हाल के दिनों में दक्षिण कोरिया की इंडो-पैसिफिक रणनीति, द्विपक्षीय रक्षा समझौते और पिछले दिनों आयोजित कोरिया-भारत विदेश नीति एवं सुरक्षासंवाद भारत और दक्षिण कोरिया के बीच अलग-अलग मुद्दों पर एक जैसे रुख़ को दिखाते हैं. लेकिन बढ़ता व्यापार घाटा एक चिंता का विषय है, इसकीवजह से दोनों देशों के बीच संबंध उलझन में है.
कोरियाई युद्ध (1950-53) के बाद दक्षिण कोरिया अपनी सुरक्षा के लिए मुख्य रूप से अमेरिका पर निभर्र हो गया. इस दौरान दक्षिण कोरिया की विदेशनीति काफ़ी हद तक उत्तर कोरिया और उसकी परमाणु धमकी तक सीमित रही. दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद दक्षिणकोरिया की इस बात के लिए आलोचना की जाती रही है कि वो वैश्विक राजनीति का सक्रिय किरदार न हो कर एक पर्यवेक्षक बना हुआ है. एक मज़बूतकूटनीतिक रूपरेखा की आवश्यकता थी, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में. इसलिए दक्षिण कोरिया ने अपनी पहली व्यापक क्षेत्रीय रणनीति यानीइंडो-पैसिफिक रणनीति की शुरुआत की. इस रणनीति को दक्षिण कोरिया के द्वारा अमेरिका के साथ अपने सुरक्षा गठजोड़ को सुदृढ़ बनाकर, सुरक्षासाझेदारी में विविधता लाकर और एक मुक्त, शांतिपूर्ण एवं समृद्ध इंडो-पैसिफिक की वक़ालत करके ख़ुद को एक वास्तविक मध्यम शक्ति वाले देश केतौर पर बनाने की उत्साही कोशिश के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है.
दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद दक्षिण कोरिया की इस बात के लिए आलोचना की जाती रही है कि वो वैश्विक राजनीति का सक्रिय किरदार न हो कर एक पर्यवेक्षक बना हुआ है. एक मज़बूत कूटनीतिक रूपरेखा की आवश्यकता थी, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में.
इस बीच अपनी वर्तमान स्थिति में दक्षिण कोरिया ने गठबंधन एवं स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाने में संघर्ष किया है और उसने कभी भी अमेरिका कीमौजूदगी के बिना अपनी विदेश नीति की पूरी तरह छानबीन नहीं की है. इस क्षेत्र में अमेरिका-चीन के बीच तेज़ होती दुश्मनी के बीच ये सामरिकदस्तावेज़ दक्षिण कोरिया के सुरक्षा साझेदार अमेरिका और आर्थिक साझेदार चीन- जो न केवल दक्षिण कोरिया का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार हैबल्कि उत्तर कोरिया के परमाणु मुक्त होने में एक बड़ा हिस्सेदार भी है- के बीच उसी संतुलनकारी कार्य को दिखाता है. लेकिन सबको साथ लेकर चलनेका तरीक़ा दक्षिण कोरिया को एक निष्क्रिय हिस्सेदार होने तक सीमित कर रहा है. इसलिए दक्षिण कोरिया को भारत जैसे देश के साथ संबंधों कोमज़बूत करके इस क्षेत्र में बढ़त हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाने की आवश्यकता है. इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत को एक विशेषसामरिक साझेदार बताया गया है और हाल ही में आयोजित पांचवीं कोरिया-भारत विदेश नीति एवं सुरक्षा संवाद एक सकारात्मक तस्वीर पेश करता है. लेकिन द्विपक्षीय व्यापार में धीमी बढ़ोतरी, दक्षिण कोरिया के साथ भारत का बढ़ता व्यापार घाटा और आक्रामक द्विपक्षीय सुरक्षा संबंध नहीं होना एककठिन संबंध दिखाता है.
भारत के साथ संबंध
वर्ष 2023 में दक्षिण कोरिया और भारत के बीच कूटनीतिक संबंध के 50 साल पूरे हो रहे हैं. दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति मून जे-इन के द्वारा2017 में "नई दक्षिणी नीति (NSP)" की शुरुआत के बाद दक्षिण कोरिया और भारत के बीच रिश्तों में महत्वपूर्ण विकास हुआ है. दक्षिण कोरिया कीसरकार ने भारत के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी है और पड़ोसी देशों के साथ सामरिक, सांस्कृतिक, व्यापार एवं कूटनीतिक संबंध को बढ़ाने कीव्यापक कोशिश के हिस्से के रूप में दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को माना है. दोनों सरकारों ने एक ठोस, बहुआयामी सहयोग की स्थापना की हैजिसके तहत ऊर्जा और आतंकवाद से लेकर अर्थव्यवस्था और सुरक्षा जैसे अलग-अलग विषय आते हैं. भारत एक स्वाभाविक साझेदार प्रतीत होता है जोदक्षिण कोरिया को अपनी आर्थिक निवेश सूची को विविध करने में मदद कर सकता है क्योंकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का उदय एक सक्रिय किरदारके रूप में हो रहा है.
