Author : Sayantan Haldar

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Published on Jun 12, 2025 Updated 0 Hours ago
पश्चिमी हिंद महासागर में जिस तरह से नए समुद्री समीकरण बन रहे हैं, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करने और एक स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने के लिए यहां लगातार अपनी सक्रियता दिखानी होगी.
भारत की समुद्री सुरक्षा नीति में पश्चिमी हिंद महासागर का बढ़ता महत्व

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हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक व्यवस्था को आकार देने में एक प्रमुख रंगमंच के रूप में तेज़ी से उभरा है. यहां से लगातार बढ़ रहा व्यापार इसके बढ़ते महत्व का संकेत है. दुनिया का अस्सी प्रतिशत से अधिक समुद्री तेल और सालाना करीब दस अरब टन माल यहीं से गुज़रता है. इस कारण यह क्षेत्र समुद्री ख़तरों से मिलने वाली रणनीतिक चुनौतियों के लिहाज़ से काफी संवेदनशील बन जाता है. भारत चूंकि इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा का एक बड़ा देश है, इसलिए उसने पिछले एक दशक में सुरक्षा चुनौतियों और सामरिक महत्व के लिहाज़ से यहां अपनी नौसेना की पहुंच बढ़ाई है.

यह सही है कि हिंद और प्रशांत महासागरों को जोड़कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र बना है, लेकिन इसमें हिंद महासागर का रणनीतिक महत्व अधिक है. इस कारण सहभागी देश पूर्वी और पश्चिमी हिंद महासागर को अलग-अलग करके नए तरीके से उस पर ध्यान देने लगे हैं. पिछले एक दशक से भारत का हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ जुड़ाव न सिर्फ़ बना हुआ है, बल्कि बढ़ भी रहा है. नई दिल्ली की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उपस्थिति से समान सोच वाले देशों के साथ रणनीतिक और समुद्री साझेदारियां बढ़ रही हैं. चूंकि भारत के सहयोगी देशों की भौगोलिक स्थिति और हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, इसलिए कई मायनों में पूर्वी हिंद महासागर भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ाव की एक प्रमुख वज़ह बनकर उभरा है. वास्तव में, पूर्वी हिंद महासागर हिंद और प्रशांत महासागरों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहा है.

नई दिल्ली की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उपस्थिति से समान सोच वाले देशों के साथ रणनीतिक और समुद्री साझेदारियां बढ़ रही हैं. चूंकि भारत के सहयोगी देशों की भौगोलिक स्थिति और हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, इसलिए कई मायनों में पूर्वी हिंद महासागर भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ाव की एक प्रमुख वज़ह बनकर उभरा है.

हालांकि, भारत की समुद्री सुरक्षा संबंधी तैयारियों को लेकर जो सोच है, उससे इससे अलग तस्वीर नज़र आती है. असल में, नौसेना के बुनियादी ढांचे को लेकर भारत का ज़्यादातर निवेश पश्चिमी हिंद महासागर में हो रहा है. इसकी कई वज़हें हो सकती हैं- जैसे कि यहां समुद्री सुरक्षा संबंधी ख़तरे पैदा हुए हैं, चीन के जहाज़ों की मौजूदगी बढ़ी है और भारत-अफ्रीका समुद्री सहयोग का महत्व समझा गया है.

