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9 अगस्त 2024 को भारत सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) 2.0 को मंजूरी दी. इस योजना का लक्ष्य अगले पांच साल में शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए एक करोड़ घर उपलब्ध कराना है. “इन-सीटू” स्लम रिहैबिलिटेशन (आईएसएसआर) प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 1.0 में एक स्वतंत्र योजना घटक था. “इन-सीटू” का अर्थ होता है मूल जगह. यानी जिस जगह झुग्गियां थी, उसी जगह घर देने की योजना है. इसे भूमि को संसाधन के रूप में इस्तेमाल करके और निजी निवेश को आकर्षित करके झुग्गीवासियों को किफायती आवास प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. पीएमएवाई-यू 2.0 में सरकार ने आईएसएसआर को लाभार्थी नेतृत्व निर्माण (बीएलसी) और भागीदारी में किफायती आवास घटकों के अंतर्गत शामिल किया है. चूंकि सरकार ने अब इसे लेकर एक नया नीतिगत दृष्टिकोण अपनाया है, इसे ध्यान में रखते हुए आईएसएसआर के प्रदर्शन और योजना के कार्यान्वयन की सीमाओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों का विश्लेषण करना उचित है.
पीएमएवाई-यू 1.0 के तहत आईएसएसआर का मूल उद्देश्य निजी निवेश को आकर्षित करके झुग्गीवासियों को किफायती आवास उपलब्ध कराना था.
पीएमएवाई-यू 1.0 के तहत आईएसएसआर का मूल उद्देश्य निजी निवेश को आकर्षित करके झुग्गीवासियों को किफायती आवास उपलब्ध कराना था. भारत में 60 प्रतिशत झुग्गी बस्तियां सरकारी ज़मीन पर बनी हैं, इसलिए इस योजना का मक़सद इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को स्थानांतरित करने के बजाय मौजूदा झुग्गी स्थलों पर बुनियादी ढांचे का विकास करना था. पुनर्विकास का काम करने वाली निजी कंपनियां बाकी बची हुई ज़मीन का इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं. इसके अलावा, सरकार ने निजी संस्थाओं को प्रति यूनिट औसतन 1 लाख रुपये की सहायता देने का आश्वासन दिया. बदले में, झुग्गीवासियों को मुफ्त आवासीय ईकाइयां प्रदान की गईं. कागज़ पर देखने में लगता है कि इस योजना से दोनों पक्षों को फायदा होगा. पुनर्विकास करने वाली संस्थाओं को भी और झुग्गी की बजाए घर हासिल करने वाले को भी. लेकिन हकीक़त में इस योजना का प्रदर्शन एक अलग ही वास्तविकता को दिखाता है.
तालिका 1: आईएसएसआर का प्रदर्शन
स्वीकृत मकान |
भूतल |
निर्माण पूर्ण |
रिहाइश |
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
2.95 लाख |
2.26 लाख |
77% |
1.63 लाख |
55% |
1.10 लाख |
37% |
स्रोत: सूचना और प्रसारण मंत्रालय
पीएमएवाई-यू के आंकड़ों के अनुसार, आईएसएसआर वर्टिकल के लिए सबसे कम संख्या में घरों को मंजूरी दी गई. वर्टिकल यानी बहुमंजिला या हाईराइज बिल्डिंग. केंद्र सरकार ने वर्टिकल के तहत 2.95 लाख घरों को मंजूरी दी. चौंका देने वाली बात ये है कि इस योजना के तहत जो घर निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं, उनमें 63 प्रतिशत खाली पड़े हैं. इससे ये स्पष्ट होता है कि योजना का प्रदर्शन खराब है. हालांकि, ये आंकड़ा योजना की प्रगति का समग्र दृष्टिकोण नहीं दिखाता. 2.95 लाख की ये संख्या स्वीकृत घरों के संशोधित आंकड़ों के अनुसार है. अगर हम 2022 के आईएसएसआर-स्वीकृत आंकड़ों का करीबी अध्ययन करें तो वास्तविकता और भी चिंताजनक है.
तालिका 2: आईएसएसआर का संशोधित लक्ष्य
योजना की शुरुआत में मांग |
2022 में स्वीकृत मकान |
2024 में स्वीकृत मकान |
अंतर |
---|---|---|---|
14.35 लाख |
4.33 लाख |
2.95 लाख |
-1.38 लाख |
स्रोत: आवास और शहरी मामलों की स्टैंडिंग कमेटी
डेटा से पता चलता है कि कई ऐसी परियोजनाओं को ड्रॉप यानी छोड़ दिया गया है, जिन्हें पहले मंजूरी दी गई थी. इसके अलावा, अगर कब्जे वाले घरों की संख्या की तुलना शुरू में स्वीकृत आवासों से की जाए, तो ये स्पष्ट होता है कि आईएसएसआर योजना वाले सिर्फ 8 प्रतिशत घरों में ही लोग रहते हैं. आसान शब्दों में समझाएं तो देश भर में आईएसएसआर वाली बहुत कम परियोजनाएं ही सफल रही हैं.
अब सरकार ने इस योजना को अपने में समाहित कर लिया है. सरकार के इस फैसले के पीछे की सबसे बड़ी वजह ज़मीनी स्तर पर इस योजना की धीमी प्रगति हो सकती है.
