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Published on Oct 31, 2025 Updated 0 Hours ago

2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित कर भारत ने सेना का खेल बदल दिया — तेज़, चुस्त और आत्मविश्वासी बनना लक्ष्य है. रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियन छोटी-पर-तेज़ टुकड़ियाँ हैं जो सीमा पर अचानक बदलती चुनौतियों को तुरंत चुनौती देंगी. यह बदलाव सिर्फ़ ताकत दिखाने का नहीं, बल्कि कम जोखिम, सटीक और निर्णायक कदम लेकर स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने की नई सोच है.

‘रुद्र’ का शौर्य,  ‘भैरव’ का संहारः रणघोष के लिए भारत तैयार

भारत के रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने साल 2025 को 'सुधारों का वर्ष' घोषित किया. रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियनों का गठन भारतीय सेना (आईए) के भीतर संगठनात्मक पुनर्गठन को मज़बूत करने और इसमें सुधार करने की कोशिशों का ही एक हिस्सा है. हालांकि, इस कोशिश को अन्य तकनीकी और संगठनात्मक बदलावों में सुधार तक सीमित समझना सही नहीं होगा. रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियनों के गठन का मक़सद युद्ध के बदलते स्वरूप और भारत के दो चिर प्रतिद्वंद्वियों, चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न ख़तरों के विरुद्ध खुद को तैयार रखना भी है. इनका लक्ष्य दोनों देशों के खिलाफ़ सैद्धांतिक और प्रतिक्रिया का विकल्प विकसित करना भी है. इसके बावजूद, भारतीय सेना के पुनर्गठन को मौजूदा और संभावित बढ़ते ज़ोखिमों की वजह से कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है.

  • पाकिस्तान की अस्थिर परमाणु रणनीति के सामने ये इकाइयाँ एक संतुलित और सुरक्षित विकल्प साबित हो सकती हैं.
  • भारत अब चीन की उस रणनीति से निपटने की तैयारी कर रहा है, जिसमें चीन बहुत तेज़ी से कदम उठाकर हालात अपने पक्ष में बदल देता है.

ना युद्ध, ना शांति: बॉर्डर पर क्या स्थिति?

पिछले एक दशक में, चीन और पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ़ अपनी स्थिति को मज़बूत करने के प्रयास किए हैं विशेष रूप से नियंत्रण रेखा (एलओसी) और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर. 2019 में आर्टिकल 370 ख़त्म करने के बाद भारत ने जम्मू-कश्मीर का संवैधानिक क्षेत्रीय पुनर्गठन करके इस राज्य पर अपना दावा और मज़बूत किया. हालांकि, इसका नतीजा ये हुआ कि इस कदम के विरोध में पाकिस्तान और चीन ने भारत के खिलाफ़ अपनी सांठगांठ और गहरी कर ली है. शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन पिछले एक दशक में क्षेत्रीय विवादों में, खासकर धमकी या बल प्रयोग के ज़रिए, तेज़ी से मुखर हुआ है. दरअसल, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पिछले एक दशक में एलएसी पर विवाद के नए क्षेत्रों के साथ कई हॉटस्पॉट बनाए हैं. पीएलए ने अतीत में कई क्षेत्रीय घुसपैठों में भारतीय सेना का आमना-सामना किया है, और इस दौरान दोनों देशों में छिटपुट झड़पें और संघर्ष भी हुए हैं. इनमें 2013 में देपसांग, 2014 में चुमार, 2015 में बुर्त्से, 2017 में डोकलाम, 2020 में गलवान और नाकू ला, और 2022 में द्विपक्षीय सीमा वार्ता के दौरान यांग्त्से रिज पर हुई हालिया झड़पें शामिल हैं. सामूहिक रूप से देखें तो, ये कार्रवाइयां भारत के नागरिक और सैन्य नेतृत्व के सामने एक निश्चित उपलब्धि पेश करने के लिए पीएलए की 'सलामी स्लाइसिंग' का हिस्सा थीं. हालांकि, भारतीय सेना और राजनीतिक नेतृत्व ने एलएसी पर तुरंत ऑपरेशनल तैयारियां सुनिश्चित करने के लिए तेज़ी से सैन्य तैनाती की. इसके ज़रिए भारत ने चीन को मज़बूती से जवाब देकर अपने इरादे ज़ाहिर भी कर दिए. हालांकि, पीएलए द्वारा भारतीय सेना पर दबाव बनाने की बार-बार की जा रही कोशिशों ने भारत को कुछ सबक भी दिए हैं. भारत अब इस मुद्दे का प्रभावी समाधान खोजने के लिए सैद्धांतिक सोच को प्रेरित हुआ है. इसी तरह, पाकिस्तान ने भारत की इनकार की रणनीति को चुनौती देने के लिए इस्लामी आतंकवादियों के माध्यम से एक व्यापक रणनीति के तहत ज़्यादा ज़ोखिम उठाने का प्रदर्शन किया है. ऑपरेशनल नज़रिए से समझें तो, पाकिस्तानी सेना और पीएलए का बर्ताव भारतीय सेना को मज़बूर और बाधित करने का है. इस सब पृष्ठभूमि को देखते हुए, भारत के सैन्य नेतृत्व के लिए परिचालन सोच और रणनीति में बदलाव की ज़रूरत अनिवार्य हो गई है.

रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियनों के गठन का मक़सद युद्ध के बदलते स्वरूप और भारत के दो चिर प्रतिद्वंद्वियों, चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न ख़तरों के विरुद्ध खुद को तैयार रखना भी है. 

नया सैन्य रुख

भारतीय थल सेना इन दिनों अपनी सैन्य रणनीति में बड़ा बदलाव ला रही है, खासकर चीन और पाकिस्तान के प्रति अपने रुख में. इस बदलाव का मुख्य मकसद है — चीन की पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के खिलाफ़ आक्रामक विकल्प तैयार करना, ताकि ज़रूरत पड़ने पर सिर्फ़ बचाव नहीं, बल्कि दंडात्मक जवाब भी दिया जा सके.

इस सोच का साफ़ उदाहरण 2020 में हुए ऑपरेशन कैलाश रेंज में देखने को मिला, जब भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित दो अहम चोटियों — रेज़ांग ला और रेचिन ला — पर कब्ज़ा कर लिया. इस कदम ने भारत को चीन के मुकाबले में एक मजबूत सामरिक बढ़त दी. नतीजा यह हुआ कि उत्तरी किनारे पर मोल्दो गैरीसन की निगरानी करने वाली भारतीय सेना को सीमा वार्ताओं में भी बढ़त मिली.

इस सफलता ने यह साबित कर दिया कि भारत सिर्फ़ रक्षा करने की नहीं, बल्कि स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने की क्षमता भी रखता है. यही बदलाव अब सेना की नई रणनीतिक सोच का आधार बन रहा है — तेज़, निर्णायक और आत्मविश्वासी भारत.

भैरव और रुद्र ब्रिगेड का गठन भारतीय सैन्य परिवर्तन को मज़बूत करने की दिशा में चल रही कोशिशों का हिस्सा है. इसके तहत भारत अपने दो प्रमुख विरोधियों के खिलाफ़ और ज़्यादा मज़बूत प्रतिरोधक शक्ति स्थापित करना चाहता है. जी हां, भारत अब चीन की उस रणनीति से निपटने की तैयारी कर रहा है, जिसमें चीन बहुत तेज़ी से कदम उठाकर हालात अपने पक्ष में बदल देता है. इसे “फैट अकॉम्प्ली” रणनीति कहा जाता है — यानी विरोधी के प्रतिक्रिया देने से पहले ही नई स्थिति बना देना और उसे स्वीकार करने पर मजबूर कर देना. चीन एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर कई बार ऐसा कर चुका है.

