हाल ही में शौकत तरीन को पाकिस्तान का वित्त मंत्री बनाया गया. इमरान ख़ान की अगुवाई वाली सरकार के वो चौथे वित्तमंत्री हैं. अपनी नियुक्ति के चंद दिनों पहले ही उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के संचालन के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने इसे दिशाहीन और कुप्रबंधन का शिकार बताया था. वित्तमंत्री के तौर पर उनकी नियुक्ति के कुछ ही हफ़्तों बाद पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में नाटकीय बदलाव हुआ. अर्थव्यवस्था ने 3.9 फ़ीसदी की बढ़त दर्ज की. इस बात पर कोई सवाल नहीं है कि अर्थव्यवस्था में कुछ हद तक सुधार के संकेत दिखे हैं. ग़ौरतलब है कि इमरान ख़ान के प्रधानमंत्री के तौर पर ‘चयनित’ किए जाने के बाद से ही अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क हो चुका था. हालांकि 4 प्रतिशत के करीब की विकास दर समझ से परे है. इसके पक्ष में एक दलील ये दी जा सकती है कि ये ‘निम्न-आधार के प्रभाव’ के चलते है. बहरहाल, विकास दर के ये आंकड़े अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़), विश्व बैंक और यहां तक कि स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के अनुमानों से मेल नहीं खाते हैं. यही वजह है कि इन आंकड़ों की ओर कई लोगों का ध्यान गया है. पाकिस्तान के पूर्व वित्तमंत्री और मशहूर अर्थशास्त्री हाफ़िज़ पाशा ने इन आंकड़ों पर अपना हिसाब लगाया है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था की सेहतमंद तस्वीर पेश करने के लिए पुराने ढर्रे के फ़र्जीवाड़े का सहारा लिया गया है. ऐसा करने के पीछे एक मकसद तो इमरान ख़ान की सरकार पर मौजूदा राजनीतिक दबाव को कम करना है. इतना ही नहीं आईएममएफ़ से हल्के शर्तों पर सौदेबाज़ी करने में भी इससे मदद मिलने की उम्मीद है.
इसी पृष्ठभूमि में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत किया गया. लाज़िमी तौर पर इस बजट में बहादुरी भरी कल्पनाओं और अनुमानों की भरमार है. इनमें से कुछ अनुमान तो वाकई में दुस्साहस से भरपूर हैं. अगले वित्त वर्ष की सालाना योजना में 4.8 प्रतिशत की वास्तविक विकास दर और 8 फ़ीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा गया है.
बहादुराना अनुमान
इसी पृष्ठभूमि में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत किया गया. लाज़िमी तौर पर इस बजट में बहादुरी भरी कल्पनाओं और अनुमानों की भरमार है. इनमें से कुछ अनुमान तो वाकई में दुस्साहस से भरपूर हैं. अगले वित्त वर्ष की सालाना योजना में 4.8 प्रतिशत की वास्तविक विकास दर और 8 फ़ीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा गया है. इमरान ख़ान की हुकूमत का ढिंढोरा पीटने वाले इस बजट की तारीफ़ के कशीदे पढ़ रहे हैं. ज़ाहिर है कि वो इस बजट को संतुलित,विकासपरक और ग़रीबों के हित में बताते हुए तारीफ़ों के पुल बांध रहे हैं. हालांकि इन लक्ष्यों की व्यवहार्यता को लेकर तरह-तरह के संदेह जताए जा रहे हैं. इसकी सीधी सी वजह ये है कि राजस्व से जुड़े आंकड़े पैंतरेबाज़ी से लबरेज हैं. ऐसे में पाकिस्तान के सालाना वित्तीय दस्तावेज़ में शामिल वित्त और राजस्व संबंधी आंकड़ों पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. पहले से ही पाकिस्तान की वित्त व्यवस्था को चौपट करने वाली ढांचागत समस्याओं का अंबार लगा है. वक़्त के साथ-साथ ये समस्याएं और गंभीर होती गई हैं. ऐसे में ये बात साफ़ है कि पाकिस्तान का ताज़ा बजट के कामयाब होने और वहां की अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की उम्मीदें बेहद कम हैं.
