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समुद्री मार्गों के ज़रिए होने वाले वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए ग्लोबल साउथ के देशों को बंदरगाहों के बीच एक सहयोगात्मक और पारस्परिक रूप से लाभकारी नज़रिया अपनाना होगा.
Image Source: Getty Images
यह लेख सागरमंथन एडिट 2025 निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
यूरोप की सभ्यता, संस्कृति और समृद्धि में हमेशा से ही बंदरगाहों की अहम भूमिका रही है. ग्रीस के सरकारी स्वामित्व वाले बंदरगाह देखा जाए तो राष्ट्र की अवधारणा की जन्मस्थली थे, जिनमें थैलासिक यानी समुद्री विकास से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल थे. ग्रीस में थैलासिक कहीं न कहीं सरकारी और मानवीय गतिविधियों के बड़े केंद्र थे और वैचारिक व व्यावहारिक लिहाज़ से भी बेहद अहम थे, साथ ही समुद्री विकास से जुड़े कार्यों का प्रतिनिधित्व करते थे. वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर जितने भी जहाजों की आवाजाही को नियंत्रित किया गया, यानी उनके आने-जाने और ठहराव को संभाला गया, उनमें यूरोपीय संघ (EU) के बंदरगाहों की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत थी. आंकड़ों के मुताबिक़ यूरोपीय संघ और यूरोपियन इकोनॉमिक एरिया के पोर्ट्स ने वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर क़रीब 3 मिलियन जहाजों की आवाजाही को संभाला था. इतना ही नहीं, इनमें से लगभग 88 प्रतिशत जहाजों पर यूरोपीय संघ का झंडा लगा हुआ था, जबकि 90 प्रतिशत जहाज ईयू राष्ट्रों के थे.
यूरोपीय संघ की इंटीग्रेटेड मैरीटाइम पॉलिसी (IMP) साल 2007 में सामने आई थी. इस नीति को 1994 में कार्यान्वित किए गए समुद्री क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) और इंटीग्रेटेड ओसियन मैनेजमेंट (IOM) जैसे क़दमों को लागू करने के बाद पेश किया गया था. ईयू की एकीकृत समुद्री नीति कितनी अहम है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह यूरोपीय देशों के 1,200 बड़े और छोटे बंदरगाहों के संचालन में अहम भूमिका निभाती है. ज़ाहिर है कि ईयू के तहत कुल 42,000 किलोमीटर लंबे अंतर्देशीय जलमार्ग हैं, जिनके ज़रिए 200 बंदरगाह सी पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा, यूरोप में 5,000 किलोमीटर से ज़्यादा फेरी मार्ग भी हैं, जहां हर साल 40 करोड़ यात्री सफर करते हैं और यूरोपीय देशों के बंदरगाहों के ज़रिए आवागमन करते हैं. इतना ही नहीं, यूरोप के ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में वहां की जलमार्ग प्रणाली भी बेहद अहम भूमिका है. यूरोप के परिवहन बुनियादी ढांचे में 2,17,000 किलोमीटर से ज़्यादा रेलमार्ग, 77,000 किलोमीटर सड़क मार्ग और 325 हवाई अड्डे शामिल हैं. यूरोप के इस बहुस्तरीय और बहुआयामी ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को देशों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि उप-क्षेत्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर भी बखूबी विकसित किया गया है.
यूरोपीय देशों के बीच परिवहन सेक्टर के इस व्यापक तालमेल में सीमा पार क्षेत्रीयकरण और सीमा पार सहयोग बेहद अहम भूमिका निभाते हैं.
