मालदीव की संसद के स्पीकर अब्दुल्ला मसीह के खिलाफ विपक्षी गठबंधन द्वारा पेश किये गए अविश्वास प्रस्ताव की ‘हार’ के बाद राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने भूली बिसरी सर्वदलीय राजनीतिक वार्ता एक बार फिर से शुरू करने का आह्वान किया है। हालांकि विपक्ष ने सरकार की यह पेशकश ठुकरा दी है।
सरकार के मुख्य वार्ताकार, मत्स्य पालन मंत्री डॉ. मोहम्मद शेनी ने स्पीकर मसीह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव विफल होने के चंद रोज बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “अगर वे लोकतंत्र चाहते हैं, तो उन्हें लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और इस अवसर का उपयोग करना चाहिए।” उन्होंने बताया कि विपक्षी दलों को विफल वार्ताएं दोबारा शुरू करने का न्यौता भेजा जा चुका है। उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “सरकार विपक्ष से बातचीत करने में हिचकिचा नहीं रही है। हमें यकीन है कि हमारे कार्य जनता के लाभ के लिए हैं कानूनों और नियमों के मुताबिक हैं।”
हालांकि हालांकि विपक्ष का अपना अलग दृष्टिकोण है । पीपुल्स मजलिस में विपक्ष के नेता, मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के इब्राहिम ‘इबु’ सोलिह ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा “यह एक बड़ा मजाक बन चुका है।” उन्होंने कहा, “विपक्ष जब भी सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए अपनी गतिविधियां बढ़ाता है, वार्ता की बात कर दी जाती है।”
सत्तारूढ़ प्रोग्रेसिव पार्टी आफ मालदीव (पीपीएम) के गय्यूम धड़े की ओर से अपना पक्ष रखते हुए सांसद फारिस मामून ने स्पष्ट किया कि विपक्ष वार्ता का न्यौता नहीं ठुकराएगा। हालांकि उनके पिता और पूर्व राष्ट्रपति ममून अब्दुल गय्यूम को सर्वदलीय वार्ता के लिए पीपीएम प्रतिनिधि को नामजद करने की इजाजत मिलनी चाहिए। इसके विपरीत, इबु सोलिह ने स्पष्ट किया कि वे बातचीत में शामिल होने पर तभी विचार करेंगे, जब पूर्व राष्ट्रपति गय्यूम और एमडीपी के मोहम्मद नशीद को किसी भी तरह की राजनीतिक बातचीत में शामिल होने की इजाजत मिले। यही एक ऐसा बिंदु भी है, जो एमडीपी को वार्ता में शामिल होने के रोक रहा है, हालांकि इबु ने तत्कालीन गृहमंत्री उमर नासिर के साथ प्रारंभिक बातचीत की थी, जो अब पीपीएम के गय्यूम गुट में हैं।
सामान्य नहीं, पुख्ता बात
एक तरह से देखा जाए तो सरकार ने इस राजनीतिक वार्ता का आह्वान एकदम अचानक नहीं किया है। यामीन नेतृत्व समय-समय पर, अपनी प्रमाणित राजनीतिक ताकत के बल पर या — किसी न किसी तरह के मुकाबले में जीत हासिल करने के बाद विपक्ष पर व्यंग्य कसता रहा है। वैसे यह मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक संदेश है, जरूरी नहीं कि यह उन्हें राजी करने का गंभीर प्रयास हो।
विपक्ष भी, उम्मीद के मुताबिक ही प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है। इसलिए, सरकार किसी भी तरह की कोई महत्वपूर्ण बातचीत शुरू हुए बिना ही, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह उम्मीद दिलाती आई है कि अब बाजी पलट चुकी है। उनके लिए, अंतराष्ट्रीय समुदाय में से कोई भी (यानी पश्चिमी देश) राजनीतिक वाताओें की इस तरह की पेशकश को ज्यादा गंभीरता नहीं लेता।
और पढ़िए | मालदीव: विपक्ष की राष्ट्रपति यामीन के खिलाफ आम उम्मीदवार उतारने की योजना
हालांकि विपक्षी गठबंधन के लिए जो बात मायने रखती है…और जो बात मायने रखनी चाहिए — वह यह है कि बात सामान्य नहीं, बल्कि पुख्ता होनी चाहिए। “राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की बढ़ती निरंकुशता के खिलाफ एकजुट होने” वाली चारों पार्टियों का एक भी लोकप्रिय नेता नवम्बर, 2018 तक होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनावों में यामीन को चुनौती नहीं दे सकता।
उल्लेखनीय है कि इन चारों पार्टियों के मुख्य नेता, धर्म पर केंद्रित अदालत पार्टी (एपी) के नेता शेख इमरान ‘आतंकवाद के आरोपों’ में जेल में हैं; एमडीपी के नशीद तब तक देश में पांव नहीं रख सकते, जब तक कि वे मेडिकल कारणों से जेल से ली गई छुट्टी का ‘उल्लंघन कर यूके से राजनीतिक शरण मांगने ‘ के लिए जेल नहीं चले जाते; 65 वर्ष से ज्यादा आयु के हो चुके गय्यूम और जम्हूरी पार्टी (जेपी) के गासिम इब्राहिम की राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की उम्र अब बीत चुकी है।
