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मौजूदा व्यापक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के माहौल में स्वतंत्र और खुली नियम आधारित व्यवस्था को बनाए रखने में भारत-जापान द्विपक्षीय संबंध निर्णायक है. पिछले दो दशकों में दोनों देशों की एक के बाद एक सरकारों ने सभी क्षेत्रों में सामरिक सहयोग को बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं. वैश्विक बंटवारे, ध्रुवीकरण और घरेलू हितों को प्राथमिकता देने वाली वैश्विक शक्तियों के सामने ये साझेदारी स्वतंत्र, खुली और समावेशी नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था को बरकरार रखने और मज़बूत करने में जुटी हुई है.
एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) की स्थापना भारत और जापान की सरकारों ने अफ्रीका, जो बंटी हुई वैश्विक व्यवस्था में तेज़ी से महाशक्तियों के बीच मुकाबले के एक क्षेत्र के रूप में उभर रहा है, में लोकतांत्रिक, स्थिर और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने के लिए 2017 में की थी.
एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) की स्थापना भारत और जापान की सरकारों ने अफ्रीका, जो बंटी हुई वैश्विक व्यवस्था में तेज़ी से महाशक्तियों के बीच मुकाबले के एक क्षेत्र के रूप में उभर रहा है, में लोकतांत्रिक, स्थिर और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने के लिए 2017 में की थी. ये कॉरिडोर जापान में योकोहामा और टोक्यो बंदरगाहों और भारत में मुंबई से शुरू होकर द्विपक्षीय साझेदारों को तंज़ानिया में अफ्रीका के पूर्वी तट से जोड़ता है. AAGC की बुनियाद चार स्तंभों पर टिकी हुई है: क्षमता एवं कौशल विकास; गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा एवं संस्थागत कनेक्टिविटी; विकास एवं सहयोग की परियोजनाएं और लोगों के स्तर पर साझेदारी. लेकिन भारत और जापान- दोनों देशों में घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल और बदलती नीतिगत प्राथमिकताओं की वजह से कॉरिडोर का मज़बूती से आकार लेना अभी भी बाकी है.
ये लेख AAGC की बारीकियों की छानबीन करता है और दलील देता है कि ये भारत और जापान के लिए एक सामरिक प्राथमिकता है. इसके अलावा, ये लेख AAGC को दुरुस्त करने के लिए सिफारिशें भी पेश करता है.
भारत-जापान की एक सामरिक प्राथमिकता
वैश्विक व्यवस्था में अफ्रीका का दबदबा बढ़ रहा है. इस महाद्वीप में महाशक्तियों के बढ़ते हित से इसका सबूत मिलता है. अमेरिका के पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGI), यूरोप के ग्लोबल गेटवे और उसके 12 सामरिक कॉरिडोर, इटली के मतेई प्लान और चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) समेत अफ्रीका के हर कोने में एक आर्थिक और कनेक्टिविटी कॉरिडोर है.
इनमें से चीन की BRI ने अपने निवेशक चीन के लिए सबसे ज़्यादा भू-राजनीतिक और आर्थिक महत्व पैदा किया है. BRI रूप-रेखा के तहत चीन पिछले 15 वर्षों के ज़्यादातर समय में अफ्रीका का सबसे बड़ा ऋणदाता और विकास साझेदार बना हुआ है. BRI के तहत 2013 से 2024 के बीच अफ्रीका में आर्थिक भागीदारी 200 अरब अमेरिकी डॉलर की है. रूस भी इस महादेश में अपने सैन्य सहयोग का विस्तार कर रहा है. उसने अभी तक अफ्रीका में 43 देशों के साथ रक्षा सहयोग और उपकरण की ख़रीद को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. रूस अफ्रीका में रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा सप्लायर भी है. इस तरह लगता है कि चीन और रूस की ‘नो लिमिट’ साझेदारी का अफ्रीका की आर्थिक और सुरक्षा भागीदारी के क्षेत्र में एकाधिकार है.
