Issue BriefsPublished on Jul 16, 2024
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हमारे समय का डिजिटल युग: ताकत का इस्तेमाल और उसे पाने की होड़

  • Stephanie Diepeveen

    पिछले 30 सालों में, डिजिटल नवाचार को लेकर इस बात पर अलग-अलग राय सामने आई है कि क्या तकनीक मुक्तिदायक है या राजनीतिक और/या आर्थिक शक्ति वाले लोगों को लाभ पहुंचाने वाली है. 2020 के दशक की शुरुआत में एआई में नवाचारों के संदर्भ में, यह सारपत्र इस सवाल पर विचार करता है: डिजिटल युग में, कौन किसके ऊपर शक्ति का प्रयोग करता है, इसमें क्या नया है? यह नागरिकों और भू-भाग दोनों के संबंध में सरकारों की शक्ति पर ध्यान केंद्रित करता है और चार क्षेत्रों का खाका खींचता है जहां शक्ति के प्रयोग और प्रतियोगिता में मौलिक परिवर्तन हो रहे हैं: (i) प्रौद्योगिकी फर्मों पर सरकार की नई निर्भरता; (ii) नागरिकता का डिजिटलीकरण; (iii) पूर्ण निगरानी की संभावना को लेकर चिंता; और (iv) भूभागीय शासन के लिए नई चिंताएं और दावे.

Attribution:

एट्रीब्यूशन: स्टेफ़नी डीपवीन: हमारे समय का डिजिटल युग: ताकत का इस्तेमाल और उसे पाने की होड़, ओआरएफ़ विषय सारपत्र संख्या. 696, मार्च 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन.

भूमिका

2023 के अंत तक, यह स्पष्ट हो गया था कि दुनिया एक डिजिटल युग की ओर बढ़ रही है, जहां डिजिटल डाटा के रूप में जानकारी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों और निर्णय लेने का आधार बनती है. एक साल पहले चैटजीपीटी को सार्वजनिक रूप से जारी किए जाने, के ज़रिए यह दिखाया गया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस- एआई) इंसानों की तरह बातचीत वाला पाठ या टेक्स्ट बना सकती है, जिसकी वजह से AI द्वारा इंसान की गतिविधियों को बदलने की संभावनाओं में प्रगति करने को लेकर दिलचस्पी लिए जाने का विस्फ़ोट हो गया- काम की प्रकृति से लेकर धोखाधड़ी तक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तक. यद्यपि अन्य तकनीकी नवाचार अभी भी दूर की बात हो सकते हैं, जैसे कि क्वॉन्टम कंप्यूटिंग की संभावना,[i] लेकिन भविष्य में उनके संभावित उपयोग की कल्पना ज़्यादा पास आती जा रही है.

'डिजिटल युग' अस्तित्व संबंधी चिंताओं को जन्म देता है कि डिजिटल तकनीक इंसानों के कार्य-निष्पादन से आगे और नियंत्रण से बाहर जा सकती है, या बिग टेक एक 'नया लेवियाथन' (मान्यताओं के अनुसार एक विशाल समुद्री जीव)[ii] बन जाएगा जो सरकार की संप्रभुता को चुनौती देगा. हालांकि, ध्यान का केंद्र इस ओर होना तकनीकी उपयोग की लगातार बनी हुई सीमाओं को छुपाता है. उदाहरण के लिए, जनरेटिव AI जटिल तकनीकी संसाधन (कॉम्पलेक्स टेक्निकल प्रोसेसिंग) के लिए बुनियादी भौतिक ढांचे और ऊर्जा पर निर्भर करती है, जो कई सरकारों के लिए एक बाधा बनी हुई है.

सबसे पहली बात तो यह है कि राजनीति और समाज में डिजिटल बदलाव के महत्व पर विचार परस्पर विरोधी हैं. मीडिया और संचार के एक शिक्षाविद डेविड कार्प ने 2012 में चेतावनी दी थी कि "ऑनलाइन डाटा की प्रचुरता का सुनहरा वादा अक्सर मूर्खों का सोना साबित होता है."  

सबसे पहली बात तो यह है कि राजनीति और समाज में डिजिटल बदलाव के महत्व पर विचार परस्पर विरोधी हैं. मीडिया और संचार के एक शिक्षाविद डेविड कार्प ने 2012 में चेतावनी दी थी कि "ऑनलाइन डाटा की प्रचुरता का सुनहरा वादा अक्सर मूर्खों का सोना साबित होता है."[iii] वास्तव में, 'डिजिटल युग' की सभी चर्चाओं के बीच, दुनिया के अधिकांश क्षेत्र और आबादी इससे कटे हुए हैं या उनका संपर्क सीमित और/या ग़ैरभरोसेमंद है. यह अंतर सबसे अधिक अफ्रीका में दिखाई देता है, जहां 2021 में केवल 50.6 फ़ीसदी लोगों के पास बिजली थी और 36 प्रतिशत लोग ही इंटरनेट का उपयोग करते थे.[iv] इस बीच, डाटा  को 'नया तेल' करार दिया जा रहा है, जिसमें डिजिटल प्रक्रियाओं को प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के लिए अभूतपूर्व अवसर लाने वाला बताया जा रहा है.[v]

