Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 06, 2025 Updated 0 Hours ago

इस लेख में वर्ष 2014 के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और गहराते संकट पर दक्षिण एशियाई देशों की ओर से दी गई प्रतिक्रियाओं का विस्तृत आकलन किया गया है.

दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान संतुलन: एक समसामयिक समीक्षा (भाग-2)

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दो लेखों की श्रृंखला का यह दूसरा लेख है. पहला लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान संतुलन और दोनों के बीच तनाव के वक़्त पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया से जुड़ी इस श्रृंखला के पहले लेख में बताया गया था कि किस प्रकार से भू-राजनीति, घरेलू राजनीति और विचारों के चलते दक्षिण एशियाई देशों ने पूर्व में हुए भारत-पाक युद्धों (1947, 1965, 1971 और 1999) के बारे में अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थीं. पिछले एक दशक के दौरान दक्षिण एशियाई देशों की तरफ से ऐसे हालातों के दौरान दी जाने वाली प्रतिक्रियाओं में क्या बदलाव आया है, या फिर भू-राजनीति, घरेलू राजनीति और विचारों के कारण इस दौरान इन पड़ोसी देशों का क्या रुख़ रहा है, इस लेख में इन्हीं सब बातों का गहराई से मूल्यांकन किया गया है. इस लेख में यह भी बताया गया है कि हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ़ चलाए गए भारत के ऑपरेशन सिंदूर की वजह से इन देशों की नीतियों और विचारों में क्या परिवर्तन आया है और आगे भी इसमें क्या बदलाव आ सकता है.

परिवर्तन और निरंतरता

भू-राजनीति: इस सदी की शुरुआत से ही दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की प्रासंगिकता बहुत तेज़ी से कम हुई है. इसकी प्रमुख वजह पाकिस्तान में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता का माहौल तो है ही, साथ ही उसका आतंकवादियों की शरणस्थली बनना भी है. क्षेत्र में पाकिस्तान के व्यापार से जुड़े आंकड़ों पर नज़र डालें तो वर्ष 2003 में पाकिस्तान का ट्रेड लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और वर्ष 2022 तक यह बढ़कर महज 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ही पहुंच पाया. आर्थिक प्रगति की बात की जाए तो आज कई अन्य दक्षिण एशियाई देश पाकिस्तान से कहीं आगे निकल चुके हैं. दूसरी तरफ, इस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. भारत का क्षेत्रीय व्यापार वर्ष 2003 में 3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि  वर्ष 2022 तक बढ़कर 37 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया. भारत ने अपनी "पड़ोसी प्रथम" नीति के तहत पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टिविटी, एकजुटता और आर्थिक संबंधों को भी प्राथमिकता में रखा है.

इतना सब होने के बावज़ूद भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए राज़ी नहीं हैं. इतना ही नहीं, इन देशों में भारत के इरादों और क्षमताओं को लेकर भी संदेह है. हालांकि, इन देशों को पता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते बनाकर उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है और वे उसकी ताक़त और क्षमताओं को लेकर भी बहुत संतुष्ट नज़र नहीं आते हैं, इसके बाद भी वे पाकिस्तान के साथ सहयोग करना चाहते हैं, जो काफ़ी हद तक प्रतीकात्मक ही लगता है. इसके पीछे इन देशों की मंशा क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव को कम करना भी है, साथ ही वे यह भी दिखाना चाहते हैं कि उनकी स्वतंत्र विदेश नीति है और वे क्षेत्र में किसी के दबाव या प्रभाव में नहीं हैं. दूसरी ओर, अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान के रणनीतिक दख़ल से बचने के लिए भारत के साथ नज़दीकी रिश्ते बनाने रखे हैं. इसके अलावा, दक्षिण एशिया में चीन का दबदबा बढ़ता जा रहा है और वह इस क्षेत्र का एक अहम खिलाड़ी बनकर सामने आया है. चीन ने दक्षिण एशियाई देशों के साथ रक्षा, व्यापार और विकास साझेदारियों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है और वह इसमें सफल भी रहा है. इस क्षेत्र के ज़्यादातर देश बीजिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा बन चुके हैं, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) एक महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी के तौर पर काम करता है. ज़ाहिर है कि दक्षिण एशियाई देशों को चीन के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने में उससे तमाम आर्थिक और भू-राजनीतिक फायदे मिलते हैं. इसके अलावा इस क्षेत्र में चीन की भारत के साथ प्रतिद्वंदिता भी है. इस सबके मद्देनज़र भारत के दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश नई दिल्ली के पक्ष में खुलकर साथ आने यानी मज़बूत संबंध स्थापित करने और बीजिंग का विरोध करने को लेकर दुविधा में घिरे हुए हैं.