AAGC भारत और जापान के लिए एक सामरिक प्राथमिकता है क्योंकि चीन की आर्थिक ताकत ग्लोबल साउथ में भारत के नेतृत्व, उसकी विकास साझेदारियों और भू-राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देने के लिए तैयार है
AAGC भारत और जापान के लिए एक सामरिक प्राथमिकता है क्योंकि चीन की आर्थिक ताकत ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में भारत के नेतृत्व, उसकी विकास साझेदारियों और भू-राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देने के लिए तैयार है जिसे भारत ने उपनिवेशवाद के बाद के दौर की गर्मजोशी और दशकों के द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से स्थापित किया है. जापान के लिए एक स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक (FOIP) बनाए रखना, बहुपक्षीय संगठनों में नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था कायम रखना और संसाधनों से भरपूर अफ्रीका के साथ सहयोग रखना वर्तमान और भविष्य की राष्ट्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है.
अफ्रीका में चीन और रूस का प्रभाव संयुक्त राष्ट्र (UN) में उनके वोटिंग पैटर्न में भी दिखाई देता है. अफ्रीकी गुट के आधे से भी कम देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के ख़िलाफ़ गंभीर बहुपक्षीय कार्रवाई के समर्थन में मतदान किया. UN में अफ्रीकी गुट के लिए चीन की रणनीति अपने मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना को शांत करने के लिए बहुआयामी प्रयासों में शामिल होते हुए आर्थिक विकास पर आधारित गठबंधन बनाने की रही है. UN में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत, जो कि वैश्विक शासन व्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है, के लिए नुकसानदेह है. इसी तरह बढ़ता रूसी प्रभाव सीधे तौर पर स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की जापानी विदेश नीति के लक्ष्य के लिए हानिकारक है.
अफ्रीका में भारत और जापान के मिलते-जुलते हित AAGC को पूरा करने में दिखना चाहिए. अफ्रीका में चीन की आर्थिक ताकत से बचने में AAGC द्विपक्षीय साझेदारों के लिए मददगार होगा. साथ ही दोनों देशों की भू-राजनीतिक, आर्थिक और बहुपक्षीय महत्वाकांक्षाओं के लिए AAGC आवश्यक है.
बाधाएं और सिफारिशें
AAGC की परिकल्पना 2017 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के दिवंगत प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे, जिन्हें काफी हद तक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की धारणा का निर्माता कहा जाता है, के द्वारा की गई थी. जापान में सरकार बदलने, महामारी के कारण वैश्विक एवं राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में परिवर्तन और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर, इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान की विकास परियोजनाओं जैसे कई प्रतिस्पर्धी कॉरिडोर की शुरुआत के बाद AAGC के लिए राजनीतिक इच्छा में कमी की वजह से ये कॉरिडोर पटरी से उतर गया था. अफ्रीका में ये अलग-अलग कॉरिडोर उभरती वैश्विक व्यवस्था, वैश्विक व्यापार मार्गों के भू-राजनीतिकरण एवं शस्त्रीकरण, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना और बड़े पैमाने पर विकास सहायता का परिणाम हैं. इसके अलावा क्षमता की समस्याओं, कार्यान्वयन में देरी और भारत से फंडिंग में देरी ने कॉरिडोर की रफ्तार को धीमा कर दिया.
AAGC में और मज़बूती लाने के लिए भारत और जापान को आदर्श रूप से AAGC में समान विचार वाले अधिक निवेशकों को जोड़ने, अफ्रीकी कॉरिडोर के साझेदारों को शामिल करने और हरित, स्वच्छ एवं डिजिटल कनेक्टिविटी की पहल के लिए AAGC का उपयोग करने पर आधारित तीन-आयामी रणनीति अपनानी चाहिए. इसके अलावा आर्थिक एवं परिवहन कनेक्टिविटी के लिए आवश्यक बंदरगाह विकास पर ध्यान देना चाहिए.
- कॉरिडोर के निवेशकों को जोड़ना: चीन को पीछे छोड़कर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) 2024 में अफ्रीका में सबसे बड़े निवेशक के रूप में उभरा. UAE के शाही परिवार का होल्डिंग कंपनियों के ज़रिए अमीरात के DP वर्ल्ड और अबूधाबी पोर्ट्स ग्रुप पर भी नियंत्रण है. दोनों कंपनियां मिलकर अफ्रीका के पूर्वी तट पर रियायती समझौतों के माध्यम से सात बंदरगाहों का संचालन करती हैं. AAGC में निवेशक के रूप में UAE को शामिल करने से कॉरिडोर को फिर से मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है. UAE के साथ भारत के विशेष और घनिष्ठ संबंध उसे इस परियोजना में शामिल करने में अहम भूमिका निभाएंगे. कॉरिडोर के सहयोग ढांचे को औपचारिक रूप देने के लिए क्वॉड देशों को जोड़ना भी आवश्यक होगा. क्वॉड के सामरिक एजेंडे में इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभाव और आर्थिक ताकत को संतुलित करना शामिल है और इसे हासिल करने के लिए AAGC एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में काम कर सकता है.
