-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
मार्शल लॉ ने कोरियाई लोकतंत्र की मजबूती को एक बार फिर उजागर कर दिया है. लेकिन इसके साथ ही उसने यह भी साफ़ कर दिया है कि राष्ट्रपति के पास मौजूद अधिकारों का एकाधिकार होने की वजह से कुछ समस्याएं अब भी मौजूद हैं.
Image Source: Getty
1948 में अपनी आज़ादी के बाद से ही दक्षिण कोरिया के हिस्से में उसकी अपनी राजनीतिक अस्थिरता आयी है. 1987 के बाद वहां सिक्स्थ रिपब्लिक यानी छठे गणतंत्र के साथ ही लोकतंत्र ने अपने पंख फ़ैलाना शुरू किया था. देश के राजनीतिक इतिहास में अब तक मार्शल लॉ के 17 दौर देखें गए हैं. इसमें इर्मजन्सी यानी आपातकालीन मार्शल लॉ तथा सिक्योरिटी मार्शल लॉ के अलावा उसके शीर्ष नेताओं के ख़िलाफ़ तीन महाभियोग के मामले भी हुए हैं. (देखें टेबल 1) अत: 2024 में लगाया गया मार्शल लॉ इस एक आजाद देश के रूप में स्थापना के पश्चात मार्शल लॉ लागू करने का पहला मामला नहीं था. लेकिन यह उसके 45 वर्षों के लोकतांत्रिक दौर में मार्शल लॉ लगाए जाने का पहला मौका था. इसी वजह से यह बेहद अहम घटना हो जाती है. मार्शल लॉ लागू करने को लेकर किए गए विश्लेषणों में इसके पीछे रहे कारणों को लेकर काफ़ी चर्चाएं हुई हैं. इसमें फर्स्ट लेडी यानी राष्ट्रपति की पत्नी की भूमिका के अलावा राष्ट्रपति तथा विपक्ष के बीच चल रही खींचतान पर ध्यान केंद्रित किया गया है. लेकिन इन विश्लेषणों में राजनीतिक संदर्भ की दृष्टि से काफ़ी बातों का जिक्र नहीं किया गया है. इस लेख में ऐसे ही कुछ महीन मुद्दों पर चर्चा की गई है, जिन्हें नज़रअंदाज कर दिया गया है.
इसमें फर्स्ट लेडी यानी राष्ट्रपति की पत्नी की भूमिका के अलावा राष्ट्रपति तथा विपक्ष के बीच चल रही खींचतान पर ध्यान केंद्रित किया गया है. लेकिन इन विश्लेषणों में राजनीतिक संदर्भ की दृष्टि से काफ़ी बातों का जिक्र नहीं किया गया है. इस लेख में ऐसे ही कुछ महीन मुद्दों पर चर्चा की गई है, जिन्हें नज़रअंदाज कर दिया गया है.
तीन दिसंबर को राष्ट्रपति यून ने देश में मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा कर दी. इसके साथ ही देश में मानो सब कुछ ठहर सा गया था. लेकिन विपक्ष ने तुरंत सक्रिय होते हुए राष्ट्रपति के इस कदम को वीटो कर दिया और राष्ट्रपति को मार्शल लॉ वापस लेने पर मजबूर कर दिया. यह सारा मामला मात्र छह घंटे चला. अत: यह देश के इतिहास का सबसे छोटी अवधि वाला मार्शल लॉ बनकर रह गया. मार्शल लॉ की घटना के बाद विपक्ष ने राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग लाने की कोशिश की, लेकिन उसे इसमें सफ़लता नहीं मिली. यदि विपक्ष सफ़ल हो जाता तो देश के इतिहास में यह राष्ट्रपति रोह तथा पार्क के बाद तीसरा उदाहरण बन जाता जब राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया था.