द्विपक्षीय मामलों में भारत ने उत्तर कोरिया की परमाणु धमकी को लेकर दक्षिण कोरिया का व्यापक समर्थन किया है. भारत ने 2017 में उत्तर कोरिया केसबसे बड़े परमाणु परीक्षण की निंदा की और उत्तर कोरिया में परमाणु प्रसार को अपनी "ख़ुद की राष्ट्रीय सुरक्षा" के लिए एक ख़तरा माना है. इसके बादजनवरी 2018 में भारत ने "वैंकूवर डायलॉग" का समर्थन किया. वैंकूवर डायलॉग एक बहुराष्ट्रीय मंच है जिसका उद्देश्य उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारोंके प्रसार को नियंत्रित करना है. इसके जवाब में दक्षिण कोरिया की पूर्व राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हाई ने उत्तर कोरिया को परमाणु मुक्त करने की मुहिम मेंसाझेदारी के लिए भारत का धन्यवाद किया था. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति मून जे-इन ने भी विभिन्न क्षेत्रों में मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों का आह्वान कियाथा और उत्तर कोरिया को परमाणु मुक्त करने की प्रक्रिया में भारतीय समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया था.
दोनों सरकारों ने एक ठोस, बहुआयामी सहयोग की स्थापना की है जिसके तहत ऊर्जा और आतंकवाद से लेकर अर्थव्यवस्था और सुरक्षा जैसे अलग-अलग विषय आते हैं. भारत एक स्वाभाविक साझेदार प्रतीत होता है जो दक्षिण कोरिया को अपनी आर्थिक निवेश सूची को विविध करने में मदद कर सकता है.
पिछले दिनों भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण को लेकर अपनी आशंका व्यक्त की थी. इसके अलावाभारत ने कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त बनाने के लिए अपने समर्थन को जारी रखने पर ज़ोर दिया था. भारत ने कहा था कि ये सभी पक्षों के हित मेंहै. भारत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि संवाद और कूटनीति को मुद्दे के समाधान के लिए वरीयता प्राप्त माध्यम के तौर पर प्राथमिकता मिलनीचाहिए.
लेकिन दक्षिण कोरिया से अलग भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को चुनौती देने से पीछे नहीं हटा है और दक्षिण कोरिया, भारत के साथ एक सामरिक साझेदारी का निर्माण करके इसका फ़ायदा उठाना चाहता है. हाल ही में जारी की गई दक्षिण कोरिया की इंडो-पैसिफिकरणनीति में भारत को इंडो-पैसिफिक में एक महत्वपूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है. इसके लिए भारत के बाज़ार के आकार, आधुनिक IT एवंअंतरिक्ष तकनीकों में विकास की भरपूर संभावना का ज़िक्र किया गया है. दक्षिण कोरिया ने दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते(CEPA) को बढ़ाकर ज़्यादा आर्थिक सहयोग की बुनियाद को मज़बूत करने का संकल्प भी लिया है. इसके अलावा दिल्ली में G20 मंत्रियों के शिखरसम्मेलन में दक्षिण कोरिया के दूसरे उप विदेश मंत्री ली दू-हून ने इस क्षेत्र में भारत को एक प्रमुख साझेदार कहा और भारत के साथ आर्थिक एवं सामरिकसंबंधों को सहारा देने का समर्थन किया. वहीं भारत के विदेश मंत्रालय के सचिव सौरभ कुमार ने एक मज़बूत संबंध की उम्मीद जताई क्योंकि दोनों देशअर्थव्यवस्था से लेकर हथियारों के उद्योग तक अलग-अलग क्षेत्रों में नज़दीकी रूप से काम कर रहे हैं.