घरेलू राजनीति और राष्ट्रवाद:  दक्षिण एशियाई देशों को पाकिस्तान के साथ दोस्ताना और सौहार्दपूर्ण रिश्ते क़ायम रखना और भारत से विवाद की स्थिति में "तटस्थ नज़रिया" अपनाना ज़्यादा मुफीद लगता है. ख़ास तौर पर श्रीलंका और नेपाल को लगता है कि ऐसा करने से उन्हें खुद को क्षेत्र में एक अलग और दृढ़ राष्ट्र के रूप में पेश करने का मौक़ा मिलेगा. वहीं बांग्लादेश और मालदीव की बात करें तो बांग्लादेश में अवामी लीग और मालदीव में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने वैचारिक तौर पर पाकिस्तान की तुलना में भारत को तवज्जो दी है. इन दोनों देशों ने इस नीति को अपनाया है कि भले ही अपने देश में कुछ राजनीतिक नुकसान झेलना पड़े, लेकिन नई दिल्ली के साथ अपने आर्थिक रिश्तों पर आंच नहीं आने देंगे और उन्हें मज़बूती देते रहेंगे. हालांकि, बांग्लादेश और मालदीव में भारत विरोधी विचारों वाले रजनीतिक दलों ने पाकिस्तान के साथ अपने अच्छे रिश्ते बरक़रार रखे, ख़ास तौर पर रक्षा सहयोग पर पाकिस्तान से संबंधों को बढ़ाया है, ताकि भारत के लिए मुश्किलें खड़ी की जा सकें. जहां तक भूटान की बात है, तो उसने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत का समर्थन किया है. भूटान ने या तो मुखर होकर भारत का साथ दिया, या फिर वह रणनीतिक तौर पर चुप रहते हुए भारत के पक्ष में खड़ा रहा है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2007 में भूटान और भारत ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें प्रावधान था कि भूटान की विदेश नीति तय करने में भारत कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा और आश्वासन दिया गया था कि उसकी सीमाओं और चिंताओं को प्रमुखता दी जाएगी व समस्याओं का समाधान किया जाएगा. इस प्रकार से देखा जाए तो भूटान ने इस संधि के तहत मिले अपने अधिकारों का इस्तेमाल सिर्फ़ चीन के साथ संपर्क और सीमा विवाद को सुलझाने जैसे मामलों में ही किया है.

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए राज़ी नहीं हैं. इतना ही नहीं, इन देशों में भारत के इरादों और क्षमताओं को लेकर भी संदेह है. हालांकि, इन देशों को पता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते बनाकर उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है और वे उसकी ताक़त और क्षमताओं को लेकर भी बहुत संतुष्ट नज़र नहीं आते हैं,

विचार: क्षेत्रीय शांति, क्षेत्रीय संपर्क और गुटनिरपेक्षता जैसे विचारों का आज भी बड़ा महत्व है और अक्सर ये चिंता की वजह भी बनते हैं. पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को बार-बार उठाने और उसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश, साथ ही भारत के पाकिस्तान को क्षेत्र में अलग-थलग करने के प्रयासों ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी SAARC को एक लिहाज़ से बेमानी बना दिया है. देखा जाए तो इस क्षेत्र में सार्क की तुलना में बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन यानी बिम्सटेक और बांग्लादेश, भूटान, भारत एवं नेपाल इनीशिएटिव (BBIN) जैसे दूसरे प्लेटफॉर्म आज ज़्यादा अहम हो गए हैं. दक्षिण एशियाई देशों की तरफ से क्षेत्र में शांति और एकजुटता के लिए SAARC को पुनर्जीवित करने की मांग लगातार की जाती रही है. इसके अलावा, दक्षिण एशिया में परमाणु ताक़त से लैस दो देशों यानी भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध की संभावनाओं को देखते हुए क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए इन देशों की ऐसी कोशिशें ज़रूरी भी हो गई हैं.

