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महामारी संधि के मसौदे पर भले सहमति बन गई है, लेकिन आर्थिक उपायों पर अस्पष्टता, आधी-अधूरी ज़िम्मेदारी और लाभ बांटने संबंधी शर्तों पर टालमटोल बताते हैं कि महत्वपूर्ण बातचीत अभी होनी बाकी है.
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भविष्य की महामारियों और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था का मसौदा तैयार करने और आपस में सहमति बनाने के मक़सद से बनाए गए अंतर-सरकारी वार्ता निकाय (INB) की महामारी संधि पर बातचीत 16 अप्रैल, 2025 को पूरी हो गई. इस संधि में महामारी से जुड़े सभी तीन पहलुओं- रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया, को शामिल किया गया है. दरअसल, यूरोपीय संघ (EU) ने नवंबर 2020 में पेरिस शांति मंच (एक फ़्रांसीसी गैर-लाभकारी संगठन, जो वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए बैठकें करता है) की बैठक में महामारी पर कानूनी बाध्यता वाले अंतरराष्ट्रीय समझौते का विचार पेश किया था. इसके बाद मार्च 2021 में विश्व के 25 वैश्विक नेताओं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने मिलकर एक संयुक्त पत्र जारी किया. फिर, इस समझौते की ज़रूरत पर सहमति जताने वाले देशों ने ‘फ्रेंड्स ऑफ द ट्रीटी’ (समझौता के मित्रों) के नाम से एक समूह बनाया, ताकि महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया (WGPR) पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्य-समूह के भीतर महामारी संधि पर सहमति बनाने के लिए ज़ोर दिया जा सके. इसके बाद ही दिसंबर 2021 में विश्व स्वास्थ्य महासभा के विशेष सत्र में महामारी संधि का मसौदा तैयार करने और बातचीत करने के लिए INB का गठन किया गया.
इस समझौते की ज़रूरत पर सहमति जताने वाले देशों ने ‘फ्रेंड्स ऑफ द ट्रीटी’ (समझौता के मित्रों) के नाम से एक समूह बनाया, ताकि महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया (WGPR) पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्य-समूह के भीतर महामारी संधि पर सहमति बनाने के लिए ज़ोर दिया जा सके.
अंतर-सरकारी वार्ता निकाय (SSA2-5) की प्रस्तावना में महामारी संधि की ज़रूरत के बारे में जो बताया गया है, वे हैं-
1- स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया में अंतर को दूर करना.
2- टीके, चिकित्सा और जांच-परीक्षण जैसे इलाज के उपायों का विकास और बंटवारा, और उन तक बिना किसी रोक-टोक के, समय पर और न्यायसंगत पहुंच.
3- वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज पाने के लिए स्वास्थ्य तंत्रों को मजबूत बनाना और उन्हें नियमों को आसान बनाना.
4- सरकार व समाज के साझा नज़रिये के अनुसार तैयारी करना और उचित प्रतिक्रिया देना. और,
5- समानता की ज़रूरत को प्राथमिकता देना
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों ने अमेरिका द्वारा इस संगठन से बाहर निकलने की घोषणा और वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों की अगुवाई करने में उसकी उदासीनता के बावजूद महामारी संधि के मसौदे पर सहमति बनाई है. हालांकि, इसमें समानता पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है, पर इसे पाने के उपाय साफ़ नहीं हैं. इसी तरह, सदस्य देशों ने ज़िम्मेदारी निभाने के लिए ‘राष्ट्रीय परिस्थितियों’ (हर देश की ख़ास स्थिति, जैसे- उनके संसाधन, बुनियादी ढांचा, प्राथमिकताएं आदि तय करेंगी कि वह समझौते के नियमों को कैसे लागू करेगा) के महत्व पर ज़रूर ज़ोर दिया, पर इसे लेकर भी बहुत स्पष्टता नहीं दिखती कि इसे कैसे मापा या लागू किया जाएगा. यहां इस लेख में यही बताया गया है कि यह अंतिम मसौदा महामारी संधि के उद्देश्यों से कितना दूर है.