टैक्स के हवा-हवाई लक्ष्य
पाकिस्तान के 2021-22 के बजट में टैक्स के तौर पर 5.83 खरब पाकिस्तानी रूपए संग्रहित किए जाने का अनुमान लगाया गया है. पिछले वित्त वर्ष में अनुमानित कर संग्रह (4.69 खरब पाकिस्तानी रुपए) से ये 24 फ़ीसदी ज़्यादा है. वित्त मंत्री के मुताबिक अर्थव्यवस्था में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि और मुद्रास्फीति के करीब 8 फ़ीसदी रहने से टैक्स राजस्व में कुदरती तौर पर 13 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. उनके मुताबिक ऐसे में कर राजस्व 550 अरब रुपए का हो जाएगा. सवाल ये है कि बाक़ी का 11 प्रतिशत कर राजस्व कहां से आएगा. तरीन को भरोसा है कि वो करीब 500 अरब रु के अतिरिक्त राजस्व जुटाने में कामयाब रहेंगे. उनके हिसाब से ताज़े करों के ज़रिए 260 अरब रु जुटा लिए जाएंगे. इतना ही नहीं उनको लगता है कि वो प्रशासनिक सख्ती और कर राजस्व उगाही पर अमल से जुड़े मामलों में कड़ाई से अतिरिक्त 240 अरब पाकिस्तानी रुपयों का जुगाड़ कर लेंगे. वैसे टैक्स तंत्र से जुड़े कल-पुर्जों को सख्त किए जाने से जुड़ा वादा लगभग हर साल किया जाता है लेकिन कभी भी इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पाता. आम तौर पर पैंतरे और चालबाज़ियां दिखाने के लिए इस तरह के वादों का इस्तेमाल किया जाता है. इसी के ज़रिए वित्त-व्यवस्था में राजस्व संग्रह में दिखाई देने वाले अंतराल के पक्ष में दलीलें गढ़ी जाती हैं. उन्हें लच्छेदार तर्कों से दबाया और ढका जाता है. बहरहाल इस बार कुछ स्पष्ट योजनाएं सामने रखी गई हैं. इनमें तस्करी का सामान बेचने वाले खुदरा विक्रेताओं के लिए सज़ा का प्रावधान, प्वॉइंट ऑफ़ सेल्स मशीनों को बढ़ाने जैसे उपाय शामिल हैं. उम्मीद की जा रही है कि इन योजनाओं से राजस्व के लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी.
पेट्रोलियम से जुड़ी समस्या
समस्या ये है कि अगर कर राजस्व संग्रह के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में कामयाबी मिल भी जाती है तो भी पाकिस्तान की संघीय सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या जस की तस बरकरार रहेगी. राज्यों को हस्तांतरित किए जाने के बाद संघीय सरकार के पास उपलब्ध शुद्ध राजस्व 4.5 खरब पाकिस्तानी रुपए के बराबर ही रहेगा. इसमें ग़ैर-टैक्स राजस्व भी शामिल है. इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के 65 हज़ार करोड़ के मुनाफ़े के तौर पर आता है. इसके अलावा पेट्रोलियम लेवी के तौर पर 61 हज़ार करोड़ पाकिस्तान रुपए (पिछले वित्त वर्ष के 50 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए से ज़्यादा), गैस इंफ़्रास्ट्रक्चर विकास उपकर (जीआईडीसी) के रूप में 13 