इसी सोच का जवाब देने के लिए भारत ने अब अपनी सैन्य रणनीति में बदलाव किया है. रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियन जैसी नई इकाइयाँ इसी योजना का हिस्सा हैं. ये छोटी लेकिन तेज़ कार्रवाई करने वाली टुकड़ियाँ हैं, जो बहुत कम समय में सीमित लक्ष्यों को हासिल कर सकती हैं. यह विचार एकीकृत युद्ध समूह (IBG) की अवधारणा से जुड़ा है, जिसे सबसे पहले जनरल बिपिन रावत ने आगे बढ़ाया था.

इन इकाइयों का गठन यह भी दिखाता है कि भारत का ध्यान अब केवल पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन की बढ़ती चुनौतियों पर भी केंद्रित है. रुद्र ब्रिगेड पहले की घातक पलटवार टुकड़ियों से एक कदम आगे हैं. इन्हें इस तरह तैयार किया गया है कि ये जरूरत पड़ने पर दुश्मन के इलाके में भी अभियान चला सकें और सीमाओं पर किसी भी दुस्साहस को तुरंत रोक सकें.

चीन के खिलाफ पारंपरिक जवाबी कार्रवाई के लिए माउंटेन स्ट्राइक कोर (MSC) पहले से मौजूद है, लेकिन भैरव जैसी टुकड़ियाँ ज़्यादा लचीला और तेज़ विकल्प देती हैं. हालांकि, इस पूरी रणनीति को सफल बनाने के लिए ज़रूरी है कि सेना की सोच, योजना और प्रशिक्षण — तीनों को एक साथ जोड़ा जाए

रुद्र और भैरव दोनों को आधुनिक हथियारों और संयुक्त प्रशिक्षण के साथ तैयार किया जा रहा है ताकि वे सीमित लेकिन सटीक अभियानों को अंजाम दे सकें. पाकिस्तान की अस्थिर परमाणु रणनीति के सामने ये इकाइयाँ एक संतुलित और सुरक्षित विकल्प साबित हो सकती हैं, क्योंकि बड़ी फौज भेजने की तुलना में ये कम जोखिम वाली हैं.

चीन के खिलाफ पारंपरिक जवाबी कार्रवाई के लिए माउंटेन स्ट्राइक कोर (MSC) पहले से मौजूद है, लेकिन भैरव जैसी टुकड़ियाँ ज़्यादा लचीला और तेज़ विकल्प देती हैं. हालांकि, इस पूरी रणनीति को सफल बनाने के लिए ज़रूरी है कि सेना की सोच, योजना और प्रशिक्षण — तीनों को एक साथ जोड़ा जाए. तभी भारत सीमा पर हर चुनौती का तुरंत और मज़बूत जवाब देने में पूरी तरह सक्षम हो पाएगा.
रुद्र और भैरव से ताकत और तेज़ी दोनों
भारत अपनी सैन्य योजना में सोच-समझ कर बदलाव कर रहा है: रुद्र ब्रिगेड और भैरव बटालियन जैसी नई इकाइयाँ बनाई जा रही हैं ताकि जवाबी कार्रवाई तेज़ और प्रभावी हो सके. इन इकाइयों का मकसद सिर्फ़ लड़ना नहीं, बल्कि दुश्मन पर ऐसा दबाव बनाना है कि वह अपने फैसले बदले — यानी निवारक और बाध्यकारी कार्रवाई दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. बदलाव यह दिखाने के लिए भी हैं कि सेना राजनीतिक इरादों के साथ मिलकर खतरों का सामना करने और ज़रूरी जोखिम उठाकर तुरंत प्रतिक्रिया देने में सक्षम है.

ये बदलाव तकनीकी और रणनीतिक तौर पर संतुलित बल के प्रयोग को बढ़ाते हैं ताकि ऊर्ध्वाधर (हवाई/रॉकेट/ऊपर से) और क्षैतिज (जमीनी/फ्रंट) दोनों तरह के ख़तरों से निपटा जा सके. यह केवल ताकत दिखाने की तैयारी नहीं है बल्कि समझदारी भरी रोकथाम है — युद्ध न छिड़े, पर अगर छिड़े तो तेज़ और सटीक प्रतिक्रिया हो सके.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
राहुल रावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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