ज़ाहिर है कि यूरोपीय देशों के बीच परिवहन सेक्टर के इस व्यापक तालमेल में सीमा पार क्षेत्रीयकरण और सीमा पार सहयोग बेहद अहम भूमिका निभाते हैं. यूरोपीय संघ ने इस समुद्री परिवहन सहयोग को मज़बूत करने के लिए बीते वर्षों में कई महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं. जैसे कि उत्तरी सागर, बाल्टिक सागर और अटलांटिक महासागर में यूरोपियन सी पोर्ट्स ऑर्गेनाइजेशन (ESPO) और ट्रांसबाउंड्री मैरिटाइम स्पेशियल प्लानिंग (TMSP) पहलें की गई है. इसके अलावा सी बेसिन स्ट्रैटेजी और मैक्रो-रीजनल रणनीतियां (बाल्टिक सागर क्षेत्र के लिए 2009 में और एड्रियाटिक सागर एवं आयोनियन सागर क्षेत्र के लिए 2014 में) भी बनाई गई हैं. ESPO ने पोर्टिनसाइट्स (PortinSights) नाम का एक ऑनलाइन डेटा प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जो कि आरईएस थ्रूपुट डेटा, पोर्ट गवर्नेंस से जुड़े आंकड़े और पर्यावरण संबंधी डेटा जुटाकर यूरोपीय देशों के पोर्ट्स को उपलब्ध कराता है. यानी एक प्रकार से यह ऑनलाइन डेटा प्लेटफॉर्म कहीं न कहीं यूरोपीय बंदरगाहों के लिए एक नॉलेज हब का काम करता है.
इस सबके अलावा, यूरोपियन कमीशन ने एक विशेष इंटररेग (INTERREG) प्रोग्राम भी शुरू किया है, जिसमें ईयू ऑपरेशन फ्रेमवर्क 2021-2027 के लिए समुद्री सीमा-पार क्षेत्रों से जुड़े कई क़दम और तमाम अंतर्राष्ट्रीय पहलें शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर इंटररेग के अंतर्गत इटली और फ्रांस के समुद्री क्षेत्रों, विशेष रूप से दोनों देशों के बंदरगाहों के बीच एक सहयोग विकसित किया गया है. इस सहयोग का मकसद इस सेक्टर में दोनों देशों की प्रतिस्पर्धात्मकता और स्थिरता को मज़बूत करना है. यह सहयोग मुख्य तौर पर टिकाऊ विकास, पर्यावरण संरक्षण, बेहतर पहुंच, मानव पूंजी विकास यानी इस सेक्टर में कार्यरत लोगों के कौशल व क्षमता को बढ़ाने और सीमा-पार बेहतर तालमेल स्थापित करने पर केंद्रित है.
वर्तमान दौर में आधुनिक इंटरमॉडल ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क में ईयू के बंदरगाहों की भूमिकाएं पूरी तरह से बदल चुकी हैं. यानी 20वीं सदी में इन बंदरगाहों की जो भूमिका थी, उसकी तुलना में आज इनके कार्य और ज़िम्मेदारियां एकदम बदल गई हैं. पहले पारंपरिक रूप से बंदरगाहों का मुख्य कार्य भंडारण और ट्रांसशिपमेंट जैसी सुविधाओं समेत महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और भूमि का प्रावधान करना था. लेकिन आज बंदरगाह न केवल तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की मदद करने वाले मुख्य केंद्र बन गए हैं, बल्कि राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय परिवहन नेटवर्क में भी इनकी भूमिका बेहद अहम हो गई है. इतना ही नहीं, पोर्ट्स की प्रमुख ज़िम्मेदारियों में अब ऊर्जा उत्पादन और वितरण के प्रबंधन के साथ-साथ आस-पास के तटीय इलाक़ों में विंड एनर्जी प्रोजेक्ट्स और तटवर्ती सोलर एनर्जी परियोजनाओं का प्रबंधन भी शामिल हो गया है. इसके अलावा, आज बंदरगाह टिकाऊ ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी गतिविधियों को संचालित करने और उन्हें आगे बढ़ाने के भी बड़े केंद्र बन रहे हैं. अपनी इस भूमिका में बंदरगाह आज नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले स्टार्ट-अप्स और इनोवेटिव बिजनेस के लिए न केवल रिसर्च और परीक्षण से जुड़ी सुविधाएं स्थापित कर रहे हैं, बल्कि ब्लू इकोनॉमी के विभिन्न सेक्टरों के बीच बेहतर समन्वय भी स्थापित कर रहे हैं. आज के समय में बंदरगाह शिपिंग समेत समुद्र से जुड़ी इकोनॉमी से संबंधित नई तकनीक़ों के विकास में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. यूरोपीय देशों के कुछ पोर्ट्स तो ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी व्यापक गतिविधियों को खुद से संचालित करने में भी जुटे हुए हैं. यूरोप में 5 जून 2025 को 1 बिलियन यूरो के बजट के साथ यूरोपियन ओसीन पैक्ट यानी यूरोपीय महासागर समझौते को मंजूर किया गया था. इसका मकसद समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यावरण अनुकूल टिकाऊ विकास में तेज़ी लाना और बंदरगाहों को नई ज़िम्मेदारियां संभालने के लिहाज़ से विकसित करना है.
