Published on Jun 03, 2022 Updated 6 Hours ago

ताइवान और भारत आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में द्विपक्षीय हिस्सेदारी को मज़बूत करना चाहते हैं. इसके लिए दोनों देशों ने भारत-ताइवान मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) पर बातचीत शुरू कर दी है.

भारत-ताइवान के बीच मुक्त व्यापार संधि के आसार!

द्विपक्षीय व्यापार में काफ़ी संभावनाएं 

भारत की सरकार के द्वारा “लुक ईस्ट पॉलिसी” अपनाने के बाद 90 के दशक के शुरू के वर्षों से ताइवान और भारत गहरे द्विपक्षीय सहयोग के दीर्घकालीन दृष्टिकोण के साथ एक-दूसरे के नज़दीक आने लगे. जुलाई 2011 में दोनों देशों ने दोहरे कराधान (टैक्सेशन) से बचने और सीमा शुल्क में पारस्परिक सहायता को लेकर दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिससे कि भारत और ताइवान के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों में और मज़बूती आई. 

हाल के समय में दोनों देशों के संबंधों में बहुत अधिक तेज़ी आई है. इसकी वजह ताइवान के द्वारा एक “नई दक्षिण की ओर ले जाने वाली नीति” की शुरुआत करने का फ़ैसला है जो भारत के ताज़ा “एक्ट ईस्ट इनिशिएटिव” से मेल खाती है. संबंधों में नज़दीकी का नतीजा 2002 और 2018 में द्विपक्षीय निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर और उसके बाद उसमें और सुधार के रूप में निकला. 

हाल के समय में दोनों देशों के संबंधों में बहुत अधिक तेज़ी आई है. इसकी वजह ताइवान के द्वारा एक “नई दक्षिण की ओर ले जाने वाली नीति” की शुरुआत करने का फ़ैसला है जो भारत के ताज़ा “एक्ट ईस्ट इनिशिएटिव” से मेल खाती है.

संबंधों में इस तेज़ी को बरकरार रखते हुए भारत और ताइवान ने दिसंबर 2021 में एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए बातचीत शुरू कर दी. ये स्थायी और व्यापक द्विपक्षीय आर्थिक हिस्सेदारी की ओर एक महत्वपूर्ण क़दम है. भारत की तरफ़ से देखें तो ये अलग-अलग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय पहलों के द्वारा व्यापार के विस्तार की दिशा में देश की मौजूदा तत्परता के साथ मेल खाता है. 

भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2006 के 2 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020 में 5.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया. इस तरह इसमें 185 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2017-18 और 2018-19 के बीच ताइवान से एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) में लगभग 10 गुना बढ़ोतरी हुई है. अप्रैल 2000 से लेकर दिसंबर 2021 के बीच की अवधि में ताइवान की तरफ़ से भारत में कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 698.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा. 

सारिणी 1: अप्रैल-मार्च में भारत-ताइवान द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि दर और हिस्सा (मिलियन अमेरिकी डॉलर में) 
  अप्रैल-मार्च 2021 अप्रैल-मार्च 2022 % वृद्धि कुल व्यापार में % हिस्सा
ताइवान को भारतीय निर्यात 1620.15 2756.70 70.15 0.65
ताइवान से भारतीय आयात 4036.75 6233.39 54.42 1.02
स्रोत: विदेशी व्यापार प्रदर्शन विश्लेषण, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार

मासिक आधार पर व्यापार का ताज़ा आंकड़ा ताइवान को भारतीय निर्यात और ताइवान से आयात में अच्छी वृद्धि दर भी दिखाता है (सारिणी 1). हालांकि संभावनाओं को देखते हुए द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा अभी भी निराशाजनक बनी हुई है. ये निर्यात और आयात के बेहद कम हिस्से से दिखाई देता है. 

निवेश के मोर्चे पर ताइवान की लगभग 106 कंपनियां– क़रीब 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर के कुल निवेश (वास्तविक और प्रस्तावित) के साथ- 2018 के आख़िर तक सूचना एवं संचार तकनीक, चिकित्सा उपकरण, ऑटोमोबाइल के हिस्से, मशीनरी, इस्पात, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, इंजीनियरिंग और वित्तीय सेवाओं समेत अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही थीं. पिछले कुछ वर्षों में भारत सक्रिय रूप से व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और लोगों के बीच आदान-प्रदान में ताइवान के साथ सहयोग को बढ़ावा दे रहा है. दोनों देशों ने शिक्षा और कौशल विकास में लाभदायक सहयोग के लिए दलों का गठन भी किया है. 

