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दुनिया की राजनीति एक नए मोड़ पर है. ट्रंप प्रशासन की वापसी के साथ वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर करवट ले रही है. अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने न सिर्फ़ उसके पुराने गठबंधनों को झकझोरा है, बल्कि इंडो-पैसिफिक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी नए तनाव और समीकरण पैदा कर दिए हैं. क्वॉड, ऑकस और स्क्वॉड जैसे समूहों के बदलते स्वरूप इस बात का संकेत हैं कि आने वाले सालों में समुद्री सुरक्षा, रणनीतिक साझेदारियां और शक्ति-संतुलन, सब कुछ नई दिशा में जाने वाला है.
Image Source: Getty Images
अमेरिका में दूसरी बार ट्रंप प्रशासन के आने से दुनिया की सुरक्षा संरचना में नए समीकरण सामने आए हैं. प्रमुख भू-राजनीतिक क्षेत्रों में अलग-अलग संघर्ष उभरने के साथ अमेरिका की बदलती भूमिका ने दांव-पेच के नए समीकरणों की शुरुआत की है. हाल के वर्षों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र ने अमेरिका और विभिन्न दूसरी वैश्विक ताकतों का ध्यान उल्लेखनीय रूप से आकर्षित किया है लेकिन इसके बावजूद ये क्षेत्र अभी भी अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है क्योंकि ऐसा लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप इस क्षेत्र को लेकर अमेरिका के नज़रिए को व्यापक “अमेरिका फर्स्ट” नीति के साथ जोड़ने पर ध्यान दे रहे हैं.
ये अनिश्चितता और भी बढ़ गई है क्योंकि तीन प्रमुख मिनी लेटरल समूहों (जो इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा से जुड़े हालात को काफी हद तक निर्धारित करते हैं) ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया), क्वॉड और स्क्वॉड को अमेरिका ने जांच-पड़ताल के दायरे में लाने का काम किया है. 2024 में गठित समूह स्क्वॉड में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और फिलीपींस शामिल हैं. ये दक्षिण चीन सागर (SCS) क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और टकराव से भरे व्यवहार के बीच कोई सार्थक प्रगति करने में नाकाम साबित हुआ है. भारत और अमेरिका के बीच तेज़ी से बिगड़ते संबंधों के कारण क्वॉड को भी नुकसान उठाना पड़ा है. इसकी वजह से 2026 में भारत में आयोजित होने वाले नेता स्तर के शिखर सम्मेलन को लेकर संदेह जताया जा रहा है. इसके अलावा ऑकस भी अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा था क्योंकि अमेरिका ने जून 2025 में ही एलान कर दिया था कि डोनाल्ड ट्रंप की प्राथमिकताओं और व्यापक “अमेरिका फर्स्ट” के दृष्टिकोण के साथ इसके तालमेल का आकलन करने के लिए इसकी समीक्षा की जा रही है.
ऑकस एक त्रिपक्षीय सुरक्षा संधि है जिसका गठन ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका ने 2021 में किया था. इसका लक्ष्य हिंद प्रशांत में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच क्षेत्र में शक्ति के समग्र संतुलन को बनाए रखकर सुरक्षा परिदृश्य को मज़बूत करना है. हिंद प्रशांत सुरक्षा संरचना में ऑकस के योगदान के दो प्रमुख उद्देश्य हैं. पहला, रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के लिए पारंपरिक रूप से सशस्त्र परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियां हासिल करना और दूसरा सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के माध्यम से क्षमताओं में बढ़ोतरी. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते ख़तरे के चरित्र को देखते हुए ऑकस के उद्देश्य का स्वरूप महत्वपूर्ण है. स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की वकालत करने वाले समान विचारधारा के देशों ने ऑकस के ज़रिए इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते नौसैनिक प्रभाव को देखते हुए निवारक क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिश की.
ऑकस को फिर से खड़ा करना ट्रंप के द्वारा इंडो-पैसिफिक को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र के रूप में देखने की प्रतिबद्धता के प्रति फिर से आश्वासन के रूप में काम करता है.
अमेरिका के द्वारा इस समूह को समीक्षा के दायरे में लाने का फैसला उस समय हुआ जब क्वॉड और स्क्वॉड के भविष्य को लेकर एक साथ अनिश्चितताएं थीं. हालांकि पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ के बीच बैठक के दौरान ट्रंप ने भरोसा दिया कि ऑस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी देने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता बनी हुई है. इस तरह ऑकस के भविष्य को लेकर अस्पष्टता का एक लंबा दौर ख़त्म हो गया. ऑकस को फिर से खड़ा करना ट्रंप के द्वारा इंडो-पैसिफिक को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र के रूप में देखने की प्रतिबद्धता के प्रति फिर से आश्वासन के रूप में काम करता है.
वैसे तो इंडो-पैसिफिक तेज़ी से एक ऐसे क्षेत्र के रूप उभरा है जो वैश्विक समुद्री व्यापार को आगे बढ़ाने का आधार है लेकिन इसके साथ-साथ ये एक विवादित क्षेत्र भी बना हुआ है जहां चीन ने दादागीरी के माध्यम से अपनी मौजूदगी बढ़ाने का लगातार प्रयास किया है. इंडो-पैसिफिक में कई ऐसे इलाके हैं जो चीन की आक्रामकता का ख़तरा झेल रहे हैं. इनमें SCS और ताइवान स्ट्रेट शामिल हैं. इंडो-पैसिफिक और इन क्षेत्रों की सुरक्षा संरचना को आकार देने में अमेरिका की भूमिका ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रही है. ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे इस क्षेत्र के ज़्यादातर देश अमेरिका की अगुवाई वाली सुरक्षा संरचना के साथ जुड़े रहे हैं. इंडो-पैसिफिक को लेकर अमेरिका के बदलते नज़रिए के कारण यहां के सुरक्षा प्रयासों में आए बदलाव का नतीजा अस्थिरता के दौर के रूप में निकला है. इसकी वजह से इंडो-पैसिफिक से जुड़े देशों ने इस क्षेत्र में सुरक्षा हितों को लेकर अपनी रणनीति की फिर से समीक्षा की और उसमें बदलाव किए. इसलिए ऑकस को फिर से खड़ा करने को इस अस्थिरता से दूर होने के रूप में काम करना चाहिए.