इन परस्पर विरोधी विचारों का आधार तकनीकों के भविष्य के महत्व को लेकर भविष्यवाणी करने की मुश्किल है. आखिरकार, आविष्कारों का इतिहास बताता है कि ये संयोग से ही होते हैं.[vi] यद्यपि तकनीकों को विशिष्ट अनुप्रयोगों (एप्लीकेशन्स) और परिस्थितियों के लिए तैयार किया जाता है लेकिन ये अप्रत्याशित परिस्थितियों में काम के साबित होते हैं और  इस्तेमाल होते हैं.[vii]

 

जब डिजिटल प्रौद्योगिकी 'राजनीतिक' बन जाती है

मौजूदा विरोधी विचारों से अलग हटते हुए यह समझना उपयोगी रहेगा कि कैसे और क्यों डिजिटल तकनीकों को राजनीतिक शक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है. राजनीतिक सिद्धांतकार लैंगडन विनर (1980) दो तरीकों के बीच उपयोगी रूप से अंतर करते हैं जिनसे प्रौद्योगिकी को राजनीतिक माना जा सकता है: (i) कुछ तकनीकें अपने डिज़ाइन के आधार पर विशिष्ट शक्ति संबंधों के साथ संरेखित (अलाइन्ड) होती हैं; और (ii) अन्य इस बात तो लेकर काफ़ी लचीली होती हैं कि उनका उपयोग कैसे किया जा सकता है.[viii] बाद वाली अपने उपयोग से राजनीतिक हो जाती हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि वे शक्ति संबंधों के एक ख़ास प्रकार का समर्थन करें.

डिजिटल तकनीकें राजनीतिक होने के दोनों तरीकों को दर्शाती हैं. अपने डिज़ाइन के अनुरूप, डाटा-आधारित तकनीकों में पूर्वाग्रह और असमानताएं समाहित होती हैं. डाटा मानवीय गतिविधियों के माध्यम से उत्पन्न होता है और पिछले कार्यों के पूर्वाग्रहों और असमानताओं द्वारा इसकी पहचान होती है. सफ़िया नोबल के सर्च एल्गोरिदम के विश्लेषण से लेकर वर्जीनिया यूबैंक के सामाजिक कल्याण प्रावधानों में एल्गोरिथम संसाधन के अध्ययन तक,[ix] इस बात के प्रमाण हैं कि डेवलपर्स के सामाजिक पूर्वाग्रह डिजिटल डिज़ाइन और प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं.

इसी तरह, अंतर्निहित असमानताएं इस बात को लेकर कोई सीमा तय नहीं करतीं कि तकनीकों का उपयोग कैसे किया जा सकता है. दूरसंचार ढांचे का इस्तेमाल सरकार की शक्ति को प्रसारित करने और सत्ता के वैकल्पिक विचारों को प्रसारित करने, दोनों के लिए किया जा सकता है.[x] भले ही सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सामग्री को फ़िल्टर करने और बढ़ावा देने के लिए एल्गोरिदम सिस्टम का उपयोग करते हैं, लेकिन वे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं में विभिन्न उपयोगों के लिए रास्ता बना देते हैं: नफ़रत फैलाने और हिंसा भड़काने, दमनकारी शक्तियों का सामना करने और सूचना अभियानों को लक्षित करने के लिए.

इसलिए, डिजिटल तकनीकों और शक्ति के बीच के संबंध को द्वंद्वात्मक माना जा सकता है. मौजूदा शक्ति संरचनाएं तकनीकों के उत्पादन, नवाचार और डिज़ाइन के चरणों के निर्णय-लेने को प्रभावित करती हैं. बदले में, डिजिटल प्रौद्योगिकियां बुनियादी ढांचे और उपकरणों का हिस्सा बन जाती हैं, जिनके माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन चलता है. और, डिजिटल निशान - लोग ऑनलाइन क्या करते हैं, इसका डाटा  रिकॉर्ड – जारी डिजिटल प्रक्रियाओं में इनपुट वापस डालते हैं.

व्लादिमीर लेनिन ने अपने नारे 'कौन/किसको' (who/whom या रूसी में kto kogo) में राजनीति का मूल प्रश्न उठाया: कौन किस पर सत्ता का प्रयोग करता है.[xi] सत्ता और डिजिटल प्रौद्योगिकी की द्वंद्वात्मकता को देखते हुए, डिजिटल युग में इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि सत्ता संबंध डिजिटल तकनीकों के माध्यम से कैसे प्रभावित होते हैं और आकार लेते हैं.

डिजिटल तकनीक और शक्ति के द्वंद्ववाद को देखते हुए, डिजिटल युग में इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शक्ति संबंध डिजिटल तकनीकों के माध्यम से कैसे आकार लेते हैं और उन्हें कैसे प्रभावित करते हैं. 

