हाल के वर्षों में दुनिया का कोई भी देश अपने राष्ट्रीय हितों को साधने की दिशा में उतने सुनियोजित तरीके से आगे नहीं बढ़ा है जितना कि चीन। वृहद सामरिक लक्ष्यों को हासिल करने की उसकी यह समर्पित खोज उन विश्लेषकों को भी उसका कायल बना देती है जो चीन के रणनीतिक मंसूबों को लेकर आम तौर पर ज्यादा उत्साहित नहीं रहते। खासकर, 1984 में डेंग शियाओपिंग की 20वीं सदी के अंत तक चीन की जीडीपी को चार गुना कर देने की सार्वजनिक अपील और -इस लक्ष्य को तय सीमा से पहले ही पूरा कर लेने- को अक्सर चीन के मूलभूत उद्देश्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय संसाधनों के अटूट समर्पण का एक बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। इसी प्रकार, जब शी जिनपिंग चीन के ‘दो सदियों’-2021, सीपीसी की स्थापना, और 2049, पीआरसी का निर्माण करने के अपने विजन की बात करते हैं तो विश्लेषकों को उसमें चीन की दृढ़ता दिखाई देती है।
लेकिन वृहद रणनीति केवल राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करना एवं पर्याप्त संसाधनों को असरदार तरीके से इस्तेमाल करने के द्वारा उसे अर्जित कर लेना भर नहीं है। जैसा कि कूटनीतिक इतिहासकार हाल ब्रैंड्स ने हाल में एक किताब में उल्लेख किया — यह ताकत और उद्देश्यों के मिलान का काम है। हाल ब्रैंड्स लिखते हैं कि ‘वृहद रणनीति एक बौद्धिक शिल्प कला है जो जो विदेश नीति को आकृति और संरचना प्रदान करती है।’ इसी समझ से चीनी अधिकारियों द्वारा अंग्रेजी में चीन की वृहद् रणनीति का किया गया विस्तृत विश्लेषण (पश्चिमी विशेषज्ञों के विपरीत) गले से नीचे नहीं उतरता। इस नियम के अपवादस्वरूप दो कृतियां हैं। पहली कृति पीकिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यी जियाचेंग द्वारा 2003 में लिखी एक किताब है जिसका 2011 में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। दूसरी कृति इसी विश्वविद्यालय के एक अन्य प्रोफेसर, वांग जिसि द्वारा लिखा गया एक लेख है। दोनों ही कृतियां विश्व में उसकी भूमिका के चीन के विजन को लेकर उल्लेखनीय रूप से निर्भीक है।
यी जियाचेंग चीन के मूलभूत वृहद रणनीतिक लक्ष्य की ‘शांतिपूर्ण विकास’ के जरिये एक ‘विश्व शक्ति’ बनने के रूप में व्याख्या करते हैं। यी के लिए, आर्थिक विकास का अर्थ चीन को एक विश्व शक्ति बनाना है। जाहिराना तौर पर, यह बिल्कुल गलत प्रतीत नहीं होता। आखिरकार, लगभग सारे उभरते देशों की मंशा यही होती है। उनकी कोशिश अधिकतर यही होती है कि बिना संघर्ष वाले माध्यमों से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना। लेकिन यी के चरित्र वर्णन के बारे में दिलचस्प बात यह है कि उनके वर्णन में दो तरह की शक्तियां होती हैं: एक ‘वैश्विक महाशक्ति’ एवं एक ‘महाशक्ति’। परिभाषा के अनुसार, एक वैश्विक महाशक्ति के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था एकध्रुवीय होती हैः ‘महाशक्तियों’ की दुनिया द्विध्रुवीय होती है। इसलिए, यी ‘विश्व शक्तियों’ की एक बहुध्रुवीय दुनिया के प्रति चीन की प्राथमिकता को जाहिर कर देते हैं।
वह (रूस-चीन संबंधों को लेकर) लिखते हैंः ‘केवल चीन या केवल रूस के उदय से एक स्थिर बहुध्रुवीय विश्व (जोर देकर) का निर्माण नहीं होगा।’ वास्तव में, यी के लिए बहुध्रुवीकरण की परस्पर तलाश ही वह वजह है कि चीन एवं रूस दोनों ही आपसी प्रतिद्वंदिता नहीं बल्कि आपसी सहयोग को आगे बढ़ा रहे हैं। यी एक ‘बहुध्रुवीय विश्व‘ की स्थापना हेतु भारत और चीन के लिए भी अपने मतभेदों को दूर करने की ओर इंगित करते हैं।
