-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
जब भारत की दौलत बढ़ रही है तो उसके दौलतमंद लोग बाहर क्यों भाग रहे हैं? शायद इसलिए क्योंकि हमारे शहर अमीरी नहीं, अव्यवस्था में डूबे हैं और ऐसे में ये सोचने का वक्त है क्या भारत को अपने अमीरों को रोकने के लिए नए किस्म के शहर चाहिए?
‘मिलिनेयर माइग्रेशन’ यानी करोड़पतियों का पलायन एक ऐसा चलन है जिसमें रईस लोग अपनी मातृभूमि छोड़कर दूसरे देशों में जाकर बस रहे हैं. हाल के वर्षों में भारत में इस चलन में चिंताजनक रूप से बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. 2023 में तीस लाख डॉलर या इससे ज़्यादा की नेट वर्थ वाले 283,000 भारतीय देश छोड़कर चले गए थे. वैसे तो करोड़पतियों के देश छोड़कर जाने की रफ़्तार में कुछ दिनों के लिए कमी आती दिखी है लेकिन, ये चलन आगे भी जारी रहने की संभावना है. माना जा रहा है कि 2028 तक 430,000 अमीर लोग भारत छोड़कर दूसरे देशों में बस जाएंगे. देश छोड़ने की तैयारी कर रहे ये लोग क़रीब 40 अरब डॉलर की सामूहिक संपत्ति के मालिक हैं. कोटक प्राइवेट और अर्नेस्ट ऐंड यंग (EY) द्वारा किए गए एक सर्वे में अंदाज़ा लगाया गया है कि भारत के बेहद धनाढ्य तबक़े के 22 प्रतिशत लोग देश छोड़कर कहीं और बसने पर विचार कर रहे हैं.
भारत के शहर बिना प्लानिंग के विकास और बिगड़ते इंफ्रास्ट्रक्चर से जूझ रहे हैं, जिसके चलते ट्रैफिक, जल-जमाव और जलवायु संकट से निपटना मुश्किल हो रहा है.
बड़े शहर दुनिया के सबसे जाम वाले शहरों में हैं और हर साल बाढ़ जैसी समस्याओं से रोज़मर्रा की ज़िंदगी ठप हो जाती है.
कुछ और देशों में भी अमीरों के दूसरे मुल्क जाकर बसने का ये चलन दिख रहा है. इनमें चीन और ब्रिटेन अव्वल हैं. इनके बाद भारत, दक्षिण कोरिया, रूस, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, नाइजीरिया और वियतनाम का नंबर आता है. देश छोड़ने वाले ब्रिटेन के रईसों के लिए सबसे पसंदीदा ठिकाने पेरिस, दुबई, एम्सटर्डम, मोनाको, जेनेवा, सिडनी, सिंगापुर के अलावा शांत और मनोरम फ्लोरिडा है. हालांकि, आम तौर पर दुनिया के तमाम देशों के करोड़पति अप्रवासी जिन दस देशों में सबसे ज़्यादा जाना पसंद कर रहे हैं, उनमें संयुक्त अरब अमीरात (UAE), अमेरिका, सिंगापुर, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इटली, स्विटज़रलैंड, ग्रीस, पुर्तगाल और जापान शामिल हैं.
भारत के करोड़पतियों/अरबपतियों के देश छोड़कर कहीं और बसने या इस बारे में विचार करने के पीछे कई वजहें हैं. इनमें शहरों में रहन सहन के ख़राब हालात, विदेशों में रहने की अच्छी सुविधाएं, दुनिया के कारोबारी नेटवर्क तक आसान पहुंच, इलाज की बेहतर व्यवस्था, पढ़ाई के अच्छे इंतज़ाम और अमीरों के बच्चों के भविष्य के लिए बेहतर अवसर तो शामिल हैं ही. इनके अलावा, भारत के शहरों के मुक़ाबले, अमीरों के पसंदीदा ठिकानों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने की अधिक सहनशक्ति का होना भी एक कारण है. बहुत से धनवान भारतीय, संयुक्त अरब अमीरात में जाकर बसने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसकी वजह वहां की ज़ीरो टैक्स पॉलिसी के साथ साथ वस्तुओं और सेवाओं पर वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) की कम दर भी है. भारत के करोड़पतियों के पसंदीदा ठिकानों में ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अमेरिका और स्विटज़रलैंड भी शामिल हैं.
भारत के शहरों के मुक़ाबले, अमीरों के पसंदीदा ठिकानों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने की अधिक सहनशक्ति का होना भी एक कारण है. बहुत से धनवान भारतीय, संयुक्त अरब अमीरात में जाकर बसने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसकी वजह वहां की ज़ीरो टैक्स पॉलिसी के साथ साथ वस्तुओं और सेवाओं पर वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) की कम दर भी है.