Prioritising The Western Indian Ocean In India S Maritime Security Calculus

स्रोत: श्लोक गुप्ता द्वारा 

पश्चिमी हिंद महासागर के गैर-पारंपरिक ख़तरे और सुरक्षा संबंधी ज़रूरी प्रयास

भारत की समुद्री सुरक्षा, खासतौर से गैर- पारंपरिक समुद्री चुनौतियों के बढ़ने से पश्चिमी हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है. 2007 से 2012 के बीच सोमालिया के तट पर समुद्री डकैती में फिर से आए उछाल के बाद- जिसमें फिरौती की मांग एक करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई- पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत समझी गई. इस तरह के ख़तरों के ख़िलाफ़ भारत किस तरह संतुलित तरीके से आगे बढ़ रहा है, इसे 2024 में मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर एक नई हवाई पट्टी व जेट्टी के उद्घाटन और हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS, जो 2008 में बना मंच है) जैसी व्यवस्थाओं में भारत की भागीदारी को देखकर समझा जा सकता है. इस संगोष्ठी के तहत किए गए NISHAR- IFC जैसे अभ्यासों ने मौजूदा समुद्री सुरक्षा और रक्षा चुनौतियों के बारे में सहभागी देशों की समझ बढ़ाने में मदद की है.

जलुवाय परिवर्तन के कारण बढ़ रहे पर्यावरण संबंधी ख़तरे भी पश्चिमी हिंद महासागर में प्रमुख गैर- पारंपरिक सुरक्षा मुद्दा बनकर उभरे हैं. इस क्षेत्र में सबसे तेज़ी से पानी गर्म हो रहा है. इस कारण यह महासागर इंसानों को गंभीर चुनौतियां दे रहा है, जैसे कि समुद्र का बढ़ता जल स्तर, जो महासागरों पर निर्भर विशाल मानव आबादी के जीवन और रोज़ी-रोटी को ख़तरे में डालता है.

जलुवाय परिवर्तन के कारण बढ़ रहे पर्यावरण संबंधी ख़तरे भी पश्चिमी हिंद महासागर में प्रमुख गैर- पारंपरिक सुरक्षा मुद्दा बनकर उभरे हैं. इस क्षेत्र में सबसे तेज़ी से पानी गर्म हो रहा है. इस कारण यह महासागर इंसानों को गंभीर चुनौतियां दे रहा है, जैसे कि समुद्र का बढ़ता जल स्तर, जो महासागरों पर निर्भर विशाल मानव आबादी के जीवन और रोज़ी-रोटी को ख़तरे में डालता है. मालदीव, मॉरीशस और सेशल्स जैसे छोटे-छोटे द्वीपीय विकासशील देशों ने भी जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से सबसे बड़ी चिंता माना है. अवैध तरीकों, चोरी-छिपे और नियम- कानून न मानकर मछली पकड़ना, नशीले उत्पादों और मानव की तस्करी, और यमन व मोजांबिक में संघर्षों के असर जैसे गैर- पारंपरिक सुरक्षा ख़तरों के कारण इस समुद्री क्षेत्र में चुनौतियां बढ़ गई हैं. इस वज़ह से पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन जाता है.

केंद्र में अफ्रीका- भारत की हिंद महासागर रणनीति में नया संचालक

मार्च 2025 में, भारत ने अपने भू-राजनीतिक ढांचे SAGAR का विस्तार करके उसे MAHASAGAR (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) बना दिया. इसके तहत हिंद महासागर क्षेत्र रणनीति में ‘ग्लोबल साउथ’ (वैश्विक दक्षिण) को शामिल किया गया है. इसके बाद अप्रैल 2025 में अफ्रीका-भारत प्रमुख समुद्री जुड़ाव (AIKEYME) की शुरुआत की गई, जो हिंद महासागर क्षेत्र में ‘पसंदीदा सुरक्षा भागीदार’ और ‘प्रथम उत्तरदाता’ के रूप में भारतीय नौसेना की हैसियत को और मज़बूत करने वाला बहुपक्षीय मंच साबित हुआ है. IOS SAGAR पहल, जिसका उद्घाटन 8 मई, 2025 को भारतीय नौसेना द्वारा दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में INS सुनयना की तैनाती के साथ किया गया, अफ्रीकी देशों के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने के भारत के प्रयासों और प्रतिबद्धताओं का ही उदाहरण है. इस अभ्यास में शामिल दस सहयोगी देशों में से आठ हिंद महासागर के इसी क्षेत्र के.

