लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार पेनी वोंग, पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री बन ही गईं. पेनी वोंग, ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी की कद्दावर नेता हैं. उनके पास 20 साल का संसदीय तजुर्बा है और वो पिछले चार साल से विदेश नीति के मामले में ऑस्ट्रेलिया के विपक्षी दल की प्रवक्ता के तौर पर काम करती रही हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी वो कोई अजनबी नहीं हैं. पेनी वोंग और नव निर्वाचित प्रधानमंत्री चुने गए एंथनी अल्बानीज़ को गवर्नर जनरल द्वारा शपथ दिलाने के 24 घंटे के भीतर, दोनों ही नेता टोक्यो जाने के लिए विमान में सवार हो गए, ताकि वो क्वॉड शिखर सम्मेलन में शामिल हो सकें. आख़िरकार वोंग को अपने किरदार के मुताबिक़ ओहदा मिल गया था.
ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में बदलाव संभावना
ऑस्ट्रेलिया में पिछले महीने हुए चुनावों में क्रांतिकारी तरीक़े से बिल्कुल अलग तरह की और विविधता भरी संसद उभरी है, जो दोनों ही मुख्य दलों के पिछले शासनकाल से बिल्कुल अलग है. जहां लेबर पार्टी को बस इतनी सीटें मिलीं कि वो बहुमत की सरकार बना ले. वहीं, जलवायु परिवर्तन को मुख्य मुद्दा बनाने वाले स्वतंत्र ‘टील’ उम्मीदवारों और अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया की ग्रीन पार्टी के सदस्यों ने उन सीटों पर जीत हासिल कर ली, जो देश के प्रमुख दलों के लिए सुरक्षित मानी जाती थीं. इसमें ऑस्ट्रेलिया के पूर्व वित्त मंत्री जॉश फ्राइडेनबर्ग की सीट भी शामिल है. आज जब ऑस्ट्रेलिया की संसद में इतनी विविधता है और चूंकि लेबर पार्टी पिछले एक दशक से सत्ता में नहीं रही है, ऐसे में इस बात को लेकर तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं कि ऑस्ट्रेलिया की नई वामपंथी झुकाव वाली सरकार की अगुवाई में उसकी विदेश नीति में किस तरह का बदलाव आ सकता है.
पेनी वोंग और नव निर्वाचित प्रधानमंत्री चुने गए एंथनी अल्बानीज़ को गवर्नर जनरल द्वारा शपथ दिलाने के 24 घंटे के भीतर, दोनों ही नेता टोक्यो जाने के लिए विमान में सवार हो गए, ताकि वो क्वॉड शिखर सम्मेलन में शामिल हो सकें.
ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति के बारे में जो सबसे पहली बात हमें समझनी चाहिए वो ये है कि विदेश नीति के मामले में सभी दलों के विचार एक हैं. ये बात उस वक़्त और स्पष्ट हुई थी, जब चुनाव के दौरान पेनी वोंग और पूर्व विदेश मंत्री मरीस पेन के बीच बहस हुई थी. दोनों राजनीतिक विरोधियों ने बड़ी शांति से देश की क्षमता, बजट और नेतृत्व को लेकर परिचर्चा की थी. उन्होंने चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया के रिश्तों की दशा दिशा जैसे मुश्किल मुद्दों पर भी चर्चा की, जिन्हें ऑस्ट्रेलिया सहज भाव से निभाने में सफल रहा है. ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति राजनीति से परे रही है, ये बात देश के लिए तो अच्छी है है. इसके अलावा हिंद प्रशांत के साझीदारों और अन्य देशों के लिए भी ये राहत की बात है. आप ये कह सकते हैं कि ए ऑस्ट्रेलिया के संसदीय लोकतंत्र की एक ताक़त है.
भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध और भी मज़बूत होंगे
इस लिहाज़ से देखें, तो भारी–भरकम मुद्दों पर ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है. अटकलें लगाने वाले वो पत्रकार जो ये सोच रहे हैं कि चीन के मोर्चे पर कुछ बदलाव आएगा– तो उन्हें इस पर संतोष करना होगा कि इस मामले में ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति पहले जैसी ही रहने वाली है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन द्वारा आक्रामक रूप से अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर ऑस्ट्रेलिया अपनी चिंता पहले की तरह ही व्यक्त करता रहेगा. हमें दक्षिणी चीन सागर के सैन्यीकरण, सोलोमन द्वीप समूह के साथ चीन के सुरक्षा समझौते और साइबर सुरक्षा व तकनीक के मामले में भी ऑस्ट्रेलिया की आवाज़ सुनने को मिलती रहेगी. हम ये उम्मीद भी कर सकते हैं कि भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध और भी मज़बूत होंगे, ख़ास तौर से व्यापार के मामले में. इसके अलावा क्वॉड और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी भारत और ऑस्ट्रेलिया में सहयोग बढ़ने की संभावना है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ये भी देखने को मिलेगा कि ऑस्ट्रेलिया अपने इकलौते संधि वाले सहयोगी अमेरिका के साथ रिश्ते मज़बूत करने पर ध्यान देगा.
ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति के बारे में जो सबसे पहली बात हमें समझनी चाहिए वो ये है कि विदेश नीति के मामले में सभी दलों के विचार एक हैं.
इन सभी बातों के अलावा, हम ये उम्मीद भी कर सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया अपनी विदेश नीति और कूटनीति की भूमिका को किस तरह देखता है. ये समझने के लिए हम एंथनी अल्बानीज़ की नई सरकार की तुलना न्यूज़ीलैंड से कर सकते हैं. न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डर्न, बाक़ी दुनिया के साथ अपनी अनूठी तरक़्क़ीपसंद राजनीति को ननाइया महूता के ज़रिए चलाती हैं. ननाइया महूता, न्यूज़ीलैंड की पहली महिला और आदिवासी विदेश मंत्री हैं. मुद्दों की बात करें, तो जैसिंडा आर्डर्न की नज़र में जलवायु परिवर्तन हिंद प्रशांत क्षेत्र का सबसे अहम मुद्दा है और ये उनके घरेलू राजनीतिक एजेंडे का भी आईना है. बड़ी ताक़तों के साथ जैसिंडा आर्डर्न की कूटनीति को भी बारीक़ी से समझने की ज़रूरत है– जैसिंडा आर्डर्न अमेरिका समर्थक हैं, लेकिन वो चीन के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हम अल्बानीज़ सरकार से ऑर्डन जैसी विदेश नीति की अपेक्षा कर सकते हैं.
ऑस्ट्रेलिया की फर्स्ट नेशन विदेश नीति
पहली बात तो ये कि अल्बानीज़ ने मलेशिया में पैदा हुई पेनी वोंग को विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी है– उचित भी है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के 50 प्रतिशत नागरिकों के मां–बाप में से कोई एक ज़रूर विदेश में पैदा हुआ है. ऑस्ट्रेलिया फर्स्ट नेशन विदेश नीति को भी लागू करेगा- जो पेनी वोंग की लगातार चली आ रही दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता वाली सोच अनुकूल है. फर्स्ट नेशन विदेश नीति का मतलब, विदेश नीति में ऑस्ट्रेलिया के आदिम निवासियों को भी शामिल करना है. अपने आदिम निवासियों के लिए ऑस्ट्रेलिया एक राजदूत नियुक्त करेगा, जिनके ज़रिए लोग उनके रीति रिवाज, उनकी बातों और परंपराओं को देखेगा और दुनिया के साथ ऑस्ट्रेलिया के संवाद में भी उनकी हिस्सेदारी होगी. इस शुरुआत के ज़रिए ऑस्ट्रेलिया न सिर्फ़ अपनी बहुलता भरी संस्कृति का जश्न मनाएगा, बल्कि वो इसे अपनी विदेश नीति के केंद्र में और सबसे आगे रखेगा. ऐसा होने पर दुनिया में बहुत से लोग, ऑस्ट्रेलिया को एक नए नज़रिए से देख सकेंगे. वो एक ऐसा ऑस्ट्रेलिया होगा, जो अब सिर्फ़ अपनी अंग्रेज़ साम्राज्यवादी तारीख़ पर ही गर्व नहीं करता.
