Author : Kanchan Lakshman

Expert Speak India Matters
Published on May 20, 2025 Updated 0 Hours ago

पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन अपने राजनीतिक मोर्चे एसडीपीआई के माध्यम से पीएफआई फिर सक्रिय हो रहा है. नए कार्यकर्ताओं को जोड़कर अपना विस्तार कर रहा है. 

रोक के बावजूद सहयोगी संगठन SDPI की मदद से कैसे दोबारा खड़ा हो रहा है PFI?

Image Source: Getty

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस साल मार्च की शुरुआत में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एमके फैज़ी को गिरफ्तार किया. एमके फैज़ी पर पैसे की धोखाधड़ी का आरोप है. ये केस मुख्य रूप से प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़ा है. एसडीपीआई को पीएफआई का राजनीतिक अंग माना जाता है. फैज़ी 2009 तक पीएफआई का सदस्य था और उसी साल फैज़ी को एसडीपीआई में महासचिव बनाया गया था. 2018 से ही वो एसडीपीआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष है. पीएफआई और गर्भनाल से एक-दूसरे से जुड़े हुए है. एसडीपीआई को पीएफआई का सिर्फ राजनीतिक मोर्चा ही नहीं माना जाता, बल्कि वो उसका संगठनात्मक माध्यम के रूप में भी काम करता है. ये काम है कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों का प्रसार का. पीएफआई पर प्रतिबंध लगने से पहले उसके कार्यकर्ता ये काम करते थे. 

प्रवर्तन निदेशालय ने संकेत दिया है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में, फैज़ी ने एसडीपीआई की गतिविधियों पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया. देश और विदेश से पीएफआई द्वारा बड़ी आपराधिक साज़िशों के लिए जो रकम जमा की गई थी, उसका गलत उपयोग किया. फैज़ी ने ना सिर्फ इस रकम को हासिल किया, बल्कि वो उसका लाभकर्ता भी था. ये आय अपराध के लिए जुटाई गई थी. ईडी के मुताबित फैज़ी को ये बात पूरी तरह से पता था कि पीएफआई का पैसा ऐसी आपराधिक साज़िश के लिए आया है, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं. इस रकम का इस्तेमाल भारत में अलग-अलग अवैध कामों, हिंसा भड़काने और आतंकी गतिविधियों में किया जाना था. इस सिलसिले में ईडी द्वारा अब तक 4.04 करोड़ रुपये का आंकलन किया गया है, जिसका उपयोग आपराधिक गतिविधियों के लिए होना था. फैज़ी की गिरफ्तारी के बाद, ईडी ने पीएफआई के खिलाफ मामले के संबंध में 10 राज्यों में 12 ठिकानों पर छापे मारे. ईडी की जांच में ये पाया गया कि इस संगठन ने मई 2009 से मई 2022 के बीच 29 खातों में 62 करोड़ रुपये से ज़्यादा की रकम प्राप्त की. इसमें से आधे से अधिक राशि नकद में जमा की गई थी. इस संगठन के खाड़ी देशों में हजारों सक्रिय सदस्य थे, जिनके माध्यम से इसने ये महत्वपूर्ण धन राशि जुटाई. 

इस बात से संकेत मिल रहे हैं कि ये प्रतिबंधित संगठन अब एसडीपीआई और अपने अन्य अनुषांगिक संगठनों के बैनर तले फिर पुनर्गठित होने की कोशिश कर रहा है. इस तरह से देखा जाए तो एसडीपीआई की गतिविधियों में कोई भी वृद्धि पीएफआई के पूर्व कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाएगी.

अब तक की जांच से ये स्पष्ट रूप से साबित हो गया है कि पीएफआई ने एसडीपीआई की गतिविधियों को नियंत्रित किया, उसे फंड दिया और उसके काम की निगरानी भी की. एसडीपीआई चूंकि पीएफआई का ही राजनीतिक क मोर्चा है, इसलिए इनके नेता और कैडर समान हैं. एसडीपीआई अपनी रोज़ाना के काम, नीति निर्माण, चुनावी अभियानों के लिए उम्मीदवारों का चयन, सार्वजनिक कार्यक्रमों, कैडर समारोह और अन्य संबंधित गतिविधियों के लिए पीएफआई पर निर्भर था. जांच एजेंसियों के अनुसार प्रतिबंध के बाद पीएफआई के पूर्व कार्यकर्ता अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए एसडीपीआई में जा रहे हैं. पीएफआई पर प्रतिबंध के बाद, एसडीपीआई अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इस बात से संकेत मिल रहे हैं कि ये प्रतिबंधित संगठन अब एसडीपीआई और अपने अन्य अनुषांगिक संगठनों के बैनर तले फिर पुनर्गठित होने की कोशिश कर रहा है. इस तरह से देखा जाए तो एसडीपीआई की गतिविधियों में कोई भी वृद्धि पीएफआई के पूर्व कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाएगी.