आतंक और आतंक फैलाने वालों को लेकर नीति में अंतर: भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 1999 से ही पूर्ण युद्ध को टाला है, लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में तनाव की स्थिति लगातार बनी हुई है. इस्लामाबाद अपनी हरकतों के बाज नहीं आया है और उसने आतंकवाद को प्रायोजित करना जारी रखा है. इस तरह से पाकिस्तान लगातार नई दिल्ली के सब्र की परीक्षा लेता रहा है. वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की इन हरकतों से निपटने के लिए दोहरी रणनीति पर अमल किया था. यानी एक तरफ भारत ने वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई थी, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के भीतर फलफूल रहे आंतकी अड्डों को नेस्तनाबूत करने की रणनीति अपनाई थी. देखा जाए तो दक्षिण एशियाई देशों ने जो खुद भी आतंकवाद से पीड़ित हैं, ने भारत के द्विपक्षीय दबाव और आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध छेड़ने की अमेरिकी नीति के दबाव के चलते आतंकवाद का दृढ़तापूर्वक विरोध करने और उसकी पुरज़ोर निंदा करने की नीति अपनाई है. इसी का परिणाम है कि दक्षिण एशिया के सभी देशों ने वर्ष 2016, 2019 और 2025 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी हमलों की निंदा की है. हालांकि, इन देशों की आतंकवादियों को पनाह देने वाले और आतंक को प्रयोजित करने वाले देश पाकिस्तान को लेकर, साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर नीति अलग-अलग रही है. 

 

तालिका 1 . भारत-पाक के बीच वर्ष 2016 और 2019 के बीच पैदा हुए तनावों पर क्षेत्रीय देशों की प्रतिक्रियाएं

देश

उरी आतंकी हमला


(2016)

भारत की जवाबी कार्रवाई पर रुख़ और प्रतिक्रिया - सर्जिकल स्ट्राइक और SAARC का बहिष्कार

(2016)

पुलवामा आतंकी हमला
(2019)

भारत की जवाबी कार्रवाई पर रुख़ और प्रतिक्रिया - बालाकोट एयर स्ट्राइक

(2019)

नेपाल

निंदा की

तटस्थ

 

नेपाल ने आतंकवाद की निंदा की और SAARC के सदस्य देशों से सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने से बचने का अनुरोध किया. इसके साथ ही SAARC में अनुकूल माहौल नहीं होने की बात कहते हुए इस संगठन की बैठक से अलग हो गया.

निंदा की

तटस्थ

 

आतंकवादी घटना की निंदा की, साथ ही संयम बरतने और क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं बनने का आह्वान किया. दोनों देशों से बातचीत और शांतिपूर्ण तरीक़ों से समस्या का समाधान तलाशने की अपील की.

भूटान

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

आतंकवाद में बढ़ोतरी, क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा में कमी आनेकी बात कहते हुए SAARC बैठक का बहिष्कार किया

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक तौर पर चुप्पी साधे रखी). हालांकि पुलवामा हमले की आलोचना करने वाले बयान से संकेत मिला कि इस हमले के जवाब में भारत ने जो कार्रवाई की है, भूटान उसके साथ खड़ा है.

अफ़ग़ानिस्तान

निंदा की

भारत के जवाबी कार्रवाई के अधिकार का समर्थन किया

 

अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देने की बात कही और SAARC सम्मेलन का बहिष्कार किया.

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक चुप्पी साधे रखी). हालांकि, पुलवामा हमले की आलोचना करने वाले बयान से संकेत मिला कि इस हमले के जवाब में भारत की कार्रवाई के समर्थन में है. 

 

 

 

 

श्रीलंका

निंदा की

तटस्थ रुख़ जताया

 

सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया, साथ ही अनुकूल वातावरण नहीं होने और संगठन में सर्वसम्मति की कमी की बात कही. इसके अलावा क्षेत्र की शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने पर बल दिया.