- अपनी स्वाभाविक क्षमताओं का उपयोग करना: एक और पहलू जिस पर फिर से काम किया जा सकता है वो है शुरू की गई परियोजनाओं की श्रेणी. अफ्रीका में बड़े पैमाने के बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं का परिदृश्य तेज़ी से प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है. परिवहन, समुद्री, रेल और सड़क कनेक्टिविटी की परियोजनाओं में PGI, BRI, ग्लोबल गेटवे और UAE सबसे आगे हैं. भारत और जापान को अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, समुद्री इंफ्रास्ट्रक्चर, दूरसंचार, ग्रीन टेक और हरित ऊर्जा विकास (सौर, पवन, पनबिजली) में अपनी विशेषज्ञता का लाभ AAGC को देना चाहिए. वैसे तो बड़े पैमाने के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता को खारिज नहीं किया जा सकता है लेकिन मुख्य ध्यान बंदरगाह और दूरदराज के क्षेत्रों की कनेक्टिविटी के अलावा ऊपर बताए गए क्षेत्रों पर होनी चाहिए.
- अफ्रीकी कॉरिडोर के साझेदारों को जोड़ना: AAGC के निवेशकों को सेशेल्स, केन्या, मेडागास्कर और मोज़ाम्बिक जैसे देशों को AAGC में शामिल करके अफ्रीका की तरफ कॉरिडोर के लैंडिंग प्वाइंट का भी विस्तार करना चाहिए. मौजूदा समय में केवल तंज़ानिया AAGC का हिस्सा है. इन देशों को शामिल करने के लिए कॉरिडोर का विस्तार करने से व्यापार मार्गों को अलग-अलग बनाने में मदद मिलेगी, अफ्रीकी हितधारकों की भागीदारी बढ़ाकर इस पहल की वैधता में बढ़ोतरी होगी और इन देशों को समान स्तर पर चीन से अपनी सहायता के स्रोतों को विविध बनाने की अनुमति मिलेगी.
निष्कर्ष
मौजूदा समय में भारत और जापान कई कॉरिडोर के सदस्य हैं लेकिन इनमें से कई कॉरिडोर भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक कारणों से अनिश्चितता की स्थिति में हैं. दोनों देशों की सरकारें कॉरिडोर के मामले में सफल सहयोग से लाभ उठा सकती हैं. चूंकि भारत और जापान अब मिडिल ईस्ट के रास्ते एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले नए रूट के हिस्से हैं, ऐसे में अफ्रीका को काफी हद तक अनदेखा किया जा रहा है जो अफ्रीकी देशों के साथ उनकी साझेदारी को कमज़ोर कर सकता है.
चूंकि भारत और जापान अब मिडिल ईस्ट के रास्ते एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले नए रूट के हिस्से हैं, ऐसे में अफ्रीका को काफी हद तक अनदेखा किया जा रहा है जो अफ्रीकी देशों के साथ उनकी साझेदारी को कमज़ोर कर सकता है.
ऊपर ज़िक्र किए गए नीतिगत सुझाव सिर्फ कॉरिडोर को फिर से मज़बूत बनाने के लिए कदम हैं. AAGC में निवेशकों, साझेदारों और परियोजनाओं को जोड़ने के बाद भी आर्थिक कनेक्टिविटी, व्यापार एवं शुल्क मानकीकरण और परियोजना क्रियान्वयन के मुद्दे बने हुए हैं. लेकिन अफ्रीका के प्रतिबद्ध और समान विचार वाले साझेदारों के साथ क्वॉड+UAE जैसा प्रारूप निश्चित रूप से पुराने और नए- दोनों साझेदारों की महामारी के बाद की प्राथमिकताओं में फिट होने में AAGC को मज़बूत कर सकता है.
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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