पिछले कुछ वर्षों में भारत सक्रिय रूप से व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और लोगों के बीच आदान-प्रदान में ताइवान के साथ सहयोग को बढ़ावा दे रहा है. दोनों देशों ने शिक्षा और कौशल विकास में लाभदायक सहयोग के लिए दलों का गठन भी किया है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (आईआईएसएसटी) पहले से ही अलग-अलग परियोजनाओं पर ताइवान के राष्ट्रीय अंतरिक्ष संगठन के साथ सहयोग कर रहे हैं. सहयोग का एक और संभावित क्षेत्र हरित ऊर्जा है. भारत एक ऐसा देश है जहां ऊर्जा की कमी है लेकिन उसे जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा की जगह नवीकरणीय हरित ऊर्जा की तरफ़ बदलाव की आवश्यकता है. दूसरी तरफ़ हरित ऊर्जा के क्षेत्र में ताइवान एशिया के बड़े देशों में से एक है और बदलाव के इस दौर में वो भारत के लिए पूरा परिदृश्य बदलने वाला देश साबित हो सकता है. 

सेमीकंडक्टर के केंद्र के लिए भारत की चाह

ताइवान की सबसे बड़ी मज़बूती मशीनरी एवं इलेक्ट्रिकल उपकरण के क्षेत्र में है जैसा कि (सारिणी 2) से देखा जा सकता है. भारत का मौजूदा ध्यान ताइवान की इस ताक़त का इस्तेमाल करना है. मौजूदा समय में एफटीए को लेकर बातचीत भारत में सेमीकंडक्टर के उत्पादन की सुविधा के निर्माण की पेशकश के इर्द-गिर्द मज़बूती से घूम रही है.

अगर ये परियोजना लागू होती है तो अमेरिका के बाद भारत, ताइवान का दूसरा सेमीकंडक्टर उत्पादन केंद्र बन जाएगा.

ख़बरों के मुताबिक़ भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर केंद्र के लिए कई जगहों का प्रस्ताव दिया है और बातचीत इस बात को लेकर चल रही है कि ताइवान के किसी अग्रणी सेमीकंडक्टर उत्पादक को इसमें शामिल किया जाए. ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) और यूनाइटेड माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन (यूएमसी) जैसी कंपनियों का ज़िक्र इस मेगा परियोजना को लागू करने के लिए संभावित नाम के रूप में मीडिया की रिपोर्ट में हो रहा है. अगर ये परियोजना लागू होती है तो अमेरिका के बाद भारत, ताइवान का दूसरा सेमीकंडक्टर उत्पादन केंद्र बन जाएगा. हालांकि उत्पादन केंद्र की जगह की पसंद मुश्किल हो सकती है क्योंकि सेमीकंडक्टर की मैन्युफैक्चरिंग के लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण, बिना रुकावट बिजली की आपूर्ति, और भारी मात्रा में पानी की लगातार उपलब्धता की ज़रूरत होती है. 

सारिणी 2: ताइवान के बड़े व्यापार उत्पाद समूह
बड़े निर्यात 2021 कुल का %  बड़े आयात 2021 कुल का % 
मशीनरी और इलेक्ट्रिकल उपकरण 61.9 मशीनरी और इलेक्ट्रिकल उपकरण 37.7
बुनियादी धातु और सामान 8.2 खनिज 9.7
प्लास्टिक और रबर के सामान 6.7 रसायन 7.5
रसायन 5.2 बुनियादी धातु और सामान 5.6
स्रोत: कंट्री रिपोर्ट्स, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू)

चूंकि, वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी अभी भी बनी हुई है और भारत के ऑटो उत्पादकों और तकनीकी कंपनियों की मांग में बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में ताइवान की एक कंपनी के द्वारा भारत में उत्पादन केंद्र का निर्माण दोनों देशों के लिए फ़ायदे का सौदा लग रहा है. हालांकि ये कहना आसान है और लागू करना मुश्किल. सेमीकंडक्टर का उत्पादन एक जटिल प्रक्रिया है जहां उत्पादक सैकड़ों दूसरी कंपनियों के अनगिनत पुर्जों का इस्तेमाल करता है. भारत में एक उत्पादन केंद्र बनाने का तात्पर्य यह है कि टीएसएमसी और यूएमसी जैसी कंपनियों का पुर्जा बनाने वाली इन कंपनियों को भारत में अपने उत्पादन की सुविधा शुरू करने के लिए मनाना होगा. 