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए (मौजूदा वर्ष के मुक़ाबले करीब 10 गुणा ज़्यादा) भी इसमें शामिल हैं. पेट्रोलियम लेवी और जीआईडीसी के चलते गैस और पेट्रोलियम की कीमतों में भारी बढ़ोतरी होना तय है. अगर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 70 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल (बीबीएल) रहती है तो पेट्रोलियम की कीमतों में प्रति लीटर 25-30 पाकिस्तानी रुपए का इज़ाफ़ा किया जाना ज़रूरी हो जाएगा. इस मामले में भी वित्त मंत्री के कामयाब हो पाने की संभावना बहुत कम है. वो सऊदी अरब से ये आस लगाए हुए हैं कि वो तेल सुविधाओं के बदले भुगतान को टालने पर सहमत हो जाएगा. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान को कच्चे तेल के बदले भुगतान करने से फ़ौरी राहत मिल जाएगी. घरेलू क़ीमतों में बढ़ोतरी की संभावना पर भी विराम लग सकेगा. वो ये उम्मीद भी कर रहे हैं कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें नरम पड़ जाएंगी और उनपर लगे लेवी को मौजूदा मूल्य ढांचे के आधार पर तैयार किया जा सकेगा. बहरहाल अगर इनमें से दोनों नहीं होते हैं तो पेट्रोलियम की कीमतों को बढ़ाना पड़ेगा या फिर सरकार को कर राजस्व को भूलकर कीमतों को स्थिर रखने पर बाध्य होना पड़ेगा. ऐसा करने पर सरकार के ख़ज़ाने पर विपरीत असर पड़ेगा. अगर कीमतें बढ़ाई जाती हैं तो इसका न केवल महंगाई बढ़ाने वाला असर होगा बल्कि पाकिस्तान की पहले से खस्ताहाल ऊर्जा अर्थव्यवस्था पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ेगा. इससे पाकिस्तान की बिजली उत्पादन लागत बढ़ जाएगी. पाकिस्तान में करीब 60 प्रतिशत बिजली तेल, गैस और अन्य ताप स्रोतों से हासिल होती है. बिजली की ऊंची उत्पादन लागत के नतीजे के तौर पर या तो ऊर्जा की कीमतें ऊंची हो जाएंगी या फिर सरकार को इस मद में और ज़्यादा सब्सिडी देनी होगी. इनके बिना पाकिस्तान का परिपत्र ऋण बढ़ जाएगा. ये हालात आईएमएफ़ के लिए अस्वीकार्य हैं. पाकिस्तान का सब्सिडी बिल बढ़कर 68 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए के बराबर हो गया है. इसका सबसे बड़ा हिस्सा बिजली सब्सिडी के रूप में है. इसकी वजह ये है कि इमरान ख़ान की हुकूमत बेकाबू परिपत्र ऋण पर लगाम लगाने के लिए बिजली की दरें नहीं बढ़ाना चाहती है. ये ऋण 2.1 खरब पाकिस्तानी रुपए के बराबर हो गया है.
अगर कीमतें बढ़ाई जाती हैं तो इसका न केवल महंगाई बढ़ाने वाला असर होगा बल्कि पाकिस्तान की पहले से खस्ताहाल ऊर्जा अर्थव्यवस्था पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ेगा. इससे पाकिस्तान की बिजली उत्पादन लागत बढ़ जाएगी. पाकिस्तान में करीब 60 प्रतिशत बिजली तेल, गैस और अन्य ताप स्रोतों से हासिल होती है.