डिजिटल तकनीक और शक्ति के द्वंद्ववाद को देखते हुए, डिजिटल युग में इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शक्ति संबंध डिजिटल तकनीकों के माध्यम से कैसे आकार लेते हैं और उन्हें कैसे प्रभावित करते हैं. इस उद्देश्य के लिए, अपने डिजिटल युग के अनुभवों की विविधता और जटिलता को स्वीकार करते हुए, यह सारपत्र कुछ मुख्य प्रवृत्तियों और दिशाओं पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे डिजिटल तकनीकें नागरिकों और भूभागों पर सरकारों की शक्ति के प्रयोग और चुनौती के साथ अंतःस्थापित होती हैं. तब यह अवलोकन उस आधार के रूप में काम करता है जिससे हम इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं: डिजिटल युग में, कौन किस पर शक्ति का प्रयोग करता है, इसमें नया क्या है?

डिजिटल युग में सरकारें और नागरिक

कोविड-19 संकट में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता से प्रेरित होकर सरकारों ने डिजिटल तकनीकों के उपयोग को तेज़ कर दिया. हालांकि, इससे पहले भी, डिजिटल तकनीक और डाटा  को नागरिक-सरकार संबंधों में विवेचनात्मक तरीकों से एकीकृत किया जा रहा था - सरकारें नागरिकों को कैसे पहचानती हैं से लेकर सरकारी नियंत्रण के अभ्यास, और सत्ता को कैसे सीमित किया जाता है और उससे संघर्ष किया जाता है.

सरकारों द्वारा नागरिकों को मान्यता

डिजिटल आईडी का इस्तेमाल विश्व स्तर पर बढ़ रहा है, कम से कम 161 देशों ने अपनी राष्ट्रीय आईडी में बायोमेट्रिक्स को शामिल किया है.[xii] डिजिटल पहचान और प्रमाणीकरण नागरिकों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी को सुविधाजनक बनाता है.[xiii]

नागरिकों या विषयों की पहचान, वर्गीकरण और लक्षित करने की प्रणाली के रूप में डाटा बेस डिजिटल युग से उत्पन्न नहीं हुए हैं; यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के तहत डाटा बेस पहले से ही नियंत्रण और व्यवस्थापन का एक औज़ार था.[xiv] डिजिटल युग के साथ, डाटा  का पैमाना और विश्लेषण की जटिलता तेजी से बढ़ गई, जिसके परिणामस्वरूप "तत्काल आबादी को समझने और व्यक्तियों की पहचान किए जाने के लिए नए तरीकों के उत्पादक सिस्टम में जानकारी की विविधता और मात्रा दोनों को संयोजित करने की एक अभूतपूर्व क्षमता विकसित हुई."[xv]

नागरिक जीवन से डिजिटल बहिष्कार

डिजिटल पहचान उन आधारों को बदल देती है जिसके माध्यम से व्यक्तियों को नागरिक जीवन में शामिल या बहिष्कृत किया जाता है. राजनीतिक मान्यता के लिए संपर्क को एक आवश्यकता बनाकर, यह सार्वजनिक जीवन में भागीदारी को अस्वीकार करने का एक साधन भी बन जाती है.[xvi]

पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट शटडाउन की घटनाएं अधिक रही हैं, 2020 में 155 मामले दर्ज किए गए थे.[xvii] सरकार द्वारा शुरू किए गए इंटरनेट शटडाउन अक्सर संभावित राजनीतिक अस्थिरता की स्थितियों से जुड़े होते हैं, जैसे विरोध प्रदर्शन, चुनाव और यहां तक कि राष्ट्रीय परीक्षाएं.[ए]

डिजिटल समावेशन के माध्यम से निगरानी

जबकि डाटा  से बहिष्करण नागरिक जीवन से बहिष्करण के बराबर हो सकता है, व्यक्तियों को डाटा के रूप में देखा जाना निगरानी के नए तरीकों को सक्षम बनाता है. पैनोप्टिकॉन की प्रतीकात्मक सर्वदर्शी निगाह[बी] व्यक्तियों में आत्म-अनुशासन पैदा करने के बजाय, डाटा  और स्वचालित प्रक्रियाओं की प्रचुरता अधिक पूर्ण और निरंतर निगरानी की संभावना पैदा करती है, जिससे सरकारें व्यक्त किए जाने को पहले ही असंतोष को रोक सकती हैं.[xviii]

सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां पहले से ही व्यक्तियों की निगरानी के लिए निगरानी तकनीकों का उपयोग कर रही हैं, जिसका आधार एक आकर्षक व्यवसायिक बाज़ार है. एनएसओ ग्रुप का पेगासस स्पाइवेयर हाल के इतिहास में सबसे प्रभावी और विवादास्पद उदाहरणों में से एक के रूप में सामने आया है. पेगासस सॉफ्टवेयर उपयोगकर्ता को पता चले बिना मोबाइल फ़ोन पर डाटा तक असीमित पहुंच को संभव बनाता है. लोकतांत्रिक और सत्तावादी सरकारों ने इसका इस्तेमाल न केवल संदिग्ध आतंकवादी या आपराधिक गतिविधि में लिप्त व्यक्तियों को, बल्कि मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और/या राजनीतिक विरोधियों को भी निशाना बनाने के लिए किया है.[xix] हालांकि इसका पूरा होना दूर की कौड़ी थी लेकिन व्यक्तियों पर डिजिटल निगरानी का ऐसा अभियान शक्ति के प्रयोग में बदलाव के संकेत देता है, जिसका आधार लगातार व्यापक हो रही और निरंतर निगरानी है और जिसे करने वाले प्राधिकारी नज़र नहीं आते.  

नागरिकों पर सरकार की डिजिटल शक्ति की सीमाएं

सत्ता का कोई भी रूप सीमाओं से मुक्त नहीं होता: डिजिटल रूप से मध्यस्थता वाली सरकार इसका अपवाद नहीं है. जैसे-जैसे सरकारें डिजिटल पहचान के माध्यम से नागरिकों से जुड़ती हैं, उन्हें निर्भरता और भेद्यता के नए तरीकों का सामना करना पड़ता है.

सबसे पहले, आवश्यक बुनियादी ढांचे और क्षमताओं के परिणामस्वरूप नई निर्भरताएं बनी हैं. डिजिटल तकनीकों को नया रूप देने, उत्पादन करने और संचालित करने की क्षमता अक्सर सरकारी ढांचे के बाहर निजी फर्मों के पास होती है.[xx] विदेशी और घरेलू दोनों तरह की निजी फर्मों पर सरकार की निर्भरता की डिग्री और असुरक्षा सरकार के आकार, संसाधनों और क्षमताओं पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए, सरकार द्वारा शुरू किए गए इंटरनेट शटडाउन को लागू करने के लिए दूरसंचार कंपनियों की ज़रूरत होती है. प्रतिस्पर्धा और स्वामित्व के ढांचे इस बात को प्रभावित कर सकते हैं कि कौन सा शटडाउन आसानी से किया जा सकता है.[xxi] एक अन्य उदाहरण है एक मैसेजिंग सेवा, व्हाट्सएप का, जो वैश्विक दक्षिण के कुछ देशों में सार्वजनिक जीवन और यहां तक ​​कि सरकारी संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी है. और उदाहरण के लिए, इसका अर्थ यह पड़ा कि 2021 में छह घंटे के लिए इसके दुनिया भर में बंद होने ने सरकारों के दैनिक कार्यों पर बहुत ज़्यादा असर पड़ा था.[xxii]

दूसरी बात यह है कि नागरिक लगातार सरकार की सत्ता से बचते और उसका विरोध करते रहते हैं. सूचना तक पहुंच और आदान-प्रदान के लिए डिज़ाइन की गई प्रौद्योगिकियां अपनी प्रकृति के अनुरूप विविध विचारों के प्रसार की अनुमति देती हैं. यहां तक कि इंटरनेट को बंद करने के प्रयास भी अक्सर छिद्रपूर्ण होते हैं, क्योंकि नागरिकों ने वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क और मैश नेटवर्क जैसे उपकरणों का इस्तेमाल किया है, जो निकट संचार बनाए रखते हैं.[xxiii]

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मैसेजिंग सेवाएं नागरिकों को किसी सरकार की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर से भी जानकारी तक पहुंच पाने और साझा करने के तरीके प्रदान कर सकती हैं, जिनमें उस सरकार की संभावित रूप से आलोचना करने वाली सूचनाएं भी शामिल हैं

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मैसेजिंग सेवाएं नागरिकों को किसी सरकार की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर से भी जानकारी तक पहुंच पाने और साझा करने के तरीके प्रदान कर सकती हैं, जिनमें उस सरकार की संभावित रूप से आलोचना करने वाली सूचनाएं भी शामिल हैं.[xxiv] एक डिजिटल सार्वजनिक क्षेत्र राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर साझा पहचान के लिए नई संभावनाएं भी प्रदान कर सकता है. वैश्विक डिजिटल संस्कृतियों के विद्वान, पीट चोंका (2017) बताते हैं कि कैसे सोमाली प्रवासी व्यक्तियों ने एक देश के भूभाग के साफ़ संदर्भ के बिना भी, एक पार देशीय सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण करने में मदद की है.[xxv] इसलिए, जैसे-जैसे डिजिटल तकनीक उन तरीकों को नया रूप दे रही है, जिनसे सरकार नागरिकों पर शक्ति का प्रयोग करती हैं, यह इसके विरोध के लिए नए अवसर भी पैदा कर रही है: निजी फर्मों के द्वारा क्योंकि वे सत्ता के प्रयोग में एकीकृत (integrated) हैं, और नागरिकों द्वारा, इस बात की अनिश्चितता के बीच कि तकनीकों का उपयोग कैसे किया जा सकता है.