विपक्षी गठबंधन की तकलीफें यहीं समाप्त नहीं होतीं, यामीन गुट ने अपने सौतेले भाई गय्यूम को न सिर्फ पीपीएम अध्यक्ष पद से, बल्कि पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी बर्खास्त कर दिया है। गय्यूम गुट की दलील है कि यह कदम नेशनल काउंसिल नहीं, केवल पार्टी की जनरल काउंसिल ही उठा सकती है और यदि जरूरत पड़ी तो वे इस बारे में अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
सभी व्यवहारिक उद्देश्यों के लिए, इसका अर्थ है कि गय्यूम नई पार्टी बनाएंगे, चुनाव आयोग की तसल्ली के लिए 10,000 सदस्यों को पंजीकृत करेंगे, ताकि चुनाव के अगले दौर के लिए समय रहते नाम और चुनाव चिन्ह हासिल किया जा सके। स्थानीय काउंसिल के चुनाव राष्ट्रपति चुनावों से काफी पहले होने वाले हैं और सरकार पहले ही पिछले छह महीनों में इन्हें तीन से ज्यादा बार स्थगित कर चुकी है।
इस सब में एक सकारात्मक संकेत अविश्वास मत प्रस्ताव विफल होने के बाद के दिनों में पीपीएम सांसद साउद हुसैन का यासीन गुट छोड़कर गय्यूम गुट में शामिल हो जाना है। वह उन नेशनल काउंसिल सदस्यों में से एक हैं, जिन्होंने कुछ दिन पहले ही गय्यूम को हटाने के पक्ष में वोट दिया था। विपक्ष का दावा है कि ऐसा कदम और सदस्य भी उठा सकते हैं, खासतौर पर तब, जब संसद में किसी भी महत्वपूर्ण मामले पर मतदान होने पर इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग बहाल हो जाए।
आजाद हैं या नहीं
विपक्ष के अनुसार, उनके नेताओं को प्रताड़ित करने का सिलसिला लगातार जारी है। चार गठबंधन सहयोगियों के नेताओं में से जेपी के गासिम इब्राहिम उन दो नेताओं में से हैं, जो मालदीव में रह रहे हैं और ‘आजाद’ हैं , जबकि एपी के शेख इमरान जेल में हैं। उनके चार दलीय गठबंधन में शामिल होने के फौरन बाद, अदालतों और राजस्व अधिकारियों ने गासिम के विला ग्रुप आफ कम्पनीज के लम्बित मामलों में उनके खिलाफ फैसले सुनाने शुरू कर दिए।
अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के बाद से गासिम पर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान क्रॉस-वोटिंग के लिए रिश्वत की पेशकश करने के आरोप लग रहे हैं। न्यायालय के एक आदेश पर महीने भर के लिए उनकी विदेश यात्रा पर भी प्रतिबंध लग गया है और उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया गया है। इस बीच, एक वीडियो रिकॉर्डिंग के ‘वॉयस वैरिफिकेशन’ के लिए उन्हें दो बार पुलिस मुख्यालय तलब भी किया गया है।
गासिम के एक वरिष्ठ राजनीतिक सहयोगी, सांसद अब्दुल्ला रियाज को भी झूठी अफवाहें फैलाने के आरोप में शिकंजे में लिया गया है। रियाज पार्टी के उपाध्यक्ष और मालदीव पुलिस के पूर्व आयुक्त रह चुके हैं, जो सर्विस में शीर्षतम रैंक है। वे सेवानिवृत्त होने के पश्चात जेपी में शामिल हुए और उन्हें फौरन उपाध्यक्ष बना दिया गया।
लोकतंत्र बनाम विकास?
ऐसे माहौल में जब कड़ी कार्रवाई बड़े पैमाने पर की जा रही है’ ऐसा लगता है कि विपक्ष के पास राष्ट्रपति चुनावों में यामीन को घेरने के लिए कोई प्लान-बी या सी तैयार नहीं है। उनकी मौजूदा एकता पर भी काफी दबाव है, यदि सभी नेताओं को चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी जाए, तो वे पहले ही चरण में एक-दूसरे को चुनौती देते दिखेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें 2013 के चुनावों के दौरान एमडीपी द्वारा अपनाए गए रुख से विपरीत जेनरेशन एक्स यानी 20 से 30 आयु वर्ग के मतदाताओं के मूड का ज्यादा बारीकी से अध्ययन करने की जरूरत है। नशीद आधिकारिक तौर पर 2013 के चुनाव हार गए थे। उस समय, नशीद गुट ने 2008 के चुनावों में अपना भरपूर समर्थन करने वाले युवा मतदाताओं को बहुत हल्के में लिया था। नशीद, राष्ट्रीय राजधानी माले से जेपी के गासिम से भारी मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
विशेषकर, वे बहुसंख्य मतदाताओं (युवाओं) को यह हरगिज नहीं दिखा सकते कि वे लोकतंत्र की आड़ में अपनी निजी और व्यक्तित्व की लड़ाइयां लड़ रहे हैं। उनमें से कुछेक के लिए तो पहले से डूबने का खतरा झेल रहे उनके गरीब, बिखरे हुए और हताश देश में राष्ट्रपति यामीन अभूतपूर्व विकास, नौकरियां और काफी दौलत लाने वाले हैं।
विपक्ष, चाहे एकजुट हो या बंटा हुआ, इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकता कि 2008 का परिदृश्य में लौट रहा है, जब ‘लोकतंत्र बनाम विकास’ की जंग में लोकतंत्र की विजय हुई थी। लोकतंत्र के प्रति कर्तव्य निभाने के बाद, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या 10 साल बाद उन्हीं मतदाताओं और उनकी भावी पीढ़ियों में लोकतंत्र के लिए वही इच्छा है या वे उससे कहीं ज्यादा महत्व विकास, नौकरियां और परिवार की आमदनी को देते हैं।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.