ऋण, रक्षा और खैराती मदद
मान लेते हैं कि पेट्रोलियम लेवी और जीआईडीसी योजना के मुताबिक रहते हैं. इतना ही नहीं, संघीय सरकार बजट में घोषित 4.5 खरब पाकिस्तानी रुपए का कुल शुद्ध राजस्व हासिल करने में कामयाब रहती है तो भी इससे समस्या का निदान नहीं हो सकेगा. पाकिस्तान का लगभग पूरा शुद्ध राजस्व ही ऋण की अदायगी और रक्षा खर्चों को पूरा करने में निकल जाएगा. इन मदों में क्रमश: 3.1 खरब और 1.37 खरब पाकिस्तानी रुपए खर्च होने का अनुमान है. इन्हें छोड़कर पाकिस्तानी सरकार के हर तरह के व्यय को ऋण के ज़रिए ही पूरा किया जाता है. इतना ही नहीं, अब ये समस्या और भी विकराल हो चुकी है. पाकिस्तान में पेंशन के मद में सरकार का खर्च 48 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रु है. ये खर्च असैनिक सरकार के संचालन के पीछे होने वाले कुल खर्चों से भी ज़्यादा है. ये व्यय 47.9 हज़ार करोड़ रु है. बजट में एक और असामान्य मद ‘वेतन और पेंशन’ के रूप में है. इनके ऊपर सरकार को 16 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है. ग़ौरतलब है कि पेंशन खाते में रक्षा पेंशन (36 हज़ार करोड़) और असैनिक पेंशन (12 हज़ार करोड़) दोनों शामिल हैं. सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन को असैनिक सरकार के खर्चें के मद में शामिल किया जाता है, ऐसे में ये स्पष्ट नहीं है कि ‘वेतन और पेंशन’ के खाते में क्या-क्या शामिल हैं. कुछ लोगों को ये शक है कि ये एक किस्म का संदेहास्पद खाता है जिसका इस्तेमाल आगे चलकर रक्षा बजट के तौर पर किया जाएगा. कुछ अन्य लोगों का मानना है कि इस मद का इस्तेमाल बजट में घोषित वेतन बढ़ोतरी से जुड़े खर्चों को पूरा करने के लिए किया जाएगा. वैसे तो निश्चित तौर पर इस बढ़ोतरी से जुड़े खर्चे को असैनिक सरकार के व्यय के मद में शामिल किया गया होगा. ऐसे में बजट में शामिल किए गए इस विशेष मद को लेकर संदेह का वातावरण बना हुआ है.
पंजाब से बजट में साढ़े 12 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए के अधिशेष की उम्मीद लगाई गई थी. हक़ीक़त ये है कि पंजाब सिर्फ़ 4 हज़ार करोड़ रु के अधिशेष का ही वास्तव में प्रबंध कर पाया. सिंध के बजट से स्पष्ट है कि पिछले साल सिंध को 1800 करोड़ रु का बजट घाटा हुआ था.
धूर्ततापूर्ण गणनाएं
संघीय सरकार का शुद्ध राजस्व संग्रह 4.49 खरब पाकिस्तानी रुपए है जबकि उसका सकल व्यय 8.49 खरब रुपए है. इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के विकास से जुड़ा संघीय कार्यक्रम (पीएसडीपी) भी शामिल है. इस मद में 90 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए खर्च होते हैं. ऐसे में पाकिस्तान की संघीय सरकार को करीब 4 खरब रुपए के वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है. बजटीय दस्तावेज़ों के मुताबिक संघीय सरकार के पास उपलब्ध कुल संसाधनों में शुद्ध राजस्व संग्रहों के अतिरिक्त निजीकरण से हासिल होने वाले करीब 25 हज़ार करोड़ रु की रकम भी शामिल हैं. इसमें एक चौंकाने वाला आंकड़ा प्रांतों से हासिल 57 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए के तौर पर शामिल है. इसके अलावा विदेशी स्रोतों से जुटाई गई शुद्ध 1.25 खरब की रकम और घरेलू ऋण के तौर पर लिए गए 2.5 खरब रु की रकम भी इसमें शामिल है. यहां इनसे जुड़ी कई तरह की दिक्कतों की चर्चा लाजिमी है. पहला, बजट पेश किए जाने के एक दिन के भीतर ही इंटरनेट के इस्तेमाल और मोबाइल फ़ोन पर कॉल करने पर कर लगाए जाने से जुड़ा प्रस्ताव वापस ले लिया गया. इस मद में करीब 10 हज़ार करोड़ रु के राजस्व संग्रहण का लक्ष्य था. दूसरा, पिछले साल के बजट में निजीकरण से 10 हज़ार करोड़ की रकम हासिल करने का लक्ष्य था. बजट के पुनरीक्षित अनुमानों के मुताबिक इस मद से हासिल की गई रकम सिफ़र या निल बटे सन्नाटा है. ऐसे में वित्त वर्ष 20201-22 में इस मद से 25 हज़ार करोड़ की रकम जुटा लेने की उम्मीद करना दिन में सपने देखने जैसा है. इतना ही नहीं अगर कुछ चुनिंदा सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर दिया जाए तब भी ये कवायद बही-खाते के समायोजन से ज़्यादा कुछ नहीं होगा. होगा ये कि इन कंपनियों को सरकार की होल्डिंग कंपनियों के सुपुर्द कर दिया जाएगा. ऐसे में आसार यही हैं कि इसके ज़रिए जुटाई गई रकम ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर साबित होगी.