एसडीपीआई की बढ़ती गतिविधियां

हाल ही में एसडीपीआई  की गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी गई है, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र में. जांच एजेंसियों के मुताबिक एसडीपीआई ने पीएफआई के पूर्व सदस्यों को काम में लगाने के लिए एक नई युवा शाखा शुरू की है. एसडीपीआई और इसके सहयोगियों ने कथित तौर पर अपने प्रभाव को बढ़ाने और नए सदस्यों को भर्ती के लिए "फिलिस्तीन मुद्दे" को भावनात्मक तौर पर उछाला है. इतना ही नहीं पिछले कुछ हफ्तों में, एसडीपीआई  ने वक्फ़ संशोधन अधिनियम के खिलाफ़ समर्थन जुटाने के लिए भी सक्रियता दिखाई है. कुछ लोग तो ये भी कह रहे हैं कि वक्फ़ संशोधन बिल के खिलाफ़ एसडीपीआई के मज़बूत विरोध के बाद ही ईडी ने इस सगंठन पर नए सिरे से कार्रवाई की है. 

एसडीपीआई अपने सदस्यता अभियान को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. वो ज़्यादा से ज़्यादा राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है. 10 से अधिक राज्यों में इसका असर देखा गया है. एसडीपीआई की नई युवा शाखा धीरे-धीरे मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी अपनी यूनिट बना रही है. केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तो ये पहले से ही मज़बूत है. माना जा रहा है कि एसडीपीआई की ये नई युवा शाखा एक खास रणनीति का हिस्सा है. इसके ज़रिए पूर्व पीएफआई कैडर को अपनी कट्टरपंथी गतिविधियों को जारी रखने का मौका मिल रहा है.

माना जा रहा है कि एसडीपीआई की ये नई युवा शाखा एक खास रणनीति का हिस्सा है. इसके ज़रिए पूर्व पीएफआई कैडर को अपनी कट्टरपंथी गतिविधियों को जारी रखने का मौका मिल रहा है.

हालांकि हाल के चुनावों में एसडीपीआई का प्रदर्शन काफ़ी खराब रहा है. इसके बावजूद वो आगामी चुनावों में मुकाबला करने के लिए अपने समर्थक आधार को मज़बूत करने की कोशिश में जुटा हुआ है. चुनाव में जीत है एसडीपीआई के लिए अपनी विचारधारा का प्रचार करने और वैधता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण रास्ता है. अगस्त 2024 में आयोजित एसडीपीआई राष्ट्रीय समिति की बैठक में एक बड़ा फैसला लिया गया. संगठन ने ये तय किया है कि अगले 10 साल की अवधि के लिए आगामी विधानसभाओं के लिए उनके चुनावी अभियान की शुरुआत की जाएगी. एक महत्वाकांक्षी योजना में, एसडीपीआई ने देश भर के हर जिले में कम से कम एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र चुनने का निर्णय लिया है, जिससे वहां अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा जा सके. केरल में एसडीपीआई अपनी सबसे मजबूत स्थिति में है. यही वजह है कि एसडीपीआई राज्य समिति ने केरल विधानसभा चुनावों के लिए हर जिले से तीन ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों का चयन करने का फैसला किया है. इसके लिए जिला समितियों से कहा गया है कि 2031 के विधानसभा चुनाव के लिए वो ऐसा निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान कर लें. हालांकि केरल में अगले विधानसभा चुनाव 2026 में हैं. राष्ट्रीय स्तर पर एसडीपीआई ने अभी तक कोई खास सफलता हासिल नहीं की है. ऐसे में एसडीपीआई फिलहाल स्थानीय निकायों में अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. वर्तमान में, एसडीपीआई के पास पूरे देश में स्थानीय निकाय में 103 निर्वाचित सदस्य हैं.