यूरोपियन यूनियन में 100 ब्लू पोर्ट हैं, जो कि जलवायु-तटस्थ यानी कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले हैं और स्मार्ट यानी तकनीक़ी तौर पर उन्नत हैं.
यूरोपीय संघ के सदस्य देश बंदरगाहों के इन नए दायित्वों और कार्यों में सहयोग करने और उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की ओर से वर्ष 2019 में शुरू किए गए ब्लू पोर्ट्स इनीशिएटिव प्रोग्राम की पहलों का भी इस्तेमाल करते हैं. ज़ाहिर है कि ऐसा करने से पोर्ट्स की तरफ से ब्लू इकोनॉमी की दिशा में उठाए जाने वाले क़दमों को मज़बूती मिलती है, साथ ही सतत विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है. यूरोपियन यूनियन में 100 ब्लू पोर्ट हैं, जो कि जलवायु-तटस्थ यानी कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले हैं और स्मार्ट यानी तकनीक़ी तौर पर उन्नत हैं. इसके अलावा, ईयू के ये बंदरगाह टिकाऊ जलवायु कार्रवाई, विशेष रूप से नई प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं. ये बंदरगाह न केवल आपस में सूचना और जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं, बल्कि समुद्री इकोसिस्टम और ब्लू इकोनॉमी सेक्टरों, ख़ास तौर पर पर्यटन और मैरीकल्चर, खाद्य-प्रसंस्करण एवं जहाज निर्माण उद्योगों की ज़रूरतों के बीच संतुलन बनाए रखने में भी एक दूसरे की मदद करते हैं. इसके अलावा, समुद्र तटीय क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर सहयोग, विशेष रूप से बांधों और ब्रेकवाटर्स का निर्माण करके समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी का मुक़ाबला करने से संबंधित क्षेत्रों में भी ये बंदरगाह आपस में सहयोग करते हैं.
यूरोप और मिडिल ईस्ट में 21वीं सदी के तीसरे दशक में संचार की समुद्री लेन्स यानी बंदरगाहों के बीच प्राथमिक समुद्री मार्ग, जिनका उपयोग व्यापार और लॉजिस्टिक्स के लिए किया जाता है एवं समुद्र तल पर बिछाई गई पाइपलाइनों के पास नए संघर्षों ने बंदरगाहों के लिए सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. इसके अलावा, हाइब्रिड हमले भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं और बंदरगाहों के सामने इन हमलों पर नज़र रखने और इन्हें रोकने की भी बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई है. हाइब्रिड युद्धों में कई गैरक़ानूनी गतिविधियां शामिल हैं, जैसे कि बंदरगाहों के पास पहुंचने से पहले जहाजों की नेविगेशन प्रणालियों को जाम कर देना, समुद्र तल पर स्थित दूरसंचार और तेल व गैस आपूर्ति से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हमला करना. इन हमलों में चालक दल वाले और बिना चालक दल वाले समुद्र तल पर संचालित और समुद्र तल के नीचे संचालित होने वाले जहाजों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, हाइब्रिड युद्धों में बंदरगाहों के रास्तों का इस्तेमाल ग्रे ज़ोन जहाजी बेड़ों द्वारा अवैध तरीक़े से तस्करी की वस्तुओं को लाने-लेजाने के लिए किया जाता है. एक दूसरी चुनौती सैन्य जहाजी बेड़ों की बढ़ती आवाजाही भी है. ज़ाहिर है कि सुरक्षा से जुड़ी ये चिंताएं काफ़ी गंभीर हैं और इनके समाधान के लिए यूरोपियन यूनियन के सिक्योरिटी एक्शन फॉर यूरोप (SAFE) के तहत एक नए नज़रिए की ज़रूरत है. यानी एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें तटरक्षक बल और नौसेना के बीच गहरा सहयोग स्थापित हो, साथ ही इन गैरक़ानूनी गतिविधियों की निगरानी के लिए अंतरिक्ष और रडार का इस्तेमाल किया जाए. इसके अलावा, पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर को कुछ इस तरह विकसित किए जाने की भी ज़रूरत है, ताकि नौसेना उसका समुचित उपयोग कर सके और हाइब्रिड हमलों जैसी अवैध कार्रवाइयों को रोक सके.