निंदा की

तटस्थ रहा

 

श्रीलंका ने बढ़ते तनाव पर गहरी चिंता जताते हुए दोनों देशों से क्षेत्र की सुरक्षा, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तनाव कम करने, वार्ता और विश्वास बहाल करने की अपील की. 

मालदीव

निंदा की

तटस्थ रहा

 

"अनुकूल वातावरण नहीं होने" की बात कहते हुए सार्क बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला लिया. दोनों देशों के नेताओं से महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करने तथा ज़ल्द से ज़ल्द सार्क समिट आयोजित करने का आग्रह किया.

निंदा की

तटस्थ रुख़ जताया

 

मालदीव ने कहा कि दोनों देश संयम बरतें और क्षेत्र की स्थिरता, शांति सुरक्षा को बरकरार रखें. इसके साथ ही उसने दोनों देशों से कूटनीति और बातचीत के ज़रिए विवाद का हल निकालने की ज़रूरत पर बल दिया. सभी देशों से अपने क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी गुटों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया. साथ ही यह भी कहा कि "आतंकवाद को समाप्त करने के लिए दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ मिलकर काम करेंगे."

बांग्लादेश

निंदा की

भारत के जवाबी कार्रवाई के अधिकार का समर्थन किया

 

घटना के लिए अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए, साथ ही बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में उसके बढ़ते हस्तक्षेपका हवाला देते हुए सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया.

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक चुप्पी साधे रखी). हालांकि, पुलवामा हमले की आलोचना ज़रूर की, जिससे ज़ाहिर होता है कि वह भारत की जवाबी कार्रवाई के समर्थन में है.

स्रोत: लेखक द्वारा संकलित किया गया

वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमलों के बाद भारत ने एक ओर पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंज़ाम दिया था और दूसरी ओर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए वहां आयोजित होने वाले 19वें SAARC शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था. भारत के फैसले के बाद भूटान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश ने भी सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. उरी हमले के बाद जहां भूटान ने भारत को अपना समर्थन जताया था, वहीं बांग्लादेश ने पाकिस्तान पर उसके आंतरिक मासलों में दख़ल देने का आरोप मढ़ते हुए नई दिल्ली की जवाबी कार्रवाई के अधिकार का समर्थन किया था. अफ़ग़ानिस्तान ने भी खुलकर कहा था कि अब बहुत हो चुका है, बगैर समय गंवाए पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की ज़रूरत है. हालांकि, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान पर अप्रत्यक्ष तौर पर निशाना साधा था, साथ ही सार्क के भविष्य के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी. वर्ष 2019 में भारत द्वारा पाकिस्तान पर की गई बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद जब दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा, तो इन दक्षिण एशियाई देशों ने रणनीतिक तौर पर चुप्पी साधे रखी. हालांकि, इससे पहले जब भारत-पाक तनाव बढ़ा था, तो इन देशों के बयानों से लगा था कि ये भारत के पक्ष में खड़े हैं. इन देशों के पूर्व के रुख़ पर नज़र डालें, तो भूटान ने कहा था कि आतंक फैलाने वालों को कड़ा सबक सिखाया जाएगा और उन्हें सज़ा दिलाई जाएगी. इसी तरह से अफ़ग़ानिस्तान की तरफ से जो बयान आया था, उसमें साझा दुश्मन (पाकिस्तान और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की तरफ इशारा करते हुए) के ख़िलाफ़ लड़ने की ज़रूरत पर बल दिया गया था. वहीं बांग्लादेश ने कहा था कि वह आतंकवाद के खात्मे के लिए वैश्विक समुदाय और भारत के साथ पूरा सहयोग करेगा.

