पिछली गर्मी छुट्टियों में नौ हजार से अधिक छात्रों को ऑनलाइन माध्यम से उद्यमिता यानी आंट्रप्रेन्योरशिप सिखाई गई. इन्हें सिखाने वालों में 700 मेंटर (परामर्शदाता) ऐसे थे, जो खुद इसके लिए आगे आए थे. 30 से अधिक उद्योगपति, 10 से ज्य़ादा निजी क्षेत्र की तकनीकी कंपनियां भी इस मुहिम में शामिल हुईं. यह प्रोग्राम नौ हफ्ते तक चला. छात्रों को सात भाषाओं में कारोबार शुरू करने और उसे बढ़ाने, संभालने के तौरतरीके बताए गए. इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम में 35 राज्यों को शामिल किया गया. कोरोना महामारी के कारण शिक्षा तंत्र जिन चुनौतियों से गुजर रहा है, उनके बीच ‘एटीएल टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप’ विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रयोग था.
कोई छात्र गर्मी छुट्टियों में जो करता है, उसका उसके अकादमिक प्रदर्शन पर काफी असर होता है. ‘समर लॉस’ यानी गर्मी छुट्टियों के दौरान मिले वक्त को गंवाने का क्या असर होता है, इसकी रिसर्च 1906 तक जाती है. इन रिसर्च में देखा गया है कि गर्मी छुट्टियों की गतिविधियों और छात्र के अकादमिक प्रदर्शन के बीच क्या रिश्ता है. इसे ‘नलका सिद्धांत’ यानी फॉसेट थिअरी कहते हैं. इस सिद्धांत में बताया गया है कि पूरे अकादमिक वर्ष में सभी छात्रों को एक जैसे संसाधन मिलते हैं. गर्मी की छुट्टियों को छोड़कर, जब वंचित तबके के छात्रों के लिए संसाधन कम हो जाते हैं. इस दौरान उच्च आय वर्ग के छात्रों की संसाधनों तक पहुंच पहले की तरह बनी रहती है. यानी उन्हें रुपये-पैसे की कमी नहीं होती. पढ़ाई-लिखाई में माता-पिता से मदद मिलती है. उनके सीखने का सिलसिला जारी रहता है.
कोई छात्र गर्मी छुट्टियों में जो करता है, उसका उसके अकादमिक प्रदर्शन पर काफी असर होता है. ‘समर लॉस’ यानी गर्मी छुट्टियों के दौरान मिले वक्त को गंवाने का क्या असर होता है, इसकी रिसर्च 1906 तक जाती है. इन रिसर्च में देखा गया है कि गर्मी छुट्टियों की गतिविधियों और छात्र के अकादमिक प्रदर्शन के बीच क्या रिश्ता है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राज चेट्टी ने भी इसी तरह से एक शोध किया. इसे अमेरिका में ‘लॉस्ट आइंस्टाइन’ का नाम दिया गया. यह रिसर्च बताती है कि इनोवेशन (नवाचार या खोज) छात्रों में कुदरती तौर पर नहीं आती. इनोवेशन का हुनर सीखना पड़ता है. कोई छात्र किस माहौल में रहता है, उसका इस पर असर होता है. तकनीक तक उसकी पहुंच है या नहीं, इनसे भी छात्र की इनोवेशन की क्षमता प्रभावित होती है. 2021 में जब दुनिया भर के छात्र कोरोना महामारी के कारण ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मजबूर हैं तो ‘समर लॉस’ और ‘लॉस आइंस्टाइन’ जैसी रिसर्च और भी प्रासंगिक हो गई हैं.
एटीएल टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप
सरकार ने देश में उद्यमिता और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए अटल इनोवेशन मिशन (एआईएम) शुरू किया. इसी मिशन के तहत अटल टिंकरिंग लैब (एटीएल) नाम से एक प्रोग्राम तैयार किया गया, ताकि देश में इनोवेशन करने वालों की एक पीढ़ी तैयार की जाए. पिछले एक साल में अटल टिंकरिंग लैब्स से करीब 16 लाख छात्रों के लिए डिजिटल लर्निंग की एक नई दुनिया खुली. ये वो छात्र थे, जो अटल टिंकरिंग लैब्स से जुड़े हुए थे. इन लोगों को डिजिटल माध्यमों के ज़रिये उद्यमिता सिखाने में स्वैच्छिक परामर्शदाताओं की बड़ी भूमिका रही. जिन छात्रों को इसमें शामिल किया गया, उनके मन में इस प्रोग्राम की वजह से उद्यमिता का बीज अंकुरित हुआ. नौ हफ्त़े का टीम आधारित बूटकैंप यह सोचकर तैयार किया गया कि गर्मी छुट्टियों में छात्र उद्यमिता और इनोवेशन में दिलचस्पी दिखाएं और उन्हें अपनाएं.