जैसा कि पहले से तय था, इस बातचीत में उत्तर और दक्षिण का विभाजन साफ़-साफ़ दिखा. उत्तर के देश निगरानी पर अधिक ज़ोर दे रहे थे, और डाटा साझा करने को ज़रूरी बता रहे थे. हालांकि, उन्होंने इसे महामारी की रोकथाम के लिए अनिवार्य माना, लेकिन यह अगली महामारियों की भविष्यवाणी के लिए भी उपयोगी हो सकता है. ‘ग्लोबल साउथ’ (वैश्विक दक्षिण) के देशों का ज़ोर महामारी के दौरान अनुभव की गई असमानताओं को दूर करने पर था, और उन्होंने महामारी की रोकथाम और प्रतिक्रिया के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य उत्पादों तक पहुंच बनाने के लिए कानूनी गारंटी की बात कही. इसके अलावा, दक्षिण के देशों ने महामारी संधि को लागू करने के लिए आर्थिक और तकनीकी मदद की भी मांग की, ख़ास तौर से महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया (PPPR) के लिए ज़रूरी क्षमताओं को बनाने और उनके प्रबंधन के लिए, जिस पर उत्तर के देश कोई कानूनी बाध्यता तय करने के लिए तैयार नहीं हुए.
इस कारण, अनुच्छेद 12 को छोड़कर महामारी संधि के सभी मूल प्रावधानों को शर्तों या भाषाई कौशल के साथ तैयार किया गया है और इसलिए PPPR को लेकर अभी जो स्थिति है, उसमें कोई ख़ास बदलाव आने की उम्मीद नहीं दिखती.
इस कारण, अनुच्छेद 12 को छोड़कर महामारी संधि के सभी मूल प्रावधानों को शर्तों या भाषाई कौशल के साथ तैयार किया गया है और इसलिए PPPR को लेकर अभी जो स्थिति है, उसमें कोई ख़ास बदलाव आने की उम्मीद नहीं दिखती. हां, जो कुछ प्रावधान कार्रवाई को लेकर कानूनी गारंटी देते हैं, उनको अनुच्छेद 12 में शामिल किया गया है. इसके तहत ‘रोगजनक तक पहुंच और लाभ साझाकरण’ (PABS) का एक तंत्र बनाया गया है, जो जैविक सामग्री, डाटा और उनसे होने वाला लाभों का समय पर बंटवारा सुनिश्चित करता है. हालांकि, अनुच्छेद 12 के तहत PABS तंत्र किस तरह अपना काम करेगा, इसके बारे में भी अगली बैठकों में बात की जाएगी.
रोकथाम और निगरानी पर अनुच्छेद 4.2 महामारी की रोकथाम और संयुक्त बहु-क्षेत्रीय निगरानी को लेकर सदस्य देशों की ज़िम्मेदारियों के बारे में बताता है, पर इसको लेकर भी इसमें कई शर्तें हैं. इसके तहत, अनुच्छेद 4.2 का लागू होना जिन कारकों पर निर्भर करता है, वे हैं- ‘अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखना’, ‘उपलब्ध संसाधनों के अनुसार काम करना’ और ‘अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को देखकर फ़ैसले लेना’. चूंकि विकसित देशों की तरफ़ से विकासशील देशों को संसाधन दिए जाने की कोई तय व्यवस्था नहीं बन सकी, इसलिए यह अनुच्छेद शायद ही समान रूप से लागू हो सकेगा.
इसी तरह, अनुच्छेद 5 (‘एक स्वास्थ्य’) भी ‘जैसा उपयुक्त हो’ जैसे शब्दों के साथ लिखा गया है, जो बताता है कि राष्ट्रीय परिस्थितियों और संसाधनों की उपलब्धता को देखकर ही इसे लागू किया जा सकेगा.
संधि के अनुच्छेद 9, 10, 11 और 13 अनुसंधान और विकास (R&D), भौगोलिक रूप से अलग-अलग उत्पादन, ख़रीद, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, आपूर्ति शृंखला और वितरण से संबंधित हैं. मगर इनमें से कोई भी अनुच्छेद महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए शोध-विकास के नतीजों, प्रौद्योगिकी या ज़रूरी स्वास्थ्य उत्पादों तक उम्मीद के मुताबिक पहुंच तय नहीं करता है.
अनुच्छेद 12 के तहत एकमात्र व्यवस्था, जो इसकी गारंटी देती है, वह है PABS तंत्र. इसका उद्देश्य महामारी फैलाने की क्षमता रखने वाले रोगाणुओं के बारे में जल्द से जल्द जानकारी साझा करना और इससे होने वाले फ़ायदे को भी सब में बांटना है. हालांकि, आगे की बातचीत में इसके प्रावधानों को और स्पष्ट करने की ज़रूरत है, फिर भी उम्मीद है कि 2026 में होने वाली 79वीं विश्व स्वास्थ्य महासभा से पहले इस पर सहमति बन जाएगी. इसके अलावा, अनुच्छेद 12 के पैराग्राफ 6 में पहले से ही यह तय किया गया है कि महामारी के समय सदस्य देशों के निर्माता जितना उत्पादन कर रहे होंगे, उसका 20 प्रतिशत हिस्सा विश्व स्वास्थ्य संगठन को देंगे. इनमें से भी 10 प्रतिशत दान के रूप में दिया जाएगा और शेष बहुत मामूली क़ीमत पर विश्व स्वास्थ्य संगठन को उपलब्ध कराए जाएंगे. हालांकि, निर्माताओं को यह तय करने का अधिकार होगा कि निर्माण की प्रकृति और क्षमता के आधार पर सस्ती क़ीमत पर कितना प्रतिशत उत्पाद WHO को दिया जाए.
