रूस की ओर से एक बार फिर उत्तर कोरिया यानी डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK) से सैन्य सहयोग हासिल करने की कोशिश की गई है. मॉस्को की तरफ से इस बार उत्तर कोरिया से मदद का प्रयास हथियार और गोला–बारूद के लिए किया गया है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग–उन ने अपनी चर्चित बेहद सुरक्षित बख़्तरबंद ट्रेन में रूस की यात्रा की थी. बताया गया है कि इस यात्रा का उद्देश्य रूस को हथियार और सैन्य साज़ो–सामान की आपूर्ति के लिए मास्को एवं प्योंगयांग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर करना था. हालांकि, पूर्व के सोवियत यूनियन के ज़माने से ही रूसी संघ के पास हथियारों एवं गोला–बारूद का ज़खीरा रहा करता था, लेकिन ताज़ा परिस्थितियों में रूस में सैन्य साज़ो–सामान की कमी हो गई है. हालांकि, इसमें कोई हैरानी वाली बात भी नहीं है, क्योंकि लंबे समय से जारी रूस–यूक्रेन युद्ध में बड़ी मात्रा में रूस का हथियार और गोला–बारूद यूक्रेन के विरुद्ध इस्तेमाल हो चुका है. आयुध भंडार में आई इस कमी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चीन और बेलारूस के अलावा अपने एकमात्र निकटतम सहयोगी उत्तर कोरिया से युद्ध सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विवश कर दिया है. रूस और उत्तर कोरिया के बीच अपनी अलग–अलग ज़रूरतों को लेकर प्रगाढ़ पारस्परिक साझेदारी है. प्योंगयांग रूस में निर्मित सैटेलाइट एवं खाद्य सहायता के एवज में यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में रूस की मदद करने के लिए तोपों एवं गोला–बारूद की आपूर्ति करने पर सहमत हुआ है.
ऐसा माना जाता है कि उत्तर कोरिया के पास दुनिया के किसी भी देश की तुलना में आर्टिलरी यानी तोपों एवं सैन्य हथियारों का सबसे बड़ा भंडार है. यहां तक कहा जाता है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए बिना ही उत्तर कोरिया अपनी तोपों और मिसाइलों के दम पर दक्षिण कोरियाई की राजधानी सियोल को नेस्तनाबूद कर सकता है.
उत्तर कोरिया की और रुख़
ऐसा माना जाता है कि उत्तर कोरिया के पास दुनिया के किसी भी देश की तुलना में आर्टिलरी यानी तोपों एवं सैन्य हथियारों का सबसे बड़ा भंडार है. यहां तक कहा जाता है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए बिना ही उत्तर कोरिया अपनी तोपों और मिसाइलों के दम पर दक्षिण कोरियाई की राजधानी सियोल को नेस्तनाबूद कर सकता है. सच्चाई यह है कि उत्तर कोरिया के पास 6,000 आर्टिलरी सिस्टम्स हैं और अगर युद्ध की स्थिति में इनका उपयोग उसके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के ख़िलाफ़ किया जाता है, तो एक घंटे के भीतर ही वहां के 10,000 लोगों को मौत के घाट उतारा जा सकता है. ज़ाहिर है कि प्योंगयांग के पास आर्टिलरी ऑर्डिनेंस का बहुत बड़ा ज़खीरा मौज़ूद है, ऐसे में उसे हथियारों की कमी से जूझ रहे मॉस्को की मदद करनी चाहिए. हाल ही में रूस और उत्तर कोरिया के बीच हथियारों एवं गोला–बारूद को लेकर जो डील हुई है, उससे मॉस्को को लंबे समय तक अपने सैन्य अभियानों को संचालित करने में मदद मिलेगी.
यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ाई में रूसी सेना द्वारा जिस प्रकार अंधाधुंध तरीक़े से तोपों एवं दूसरे सैन्य हथियारों का इस्तेमाल किया गया है, उसी का नतीज़ा है कि मॉस्को के समक्ष व्यापक स्तर पर हथियारों की कमी हो गई है. यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में जितनी तादात में रूसी सेना ने हथियार और गोला बारूद का इस्तेमाल किया है, उसकी तुलना में वहां ज़रूरी हथियारों का उत्पादन नहीं हो सकता है. वर्तमान समय की बात करें, तो रूसी आर्टिलरी वीपन्स का वार्षिक उत्पादन 2 मिलियन है. रूसी सेना द्वारा तोपों के निर्माण से जुड़ी गतिविधियों में जितना ख़र्च किया जाता, उसकी तुलना में तोपों का उत्पादन बहुत कम है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2022 में रूस में 11 मिलियन गोला–बारूद का उत्पादन किया गया था, जबकि इस वर्ष (2023) यह आंकड़ा 7 मिलियन तक ही पहुंचने की संभावना है. मॉस्को और प्योंगयांग के बीच वर्तमान में जो डील हुई है, इससे पहले भी रूस द्वारा गुपचुप तरीक़े से उत्तर कोरिया से हथियार हासिल किए जा रहे थे.
देखा जाए तो रूस-उत्तर कोरिया हथियार डील भारत जैसे देशों के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा है, क्योंकि सैन्य सामग्री को लेकर भारत की रूस पर बहुत अधिक निर्भरता है.