भारत को मिले पड़ोसी देशों के इस समर्थन के पीछे भू-राजनीति भी थी और इन देशों की अपनी घरेलू राजनीति भी थी. भारत-पाक तनाव के दौरान भूटान का भारत को समर्थन नई दिल्ली से अपनी नज़दीकी बढ़ाने के लिए था और यह दिखाने के लिए था कि वो उसका सबसे बड़ा शुभचिंतक है और उसके साथ मज़बूती से खड़ा है, ताकि भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर वह भारत की ताक़त का इस्तेमाल कर सके. जहां तक बांग्लादेश से मिले भारत को समर्थन की बात है, तो उस दौरान वहां अवामी लीग की सरकार थी और शेख हसीना प्रधानमंत्री पद पर बैठी थीं. ज़ाहिर है कि अवामी लीग को पाकिस्तान फूटी आंख नहीं सुहाता है और तत्कालीन पीएम शेख हसीना की आतंक के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति थी. इसके अलावा, अवामी लीग सरकार बांग्लादेश के अंदरूनी मामलों में पाकिस्तानी दख़ल से आजिज़ आ चुकी थी. इन्हीं सब बातों के चलते तब बांग्लादेश के नीति कट्टर पाकिस्तान विरोधी थी, यानी उसके सामने भारत का साथ देना मज़बूरी भी थी. इतना ही नहीं उस समय शेख हसीना ने बांग्लादेश में कनेक्टिवटी और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत के साथ संबंधों को तवज्जो दी और ज़रूरत पड़ने पर भारत का पूरा साथ भी दिया. अगर अफ़ग़ानिस्तान की तरफ से मिले समर्थन को देखें, तो वो भी पाकिस्तान से परेशान था और सीमा पार आतंकवाद से जूझ रहा था, ऐसे में भारत के साथ खड़ा होना ही उसके पास एक मात्र विकल्प बचा था.

उरी आंतकी हमलों के बाद इन देशों ने आतंकी हमलों की निंदा की थी और अनुकूल वातावरण नहीं होने की बात कहते हुए SAARC समिट में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. हालांकि, इन देशों की तरफ से जारी बयानों में कहीं से भी ऐसा नहीं लगा था कि वे भारत का पुरज़ोर समर्थन कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इन देशों ने यह भी कहा था कि ज़ल्द से ज़ल्द अगला सार्क शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाए.

मालदीव, श्रीलंका और नेपाल ने उस दौरान तटस्थता का रास्ता चुना था. उरी आंतकी हमलों के बाद इन देशों ने आतंकी हमलों की निंदा की थी और अनुकूल वातावरण नहीं होने की बात कहते हुए SAARC समिट में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. हालांकि, इन देशों की तरफ से जारी बयानों में कहीं से भी ऐसा नहीं लगा था कि वे भारत का पुरज़ोर समर्थन कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इन देशों ने यह भी कहा था कि ज़ल्द से ज़ल्द अगला सार्क शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाए. तब श्रीलंका ने आरोप लगाया था कि सार्क सम्मेलन आयोजित नहीं होने की वजह, इसके लिए सर्वसम्मति नहीं बन पाना है. तब सार्क की अध्यक्षता कर रहे नेपाल ने संगठन के सदस्य देशों से कहा था कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनकी ज़मीन का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद के लिए नहीं किया जाए. इसके साथ ही नेपाल ने सार्क के अगले सम्मेलन के लिए विचार-विमर्श करने की बात भी कही थी. 2019 में पुलवामा अटैक के बाद जब भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की थी, तब श्रीलंका और नेपाल ने आतंकी हमलों की निंदा करने के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर भी अपनी चिंता जताई थीं. श्रीलंका और नेपाल ने उस दौरान भारत-पाक से न केवल संयम बरतने और क्षेत्रीय सुरक्षा व शांति क़ायम करने की अपील की थी, बल्कि आपसी विवादों को बातचीत के ज़रिए सुलझाने का भी आग्रह किया था. 2019 में भारत और पाक के बीच तनाव बढ़ने पर मालदीव ने भी कुछ इसी तरह का रुख़ जताया था, यानी 2016 में तनाव के वक़्त जो मालदीव पूरी ताक़त के साथ भारत का समर्थन कर रहा था, उसमें नरमी आ गई थी.

देखा जाए तो भारत के समर्थन को लेकर नेपाल और श्रीलंका की इस नीति के पीछे उनकी घरेलू राजनीति भी एक बड़ी वजह थी, जिसमें भारत से दूरी बनाए रखना, अपने स्वतंत्र विचारों को प्रकट करना, देश में पनप रहे राष्ट्रवाद को प्रमुखता देना जैसी कारक शामिल थे. इसके अलावा, क्षेत्रीय स्तर पर एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने के उनके विचारों ने भी भारत को लेकर उनकी नीति निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाई. वर्ष 2016 में मालदीव द्वारा भारत का खुलकर समर्थन करने के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण रहे थे. हालांकि, वर्ष 2019 में भारत को लेकर मालदीव की नीति बदली दिखाई दी, जबकि नई दिल्ली के साथ उसके बेहद नज़दीकी रिश्ते थे, बावज़ूद इसके वहां की तत्कालीन सरकार ने क्षेत्रीय शांति को तवज्जो दी और दोनों देशों से शांति बनाए रखते हुए आपसी बातचीत से विवादों को हल करने की अपील की थी.