डिजिटल युग में क्षेत्र-आधारित शासन

वेबर (1919) द्वारा किसी क्षेत्र में हिंसा के साधनों पर नियंत्रण के एकाधिकार के संबंध में सरकार की अवधारणा से,[xxvi] राजनीतिक शक्ति का विचार किसी भूभाग से जुड़ा होना सरकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली का मूल है. डिजिटल प्रौद्योगिकियाां निम्न बातों को लेकर सरकार की शक्ति की भूभागीय सीमाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती हैं, (i) नागरिक जीवन में भाग लेने के लिए आभासी स्थानों की शुरुआत; (ii) भौतिक स्थानों को लेकर बदलती मांगों; और (iii) मानव समाज की संभावनाओं के मद्देनज़र नए स्थानों को तैयार करने को लेकर.

आभासी स्थानों की शुरुआत

डिजिटल तकनीकें राजनीति के स्थान को आभासी स्थानों तक विस्तारित करती हैं. मेटा के इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक, गूगल के यूट्यूब और बाइटडांस के टिकटॉक सहित सबसे बड़ी वैश्विक सोशल मीडिया कंपनियां राष्ट्रीय सीमाओं के पार काम करती हैं. ये पार-देशीय स्थान (ट्रांस-नेशनल स्पेस) अक्सर निजी स्वामित्व वाले होते हैं. सरकार विनियामक शक्ति रखती हैं, लेकिन यह अलग-अलग बातों पर निर्भर करता है कि, उदाहरण के लिए, क्या कोई फ़र्म किसी विशेष सरकार के पास पंजीकृत है.

मूल रूप से, डिजिटल सार्वजनिक स्थान भौतिक सार्वजनिक स्थानों से अलग लक्षण दिखाते हैं, जो लोगों के लिए विश्वसनीय और खुली जानकारी तक पहुंच पाना और कठिन बनाते हैं. यद्यपि राजनीति में झूठ बोलना कोई नई बात नहीं है,[xxvii] ऑनलाइन गलत/झूठी सूचना का उत्पादन और प्रसार करना लगातार आसान और लागत प्रभावी होता जा रहा है, ख़ासकर जनरेटिव AI के विकास के साथ. गलत सूचना का अधिक प्रचलन, विशेष रूप से टेक्स्ट के साथ छवियों, वीडियो और ऑडियो के रूप में, सुविज्ञ राजनीतिक निर्णय लेने के काम को और ज़्यादा कठिन बनाता जा रहा है. इसके साथ ही, डिजिटल स्थान डाटा के आधार पर हासिल जानकारी से निशाना बनाने को संभव बनाते हैं. 2010 के दशक में लक्षित चुनाव अभियानों के लिए कैम्ब्रिज एनालिटिका द्वारा फ़ेसबुक से प्राप्त व्यक्तिगत डाटा  के उपयोग ने व्यवहारगत डाटा के ऐसे उपयोग की संभावना के बारे में बताया.[xxviii]

व्यक्तियों के राजनीतिक व्यवहार और धारणाओं पर व्यापक रूप से गलत सूचनाओं और लक्षित प्रभाव अभियानों का असर एक जटिल सवाल बना हुआ है, ख़ासकर अगर इस बात को ध्यान में रखा जाए कि लोग ऑनलाइन और ऑफलाइन स्पेस में रहते कैसे हैं. फिर भी, डिजिटल स्पेस की क्षणभंगुर सीमाएं और वास्तविक गतिशीलता सरकारों और नागरिकों दोनों के लिए चुनौतियां पेश करती हैं: सरकार अपनी सीमाओं से परे सूचनात्मक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं और नागरिकों को सुविज्ञ निर्णय लेने की उनकी क्षमता को लेकर चुनौती का सामना करना पड़ता है.

भू-भागीय स्थानों के महत्व की पुनर्पुष्टि

डिजिटल सार्वजनिक क्षेत्र की गतिशीलता भौतिक स्थान से असंबद्ध राजनीति  की छवि बनाती है. फिर भी, ये आभासी अनुभव भौतिक आधारभूत ढांचे और भौतिक भूदृश्यों के रूप परिवर्तन पर आधारित हैं. डिजिटल प्रौद्योगिकियों की भौतिक वास्तविकताओं के परिणामस्वरूप क्षेत्र और संसाधनों पर सरकार के नियंत्रण के लिए नई चिंता पैदा हुई है.