तीसरा, प्रांतीय स्तर पर खर्च से अधिक राजस्व का संग्रह हो पाने की संभावना ना के बराबर है. मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार ने इस मद में 24.2 हज़ार करोड़ के बजट का प्रावधान किया था. ताज्जुब की बात ये है कि वित्त वर्ष 21-22 के बजट दस्तावेज़ में प्रांतों द्वारा अपने व्यय के मुक़ाबले अपने स्रोतों से अर्जित आय के अतिरिक्त हिस्से के वास्तविक आंकड़ों को लेकर कोई रकम नहीं बताई गई है. शायद मौजूदा हालात को छिपाने के लिए वित्त मंत्री द्वारा दिखाई गई हाथ की सफ़ाई का ये एक और नमूना है. हालांकि हक़ीक़त छिपाए नहीं छिपती और हमेशा बाहर आ ही जाती है. पंजाब प्रांत के वित्त वर्ष 21-22 के बजट दस्तावेज़ों से ये बात सामने आती है कि पंजाब से बजट में साढ़े 12 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए के अधिशेष की उम्मीद लगाई गई थी. हक़ीक़त ये है कि पंजाब सिर्फ़ 4 हज़ार करोड़ रु के अधिशेष का ही वास्तव में प्रबंध कर पाया. सिंध के बजट से स्पष्ट है कि पिछले साल सिंध को 1800 करोड़ रु का बजट घाटा हुआ था. ये रकम ठीक उतनी ही है जितने का बजट में प्रावधान किया गया था. स्पष्ट तौर पर इसका मतलब यही है कि पिछले साल की अपेक्षित 24 हज़ार 200 करोड़ की रकम के लक्ष्य मुक़ाबले वास्तविक तौर पर हासिल की गई रकम लक्ष्य से काफ़ी पीछे रह गई थी. इस साल प्रांतों से 57 हज़ार करोड़ रु के बजट अधिशेष पैदा करने की उम्मीद लगाई गई है. ये लक्ष्य पिछले साल के लक्ष्य के मुक़ाबले दोगुनी है. हालांकि पंजाब ने बजट में सिर्फ़ 12 हज़ार 500 करोड़ का प्रावधान किया है जबकि सिंध ने एक बार फिर 2600 करोड़ के घाटे के अनुमान वाला बजट प्रावधान सामने रखा है.
आईएमएफ़ ने भी अपने हिसाब से बुद्धिमानी दिखाते हुए पाकिस्तानी छल-कपट के आगे किसी किस्म की नरमी नहीं बरती है. बहरहाल तरीन को उम्मीद है कि विभिन्न कारकों की मदद से उन्हें अपने मनमाफ़िक नतीजे हासिल हो जाएंगे.