 

पहलगाम हमला और उसके बाद की स्थिति

 

तालिका 2. वर्ष 2025 में हुए भारत-पाक तनाव को लेकर क्षेत्रीय देशों की प्रतिक्रियाएं

देश

पहलगाम आतंकी हमला (2025)

भारत की ऑपरेशन सिंदूर (2025) के जरिए पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई

पुलवामा आतंकी हमला
(2019)

भारत की जवाबी कार्रवाई पर रुख़ और प्रतिक्रिया - बालाकोट एयर स्ट्राइक

(2019)

नेपाल

निंदा की

तटस्थता बनाई

 

नेपाल की ओर से भारत-पाक के बीच बढ़ते तनाव पर गहरी चिंता जताई गई और ज़ल्द ही तनाव में कमी की उम्मीद की गई. इसके साथ ही उसने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराया.

निंदा की

तटस्थ

 

आतंकवादी घटना की निंदा की, साथ ही संयम बरतने और क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं बनने का आह्वान किया. दोनों देशों से बातचीत और शांतिपूर्ण तरीक़ों से समस्या का समाधान तलाशने की अपील की.

भूटान

निंदा की

रणनीतिक तौर पर चुप्पी साधे रखी

 

भूटान ने ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत का समर्थन करते हुए बयान दिया था, जिसमें आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी और कहा था कि भूटान एकजुटता और मित्रता में भारत के साथ मज़बूती से खड़ा है.

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक तौर पर चुप्पी साधे रखी). हालांकि पुलवामा हमले की आलोचना करने वाले बयान से संकेत मिला कि इस हमले के जवाब में भारत ने जो कार्रवाई की है, भूटान उसके साथ खड़ा है.

अफ़ग़ानिस्तान

निंदा की

तटस्थता का रास्ता अपनाया 

अफ़ग़ानिस्तान ने भारत-पाक के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता जताते हुए कहा कि वह हर हाल में क्षेत्रीय हितों और क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के पक्ष में हैं. साथ ही उसने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत कूटनीतिक कोशिशों के ज़रिए आपसी मसलों का समाधान तलाशने का आग्रह किया.

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक चुप्पी साधे रखी). हालांकि, पुलवामा हमले की आलोचना करने वाले बयान से संकेत मिला कि इस हमले के जवाब में भारत की कार्रवाई के समर्थन में है. 

श्रीलंका

निंदा की

तटस्थ रुख़


श्रीलंका ने कहा कि हमारी भागीदारी का मकसद दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना, क्षेत्रीय शांति को बरक़रार रखना और आतंकवाद पर लगाम लगाना है. इसके साथ ही उसने यह भी कहा कि हम अपनी संप्रभुता को बनाए रखते हुए इस मामले में तटस्थ रुख़ अख़्तियार करेंगे.

निंदा की

तटस्थ रहा

 

श्रीलंका ने बढ़ते तनाव पर गहरी चिंता जताते हुए दोनों देशों से क्षेत्र की सुरक्षा, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तनाव कम करने, वार्ता और विश्वास बहाल करने की अपील की. 

मालदीव

निंदा की

तटस्थ रुख़

 

भारत-पाक सीजफायज का स्वागत किया, साथ ही शांति और बातचीत का रास्ता चुनने एवं क्षेत्रीय स्थिरता की ओर क़दम बढ़ाने के लिए दोनों देशों के नेतृत्व की सराहना की.