पीएफआई की सामने मौजूद कानूनी चुनौतियां

एक तरफ जहां पीएफआई उस पर लगे प्रतिबंध को कानूनी रूप से चुनौती देने में लगी हुई है, वहीं दूसरी तरफ बैन लगने के बाद गिरफ्तार किए गए उसके कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को ज़मानत भी मिली है. उदाहरण के लिए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 28 मार्च को शेख सादिक इसाक कुरैशी नाम के वकील को ज़मानत दे दी. शेख सादिक को एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) ने प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इसके अलावा, केरल हाईकोर्ट ने 2 अप्रैल को पीएफआई के 10 आरोपी सदस्यों को ज़मानत दी. इन सभी आरोपियों पर 2022 में केरल के पलक्कड़ जिले में आरएसएस नेता श्रीनिवासन की हत्या का आरोप था. कुल मिलाकर देखा जाए तो नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) द्वारा दाख़िल 19 मामलों में गिरफ्तार किए 500 पीएफआई कैडरों में से आधे से अधिक को ज़मानत मिल चुकी है. जिन आरोपियों को ज़मानत मिलने में सफलता मिली है, उनमें से ज़्यादातर कर्नाटक और तमिलनाडु के हैं. इन आरोपियों को मिली ज़मानत ने दूसरे राज्यों में बंद कैदियों के लिए उम्मीदें पैदा की हैं. पीएफआई का जो बचा-खुचा नेतृत्व है, उनके लिए भी ये अच्छी खबर है. ज़मानत के इन आदेशों को वो दूसरे राज्यों में मिसाल के तौर पर पेश कर सकते हैं. ज़मानत मिलने की उम्मीद कर सकते हैं. डिजिटल सबूतों के अभाव में अदालतों में ये साबित करना मुश्किल हो रहा है कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वो पीएफआई के सदस्य हैं. 

पीएफआई का पुनर्गठन

पीएफआई पर 28 सितंबर 2022 को प्रतिबंध लगा था. इस हिसाब से देखें तो पीएफआई पर पाबंदी को ढाई साल से ज़्यादा वक्त बीत चुका है. अब इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि इस संगठन को सावधानीपूर्वक दोबारा ज़िंदा किया जा रहा है. पीएफआई के पूर्व कार्यकर्ता और बचे हुए नेतृत्व के लोग शुरुआती निष्क्रियता के बाद धीरे-धीरे पुनर्गठित हो रहे हैं. ये लोग एसडीपीआई के बैनर के तहत या फिर दूसरे कई सहायक संगठनों के अधीन फिर काम शुरू कर रहे हैं. इन संगठनों में से ज्यादातर का दक्षिणी राज्यों में आधार है. पीएफआई के कुछ कार्यकर्ता अन्य कट्टर इस्लामी संगठनों में शामिल हो गए हैं, जिनमें वहदत-ए-इस्लामी (वीईएल) भी शामिल है. ये संगठन भी प्रतिबंधित ग्रुप स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (एसआईएमआई) यानी सिमी का एक मोर्चा है.

चूंकि प्रतिबंध लगे होने के वजह से ये संगठन व्यवस्थित तौर पर अपनी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे सकते. ऐसे में जो खुफिया सूचनाएं आ रही हैं, उसके मुताबिक एसएफआई की पूर्व कार्यकर्ता मस्जिदों, सामाजिक समारोहों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के ज़रिए फिर एक साथ जुड़ रहे हैं. केरल और जिन दूसरे राज्यों में इस समूह की उपस्थिति है, वहां पीएफआई के पूर्व कार्यकर्ताओं ने संगठन का नुकसान रोकने और कमज़ोर युवाओं की भर्ती करने के लिए नए संगठन बनाए हैं. ये समझा जाता है कि पीएफआई  की रणनीति असंगठित संरचना बनाए रखना है क्योंकि सभी राज्यों में एक ही नाम वाला नया संगठन बनाने से सुरक्षा एजेंसियों को शक हो सकता है और वो कार्रवाई कर सकती है. अलग-अलग नामों से तहत नए संगठन बनाने की रणनीति पहले पीएफआई  की पूर्ववर्ती संस्था सिमी ने तब अपनाई गई थी, जब उसे सितंबर 2001 में प्रतिबंधित किया गया था.

ये समझा जाता है कि पीएफआई  की रणनीति असंगठित संरचना बनाए रखना है क्योंकि सभी राज्यों में एक ही नाम वाला नया संगठन बनाने से सुरक्षा एजेंसियों को शक हो सकता है और वो कार्रवाई कर सकती है. 