निसंदेह तौर पर यूरोपियन यूनियन ने पिछले 20 वर्षों के दौरान अपने बंदरगाहों का अभूतपूर्व विकास किया है और इसके तहत ईयू के सदस्य देशों के बीच बहुस्तरीय सहयोग की पूरी व्यवस्था विकसित की गई है, जिसमें स्थानीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग शामिल है. इंटीग्रेटेड मैरीटाइम पॉलिसी के अंतर्गत बंदरगाहों के विकास की इस समावेशी रणनीति ने जहां एक ओर बेहतरीन नतीज़े दिए हैं, वहीं दूसरी ओर बंदरगाहों को बढ़ती ज़िम्मेदारियों को निभाने एवं चुनौतियों का सामना करने के लिहाज़ से भी तैयार किया है.
भारत बंदरगाह विकास को लेकर यूरोपीय संघ की ओर उठाए गए क़दमों को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र को कवर करने वाले एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर, पूर्वी हिंद महासागर और पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्रों के बीच भारत-जापान समुद्री गलियारा एवं बंगाल की खाड़ी में आसियान-भारत क्रूज डायलॉग जैसी अपनी पहलों में भी लागू कर सकता है.
ज़ाहिर है कि भारत जैसे ग्लोबल साउथ के अग्रणी राष्ट्र बंदरगाहों के विकास के लिए यूरोपीय संघ की ओर से लागू की गई रणनीतियों को न सिर्फ़ अपना सकते हैं, बल्कि इनका भरपूर फायदा भी उठा सकते हैं. इसके अलावा, इस सेक्टर में यूरोपियन यूनियन ने जो भी सबक सीखे हैं, भारत उनका भी लाभ उठा सकता है. यूरोपीय संघ के सहयोग से भारत इन पहलों को अपने कार्यक्रमों जैसे कि सागरमाला और उत्तर पूर्व हिंद महासागर क्षेत्र (NEIO) जैसी पहलों, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर त्रिकोण शामिल है, में कार्यान्वित कर सकता है. इसके अलावा, भारत बंदरगाह विकास को लेकर यूरोपीय संघ की ओर उठाए गए क़दमों को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र को कवर करने वाले एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर, पूर्वी हिंद महासागर और पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्रों के बीच भारत-जापान समुद्री गलियारा एवं बंगाल की खाड़ी में आसियान-भारत क्रूज डायलॉग जैसी अपनी पहलों में भी लागू कर सकता है.
टॉमस लुकासज़ुक वारसॉ यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संकाय के डिपार्टमेंट ऑफ रीजनल एंड ग्लोबल स्टडीज़ में एक शोधकर्ता हैं और भारत में पोलैंड के पूर्व राजदूत (2014-2017) रह चुके हैं.
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Tomasz Lukaszuk is a Marie Sklodowska-Curie Global India Research Fellow at Global India Program member of the Faculty of Political Science and International Studies University ...
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