कच्चे माल और उद्योगों की मांग के कारण निष्कर्षण और उत्पादन के विशिष्ट स्थानों को इस तरह से महत्व दिया जाता है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और स्थानीय राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताएं बदल जाती हैं. उदाहरण के लिए, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो- DRC) में कोल्टन के निष्कर्षण ने स्थानीय राजनीतिक परिदृश्य को अंदर तक बदल दिया है. मानवविज्ञानी जेम्स स्मिथ (2021) नृवंशविज्ञान या मानव जाति विज्ञान (ethnographically) के ज़रिए दिखाते हैं कि पूर्वी DRC में खनिज निष्कर्षण ने घने सामाजिक और आर्थिक नेटवर्क को कैसे रास्ता दिया है.[xxix] एक अन्य उदाहरण में, डिजिटल उपकरणों के लिए सेमीकंडक्टर्स के महत्व ने उनके उत्पादन और आपूर्ति को भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और व्यापार में एक महत्वपूर्ण बिंदु बना दिया है, विशेष रूप से संयुक्त सरकार अमेरिका और चीन के बीच.

डाटा प्रोसेसिंग और डिजिटल कनेक्टिविटी के भौतिक बुनियादी ढांचे ने भी सरकारों का ध्यान अपने क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए नए सिरे से आकर्षित किया है. डाटा केंद्रों का स्थान, विशेष रूप से, जो क्लाउड कंप्यूटिंग के लिए डाटा  संग्रहीत और वितरित करते हैं,[xxx] एक डिजिटल युग के दृष्टिकोण, सीमा पार डाटा  प्रवाह और गहन डाटा  संसाधन और क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर नागरिकों पर नियंत्रण बनाए रखने के सरकार के प्रयासों के बीच विवाद का विषय बन गए हैं.[xxxi] सरकारों को अपने भूभागों में एकत्र किए गए डाटा  को भौतिक सीमाओं के भीतर ही के लिए बनाए रखने में अलग-अलग सफलताएं मिली हैं; इसका एक उदाहरण यूरोपीय संघ (ईयू) का सामान्य डाटा  संरक्षण विनियमन (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन- GDPR) है. फिर भी, क्लाउड कंप्यूटिंग की वितरित प्रकृति, जो जटिल, ऊर्जा खाने वाली डाटा  संसाधन की सुविधा प्रदान करती है, डाटा  संप्रभुता के प्रयासों के साथ सहज नहीं हो पा रही है. भारी ऊर्जा खपत को देखते हुए, डाटा  केंद्रों को चला सकने वाले स्थानों की क्षमता में विषमता, डिजिटल असमानताओं के बारे में चिंताओं पर एक अतिरिक्त परत चढ़ा देती है.[xxxii]

नए (भौतिक) स्थानों तक पहुंच

तीसरी बात, डिजिटल युग में स्थलीय सीमाओं से परे मानव समाज की शुरुआत की संभावनाओं के साथ-साथ भूभाग पर नियंत्रण में नए सिरे से रुचि उभरी है. दो निजी अंतरिक्ष कंपनियों के अरबपति संस्थापक जेफ़ बेजोस और एलन मस्क ने अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण के विचारों को विज्ञान कथा से वास्तव में संभव भविष्य में बदलने में मदद की है.

कुछ विद्वानों के लिए, डिजिटल युग के एक भाग के रूप में अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण की संभावना, पृथ्वी पर उपनिवेशवाद के मानवीय अन्याय से एक उपयुक्त विराम प्रदान करती है. ख़ासकर स्वदेशी आबादी की कमी और समकालीन विचारधाराओं के प्रभाव को देखते हुए.  

कुछ विद्वानों के लिए, डिजिटल युग के एक भाग के रूप में अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण की संभावना, पृथ्वी पर उपनिवेशवाद के मानवीय अन्याय से एक उपयुक्त विराम प्रदान करती है. ख़ासकर स्वदेशी आबादी की कमी और समकालीन विचारधाराओं के प्रभाव को देखते हुए.[xxxiii] फिर भी, प्रासंगिक रूप से, अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण के तर्क दुनियावी औपनिवेशिक तर्क को भी फिर से सामने लाते हैं. ऐतिहासिक उपनिवेशीकरण ने स्थानों को भूभाग में बदल दिया और इस भूभाग की अवधारणा को लेकर स्वामित्व का दावा किया. इन प्रक्रियाओं में निगमों की महत्वपूर्ण भूमिका थी.[xxxiv] अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण के बारे में मस्क और बेजोस के भाषणों का विश्लेषण करते हुए राजनीतिक सिद्धांतकार एलिना उतराता (2023) यह बताती हैं कि वे भूभागों पर आधारित शासन के पूर्व तर्क को कैसे दोहरा रहे हैं.[xxxv] यद्यपि डिजिटल तकनीकें भूभाग-आधारित शासन के टिकाऊपन को चुनौती देती हैं, शासन की भूभाग-आधारित अवधारणाएं बनी हुई हैं, क्योंकि सरकारें पृथ्वी और उससे परे डिजिटल और भौतिक स्थानों पर नियंत्रण के लिए मोल-तोल करना जारी रखे हुए हैं.

निष्कर्ष

हमारा डिजिटल युग राजनीतिक शक्ति की प्रकृति, स्थिरता और गतिशीलता पर पुनर्विचार करने का एक महत्वपूर्ण क्षण प्रस्तुत करता है.