अनुच्छेद 12 के पैराग्राफ 7 में कहा गया है कि निर्माताओं को अपना लाभ भी बांटना होगा, जिसमें ‘अंतरराष्ट्रीय चिंता के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की वज़ह बनने वाले रोगाणुओं के लिए सुरक्षित, गुणवत्ता वाले और प्रभावी टीकों, उपचारों और जांच-परीक्षण के इस्तेमाल का विकल्प भी शामिल हैं’. मगर ‘अंतरराष्ट्रीय चिंता के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (PHEIC) के दौरान WHO को कितना निर्माण दान या सस्ती क़ीमत पर दिया जाएगा, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है. जबकि, आम महामारी की तुलना में PHEIC के मामले कहीं अधिक होते हैं. पैराग्राफ 8 भी PHEIC की घोषणा से पहले स्वास्थ्य उत्पादों तक पहुंच के लिए इसी तरह के विकल्प देता है, ताकि महामारी को अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बनने से पहले रोका जा सके. हालांकि, उम्मीद के मुताबिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए इन प्रावधानों को लागू करने के तौर-तरीकों पर आगे बातचीत करनी होगी.
इन सबसे ऐसी स्थिति बन सकती है कि महामारी संधि के सदस्य देश महामारी की आशंका वाले रोगाणुओं को साझा करने के लिए मज़बूर होंगे. दूसरी ओर, स्वास्थ्य उत्पादों तक पहुंच केवल महामारी के दौरान ही होगी.
इन सबसे ऐसी स्थिति बन सकती है कि महामारी संधि के सदस्य देश महामारी की आशंका वाले रोगाणुओं को साझा करने के लिए मज़बूर होंगे. दूसरी ओर, स्वास्थ्य उत्पादों तक पहुंच केवल महामारी के दौरान ही होगी. इसके अलावा, PBAS प्रणाली पर बातचीत में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनानी होगी, जैसे- इसकी रूपरेखा, मानक सामग्री हस्तांतरण समझौता (SMTA), रोगाणुओं की डिजिटल अनुक्रम सूचना (DSI) की सुविधा के लिए डाटा एक्सेस समझौता, और ‘महामारी की संभावना वाले रोगाणु’, ‘सहभागी बनने वाले निर्माता’ जैसे शब्दों पर स्पषटता. PBAS प्रणाली को अपनाने के बाद ही महामारी संधि को हस्ताक्षर के लिए आगे बढ़ाया जाएगा. मगर महामारी की आशंका वाले रोगाणुओं को परिभाषित करने से उन रोगाणुओं के बारे में भी आंकड़े साझा करने पड़ सकते हैं, जो जैव सुरक्षा के लिहाज़ से ख़तरा पैदा करते हैं, ख़ास तौर से जब साझा किए जाने वाले डेटा की सुरक्षा के लिए कोई उपाय किए बिना ऐसा किया जाता है.
महामारी संधि पर अभी जो सहमति बनी है, वह बातचीत का सिर्फ़ एक चरण है. अनुच्छेद 12 को छोड़कर, इस संधि के सभी प्रावधान महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए स्वास्थ्य उत्पादों तक उम्मीद के मुताबिक पहुंच सुनिश्चित नहीं करते हैं. PBAS तंत्र महामारी के दौरान स्वास्थ्य उत्पादों के एक निश्चित प्रतिशत को बांटने की प्रतिबद्धता को देखते हुए लाभ बांटने की बाध्यता बनाने का प्रस्ताव ज़रूर करता है. मगर, संधि पर तुरंत सहमति बनाने की ‘अनिवार्यता’ बताते हुए इसके महत्वपूर्ण प्रावधानों पर चर्चा को टाल दिया गया है. ज़ाहिर है, इस पर बातचीत का अगला चरण भारत सहित कई देशों के लिए समानता व जैव सुरक्षा के नज़रिये से महत्वपूर्ण साबित होगा.
(के एम गोपाकुमार थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क, नई दिल्ली में वरिष्ठ शोधकर्ता और कानूनी सलाहकार हैं.
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K. M Gopakumar is a Senior Researcher and Legal Advisor at Third World Network (TWN) and based in New Delhi, India. TWN is an independent, ...
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