यी अन्य चीनी विशेषज्ञों (पीएलए के भीतर एवं अन्य अन्यत्र कहीं) के लेखों में भी एक व्यापक विषय की ओर इंगित करते हैं कि ‘चीन एक ऐसी राष्ट्रीय रक्षा नीति का अनुसरण करता है जिसमें समग्र आर्थिक विकास हासिल करने के लिए राष्ट्रीय रक्षा के निर्माण पर जोर दिया जाता है।’
यह दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी और ‘चीनी विशेषताओं के साथ’ सैन्य कीनेसियावाद की संभावना के चीन के लक्ष्य के अनुरूप है। लेकिन यी के तर्क में एक महीन बिंदु भी है जिसकी वह व्याख्या करते हैं। अगर चीन को उस बिंदु तक खुद को सशस्त्र करना होता कि आधिपत्य चिंतित हो तो वह युद्ध की आशंका के जरिये चीन के सतत आर्थिक विकास को खतरे में डाल सकती है जोकि उसके लिए एक सुरक्षा दुविधा है। यी का मानना है कि राष्ट्रीय रक्षा के मुकाबले आर्थिक विकास प्राथमिकताओं पर जोर देने के जरिये, चीन ‘निरंकुश’ सुरक्षा की जगह ‘अपेक्षाकृत’ सुरक्षा का इच्छुक है।
लेकिन यी कोई कबूतर नहीं हैं जो अकेला विश्व शांति के इच्छुक हैं। उनकी किताब के सबसे आकर्षक हिस्से ‘अमेरिका की बेशुमार ताकत, जो उसे निरंकुश ताकत को हासिल करने और उसे आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है, ‘के बावजूद अमेरिका की कमजोरियों की उसकी व्याख्या है।’
यी डेविड और गोलिएथ की कहानी का स्मरण दिलाते हैं और कहते हैं: ‘अमेरिका इतना ताकतवर है कि उसका कोई भी शत्रु सीधे उसका मुकाबला नहीं कर सकता।’ इसकी जगह, वे उसका मुकाबला करने के लिए विषम तरीके अपनाएंगे। कियी नाभिकीय बिजली संयंत्रों, इलेक्ट्रॉनिक संचार केंद्रों एवं पनबिजली बिजली संयंत्रों‘ को अमेरिकी कमजोरियों के अन्य उदाहरणों के रूप में सूचीबद्ध करते हैं और कहते हैं कि अमेरिकी नीति निर्माताओं को इन्हें विराम देना चाहिए। वास्तव में, 1999 में पीएलए के दो कर्नलों ने ‘अप्रतिबंधित संग्राम’ पर एक किताब लिखी थी, जो किसी संघर्ष की स्थिति में अमेरिका को पराजित करने के लिए आतंकी हमलों समेत विषम माध्यमों की एक विकल्प सूची है।
डेविड और गोलिएथ की कहानी। पीएलए के एक अन्य कर्नल एवं राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के विद्वान लियु मिंग्फु की कृतियों में भी फिर से अभिव्यक्त होती है जिन्होंने 2009 में चाइना ड्रीम नामक एक किताब लिखी थी। लियु ने अमेरिका एवं चीन के बीच प्रतिस्पर्धा की सहनशीलता के एक मैराथन के रूप में व्याख्या की थी जो दो समान व्यक्तियों के बीच कुश्ती या मुक्केबाजी के मुकाबले के विपरीत चतुराई से लाभ का बड़ा हिस्सा लेने से जुड़ा है। और लियु दूर से कोई बात कह रहा हो, ऐसा भी नहीं है। उदाहरण के लिए, कई विश्लेषकों (सबसे उल्लेखनीय, पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारी माइकल पिल्सबरी) ने अनुमान लगाया है कि जब शी जिंगपिंग ‘चाइनीज ड्रीम’ की बात करते हैं तो वह लियु से कोई संकेत ग्रहण कर रहे होते हैं। लेकिन लियु एवं यी के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि लियु का वृहद सामरिक लक्ष्य 2049 तक अमेरिका को उस स्थिति से हटा कर चीन का विश्व के सबसे बड़े वर्चस्व वाले देश के रूप में उभरना (‘सौ वर्ष मैराथन’ के आखिर में) है। दूसरी तरफ, यी एक बहुध्रुवीय विश्व चाहते हैं जो अमेरिकी शक्ति एवं एकपक्षीयवाद को अन्य शक्तियां के साथ नियंत्रण में रख सके।
पेकिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वांग जिसी का 2011 का फॉरेन अफेयर्स लेख चीन की वृहद रणनीति पर सभी लोगों की पठन सूची में शामिल है। यह उस लिहाज से भी विशिष्ट प्र्रतीत होता है जब इंगित करता है कि ‘चीन की विदेश नीति के लिए एक स्पष्ट संचालन सिद्धांत, दूसरे शब्दों में कहें तो -चीन के लिए एक वृहद सणनीति का ईजाद- करना लगभग असंभव है।’ लेकिन आर्थिक विकास चीन की सामरिक नीति का प्रमुख उद्देश्य बना रहेगा, यह वांग की टिप्पणियों से स्पष्ट है। वह 2006 की सीपीसी केंद्रीय समिति की घोषणा को नोट करते हैं कि चीन की ‘विदेश नीति को अनिवार्य रूप से अपने अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्वे के रूप में आर्थिक निर्माण को बरकरार रखना चाहिए, घरेलू कार्य में घनिष्ठतापूर्वक समावेशित करना चाहिए और घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के साथ समन्वय के जरिये इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए।’ वांग विदेशी संबंध: राजनीतिक स्थिरता के लिए पूर्व राज्य पार्षद के अनुसार, और भी व्यापक रूप से पीपुल्स रिपब्लिक के तीन प्रमुख हितों को नोट करते हैं जिसमें सीपीसी के नेतृत्व को स्थायी बनाया जा सकता है ; ‘स्वायत सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंडता एवं राष्ट्रीय एकीकरण’, और आर्थिक विकास तथा प्रगति जिसे दीर्घकालिक रूप से बरकरार रखा जा सकता है। वांग यह भी नोट करते हैं कि ये तीन शाखाएं जो कभी कभी तनाव में होती हैं‘ ही वह कारण है कि चीन को एक सुसंगत वृहद रणनीति के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
बगैर इसे ऐसे पुकारने के, वांग चीन की दृढ़ वृहद-रणनीतिक त्रिस्तरीय उलझन की ओर इंगित करता है। अगर चीन को आर्थिक विकास एवं सार्वभौमिक सुरक्षा मे से किसी एक को चुनना हो तो उसे विरोधियों पर कार्रवाई (भले ही गैरइरादतन) करना पड़ सकता है जो सार्वभौमिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है जैसाकि टिएनामेन स्क्वॉयर प्रकरण में हुआ था। नतीजतन, यह सीपीसी शासन के पतन का कारण भी बन सकता है। अगर चीन को राजनीतिक स्थिरता का चुनाव करना है और यह अपने मजबूत संप्रभुता हावभाव (उदाहरण के लिए, ताईवान के प्रति अधिक मुखर दावों समेत) पर जोर देता है तो यह संभवतः पश्चिमी पूंजी एवं प्रौद्योगिकी तक अपनी पहुंच खो बैठेगी जो उसके सतत आर्थिक विकास के लिए जरुरी है।
अंत में, अगर चीन को वर्तमान में जारी सीपीसी शासन और सतत आर्थिक विकास का चयन करना पड़ा तो उसे ताईवान के साथ पुर्नएकीकरण समेत अपने बड़े भू-रणनीतिक लक्ष्यों को नियंत्रण में रखना पड़ेगा क्योंकि उससे ये दोनों ही लक्ष्य संकट में पड़ जाएंगे।
अभी तक, यह स्पष्ट है कि चीन की वृहद-रणनीतिक प्राथमिकताएं सीपीसी निगरानी के तहत चीन के सतत आर्थिक विकास की दिशा में झुकी हुई हैं — और इस प्रकार अपनी भूराजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को (जैसेकि अपने सीमा विवादों के अपने अनुकूल समाधानों) नियंत्रण में रखना चाहिए। लेकिन हाल की चीन की हठधर्मिताओं से संकेत मिलता है कि कुल मिला कर चीन की यह त्रिस्तरीय वृहद-रणनीतिक उलझन केवल एक कल्पना भर हो सकती है। किसी भी सूरत में, जिस समय तक शी के ‘टू सेंचुरीज’की दूसरी सदी-कम्युनिस्ट चीन की शताब्दी करीब आएगी, चीन की आर्थिक, सैन्य एवं राजनयिक शक्ति एक साथ मिल कर ऐसे हालात पैदा कर देंगे जहां इस त्रिस्तरीय उलझन की नौबत ही नहीं आएगी।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.