भारत के धनवान लोगों के देश छोड़कर कहीं और बसने की प्रमुख वजह, विदेश के शहरों का शानदार बुनियादी ढांचे- यानी बेहतर सड़कें, आने जाने में कम समय का लगना, स्वच्छ हवा, साफ़-सफ़ाई के बढ़िया इंतज़ाम, शहरी निकायों की भरोसेमंद सेवाएं और सुरक्षा के बेहतर इंतज़ाम-का होना है.
भारतीयों की तुलना में चीन के समृद्ध लोगों के देश छोड़कर कहीं और बसने के दूसरे कारण हैं. इसकी प्रमुख वजह तो पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन में संपत्ति के विकास की दर में आई गिरावट है. साल 2000 से 2017 के दौरान चीन में ज़बरदस्त आर्थिक विकास हुआ था लेकिन, उसके बाद करोड़पतियों की तादाद स्थिर होने लगी थी. ऐसे में अब अमीर चीनी नागरिक अपना देश छोड़कर सिंगापुर, अमेरिका, कनाडा और हैरानी की बात है कि जापान जाना भी पसंद कर रहे हैं ताकि अपनी संपत्ति में तेज़ी से इज़ाफ़ा कर सकें.
देश के ज़्यादातर अमीर लोग भारत के प्रमुख शहरों यानी मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बैंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, सूरत, विशाखापत्तनम, जयपुर और लखनऊ में बसते हैं. देश की GDP में इन शहरों का योगदान भी सबसे अधिक है. वैसे तो रहन सहन के ख़र्च के लिहाज से ये शहर बहुत महंगे हैं लेकिन, अगर इन शहरों में रहने वाले रईस अगर विदेश भाग रहे हैं तो उसकी वजह ज़ाहिर है कि यहां रहने का ख़र्च नहीं है.
हालांकि, इन सभी शहरों की क्वालिटी ऑफ लाइफ लगातार ख़राब होती जा रही है. जैसे ही यहां के रहने वाले धनाढ्य लोग तमाम सुख सुविधाओं से संपन्न अपने निजी घरों से बाहर निकलते हैं तो उन्हें शहरों की तल्ख़ सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है. असमान और गड्ढे वाली सड़कें, आस-पास का गंदा माहौल, कहीं आने-जाने में समय की बर्बादी, ट्रैफिक जाम और ख़राब हवा से उनका भी सामना होता है. भारत के ज़्यादातर बड़े शहर, दुनिया के सबसे ज़्यादा जाम वाले शहरों की लिस्ट में शीर्ष पर हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के ज़्यादातर शहरों को बाढ़ से जूझना पड़ा है, जिससे हर साल कई कई दिनों तक रोज़मर्रा की ज़िंदगी प्रभावित रहती है.
जैसे ही यहां के रहने वाले धनाढ्य लोग तमाम सुख सुविधाओं से संपन्न अपने निजी घरों से बाहर निकलते हैं तो उन्हें शहरों की तल्ख़ सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है. असमान और गड्ढे वाली सड़कें, आस-पास का गंदा माहौल, कहीं आने-जाने में समय की बर्बादी, ट्रैफिक जाम और ख़राब हवा से उनका भी सामना होता है.
भारत के तमाम शहर प्रशासन, योजना निर्माण और वित्तीय कमज़ोरियों के शिकार हैं. इस वजह से वो अपने यहां बुनियादी ढांचे में आ रही गिरावट, बिना प्लानिंग के हो रहे विकास, कहीं आने जाने में होने वाली दिक़्क़तों और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से संतोषजनक तरीक़े से निपट पाने में सक्षम नहीं हैं. न ही भारत के शहरों के पास बढ़ती आबादी की ज़रूरतों के हिसाब से मूलभूत ढांचे का विकास करने के संसाधन हैं. चूंकि राज्यों की सरकारें भी ऐसे किसी अर्थपूर्ण सुधारों में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं, जिनसे नगर निकायों के काम-काज में क्रांतिकारी सुधार आए. ऐसे में भारत के शहरों में रहन सहन की क्वालिटी में ठोस सुधार आने की संभावना दिनों-दिन कम होती जा रही है. इसके नतीजे भी सामने नज़र आ रहे हैं: इन शहरों में रहने वाले जो धनी लोग विदेशों में बस सकते हैं, वो देश छोड़कर जा रहे हैं. इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि ये अमीर लोग अपने देश से प्यार तो करते हैं. लेकिन, वो अपने और अपने परिवार के बेहतर भविष्य के लिए विदेशों में बसने को तरज़ीह देते हैं.
ऐसे हालात में भारत के संपन्न नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का अच्छा रहन सहन मुहैया कराने का एक विकल्प हो सकता है कि उनको अपने लिए निजी शहर बसाने की इजाज़त दी जाए. इन शहरों का अपना क़ानून और सिद्धांत हों ताकि वो अपने मक़सद में खरे उतर सकें. ऐसा देश के मौजूदा शहरों में पहले से ही हो रहा है, जहां सोसाइटीज़ यानी ‘गेटेड कम्युनिटीज़’ में लोग रह रहे हैं और ऐसी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं जो उनकी सोसाइटी से बाहर रहने वालों को उपलब्ध नहीं है. हालांकि, जैसे ही इन सोसाइटीज़ के रहने वाले बाहर निकलते हैं तो उनको शहरों में उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनसे बाक़ी लोग जूझते हैं.