टेबल 1 : दक्षिण कोरिया का उथल-पुथल भरा इतिहास (मार्शल लॉ, महाभियोग एवं कारावास की सजा)
स्रोत: लेखक द्वारा संकलित
अनेक राजनीतिक विशेषज्ञों और विद्वानों ने राष्ट्रपति यून की मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा के पीछे के तात्कालिक प्रभाव और कारणों की चर्चा की है. लेकिन इस चर्चा में संस्थागत तथा व्यवस्थात्मक कमियों पर ध्यान नहीं दिया गया है. इसमें सबसे अहम मुद्दा यह है कि प्रक्रियात्मक उल्लंघनों की वजह से ही मार्शल लॉ लागू किया गया था. लेकिन इस पर चर्चा ही नहीं की गई. ये मुद्दे ही ‘हाऊ’ यानी ‘कैसे’ का जवाब पाने के लिए बेहद अहम हैं. ‘व्हाय’ यानी ‘क्यों’ के सवाल का जवाब पाने के लिए काफ़ी चर्चा हो चुकी है. ताजा घटनाक्रम को लेकर दो अहम निष्कर्ष है जो व्यवस्थात्मक तथा संस्थागत ख़ामियों को उजागर करते हैं:
पहला था सैन्य तथा इंटेलिजेंस यानी गुप्तचर एजेंसियों का कंजर्वेटिव सरकार के साथ पक्षपातपूर्ण अलाइनमेंट प्रक्रियात्मक कमियों से भरा हुआ था. इसी वजह से यून को मार्शल लॉ की घोषणा कर उसे लागू करने में आसानी हुई. यह मुद्दा देश के संस्थानों के भीतर मौजूद भेदभाव अथवा पक्षपातपूर्ण रवैये की ओर भी इशारा करता है. इस घटना के बाद सेना तथा डिफेंस काउंटर इंटेलिजेंस अफसरों की भूमिका की भी जमकर आलोचना हुई है. इसके चलते कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित किया गया है. आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ यानी सेना प्रमुख पार्क अन-सू समेत सक्रिय-सेवा में तैनात 10 सैन्य अफसरों के भूमिका भी जांच के दायरे में है. विपक्ष ने गुप्तचर तथा सैन्य अफसरों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की है. मार्शल लॉ के इस ताजा अध्याय ने देश में नागरिक-सैन्य संबंधों की नाजुकता को एक बार फिर उजागर कर दिया है. इसके साथ ही दक्षिण कोरिया में सेना के पक्षपातपूर्ण रवैये पर भी चर्चा नए सिरे से होने लगी है. इन चर्चाओं का भविष्य में सेना कैसे काम करेगी इस पर भी असर दिखाई देगा.
इसके अलावा अनेक प्रक्रिया अथवा प्रणालीगत कमियों की भी पहचान हुई है. उदाहरण के लिए मार्शल लॉ कमांड एंड कंट्रोल को ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ से बाईपास करते हुए आर्मी चीफ पार्क अन-सू ने अपने अधिकार में ले लिया था. इस फ़ैसले की वजह से यून प्रशासन के सेना के राजनीतिकरण की कोशिशों को लेकर चिंताएं उठी हैं. इसके अलावा राष्ट्रपति की ओर से नेशनल इंटेलिजेंस सर्विस के प्रमुख को विपक्षी सांसदों तथा अपनी ही पार्टी में उनसे टकराने वाले नेता हान डोंग हून को गिरफ्तार करने का निर्देश दिए जाने को लेकर भी चर्चाएं हो रही हैं. उनके इस कदम के कारण दोनों ही दलों में मार्शल लॉ कानून के आर्टिकल 13 का उल्लंघन किए जाने को लेकर चिंता जताई जा रही है. आर्टिकल 13 में आपराधिक गतिविधि में शामिल होने की वजह से पकड़े जाने के अलावा अन्य किसी भी केस में सांसदों की गिरफ्तारी करने पर रोक लगाई गई है.