बाक़ी के दो प्रांतों- ख़ैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान- का योगदान अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत से भी कम है. ऐसे में अगर ये प्रांत बजट में अधिशेष जुटाने में कामयाब हो भी जाते हैं तो भी ये ना तो पिछले साल और न ही आगामी वित्त वर्ष के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा. दूसरे शब्दों में, बजट में प्रांतीय अधिशेष के रूप में 57 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए के बराबर के जिस रकम की चर्चा की गई है, वास्तविक अधिशेष के उससे काफी कम रहने के आसार हैं. संभावना है कि वास्तविक अधिशेष इस लक्ष्य से करीब 40 से 50 हज़ार करोड़ रु कम रहेगा. बजट में इस बात पर कोई दलील पेश नहीं की गई है कि इस कमी को कैसे पूरा किया जाएगा. हक़ीक़त ये है कि सिर्फ़ इन तीन मदों में पाकिस्तान की संघीय सरकार के बजट में कम से कम 80 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपए की कमी पड़ने के आसार हैं. इतना ही नहीं अगर करों से प्राप्त राजस्व लक्ष्य से कम रहता है तो प्रांतों को होने वाला हस्तांतरण उसी हिसाब से कम रहेगा. ऐसे में प्रांतों के पास अधिशेष होने की संभावना काफ़ी क्षीण हो जाएगी. वैसे भी प्रांतों को बजट अधिशेष के लिए बाध्य करना संघीय ढांचे और वित्त आयोग के अनुदेशों के विपरीत है. इसकी वजह ये है कि तकनीकी तौर पर इसका मतलब ये होगा कि काग़ज़ पर तो संघीय सरकार प्रांतों को 3.4 खरब पाकिस्तानी रुपए हस्तांतरित कर रही होगी लेकिन वास्तव में वो करीब 2.9 खरब रु ही (अनुमानित अधिशेष को घटाकर) प्रांतों को हस्तांतरित करेगी. ये लगभग उतनी ही धनराशि है जितनी पिछले वित्त वर्ष में हस्तांतरित की गई थी.
ऋण पर निर्भरता
संघीय सरकार ने बजट में विदेशी आवक के रूप में 2.75 खरब पाकिस्तानी रु का प्रावधान रखा है. इसमें 2.7 खरब का ऋण और 0.32 खरब का अनुदान शामिल है. इसके साथ ही परियोजना ऋण और अनुदान के तौर पर 0.23 खरब रु का भी प्रावधान है. ये रकम पीएसडीपी के दायरे के बाहर है. इस समूची धनराशि में से 1.5 खरब पाकिस्तानी रुपए विदेशी कर्ज़ों की अदायगी के रूप में जाएंगे. इसके अलावा 0.74 खरब की रकम विदेशी साख को चुकता करने में खर्च होगी. ऐसे में शुद्ध रूप से विदेशी आवक के तौर पर सिर्फ़ 1.25 खरब की रकम ही बची रह जाएगी. विदेशों से लिए जाने वाले कुल कर्ज़ों में से करीब 80 हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रु (500 करोड़ अमेरिकी डॉलर) वाणिज्यिक बैंकों से लिए जाएंगे. इसके अतिरिक्त 49 हज़ार 600 करोड़ पाकिस्तानी रुपए के बराबर रकम (310 करोड़ अमेरिकी डॉलर) आईएमएफ़ से बजटीय सहायता के तौर पर मिलेगी. विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से मिलने वाली बाक़ी की रकम (करीब 200-300 करोड़ अमेरिकी डॉलर) पाकिस्तान में आईएमएफ़ द्वारा निर्देशित कार्यक्रमों के पटरी पर बने रहने की शर्त पर ही दिए जाएंगे. दूसरे शब्दों में आईएमएफ़ को विश्वास में लिए बग़ैर पाकिस्तान का बजट कारगर नहीं हो सकेगा. यहां मुश्किल ये है कि पाकिस्तानी वित्त मंत्री तरीन आईएमएफ़ के साथ मुर्ग़ा लड़ाने का खेल खेल रहे हैं. उनके पूर्ववर्ती वित्त मंत्री असद उमर ने भी आईएमएफ़ के साथ कड़ा रुख़ बरतने की नाकाम कोशिश की थी. आगे चलकर उनको बर्खास्तगी का सामना करना पड़ा था. तब उनकी जगह हफ़ीज़ शेख़ को वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया. उनको आईएमएफ़ को मनाने और उसके साथ डील पर दस्तख़त करने का दायित्व दिया गया था. 