जिस प्रकार से मॉस्को की उत्तर कोरिया और ईरान पर सैन्य आपूर्ति के लिए निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसने अन्य देशों को भी ख़ासा प्रभावित किया है. रूस की दूसरे मुल्क़ों पर निर्भरता ने विशेष रूप से उन देशों की चिंता बढ़ा दी है, जो तोपों और गोला–बारूद की आपूर्ति के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर हैं. ऐसे देशों की भी सैन्य हथियारों को लेकर रूस और नॉर्थ कोरिया के बीच हुई डील पर पैनी नज़र है. ज़ाहिर सी बात है कि अगर रूस वर्तमान युद्ध में कीव के विरुद्ध अपने सेना की हथियार एवं गोला–बारूद की आपूर्ति से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, तो वह अपने रक्षा साझीदार देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे कर पाएगा? उदाहरण के तौर पर, भारत रूस के आर्टिलरी सिस्टम की एक पूरी श्रृंखला को ऑपरेट करता है और कहा जा सकता है कि उस पर अत्यधिक निर्भर भी है. इस आर्टिलरी सिस्टम में स्मर्च मल्टी–बैरल रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स (MBRLs) से लेकर Grad-21 रॉकेट लॉन्चर तक शामिल हैं. हालांकि, किसी विपरीत स्थित में भारत के पास रूसी आर्टिलरी सिस्टम्स की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए घरेलू स्तर विकल्प मौज़ूद हैं. लेकिन ऐसी परिस्थियों में, जब भारत और चीन या फिर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की नौबत आ जाए, या फिर बीजिंग और रावलपिंडी दोनों तरफ से हमला हो जाए, तो भारत को गंभीर चुनौतियों से रूबरू होना पड़ेगा. ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) द्वारा पहले से ही स्मर्च MBRLs में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के गोला–बारूद का उत्पादन किया जाता है. हालांकि मौज़ूदा हालात में जिस प्रकार से यूक्रेन पर हमले के लिए रूस हथियारों की कमी से जूझ रहा है, उस स्थिति में भारत को अपने हथियारों के उत्पाद में ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ोतरी करने की ज़रूरत होगी. जो परिस्थितियां बन रही हैं, उनसे यह साफ प्रतीत हो रहा है कि रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबे समय तक खिंचने की संभावना है और ऐसे में आने वाले दिनों में मॉस्को को आर्टिलरी वीपन्स की बहुत अधिक ज़रूरत पड़ेगी.
इसके साथ ही यह भी जानना होगा कि अगर मॉस्को इसके लिए तैयार है, तो भारत को बदले में रूस को कितना पैसा देना होगा. भारत को कम से कम मॉस्को के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करनी होगी कि वो मौज़ूदा मामूली स्तर की तुलना में रूसी मूल की हथियार प्रणालियों को व्यापक पैमाने पर कैसे विकसित कर सकता है.
इसलिए, देखा जाए तो रूस–उत्तर कोरिया हथियार डील भारत जैसे देशों के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा है, क्योंकि सैन्य सामग्री को लेकर भारत की रूस पर बहुत अधिक निर्भरता है. हालांकि, लंबे समय में रूसी हथियारों पर निर्भरता को कम किए जाने की ज़रूरत है और ऐसे में गैर–रूसी सैन्य उपकरणों की ख़रीद और उनका उपयोग किया जाना अब आवश्यक हो गया है. ऐसा ज़रूरी नहीं है कि रूस से हथियारों की आपूर्ति में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए गैर–रूसी हथियार एवं गोला–बारूद आपूर्तिकर्ता देशों से आयात को बढ़ाया जाए. ज़ाहिर है कि ऐसा करने के बजाए नई दिल्ली को स्वदेश में विकसित आर्टिलरी सिस्टम्स में निवेश के लिए भी समानांतर कोशिशें करनी चाहिए. इतना ही नहीं रूस को भी भारत को स्वदेश में रूसी मूल के आर्टिलरी वीपन्स का निर्माण करने की इज़ाजत देनी चाहिए. ऑटोमोबाइल और ट्रक निर्माता अशोक लीलैंड पहले से ही स्वदेशी रूप से निर्मित 10×10 उच्च मोबिलिटी वाले वाहन बना रहा है, जिनमें स्मर्च बैटरी लगी हुई है. इसके साथ ही भारत में अपने छह लांचरों के साथ स्मर्च बैटरियों का भी उत्पादन किए जाने की ज़रूरत होगी.
आगे की राह
इसी तरह से ग्रैड रॉकेट लॉन्चरों का उत्पादन भी भारत में किए जाने की आवश्यकता होगी. इंडियन–रशियन इंटरगवर्नमेंटल कमीशन ऑन मिलिट्री एंड मिलिट्री–टेक्नीकल कोऑपरेशन (IRICMMC) के ज़रिए नई दिल्ली को इस बारे में मॉस्को के साथ बातचीत करनी होगी. साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि क्या मॉस्को इन रॉकेट बैटरियों के लिए अपनी टेक्नोलॉजी साझा करने के लिए राज़ी है. इसके साथ ही यह भी जानना होगा कि अगर मॉस्को इसके लिए तैयार है, तो भारत को बदले में रूस को कितना पैसा देना होगा. भारत को कम से कम मॉस्को के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करनी होगी कि वो मौज़ूदा मामूली स्तर की तुलना में रूसी मूल की हथियार प्रणालियों को व्यापक पैमाने पर कैसे विकसित कर सकता है. ज़ाहिर है कि अगर भारत द्वारा मॉस्को के साथ इस तरह की कोई बातचीत नहीं की जाती है, तो ग्रैड और स्मर्च रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स को ऑपरेट करने वाली भारतीय सेना (IA) और सैन्य ख़रीद–फरोख़्त की निगरानी करने वाले रक्षा मंत्रालय (MoD) को रूस को छोड़कर अलग–अलग देशों के साथ सैन्य साज़ो–सामन एवं आयुध ख़रीदने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. और भारत की इस संभावित दिक़्क़त के पीछे एक बड़ी वजह होगा, मॉस्को एवं प्योंगयांग के बीच हुआ हालिया हथियार समझौता.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडी प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
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