यह मुद्दा देश के संस्थानों के भीतर मौजूद भेदभाव अथवा पक्षपातपूर्ण रवैये की ओर भी इशारा करता है. इस घटना के बाद सेना तथा डिफेंस काउंटर इंटेलिजेंस अफसरों की भूमिका की भी जमकर आलोचना हुई है.
दूसरी ख़ामी का मामला यून प्रशासन में व्याप्त भाई-भतीजावाद से जुड़ा है. यह बात इससे साफ़ हो जाती है कि यून के नज़दीकी पावर सर्कल में चुआंग फैक्शन यानी चुआंग खेमा, अर्थात चुआंग हाईस्कूल से जुड़े लोग, ही कैबिनेट तथा अन्य उच्च पदों पर बैठे हैं. उदाहरण के लिए वर्तमान प्रशासन में मार्शल लॉ का फ़ैसला लेने वाले पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग ह्यून, गृह मंत्री ली सांग-मिन तथा डिफेंस काउंटरइंटेलिजेंस कमांड के कमांडर सभी चुआंग फैक्शन का हिस्सा है. विपक्ष के नेता ली जे-माइउंग ने इस मुद्दे को लेकर अपनी चिंताएं उजागर करते हुए सितंबर में ही चुआंग फैक्शन के दबदबे की वजह से मार्शल लॉ को लेकर संकेत दे दिया था. यह संदेह उस वक़्त और मजबूत हो गया जब राष्ट्रपति के पूर्व सुरक्षा सेवा प्रमुख के रूप में काम कर चुके किम योंग ह्यून को प्रोन्नति/प्रमोशन देकर रक्षा मंत्री बनाया गया था.
मार्शल लॉ ने कोरियाई लोकतंत्र की मजबूती को एक बार फिर उजागर कर दिया है. लेकिन इसके साथ ही उसने यह भी साफ़ कर दिया है कि राष्ट्रपति के पास मौजूद अधिकारों का एकाधिकार होने की वजह से कुछ समस्याएं अब भी मौजूद हैं. ऐसे में अब आगे बढ़ने के साथ ही यह देखेंगे कि सेना और इंटेलिजेंस में होने वाली नियुक्तियों को लेकर ज़्यादा सावधानी बरती जाएगी और इन नियुक्तियों पर बारीक नज़र भी रखी जाएगी. उम्मीद है कि विपक्ष राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती करने के कदम उठाएगा और एक मजबूत संविधानात्मक व्यवस्था तैयार करने की कोशिश करेगा जो सरकारी संस्थानों को सुचारू रूप से चलाने का काम कर सकें.
मार्शल लॉ वापस लिए जाने के बाद अब देश की निगाहें राष्ट्रपति और उनकी पत्नी पर जमी हुई हैं. यथास्थिति बन जाने के बाद विपक्ष ने सात दिसंबर को यून के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पारित किया. लेकिन नेशनल असेंबली में दो-तिहाई बहुमत हासिल न होने की वजह से यह विफ़ल हो गया. सत्तापक्ष के सांसद आह्न चेओल-सू ने पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाकर वोट दिया, लेकिन इसके बावजूद प्रस्ताव को पारित करने के लिए आवश्यक 200 का जादुई आंकड़ा हासिल करने में विपक्ष को सफ़लता नहीं मिली. अब पहला प्रयास चूक जाने के बाद विपक्ष 14 दिसंबर को सत्र के आरंभ होने के साथ ही दूसरा वोट हासिल करने का प्रयास करेगा. लेकिन तब तक दो बातें हो सकती हैं. या तो राष्ट्रपति स्वेच्छा से त्यागपत्र दे सकते हैं या फिर वे असेंबली में अगला महाभियोग प्रस्ताव आने तक अपने पद पर बने रह सकते हैं. लेकिन उस वक़्त तक क्या स्थिति रहेगी?
