर पुनर्वित्त  को अपनी प्राथमिकता बता रहा है. श्रीलंका को अगर वर्तमान आर्थिक संकट से उबरना है तो उसे चीन की श्रीलंका को सहायता करने के इच्छा की जरूरत होगी.

श्रीलंका को कर्ज देने वाले उसके द्विपक्षीय सहयोगियों से बात करने के अलावा विक्रमसिंघे ने यूनाइटेड किंगडम (यूके) तथा फिलिपिन्स की आधिकारिक यात्रा करने के साथ अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से भी संपर्क किया है. यूके में श्रीलंकाई उच्चायोग द्वारा आयोजित एक बैठक में उन्होंने यूके में श्रीलंकाई प्रवासियों से भी मुलाकात कर उन्हें निवेश के नए अवसरों को खोजकर श्रीलंका की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया.

भविष्य पर निगाहें 

आर्थिक स्थिति में सुधार की राह बेहद लंबी और मुश्किल होगी. आईएमएफ राहत पैकेज जब भी मिलेगा तो वह अपने साथ निस्संदेह कई कठोर शर्तों को लाएगा. कुछ शर्ते खुली होंगी और कुछ छुपी रहेंगी. बेसब्री के साथ पर्यायी और अतिरिक्त वित्तीय सहायता हासिल करने की कोशिशों में जुटे विक्रमसिंघे भी अंतत: यह स्वीकार करते हैं कि, ‘‘आईएमएफ का प्रस्ताव अच्छा है या बुरा, कोई इसे पसंद करें अथवा न करें, लेकिन वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने के लिए इसे लागू करना ही होगा.’’ इसके साथ ही वे यह भी  कहते हैं कि, ‘‘यदि इसमें चिंता की कोई बात नजर आती है तो सरकार के पास इस प्रस्ताव को चुनौती देने का अधिकार है.’’

आईएमएफ ने साफ कर दिया है कि वित्तीय सहायता लेनदारों के एक सहयोगी समझौते पर पहुंचने पर निर्भर है. चूंकि चीन, भारत और जापान मुख्य लेनदार – राष्ट्र हैं, अत: उनके ही कर्ज पुर्ननिर्धारण और पुनर्रचना पुनर्भुगतान के लिए सहमत होने की आवश्यकता होगी. एक ओर जहां भारत और जापान आईएमएफ के साथ श्रीलंका की योजनाओं का समर्थन करने को तैयार हैं, वहीं चीन पुनर्गठन पर पुनर्वित्त  को अपनी प्राथमिकता बता रहा है. श्रीलंका को अगर वर्तमान आर्थिक संकट से उबरना है तो उसे चीन की श्रीलंका को सहायता करने के इच्छा की जरूरत होगी. राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने भले ही यह कहा हो कि देश को ‘‘एशियाई क्षेत्र की भू-राजनीति में फंसे बगैर’’ अपने विदेशी कर्ज के मसले पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन ऐसा करना चुनौतीपूर्ण होगा.

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