यह स्नैपशॉट उन कुछ तरीकों पर गौर करता है जिनमें डिजिटल प्रौद्योगिकियां राज्यों, नागरिकों और क्षेत्रों में सत्ता के प्रयोग और प्रतिस्पर्धा के साथ जुड़ रही हैं, जिससे निम्नलिखित क्षेत्रों में सत्ता के प्रयोग और प्रतिस्पर्धा में गहन बदलाव का पता चलता है:

सरकार का गठन किससे होता है : सरकारें नागरिकों पर शक्ति का प्रयोग किस तरह करती हैं इसमें टेक फर्में अंदर तक गुंथी हुई हैं. इससे टेक फर्मों पर सरकारों की निर्भरता और सरकार के बुनियादी ढांचे और संचालन के दायरे के बारे में नए सवाल उठते हैं.

सरकारों नागरिकों को किस तरह देखती हैं और उनसे किस तरह से जुड़ती हैं: डिजिटल डाटा  सरकारों द्वारा व्यक्तियों की पहचान और प्रमाणीकरण का आधार बन जाता है, जिसमें नागरिक जीवन में भागीदारी और कानून-व्यवस्था बनाए रखना शामिल है. संपर्क की कमी नागरिकता के अधिकारों को वास्तविक रूप से खत्म करने का आधार भी बन सकती है.

अनुशासनात्मक शक्ति की प्रकृति: डिजिटल युग व्यक्तिगत व्यवहार पर डाटा  की निरंतर निगरानी और संसाधित करने का वादा लेकर आता है. यह 'भारी मांग में बनी हुई सर्वज्ञ नज़र' पर आधारित निगरानी प्रणालियों की ओर संभावित बदलाव को इंगित करता है.[xxxvi]

भू-भाग का गठन: डिजिटल प्रौद्योगिकियों की भौतिक आवश्यकताएं भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और औद्योगिक गतिविधि के नए क्षेत्र बनाती हैं. डिजिटल प्रौद्योगिकियां भूभाग पर शासन के दावों के लिए नए स्थान और जगह भी खोलती हैं.

इन परिवर्तनों के दौरान राजनीतिक चिंताएं, तर्क और असमानताएं जानी-पहचानी रही हैं. टेक फ़र्मों की शक्ति पिछले राजनीतिक समय की याद दिलाती है. हालांकि आज भी, टेक फ़र्म यूरोपीय उपनिवेशीकरण के दौरान कंपनी सरकारों को दी जाने वाली शक्ति के मुकाबले कुछ नहीं हैं, जिनकी क्षमताओं में कर बढ़ाना और जंग शुरू करना शामिल था.[xxxvii] भूभाग-आधारित संप्रभुता के दावे अब भी कायम हैं, भले ही उन्हें चुनौती दी गई हो. और, पिछले युगों की शक्ति असमानताएं बनी हुई हैं: डिजिटल बुनियादी ढांचे तक किसकी पहुंच है, से लेकर डाटा  तक कौन पहुंच रखता है और उसे संसाधित कर सकता है.

इस लेख में कुछ दिशाओं और प्रवृत्तियों का संकेत दिया गया है कि डिजिटल तकनीकें सरकार की शक्ति के प्रयोग और प्रतियोगिता को कैसे नया रूप दे रही हैं और उसे मज़बूत कर रही हैं: लोगों और स्थानों पर सत्ता के एजेंट के रूप में सरकार की पहचान और सीमाओं पर लगातार मोल-तोल होता रहता है. सरकार जिस तरह से नागरिकों की पहचान करती है और शक्ति का प्रयोग करती है, उसमें डिजिटल डाटा की मध्यस्थता लगातार बढ़ रही है जिसका आधार निरंतर निगरानी का वादा है. नागरिक सरकार की शक्ति का मुकाबला, सार्वजनिक जीवन में भाग लेने के नए अवसरों और डिजिटल अदृश्यता और दृश्यता से जुड़े नियंत्रण के नए रूपों के बीच करते हैं.

हमारा डिजिटल युग अब भी राजनीति के पुराने अभिकर्ताओं और स्थानों से दूर नहीं हुआ है. सरकार और नागरिक सत्ता का प्रयोग और प्रतिस्पर्धा करना जारी रखे हुए हैं. भूभागीय शासन को चुनौती दिए जाने के बावजूद इसे फिर से स्थापित किया जा रहा है. इसके बजाय, इन अभिकर्ताओं और स्थानों की प्रकृति और सीमाओं को फिर से लिखा जा रहा है, जिससे निश्चय ही ध्यान का केंद्र इस इवोल्यूश्यन या क्रमिक-विकास पर है कि डिजिटल युग में कौन किस पर शक्ति का प्रयोग करता है.


यह इशूब्रीफ पहली बार एक अलग शीर्षक, द कॉल ऑफ़ दिस सेंचुरी: क्रिएट एंड कोऑपरेट, से ओआरएफ़ की वार्षिक पत्रिका, रायसीना फ़ाइल्स के 2024 संस्करण में प्रकाशित हुआ था.