ऐसे हालात में भारत के संपन्न नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का अच्छा रहन सहन मुहैया कराने का एक विकल्प हो सकता है कि उनको अपने लिए निजी शहर बसाने की इजाज़त दी जाए. इन शहरों का अपना क़ानून और सिद्धांत हों ताकि वो अपने मक़सद में खरे उतर सकें.
ऐसे प्राइवेट शहरों की योजना और प्रशासन को एक अलग तरीक़े से तैयार करना होगा ताकि ये अपने बाशिंदों को उनकी मन-माफ़िक सेवाएं दे सकें. उनकी योजना, प्रशासन चलाने के क़ानून और स्थानीय टैक्स अलग हो सकते हैं, जिनका ज़ोर सीधे तौर पर रहन सहन का अच्छा स्तर बनाए रखने पर हो. ऐसे शहरों के संचालन में यहां रहने वालों से मदद ली जाए और इनका रख-रखाव ऐसे चुनिंदा लोगों के हाथ में हो जो ये शहर बनाने वाली कोई निजी कंपनी ही चुने. ऐसे प्राइवेट शहरों में सरकार की तरफ़ से जो भी सुविधाएं दी जाएं, उनकी क़ीमत भी इनमें रहने वालों से वसूली जाए. उसका ख़र्च सरकारी ख़ज़ाने पर न पड़े. सरकार इन सेवाओं के बदले में उचित रक़म वसूल करे. इनमें सार्वजनिक बाधों से पानी की आपूर्ति, राष्ट्रीय ग्रिड से बिजली सप्लाई, सार्वजनिक परिवहन और दूसरी ज़रूरी सेवाएं शामिल हो सकती हैं.
यहां हमारा मक़सद ऐसे ‘चार्टर्ड शहरों’ के विचार को बढ़ावा देना नहीं है, जहां एक नया शहरी इलाक़ा स्थापित किया जाए जिसे, ख़ास उस शहर के लिए बनाए गए किसी और देश के क़ानूनी और प्रशासनिक ढांचे के मुताबिक़ चलाया जाए. असल में हमारा सुझाव विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) की परिकल्पना के एक संशोधित स्वरूप को लागू करने का है. जहां के आर्थिक नियम-क़ायदे बाक़ी देश में लागू नियम-क़ानून से बहुत हद तक अलग हों और उनका ज़ोर अच्छी क्वालिटी ऑफ लाइफ पर हो. ये शहर विशेष प्रशासनिक क्षेत्र हो सकते हैं, जहां लागू होने वाले नियम-क़ानून बाक़ी देश से अलग हों. शहरी निकायों के क़ानूनों को छोड़ दें, तो बाक़ी मामलों में ऐसे शहरी क्षेत्र भारत के संविधान और देश के ज़्यादातर क़ानूनों के दायरे में रहकर काम करेंगे. हालांकि, अपनी प्रशासनिक व्यवस्था के मामले में ऐसे प्राइवेट शहर किसी नगर निकाय के बजाय एक कारोबारी उद्यम जैसे चलाए जाएंगे, जिनके पास अपना काम तय करने, ख़र्च के लिए रक़म निर्धारित करने और उसको जुटाने के अधिकार हों. इन शहरों का प्रशासन एक बोर्ड के हाथ में हो सकता है, जिसकी कमान एक चेयरमैन के हाथ में हो. ऐसे निजी शहरों के अपने सीईओ हो सकते हैं, जो अपने सहयोग के लिए बाक़ी अधिकारी नियुक्त कर सकें. जो भी इन प्राइवेट शहरों के दायरे में रहेगा, उसको इन सभी नियमों को स्वीकार करना होगा.
ऐसे विकल्प को आज़माए जाने की ज़रूरत है क्योंकि देश के आम शहर इस वक़्त पूरी तरह से सुविधाओं से लैस नहीं हैं. ये नई व्यवस्था देश से प्रतिभाओं और संपत्ति का पलायन रोकने में कहीं ज़्यादा सक्षम होगी. ये निजी शहर सामंतवादी लग सकते हैं. लेकिन, अगर ऐसे शहरों का विचार अमीरों का पलायन रोक सकता है, तो इससे देश को फ़ायदा ही होगा. भारत की सरकार को किसी संघ शासित क्षेत्र में इस तरह का प्रयोग करने पर विचार करना ही चाहिए, जहां राज्य की सरकार इस तरह के तजुर्बे में ख़लल न डाल सके.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Dr. Ramanath Jha is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He works on urbanisation — urban sustainability, urban governance and urban planning. Dr. Jha belongs ...
Read More +