ध्यान देने की बात ये है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और दक्षिण कोरिया ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग में बढ़ोतरी की है. K9 वज्र को विकसित करना इससहयोग का उदाहरण है. K9 वज्र 155 मिमी की कैलिबर आर्टिलरी गन है और दक्षिण कोरियाई होवित्जर K9 थंडर का भारतीय संस्करण है. भारतीयकंपनी एल एंड टी ने दक्षिण कोरिया की हनव्हा डिफेंस के साथ मिलकर इसको तैयार किया है. इसके अलावा भारतीय कंपनियों ने यूटिलिटीहेलीकॉप्टर, एलटी टैंक, डीज़ल पनडुब्बी, फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल के लिए लिथियम बैटरी और पनडुब्बी के लिए भरोसेमंद कोरियाई साझेदारों केसाथ सहयोग की तलाश के सिलसिले में संपर्क साधा है. कोरियाई कंपनियां भी जल्द आने वाली भारतीय नौसैनिक परियोजनाओं जैसे कि माइनकाउंटरमीजर वेसल्स (MCMV), फ्लीट सपोर्ट शिप्स (FSS) और लैंडिंग प्लैटफॉर्म डॉक्स (LPD) का समर्थन करने के लिए अलग-अलग आधुनिकनौसैनिक जहाज़ निर्माण तकनीकों को ट्रांसफर करने पर विचार कर रही हैं. इसके अलावा भारतीय साझेदारों ने कई विषयों पर चर्चा की पहल की है. इनमें हर प्रकार के गोला-बारूद, स्मार्ट युद्ध सामग्री, छोटे हथियारों का उत्पादन और बैटरी एवं ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली शामिल हैं.
ध्यान देने की बात ये है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और दक्षिण कोरिया ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग में बढ़ोतरी की है. K9 वज्र को विकसित करना इस सहयोग का उदाहरण है.
लेकिन आर्थिक मोर्चे पर दक्षिण कोरिया के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ गया है और पिछले दिनों वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के द्वारादिया गया बयान इस मामले पर भारत सरकार की बढ़ती चिंता को ज़ाहिर करता है. एशिया आर्थिक संवाद में बोलते हुए गोयल ने कहा कि मुक्त व्यापारसमझौता दक्षिण कोरियाई कंपनियों को अंधाधुंध आयात की अनुमति देता है. उन्होंने आगे ये भी जोड़ा कि दक्षिण कोरिया या जापान सीधे तौर पर भारतसे इन देशों में इस्पात के निर्यात को नहीं रोक रहे हैं बल्कि इन देशों में राष्ट्रवादी भावना की वजह से भारतीय कंपनियां वहां पर आवश्यक पकड़ बनाने मेंसफल नहीं हो रही हैं. वहां की कंपनियां और लोग भारतीय इस्पात के मुक़ाबले अपने देश का इस्पात ख़रीदने के लिए थोड़ा ज़्यादा भुगतान करने कोतैयार हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि भारत सरकार कोरियाई सरकार के साथ इस मुद्दे पर बात कर रही है कि वो भारतीय उत्पादों के लिए अपने बाज़ार कोखोले.
आंकड़ा- 1: कोरिया के साथ भारत का व्यापार
[caption id="attachment_119392" align="aligncenter" width="660"] Source: Ministry of Foreign Affairs, ROK[/caption]
स्रोत: विदेश मंत्रालय, कोरिया गणराज्य
हाल के दिनों में बदलावों के साथ ये स्पष्ट है कि भारत और दक्षिण कोरिया इस क्षेत्र में एक नई सामरिक एवं सुरक्षा की रूपरेखा का निर्माण करने केलिए सक्रिय तौर पर शामिल हैं. सत्ता की नई रचना के उदय ने भारत और दक्षिण कोरिया के बीच अब तक का सबसे क़रीबी संबंध बनाया है. इसकेअलावा क्षेत्र में अमेरिका एवं चीन के बीच मौजूदा सत्ता संघर्ष के नतीजे में दोनों देशों का महत्वपूर्ण हित है. इसलिए प्रतिद्वंदिता और नियंत्रण से बाहरहोने वाले ख़तरे को कम करने के लिए दक्षिण कोरिया को भारत जैसे देशों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है. ये इसलिए भी महत्वपूर्ण हैक्योंकि एक शांतिपूर्ण और परमाणु मुक्त कोरियाई प्रायद्वीप सही इंडो-पैसिफिक रणनीति एवं सुरक्षा साझेदारों के बिना संभव नहीं होगा. इस बीच भारतको कोरियाई बाज़ार के दूसरे क्षेत्रों तक पहुंचने की आवश्यकता है ताकि बढ़ते व्यापार घाटे को संतुलित किया जा सके. दोनों देशों के वार्ताकारों कोCEPA के फ़ायदों का पूरा उपयोग करने के उद्देश्य से दोनों तरफ़ एक अनुकूल व्यापार के वातावरण को बढ़ावा देने के लिए समान दृष्टिकोण को साझाकरना चाहिए. किसी भी तरह का अविश्वास या बातचीत में कड़ा रुख़ केवल बढ़ते संबंध को नुक़सान पहुंचाएगा. इस प्रकार रणनीति और साझेदारीमानक दृष्टिकोण से परे एक मज़बूत और सुदृढ़ द्विपक्षीय संबंध की तरफ़ जानी चाहिए जिसके बारे में पिछले दिनों आयोजित G20 बैठक में चर्चा हुईथी.
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