भारत और पाकिस्तान के बीच उभरते तनाव में नौसैनिकों से मिलने वाले ख़तरों के लिहाज़ से पश्चिमी हिस्से पर नए सिरे से समय पर ध्यान दिया गया है.

अफ्रीका के पूर्वी तट पर हुती विद्रोहियों से बढ़ते ख़तरे और जिबूती जैसे रणनीतिक महत्व वाले देशों में चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री सुरक्षाकर्ता बने रहने की भारत की आवश्यकता पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान देने की मांग करती है.

पश्चिमी हिंद महासागर में चीन की चुनौती

हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के अनुसंधान जहाज़ों की बढ़ती मौजूदगी भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है. ऐसे अनुसंधान जहाज़ों को आमतौर पर चीन के जासूसी जहाज़ों और दोहरे उपयोग वाले अनुसंधान पोतों के रूप में देखा जाता है. इनकी तैनाती से चीन की कैलिब्रेटेड, यानी सोच-समझी रणनीति से ख़तरा पैदा हो गया है, जो दक्षिण चीन सागर (SCS) और पश्चिमी हिंद महासागर के अलावा भी चुनौती पेश करता है. पश्चिमी हिंद महासागर में बीजिंग के बढ़ते कदम जिबूती में उसके सैन्य अड्डे और अफ्रीकी देशों के साथ बढ़ते राजनीतिक व आर्थिक जुड़ाव से भी स्पष्ट हो जाते हैं. इन सबने उन देशों में चिंता बढ़ा दी है, जिनके राष्ट्रीय हित और अनिवार्यताएं इस क्षेत्र में चीन के दबदबे से प्रभावित होती हैं. चीन के कुछ बंदरगाह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों और जलडमरूमध्य के करीब स्थित हैं. ग्वादर बंदरगाह होर्मुज जलडमरूमध्य के पास मौजूद है, तो दोरालेह बंदरगाह बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य में. दोनों ही रास्ते एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार और संपर्क बढ़ाने के लिए आवश्यक माने जाते हैं. समुद्र में नई दिल्ली और बीजिंग के बीच प्रतिस्पर्द्धा अन्य स्तरों पर भी देखी जा सकती है, जैसे कि चीन-हिंद महासागर फोरम में बड़ी भागीदारी का चीन का दावा, जिसे हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की तरह क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने व नेतृत्व करने के प्रयासों के रूप में विकसित किया गया है.

पश्चिमी मार्ग की रूपरेखा- भारत का उभरता समुद्री संपर्क

पिछले दशक में भारत ने समुद्र में जो प्रयास किए, वे पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की पहुंच बढ़ाने की एक बड़ी कोशिश है. बढ़ते गैर- पारंपरिक सुरक्षा ख़तरों, भारत-अफ्रीका रिश्तों का महत्व और चीन के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के संदर्भ में नई दिल्ली ने पश्चिमी नौसैनिक ढांचों को कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना है. भारत और पाकिस्तान के बीच उभरते तनाव में नौसैनिकों से मिलने वाले ख़तरों के लिहाज़ से पश्चिमी हिस्से पर नए सिरे से समय पर ध्यान दिया गया है. बेशक, हिंद-प्रशांत रणनीति में पूर्वी हिंद महासागर को सभी वैश्विक साझेदार अधिक महत्व देते हैं, लेकिन हाल-फिलहाल के घटनाक्रमों से यही पता चलता है कि भारत पश्चिमी हिंद महासागर में अपनी रणनीति को लगातार आगे बढ़ा रहा है. यह सही नीति भी है, क्योंकि पश्चिमी हिंद महासागर में विकसित हो रहे समुद्री समीकरण को देखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करने और एक स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने के लिए ज़रूरी है कि भारत इस क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ाए.


(सायंतन हलधर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में शोध सहायक हैं)

(श्लोक गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में शोध प्रशिक्षु हैं)

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