हम ये उम्मीद भी कर सकते हैं कि भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध और भी मज़बूत होंगे, ख़ास तौर से व्यापार के मामले में. इसके अलावा क्वॉड और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी भारत और ऑस्ट्रेलिया में सहयोग बढ़ने की संभावना है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ये भी देखने को मिलेगा कि ऑस्ट्रेलिया अपने इकलौते संधि वाले सहयोगी अमेरिका के साथ रिश्ते मज़बूत करने पर ध्यान देगा.
दूसरा, वोंग के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन का ख़तरा भी ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति का हिस्सा बनेगा. हम इसकी झलक क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान देख चुके हैं, जहां पर ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने जलवायु परिवर्तन को हिंद प्रशांत क्षेत्र के सामने खड़ा सबसे बड़ा ख़तरा बताया था. हम ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन को सुरक्षा के ख़तरे के तौर पर पेश करने को प्रधानमंत्री मोदी ने भी सराहा होगा. ख़ास तौर से तब और जब पिछले कुछ महीनों के दौरान भारत में मौसम ने अपना रौद्र रूप दिखाया है.
ऑस्ट्रेलिया फर्स्ट नेशन विदेश नीति को भी लागू करेगा- जो पेनी वोंग की लगातार चली आ रही दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता वाली सोच अनुकूल है. फर्स्ट नेशन विदेश नीति का मतलब, विदेश नीति में ऑस्ट्रेलिया के आदिम निवासियों को भी शामिल करना है.
तीसरा, कूटनीति को लेकर भी ऑस्ट्रेलिया का नज़रिया भी बदलेगा. टोक्यो रवाना होने से पहले पेनी वोंग ने प्रशांत क्षेत्र के द्वीपों के लिए एक वीडियो संदेश जारी किया था. इसमें वोंग ने ऑस्ट्रेलिया को ‘प्रशांत क्षेत्र के परिवार’ का हिस्सा बताया था और कहा था कि, ‘ऑस्ट्रेलिया सबकी बातें सुनेगा क्योंकि हमें ये जानने में दिलचस्पी है कि प्रशांत क्षेत्र के द्वीप हमसे क्या कहना चाहते हैं’. हम दक्षिणी पूर्वी एशिया और बाक़ी दुनिया को लेकर भी ऑस्ट्रेलिया का यही दृष्टिकोण देख सकते हैं. पेनी वोंग पहले ही ये कह चुकी हैं कि उनकी सरकार दक्षिणी पूर्वी एशिया को ख़ास तवज्जो देगी. इससे ये पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया, इस क्षेत्र को बड़ी ताक़तों के बीच होड़ का हिस्सा मानने के बजाय अपने संबंधों का दायरा बनाने के मौक़े के रूप में देखेगा.
ऑस्ट्रेलिया की नई अल्बानीज़ सरकार के सत्ता में आने के बाद हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए आगे की राह काफ़ी दिलचस्प होने की उम्मीद है. तमाम मुद्दों पर ऑस्ट्रेलिया की बुनियादी नीति में तो कोई बदलाव नहीं आएगा. लेकिन हमें इस क्षेत्र से संवाद के ऑस्ट्रेलिया के तौर–तरीक़ों में बदलाव निश्चित रूप से देखने को मिलेगा. हिंद प्रशांत क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया के साझीदार इस बात को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं कि भले ही आपकी राजनीति कैसी भी हो, लेकिन वोंग के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति मज़बूत हाथों में है.
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