उम्मीद है कि विपक्ष राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती करने के कदम उठाएगा और एक मजबूत संविधानात्मक व्यवस्था तैयार करने की कोशिश करेगा जो सरकारी संस्थानों को सुचारू रूप से चलाने का काम कर सकें
सत्तारुढ़ दल ने सार्वजनिक रूप से राष्ट्रपति के फ़ैसले की निंदा की है, लेकिन उसने महाभियोग प्रस्ताव का बहिष्कार करने का भी फ़ैसला किया है. इसका कारण यह है कि सत्तारूढ़ दल पार्क ग्युन-हे जैसे मामले को दोहराना नहीं चाहता. सत्तारुढ़ दल की कोशिश है कि वह इस सारे मामले में कुछ ऐसा रुख़ अख्तियार करें कि पार्टी को कम से कम नुक़सान पहुंचे तथा सारा दोष राष्ट्रपति के माथे मढ़ दिया जाए. इसके बावजूद इस सारे मामले का देश की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति पर प्रभाव न पड़े इसलिए PM ने ही सेकंड इन कमांड के रूप में मोर्चा संभाल लिया है. प्रधान मंत्री ने तत्काल कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित किया है कि प्रशासनिक कार्य सुचारू रूप से चलता रहे और मार्शल लॉ के कारण बने भय के माहौल का मुकाबला किया जा सके. लेकिन PM के फ़ैसले की आलोचना हो रही है. इसका कारण यह है कि पार्टी प्रमुख का बहुत ज़्यादा प्रभाव है. उन्होंने कहा है कि, ‘मेरे समेत कैबिनेट के सारे सदस्य और सरकारी अफसर जनता की इच्छा को सर्वोपरि मानेंगे और अपनी समस्त बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए सत्तारुढ़ दल के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि सारे सरकारी कार्य स्थिरता और सुगमता के साथ चलते रहें.’ PM ने हान डोंग-हून के साथ एक बयान जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अब यह महत्वपूर्ण है कि सरकारी काम में थोड़ी सी भी रिक्तता यानी खालीपन न रहें. इन दोनों ने कहा है कि वे सप्ताह में एक बार स्थितियों को सामान्य करने के लिए आपस में चर्चा करेंगे.
इसके बावजूद विपक्ष के एक नेता चो-कुक ने PM तथा हान के फ़ैसले की आलोचना की है. उन्होंने इसे दूसरा तख़्तापलट बताया है. उनका मानना है कि पहले निर्वाचित राष्ट्रपति को महाभियोग से बचाने की कोशिश की जा रही है और दूसरे उसी राष्ट्रपति को दरकिनार कर उनकी जगह ख़ुद कब्ज़ा करने की कोशिश हो रही है.
यह पूरा मामला दक्षिण कोरियाई नागरिकों की आंखें खोलने वाला साबित हुआ है. इसका कारण यह है कि वहां के लोग यह मानने लगे थे कि मार्शल लॉ अब गुजरे हुए जमाने की बात हो गई है. ऐसे में यह ताजा मामला अब लोगों को राजनेताओं से अधिक जवाबदेही और सूक्ष्म परीक्षण की मांग करने पर मजबूर करेगा. ऐसे में यहां से आगे हमें पूरे मामले का सतर्कता से परीक्षण होते हुए देखने को मिलेगा. इसके अलावा प्रक्रियात्मक उल्लंघनों तथा यून प्रशासन की ओर से सत्ता के दुरुपयोग पर भी लोगों की बारीक निगाह होगी. इसमें सेना तथा इंटेलिजेंस एजेंसियों की महीन जांच भी शामिल होगी, क्योंकि इस घटना ने इन दोनों की भूमिका को भी संदेह के घेरे में लाकर रख दिया है. राजनीतिक उठापटक तो चलती रहेगी और इसकी वजह से असेंबली की कार्यवाही तथा प्रशासन दोनों ही प्रभावित भी होंगे यह बात भी तय है.
अभिषेक शर्मा, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन की स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Abhishek Sharma is a Junior Fellow with the ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the Indo-Pacific regional security and geopolitical developments with a ...
Read More +