इंटरनेट में एक अजीब खूबी है. यह आपको एक साथ बड़े समूह से जोड़ता है तो उसके साथ ही सबसे अलग होकर काम करने की आजादी भी देता है. एटीएल टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप में इंटरनेट की इस खूबी का खयाल रखते हुए कोशिशें हुईं. इसमें शामिल होने वाले छात्रों को इंडस्ट्री के जाने-माने लोगों से सीखने का मौका मिला तो इसके साथ ही हर छात्र को निजी तौर पर भी जानकारों से परामर्श मिला. उनकी पर्सनल मेंटरिंग की गई. यानी छात्र सीखने के साथ काम में आने वाली दुश्वारियों को लेकर जानकारों से उनके हल के बारे में पूछ सकते थे. यह पूरा कोर्स इस तरह से तैयार किया गया था कि कोई भी छात्र सीखने के इस तजुर्बे से महरूम न रह जाए. आख़िर में इस पूरे प्रोग्राम में तीन अहम बातें हुईं.
नौ हफ्ते के बूटकैंप में ऐसे पांच-छह लाइव सेशन हुए. इनमें डिजिटल प्रोडक्ट्स को बेहतर बनाने के बारे में बताया गया. उनकी मार्केटिंग किस तरह से की जानी चाहिए, इसकी जानकारी दी गई. छात्रों को ये जानकारियां जाने-माने उद्यमियों, प्रोफेसरों और टेक्नोलॉजी लीडरों से मिली.
पहली, इंडस्ट्री के जाने-माने लोगों की ओर से सभी छात्रों के लिए लाइव क्लास. नौ हफ्ते के बूटकैंप में ऐसे पांच-छह लाइव सेशन हुए. इनमें डिजिटल प्रोडक्ट्स को बेहतर बनाने के बारे में बताया गया. उनकी मार्केटिंग किस तरह से की जानी चाहिए, इसकी जानकारी दी गई. छात्रों को ये जानकारियां जाने-माने उद्यमियों, प्रोफेसरों और टेक्नोलॉजी लीडरों से मिली. उन्हें एकदम नई चीज़ो की जानकारी मिली, वह भी उन क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स से. इतना ही नहीं, छात्रों को यह सब उनकी अपनी भाषा में सिखाया गया. इसलिए लाइव सेशन सात अलग-अलग भाषाओं में आयोजित किए गए.
दूसरी, हर छात्र को निजी तौर पर सलाह मिली, मेंटरिंग हुई और गाइडेंस मिला. बूटकैंप के लिए 700 से अधिक मेंटरों ने छात्रों की मदद की पेशकश की थी. उन्हें 13-15 छात्रों के समूह के साथ जोड़ा गया. बूटकैंप सेशन के दौरान मेंटरों ने छात्रों को खास चीजें सिखाने के लिए निजी सेशन किए. इसमें क्या सिखाना है, इस पर विशेष ध्यान दिया गया. ये छात्र अगर पहले से काम कर रहे थे तो उनके पास उससे जुड़ा निजी तजुर्बा था. एक अपनी अंतदृष्टि थी. पेशे से जुड़ी अपनी जानकारी थी. इसलिए मेंटरों ने बूटकैंप में उस नॉलेज को बढ़ावा देकर उनकी हौसलाअफजाई की कोशिश की. तीसरी, सभी मेंटरों और छात्रों के पास एक पोर्टल का एक्सेस था, जहां जाकर छात्र अपने हिसाब से किसी भी विषय की जानकारी जुटा सकते थे, सीख सकते थे. वेबसाइट पर किसी काम को अलग-अलग चरणों में कैसे किया जा सकता था, यह बताया गया था. इसके अलावा, वहां वीडियो लेक्चर और ओपन सोर्स कंटेंट भी दिए गए थे.