पीएफआई के पुराने सदस्यों ने सीमित स्तर पर अपनी गतिविधियां फिर शुरू कर दी हैं. रणनीति बनाने के लिए गुप्त बैठकें आयोजित की जाने लगी हैं. संगठन पर प्रतिबंध लगने के बाद से पीएफआई के नेता और सदस्य सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों और कल्याण कार्यों में शामिल होते रहे, जिससे वो सार्वजनिक क्षेत्र में लगातार अपनी उपस्थिति दिखा सकें. हालांकि पीएफआई पर बैन के बाद से उसकी फंडिंग पर बुरा प्रभाव पड़ा. आर्थिक मदद मिलनी कम हुई लेकिन  खाड़ी क्षेत्र में स्थित अपने दूसरे संगठनों के माध्यम से धन जुटाने की कोशिशें जारी हैं. साइबर स्पेस में पीएफआई के पूर्व सदस्य संचार और विचारधारा के प्रचार के लिए वैकल्पिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं.

पुलिस से प्राप्त सूत्रों के मुताबिक केरल में पीएफआई के गढ़ में वैकल्पिक नेतृत्व धीरे-धीरे उभर सकता है. केरल पीएफआई की गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. पीएफआई ने खुद को ज़िंदा रखने के लिए यहां कई मोर्चों और संगठनों का गठन किया है. पीएफआई के पुराने नेता मस्जिद समितियों और मदरसों के कार्यकर्ताओं के साथ संबंध स्थापित कर रहे हैं, जिससे उनका समर्थन हासिल किया जा सके. केरल में पीएफआई के पूर्व कैडरों से जुड़े सोशल मीडिया समूह अपनी विचारधारा का प्रचार जारी रखे हुए हैं.

केरल के बाद, पश्चिम बंगाल धीरे-धीरे पीएफआई की गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है, विशेषकर मुर्शिदाबाद जिले में, जहां एक बड़ी संख्या में इस संगठन के कार्यकर्ता हैं. ये कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में, स्थानीय परिस्थितियों के कारण पीएफआई की गतिविधियां तेज़ हो रही हैं. संगठन की उपस्थिति मज़बूत हो रही है. इस जगह की डेमोग्राफी का इस काम में काफ़ी मदद कर रही है. तमिलनाडु में, पूर्व पीएफआई कार्यकर्ता कोयम्बटूर, सलेम, ईरोड, थेनी, रामनाथपुरम, मदुरै और तिरुनेलवेली जिलों के कुछ हिस्सों में फिर से संगठित होने की कोशिश कर रहे हैं. असम में पीएफआई का पुराना कैडर, युवाओं को इज़राइल जैसी एक बड़ी शक्ति को चुनौती देने वाले हमास मिलिशिया के उदाहरण से प्रेरित करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत के बाहर पीएफआई-एसडीपीआई और इससे जुड़े संगठन खुलकर सामने नहीं आ रही हैं. पीएफआई पर प्रतिबंध लगने के बाद से ये अपनी गतिविधियां गुप्त स्तर पर चला रहा है. हालांकि, नए बैनरों के तहत फिर से संगठित होने, अपनी विचारधारा का प्रचार करने और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की कोशिश लगातार जारी है. 

पीएफआई को लेकर भविष्यवाणी

पीएफआई पर प्रतिबंध लगाए जाने को ढाई साल से ज्यादा बीत चुका है. ऐसे में ये संगठन अब धीरे-धीरे और बहुत सावधानी से पुनर्जीवित हो रहा है. पीएफआई के कई पुराने कैडर अपनी चरमपंथी गतिविधियों को जारी रखने के लिए एसडीपीआई और अन्य मोर्चों में शामिल हो गए हैं. पीएफआई के कुछ सदस्यों को ज़मानत मिलने के बाद धीरे-धीरे इस पर लगा प्रतिबंध कमज़ोर हो सकता है. पीएफआई की गतिविधियों को दोबारा ज़िंदा करने में खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय मुस्लिम प्रवासी समुदाय की अहम भूमिका होगी. पीएफआई के मज़बूत होने से इस समुदाय में सलाफीवाद का प्रभाव और ज़्यादा बढ़ेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि पीएफआई इस वक्त जिस गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, उसे ख़त्म करने में भी खाड़ी क्षेत्र में रहने वाले भारतीय मुसलमान मदद कर सकते हैं. को धन जुटाने में मदद कर सकता है. पीएफआई-एसडीपीआई दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों और पश्चिम बंगाल में खुद को मज़बूत करने के मौके तलाशेगा. हालांकि, अगर एजेंसियों द्वारा सख्त कार्रवाई की जाती हैं, विशेष रूप से SDPI के खिलाफ, तो शायद इसके पुनर्गठन को कमज़ोर किया जा सकता है.


कंचन लक्ष्मण एक सुरक्षा विश्लेषक हैं. आतंकवाद, कट्टरता, वामपंथी उग्रवाद और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर उनकी विशेषज्ञता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.