निंदा की

तटस्थ रुख़ जताया

 

मालदीव ने कहा कि दोनों देश संयम बरतें और क्षेत्र की स्थिरता, शांति सुरक्षा को बरकरार रखें. इसके साथ ही उसने दोनों देशों से कूटनीति और बातचीत के ज़रिए विवाद का हल निकालने की ज़रूरत पर बल दिया. सभी देशों से अपने क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी गुटों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया. साथ ही यह भी कहा कि "आतंकवाद को समाप्त करने के लिए दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ मिलकर काम करेंगे."

बांग्लादेश

निंदा की

तटस्थ रहा

 

भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर का स्वागत किया और कहा कि बांग्लादेश कूटनीतिक प्रयासों के ज़रिए मतभेदों को सुलझाने के लिए अपने दोनों पड़ोसी का समर्थन ज़ारी रखेगा.

 

निंदा की

भारत का समर्थन किया

 

कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया (रणनीतिक चुप्पी साधे रखी). हालांकि, पुलवामा हमले की आलोचना ज़रूर की, जिससे ज़ाहिर होता है कि वह भारत की जवाबी कार्रवाई के समर्थन में है.

स्रोत: लेखक द्वारा संकलित किया गया

 

हाल ही में पहलगाम हमले के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात क्षेत्र में बढ़ते तनाव को लेकर नेपाल और श्रीलंका की जो प्रतिक्रिया सामने आई है, उसमें कहीं न कहीं उनका पिछला नज़रिया ही झलकता है. पहले की तरह ही इन दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध अपना रुख़ प्रकट किया है, साथ ही भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने और क्षेत्रीय शांति बरक़रार रखने की अपील की है. श्रीलंका की बात की जाए तो उसने किसी भी देश का पक्ष नहीं लेते हुए अपनी संप्रभुता को ज़्यादा प्रमुखता दी है. इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि श्रीलंका में विपक्षी दल कथित तौर पर वहां की नई सरकार पर हमलावर है और भारत के साथ बढ़ती उसकी नज़दीकियों, ख़ास तौर पर रक्षा सहयोग से जुड़े समझौतों को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं. हालांकि, श्रीलंका ने यह भी कहा है कि वो किसी भी देश को दूसरे देश को हानि पहुंचाने के लिए अपनी ज़मीन, समुद्री क्षेत्र और हवाई क्षेत्र का उपयोग नहीं करने देगा. ज़ाहिर है कि 1971 की लड़ाई में श्रीलंका ने पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी. ऐसे में श्रीलंका के इस बयान ने ज़रूर भारत को राहत पहुंचाई है.

ज़ाहिर है कि हाल के वर्षो में भारत को आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई में अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश का समर्थन हासिल हुआ था, लेकिन इन देशों में सत्ता परिवर्तन के साथ ही उनकी सोच बदल गई और समर्थन की जगह अब तटस्थता ने ले ली है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नई दिल्ली आतंकवाद और उसे प्रयोजित करने वाले देश के ख़िलाफ़ एक जैसा नज़रिया अपनाने के लिए पड़ोसी देशों को मना पाती है या नहीं.

भारत और पाकिस्तान के बीच ताज़ा तनाव के बाद बांग्लादेश ने भी श्रीलंका जैसा ही रुख़ ज़ाहिर किया है और दोनों देशों से बातचीत के ज़रिए आपसी विवादों को हल करने को कहा है. पहले की तुलना में बांग्लादेश की नीति में आए इस बदलाव की वजह ज़ाहिर तौर पर वहां का सत्ता परिवर्तन है. बांग्लादेश की नई सरकार ने पाकिस्तान के साथ गलबहियां बढ़ाई हैं, साथ ही उसके साथ अपने रक्षा और आर्थिक सहयोग को मज़बूत किया है. इसके अलावा बांग्लादेश की वर्तमान सरकार भारत विरोधी विचारों को लगातार हवा दे रही है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने भी सधी हुई प्रतिक्रिया दी है और दोनों देशों से क्षेत्रीय शांति को बनाए रखने की अपील की है. अफ़ग़ानिस्तान को लगता है कि ऐसी संतुलित प्रतिक्रिया से उसकी आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित विदेश नीति को मज़बूती मिलेगी. इतना ही नहीं, अफ़ग़ानिस्तान ने भारत-पाक के बीच बढ़ते तनावों का इस्तेमाल भारत के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने में भी किया है, साथ ही भारत से वीज़ा और व्यापार से संबंधित मसलों को हल करने के लिए भी इसका फायदा उठाया है. अफ़ग़ानिस्तान के पाकिस्तान से रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं और उसके भारत के समर्थन के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है. अगर मालदीव की बात की जाए, तो इस बार उसने अपनी तरफ से बयान देने में कोई ज़ल्दबाज़ी नहीं दिखाई और दोनों देशों के बीच तनाव कम होने के बाद ही सीज़फायर के समर्थन में सार्वजनिक वक्तव्य जारी किया. निसंदेह तौर पर मालदीव आर्थिक मदद के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर है, लेकिन वो भारत के साथ अपने रिश्तों में विविधता लाना चाहता है और पहलगाम अटैक के बाद भारत को लेकर उसके रुख़ के पीछे ये सारे कारण भी ज़िम्मेदार हैं. जहां तक भूटान की बात है, तो उनसे इस दफा रणनीतिक तौर पर चुप्पी साधे रखी और इस तरह से उसने कहीं न कहीं भारत के लेकर अपना समर्थन ही जताया है.