2019 में सौदे को मंज़ूरी भी मिल गई थी. बहरहाल अब तरीन आईएमएफ़ के साथ वही खेल खेलना चाह रहे हैं. वो आईएमएफ़ द्वारा बिजली की दरों और आयकर संग्रहण समेत तमाम दूसरे मसलों पर लगाई गई शर्तों की अनदेखी कर रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान और अमेरिका
पैंतरेबाज़ी और चालबाज़ी पाकिस्तान के स्वभाव में है. अब वो आईएमएफ़ के साथ भी इसी तरह की धूर्तता बरत रहा है. शेख़ के वित्त मंत्री रहते पाकिस्तानी सरकार आईएमएफ़ की तमाम शर्तों पर रज़ामंद हो गई थी ताकि उस समय आईएमएफ़ की समीक्षा सिरे चढ़ सके. 2020 की महामारी के बाद आईएमएफ़ का कार्यक्रम बहाल हो गया. जैसे ही आईएमएफ़ का कार्यक्रम पटरी पर आ गया, वित्त मंत्री शेख़ को पद से हटाकर उनकी जगह तरीन को बिठा दिया गया. पद संभालने के फ़ौरन बाद उन्होंने वही पुराना राग अलापना शुरू कर दिया कि आईएमएफ़ के कार्यक्रम को पाकिस्तान की इच्छाओं के मुताबिक बदला जाना चाहिए. वैसे अबतक आईएमएफ़ ने अपने तेवर में कोई नरमी नहीं बरती है. तरीन ने बजट तैयार करते वक़्त आईएमएफ़ द्वारा तय किए गए कुछ लक्ष्यों का ध्यान रखा है. उन्होंने इस दायरे में रहकर ही बजट तैयार किया है. हालांकि इन लक्ष्यों को हासिल कैसे किया जाएगा इसको लेकर आईएमएफ़ द्वारा बताए गए रास्ते पर वो चलते दिखाई नहीं दे रहे. बहरहाल आईएमएफ़ ने भी अपने हिसाब से बुद्धिमानी दिखाते हुए पाकिस्तानी छल-कपट के आगे किसी किस्म की नरमी नहीं बरती है. बहरहाल तरीन को उम्मीद है कि विभिन्न कारकों की मदद से उन्हें अपने मनमाफ़िक नतीजे हासिल हो जाएंगे. उन्हें भरोसा है कि कड़ी सौदेबाज़ियों और थोड़े-बहुत जोखिम उठाकर वो कामयाब हो जाएंगे. पाकिस्तान इस फ़िराक़ में है कि रणनीतिक मोर्चे पर कुछ समझौते करके (इस सिलसिले में ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा पाकिस्तान के काम आएगा) वो अपनी इच्छानुसार परिणाम हासिल कर लेगा. पाकिस्तान में ये समझ बन रही है कि अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका उसका साथ देगा. माना जा रहा है कि अमेरिका आईएमएफ़ पर पाकिस्तान के साथ नरमी बरतकर उसकी मांगें मान लेने का दबाव बना लेगा. हालांकि ये एक बेहद जोखिम भरी रणनीति है. अगर ये रणनीति कारगर नहीं होती है तो पाकिस्तान का इस बार का बजट रद्दी काग़ज़ का टुकड़ा बनकर रह जाएगा. काग़ज़ के इस कूड़े को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में वहां के सांसद एक-दूसरे पर निशाना बनाकर वार करने में इस्तेमाल कर सकेंगे. वहीं दूसरी ओर अगर ये रणनीति कारगर साबित होती है और अमेरिका आईएमएफ़ को पाकिस्तान को कुछ छूट देने पर रज़ामंद करा लेता है तो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए करीब साल भर या दो साल के लिए आसानी हो जाएगी. हालांकि इसके बाद पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की ढांचागत समस्याएं उसे एक बार फिर आईसीयू में खींच ले जाएगी.
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