क्वॉड ने समुद्री सुरक्षा सहयोग के क्षेत्रों जैसे समुद्री क्षेत्र जागरूकता, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) और कोस्ट गार्ड के स्तर पर तालमेल में साझेदारी को मज़बूत किया है.
इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा संरचना की आधारशिला किसी व्यापक क्षेत्रीय मंच की अनुपस्थिति में पेचीदा समुद्री सुरक्षा समूहों के प्रसार में है. महत्वपूर्ण बात ये है कि इंडो-पैसिफिक एक जटिल समुद्री क्षेत्र बना हुआ है जहां इसके अलग-अलग क्षेत्रों में रणनीतिक वास्तविकताएं काफी अलग-अलग हैं. मिसाल के तौर पर, चीन जहां इंडो-पैसिफिक में नियम आधारित व्यवस्था के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा कर रहा है, वहीं हिंद और प्रशांत महासागर में इसके अभियानों की प्रकृति और चरित्र भिन्न है. SCS में जहां चीनी आक्रामकता में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है, वहीं हिंद महासागर में चीन की रणनीति उसके असर के लगातार विस्तार और नौसेना की बढ़ती हुई मौजूदगी पर निर्भर करती है. इस संदर्भ में समान विचारधारा वाले देशों का एक अकेला मंच या व्यवस्था चीन की रणनीति का मुकाबला करने में सार्थक प्रभाव पैदा करने में नाकाम रहेगी. इससे ये पता चलता है कि इंडो-पैसिफिक में कई मिनी लेटरल समूहों का उदय क्यों हुआ है जिनका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक के भीतर किसी एक क्षेत्र की चुनौतियों का जवाब देना है. लेकिन इसका मतलब इस क्षेत्र में एक समग्र समुद्री सुरक्षा की संरचना का गायब होना नहीं है. कई मायनों में ये मिनी लेटरल समूह मिल-जुलकर नियम आधारित व्यवस्था के साथ एक स्वतंत्र एवं खुले इंडो-पैसिफिक की तलाश में एक व्यापक सुरक्षा संरचना का निर्माण करते हैं.
ऑकस के फिर से खड़ा होने के बाद अब क्वॉड और स्क्वॉड पर ध्यान देना चाहिए. इंडो-पैसिफिक में समुद्री सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के तेज़ी से बदलते रूप को देखते हुए इन समूहों की ताकत को कम करके आंकना लापरवाही होगी. क्वॉड की प्रगति इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा और गवर्नेंस के व्यापक और बहुआयामी एजेंडे को तय करने में महत्वपूर्ण रही है. वैसे तो क्वॉड की शुरुआत इंडो-पैसिफिक में जहाज़ों के चलने की स्वतंत्रता से जुड़ी चुनौतियों का जवाब देने वाले एक समूह के रूप में हुई थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये स्वास्थ्य एवं तकनीकी सहयोग और लोगों के बीच संपर्क के क्षेत्र में समुद्री गवर्नेंस के एक व्यापक एजेंडा को शामिल करने वाले संगठन के रूप में उभरा है. इसके अलावा क्वॉड ने समुद्री सुरक्षा सहयोग के क्षेत्रों जैसे समुद्री क्षेत्र जागरूकता, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) और कोस्ट गार्ड के स्तर पर तालमेल में साझेदारी को मज़बूत किया है.
दूसरी तरफ स्क्वॉड (जो चीन के समुद्री रक्षकों और तटरक्षकों की तैनाती के कारण बढ़ते उथल-पुथल के बावजूद उभरा) ने बहुत कम प्रगति देखी है. महत्वपूर्ण बात ये है कि स्क्वॉड ऐसे क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने का काम करता है जो चीन की बढ़ती आक्रामकता का सामना कर रहा है. इंडो-पैसिफिक में एक स्थिर समुद्री माहौल बनाने के लिए SCS जैसे क्षेत्र सुरक्षित बने रहने चाहिए.
इन मंचों को फिर से खड़ा करने में अमेरिका की भूमिका निर्णायक होगी. इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा से जुड़े प्रयासों में अमेरिका को भागीदारी करते समय इस क्षेत्र में अलग-अलग मिनी लेटलर समूहों की केंद्रीय भूमिका को ध्यान में रखना चाहिए. इंडो-पैसिफिक में समुद्री सुरक्षा के ढांचे को सार्थक रूप से मज़बूत करने के प्रयासों को ऑकस के पुनर्जीवन से मिली गति पर आधारित होना चाहिए और रणनीतियों का तालमेल बढ़ाना चाहिए ताकि क्वॉड और स्क्वॉड में नई जान फूंकी जा सके.
सायंतन हालदार ORF के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.
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Sayantan Haldar is an Associate Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. At ORF, Sayantan’s work is focused on Maritime Studies. He is interested in questions of ...
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