लॉस्ट आइंस्टाइन को बचाने की वैश्विक पहल हो
21वीं सदी ग्लोकल यानी ग्लोबल के साथ लोकल (वैश्विक के साथ स्थानीय) और इंटरनेट का युग है. इसलिए समर लॉस से निपटने के साथ ‘लॉस्ट आइंस्टाइन’ को तलाशने की पहल करनी होगी. क्लाउड आधारित शिक्षा की संभावनाओं के लिए एटीएल टिंकरप्रेन्योर एक ताकतवर केस स्टडी बन सकता है. टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप यह भी दिखाता है कि इन चुनौतियों का किस तरह समाधान किया जा सकता है.
ऑनलाइन सिखाने-पढ़ाने में हर किसी पर ध्यान न दिए जाने और सबकी जरूरतों के मुताबिक शिक्षा न दिए जाने की शिकायतें मिलती रही हैं. टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप से मिले सबक हमें बताते हैं कि इन मसलों को किस तरह से हल किया जा सकता है. हम तो यही कहेंगे कि बूटकैंप से जो सबक मिले हैं, उन्हें एक बड़ी सोच से जोड़ा जाना चाहिए. हमें इनोवेशन के माध्यम से इस सबक का इस्तेमाल आर्थिक तरक्की की खातिर करना चाहिए. इसलिए हमारा सुझाव होगाः
टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप में सलाहकारों और छात्रों को साथ लाने के लिए भाषा और क्षेत्र को भी आधार बनाया गया. इससे जो लोग छात्रों को सलाह दे रहे थे, उन्हें उनके सामाजिक परिवेश का पता था. इस बात को ध्यान में रखते हुए सलाहकारों ने छात्रों को सिखाने-समझाने की कोशिश की.
पहला, साझेदारी और सहयोग की ताकत की पहचान. अटल इनोवेशन मिशन का कमाल यह था कि इसने एक मंच दिया, जहां इनोवेशन और उद्यमिता के लिए अलग-अलग एक साथ आ पाए. सिंगापुर, रूस और स्वीडन जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग से लेकर बड़ी टेक कंपनियों और जाने-माने स्टार्टअप्स की भागीदारी तक. जानी-मानी टेक कंपनियों के पेशेवर, टॉप कॉलेजों के प्रोफेसर और महत्वाकांक्षी उद्यमी बूटकैंप शामिल हुए. इन सबसे मिलकर बूटकैंप को कामयाब बनाया.
दूसरा, सही मेंटरों की तलाश. ‘लॉस्ट आइंस्टाइनः जो अमेरिका में इनोवेटर बने’ रिसर्च बताती है कि अगर बचपन में सही संसाधन मिलें तो आगे चलकर ऐसे लोग इनोवेशन की पहल करते हैं. यह उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा होती है. अगर सही सलाहकार मिलें (मेंटरशिप की जाए) तो उससे इस मकसद को पाने में मदद मिलती है. टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप में सलाहकारों और छात्रों को साथ लाने के लिए भाषा और क्षेत्र को भी आधार बनाया गया. इससे जो लोग छात्रों को सलाह दे रहे थे, उन्हें उनके सामाजिक परिवेश का पता था. इस बात को ध्यान में रखते हुए सलाहकारों ने छात्रों को सिखाने-समझाने की कोशिश की.
तीसरा, पाठ्यक्रम (कोर्स) और शिक्षण पर ध्यान. इंटरनेट की खूबी यह है कि इसके जरिये सीखने के लिए सबसे बेहतरीन जरिये मुहैया कराए जा सकते हैं. इसकी मदद से हम ऐसा कंटेंट (सामग्री) दे सकते हैं, जिनका छात्र अपनी सुविधा और सहूलियत के हिसाब से इस्तेमाल कर सकें. इंटरनेट इसके साथ निजी स्तर पर छात्र के लिए मेंटर से सलाह लेने का जरिया भी बन सकता है. इन्हीं खूबियों को ध्यान में रखते हुए टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप का आयोजन किया गया था.
वैश्विक स्तर पर प्रतिभाओं की कमी को भरने के लिए इनोवेशन अहम माध्यम हो सकता है. वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की फ्यूचर्स ऑफ वर्क 2020 रिपोर्ट बताती है कि अगले 10 साल में 8.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी. इनके बदले 9.7 करोड़ नए रोजगार पैदा होंगे. इनके लिए लोगों को प्रशिक्षित करना और उन्हें सक्षम बनाना होगा. टिंकरप्रेन्योर बूटकैंप जैसी पहल से इसमें काफी मदद मिल सकती है.
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