आगे का रास्ता

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ऑपरेशन सिंदूर को अंज़ाम दिया है. क्षेत्र में सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत की यही नई नीति है और उसने इस ऑपरेशन को जारी रखने का भी ऐलान किया है. यानी जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता और अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आता, तब तक भारत का यह ऑपरेशन बंद नहीं होगा. नई दिल्ली का स्पष्ट रूप से मानना है कि सीमा पार आतंकवाद से लड़ाई सीधे तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता व सुरक्षा से जुड़ी हुई है. इसीलिए, भारत को उम्मीद है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में पड़ोसी मुल्क उसका साथ देंगे. ज़ाहिर है कि हाल के वर्षो में भारत को आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई में अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश का समर्थन हासिल हुआ था, लेकिन इन देशों में सत्ता परिवर्तन के साथ ही उनकी सोच बदल गई और समर्थन की जगह अब तटस्थता ने ले ली है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नई दिल्ली आतंकवाद और उसे प्रयोजित करने वाले देश के ख़िलाफ़ एक जैसा नज़रिया अपनाने के लिए पड़ोसी देशों को मना पाती है या नहीं.

हालांकि, इसके लिए भारत ने अपनी ओर से कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. पहलगाम हमले के बाद भारत के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने नेपाल का दौरा किया था और वहां के शीर्ष नेताओं से नेपाल की तटस्थ रहने की नीति पर फिर से विचार करने का आग्रह किया था. भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर बात की थी. वर्ष 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बदलने के बाद यह पहली बार था कि भारतीय विदेश मंत्री ने वहां के समक्ष से बातचीत की. मालदीव के विदेश मंत्री डॉ. अब्दुल्ला खलील 25 मई को भारत के दौरे पर आए थे. इस दौरान, उन्होंने आर्थिक और समुद्री सुरक्षा पर भारत के साथ साझेदारी पर चर्चा की. उनसे बातचीत में आतंकवाद और क्षमता निर्माण से जुड़े मुद्दों को भी शामिल किया गया और इन पर विस्तार से चर्चा की गई. इसके अलावा, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बांग्लादेश के साथ लगी अपनी सीमा पर सुरक्षा को चाकचौबंद कर दिया है, साथ ही नेपाल के साथ सीमा पर साझा तलाशी अभियान और गश्त शुरू की गई है.

क़रीब आठ दशकों से भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी व तनावों के प्रति दक्षिण एशियाई देशों की प्रतिक्रिया में भू-राजनीति के साथ-साथ उनके अपने विचारों और उनकी घरेलू राजनीति ने अहम भूमिका निभाई है. वर्तमान में भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध को निर्णायक जंग छेड़ी है, उसमें वह इस क्षेत्र के देशों से ठोस और मज़बूत समर्थन मिलने की उम्मीद कर रहा है. ऐसे में दक्षिण एशियाई देशों को फैसला करना होगा कि वे किसके पक्ष में खड़े हैं और इस दौरान उन्हें मुश्किल राजनीतिक और भू-राजनीतिक विकल्पों में चुनाव करना पड़ेगा.


आदित्य गोदरा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative.  He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...

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