चीन का फैक्टर

चीन अभी भी ताइवान का सबसे बड़ा निर्यात का केंद्र और सबसे बड़ा आयात का स्रोत बना हुआ है (सारिणी 3). ताइवान में श्रमिकों, ख़ास तौर पर कुशल श्रमिकों की कमी है. इसकी वजह से ताइवान को चीन में उत्पादन के कई केंद्र स्थापित करने पड़े. इस तरह से चीन से ताइवान का आयात मूल्य बढ़ जाता है. हालांकि हाल के समय में चीन ने हवाई घुसपैठ और ताइवान स्ट्रेट में तनाव पैदा करके इस द्वीपीय देश पर बहुत ज़्यादा राजनीतिक और सैन्य दबाव डाला है. ताइवान के द्वारा अमेरिका में सेमीकंडक्टर का केंद्र बनाने का फ़ैसला एक तरह से इसी का नतीजा है. 

सारिणी 3: ताइवान के निर्यात के बड़े ठिकाने और आयात स्रोत 
बड़े बाज़ार 2021 कुल का %  बड़े आपूर्तिकर्ता 2021 कुल का % 
चीन 28.2 चीन 21.6
अमेरिका 14.7 जापान 14.7
हॉन्ग कॉन्ग 14.1 अमेरिका 10.3
सिंगापुर 5.8 दक्षिण कोरिया 8
स्रोत: कंट्री रिपोर्ट्स, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू)

दूसरी तरफ़ भारत भी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की घुसपैठ का सामना कर रहा है. इस तरह दोनों देशों के लिए व्यापक सहयोगी रूप-रेखा बनाने में एक साझा हित है. सेमीकंडक्टर के लिए भारत की दिलचस्पी तेज़ी से बढ़ती जा रही है. अनुमान के मुताबिक़ मौजूदा 2 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर से बढ़कर 2025 तक ये 100 अरब अमेरिकी डॉलर को छू लेगा. भारत सरकार ने अपनी प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) योजना के तहत सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इलेक्ट्रॉनिक्स इकोसिस्टम्स के विकास के लिए अलग से 76,000 करोड़ रुपये (लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर) के खर्च का ऐलान भी किया है. 

तकनीकी तौर पर कहें तो भारत और ताइवान के द्वारा एफटीए पर हस्ताक्षर करने और फिर एक आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग की रूप-रेखा खड़ी करने से किसी भी तरह से चीन सरकार के द्वारा मानी जाने वाली “एक चीन की नीति” के समर्थन का उल्लंघन नहीं होता है.

इसलिए एफटीए के तहत एक आर्थिक और सहकारी रूप-रेखा बनाने से दोनों देशों को लाभ होने की उम्मीद है. तकनीकी तौर पर कहें तो भारत और ताइवान के द्वारा एफटीए पर हस्ताक्षर करने और फिर एक आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग की रूप-रेखा खड़ी करने से किसी भी तरह से चीन सरकार के द्वारा मानी जाने वाली “एक चीन की नीति” के समर्थन का उल्लंघन नहीं होता है. 

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध को देखते हुए भविष्य में ताइवान पर चीन के हमले की आशंका बढ़ रही है. हालांकि राष्ट्रपति बाइडेन का ताज़ा दावा– कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला करने की कोशिश की तो अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करेगा- फिलहाल के लिए उन अटकलों पर विराम लगाता है. इस बात की संभावना कम है कि यूक्रेन युद्ध, चीन को इस तरह का मौक़ा पेश करेगा. अतीत में चीन ने अपनी सरज़मीं पर ताइवान के निवेश का भरपूर फ़ायदा उठाया है.  जबकि ताइवान चाहता है कि अब वो चीन से न सिर्फ़ बाहर निकले, बल्कि अपनी निर्भरता भी घटाए तो ऐसी स्थिति में भारत को इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. भारत और ताइवान के बीच एक मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) इस दिशा में पहला क़दम होगा. 

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