अब सरकार ने इस योजना को अपने में समाहित कर लिया है. सरकार के इस फैसले के पीछे की सबसे बड़ी वजह ज़मीनी स्तर पर इस योजना की धीमी प्रगति हो सकती है. हालांकि, नीतिगत खामियों को समझने और योजना की धीमी प्रगति के लिए जिम्मेदार दूसरे कारकों के बारे में जानना भी ज़रूरी है.
आईएसएसआर परियोजना के तहत आने के लिए किसी झुग्गी बस्ती का टिकाऊ, रहने योग्य और व्यावहारिक होना ज़रूरी है. आईएसएसआर में दी गई परिभाषा के मुताबिक एक झुग्गी बस्ती को उसी स्थान पर तभी नियमित किया जा सकता है, जब वो जगह मानव निवास के लिए उपयुक्त होती है.
आईएसएसआर के क्रियान्वयन में कई अन्य कारक भी बाधा डालते हैं. डेटा का ना होना धीमी प्रगति का एक बड़ा कारण है. इसके अलावा शहरी स्थानीय निकायों द्वारा झुग्गी बस्तियों की पहचान ना करना, रहने की स्थिति और व्यवहार्यता के कारक और भूमि अधिकारों का ना होने जैसे कारण आईएसएसआर के कार्यान्वयन के रास्ते में आने वाली महत्वपूर्ण बाधाएं हैं. इन सब कारकों की वजह से आईएसएसआर के तहत लाई जा सकने वाली झुग्गी बस्तियों की संख्या बहुत कम हो जाती है. (तालिका 3 देखें).
तालिका 3: केंद्र शासित प्रदेशों में आईएसएसआर का प्रदर्शन
केंद्रशासित प्रदेश |
स्वीकृत मकान |
भूतल के मकान |
निर्माण पूरा |
रिहायशी घर |
---|---|---|---|---|
दिल्ली |
0 |
0 |
0 |
0 |
चंडीगढ़ |
0 |
0 |
0 |
0 |
स्रोत: सूचना और प्रसारण मंत्रालय
उपरोक्त आंकड़ों से ये स्पष्ट पता चलता है कि दिल्ली या चंडीगढ़ में कोई आईएसएसआर परियोजना स्वीकृत नहीं की गई है, ना ही ऐसी किसी योजना पर काम चल रहा है. 2011 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली में 1.785 मिलियन और चंडीगढ़ में 95,000 लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं. झुग्गी बस्तियों को इस योजना के तहत लाने की जो शर्तें हैं, वो बहुत बड़ी बाधा बन रही है. इससे जिससे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के साथ अन्याय हो रहा है.
झुग्गी बस्तियों की श्रेणी |
सिफारिशें |
---|---|
रहने योग्य और स्थायी झुग्गी बस्तियां |
मौजूदा आईएसएसआर मॉडल |
रहने योग्य और अव्यवहार्य झुग्गियां |
ओडिशा का जागा मिशन मॉडल |
ना रहने योग्य व्यवहार्य झुग्गियां |
विकसित करना आर्थिक समझदारी नहीं |
ना रहने योग्य और अव्यवहार्य झुग्गियां |
दूसरी जगह बसाया जाए |
इस मॉडल को रहने योग्य और अव्यवहार्य झुग्गियों, दोनों के लिए अपनाया जा सकता है क्योंकि ये झुग्गी बस्तियों की आबादी को एक स्थायी और समावेशी अवसर प्रदान करता है.
सभी को आवास उपलब्ध कराने के लक्ष्य को पूरा करने से पहले झुग्गियों के अस्तित्व को स्वीकार करना ज़रूरी है. सरकार को पूरे देश में झुग्गी बस्तियों की गणना सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए, साथ ही इसे लागू करने के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है. केंद्र सरकार इसे लेकर राज्य सरकारों की नीतियों से अपनी योजना तैयार कर सकती है. पंजाब झुग्गी-झोपड़ी निवासी (स्वामित्व अधिकार) अधिनियम 2020 पूरे भारत में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को स्वामित्व अधिकार प्रदान करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है. इसके अलावा, ओडिशा का जागा मिशन झुग्गी पुनर्विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण मुहैया कराता है. ये भूमि अधिकारों से आगे की बात करता है और झुग्गी बस्तियों के भौतिक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त निवेश का वादा करता है. इस मॉडल को रहने योग्य और अव्यवहार्य झुग्गियों, दोनों के लिए अपनाया जा सकता है क्योंकि ये झुग्गी बस्तियों की आबादी को एक स्थायी और समावेशी अवसर प्रदान करता है. अलग-अलग जगहों की झुग्गी बस्तियों की ज़रूरतों के आधार पर सरकार को उसी हिसाब से विभिन्न नीतियां बनानी चाहिए. आईएसएसआर मॉडल सभी के लिए एक जैसा समाधान सुझाता है, इसलिए इसके परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए.
अक्षय जोशी अशोका यूनिवर्सिटी में चीफ मिनिस्टर्स गुड गवर्नेंस एसोसिएट प्रोग्राम में डिप्टी मैनेजर हैं.
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