Endnotes

 [a] Governments have justified internet shutdowns around national exams to prevent cheating and maintain exam integrity.

[b] The panopticon was part of social theorist Jeremy Bentham’s prison reforms in the 19th century, and was discussed by philosopher Michel Foucault to illustrate power in modern society. The panopticon model includes a central watch tower that is visible to all prison inmates. The always-visible tower indicates to prisoners that they might be watched, though they cannot see when someone is actually in the tower.

[i] Ed Gent, “Quantum Computing’s Hard, Cold Reality Check - IEEE Spectrum,” IEEE Spectrum, December 22, 2023,

[ii] Hongfei Gu, “Data, Big Tech, and the New Concept of Sovereignty,” Journal of Chinese Political Science (May 2023).

[iii] David Karpf, “Social Science Research Methods in Internet Time,” Information, Communication & Society 15, no. 5 (2012): 639–61.

[iv] World Bank DataBank.

[v] Petter Törnberg and Anton Törnberg, “The Limits of Computation: A Philosophical Critique of Contemporary Big Data Research,” Big Data & Society 5, no. 2 (July 1, 2018): 2053951718811843; Cornelius Puschmann and Jean Burgess, “Metaphors of Big Data,” International Journal of Communication 8 (2014): 1690–709.

[vi] Nathan Rosenberg, Perspectives on Technology (Cambridge: Cambridge University Press, 1976).

[vii] Nathan Rosenberg, “Uncertainty and Technological Change,” in The Economic Impact of Knowledge (Routledge, 2009), 17–34; Brian Larkin, Signal and Noise: Media, Infrastructure, and Urban Culture in Nigeria (Duke University Press, 2020).

[viii] Langdon Winner, “Do Artifacts Have Politics?” Daedalus 109, no. 1 (1980): 121–36.

[ix] Safiya Umoja Noble, Algorithms of Oppression (New York University Press, 2018); Virginia Eubanks, Automating Inequality: How High-Tech Tools Profile, Police, and Punish the Poor (St. Martin’s Press, 2018).

[x] Manuel Castells, Communication Power (Oxford University Press, 2013).

[xi] As discussed in Raymond Guess, Philosophy and Real Politics (Princeton University Press, 2008), 15.

[xii] World Privacy Forum, “National IDs Around the World – Interactive Map,” October 26, 2021.

[xiii] Bidisha Chaudhuri and Lion König, “The Aadhaar Scheme: A Cornerstone of a New Citizenship Regime in India?” Contemporary South Asia 26, no. 2 (2018): 127–42; Rohan Grover, “Contingent Connectivity: Internet Shutdowns and the Infrastructural Precarity of Digital Citizenship,” New Media & Society, 2023, 14614448231176552.

[xiv] Keith Breckenridge, “The Biometric State: The Promise and Peril of Digital Government in the New South Africa,” Journal of Southern African Studies 31, no. 2 (2005): 267–82.

[xv] Josef Teboho Ansorge, “Digital Power in World Politics: Databases, Panopticons and Erwin Cuntz,” Millennium 40, no. 1 (2011): 66.

[xvi] Grover, “Contingent Connectivity”

[xvii] Steven Feldstein, “Government Internet Shutdowns are Changing. How Should Citizens and Democracies Respond?” Carnegie Endowment for International Peace, March 31, 2022.

[xviii] Mark Andrejevic, “Automating Surveillance,” Surveillance & Society 17, no. 1/2 (2019): 7–13.

[xix] Ron Deibert, “Protecting Society from Surveillance Spyware,” Issues in Science and Technology 38, no. 2 (2022): 15–17; Council of Europe Parliamentary Assembly, Pegasus and Similar Spyware and Secret State Surveillance, Doc. 15825, Committee on Legal Affairs and Human Rights Report, September 20, 2023.

[xx] Luciano Floridi, “The Fight for Digital Sovereignty: What it is, and Why it Matters, Especially for the EU,” Philosophy & Technology 33, no. 3 (1 September 2020): 369–78.

[xxi] Tina Freyburg and Lisa Garbe, “Authoritarian Practices in the Digital Age| Blocking the Bottleneck: Internet Shutdowns and Ownership at Election Times in Sub-Saharan Africa,” International Journal of Communication 12 (2018): 21.

[xxii] Travis Waldron, “Facebook’s “Digital Colonialism” Made Monday’s Outage A Crisis For The World,” HuffPost UK, October 6, 2021.

[xxiii] Feldstein, “Government Internet Shutdowns are Changing”

[xxiv] Victoria Bernal, “Eritrea On-Line: Diaspora, Cyberspace, and the Public Sphere,” American Ethnologist 32, no. 4 (2005): 660–75.

[xxv] Peter Chonka, “Cartoons in Conflict: Amin Arts and Transnational Geopolitical Imagination in the Somali-Language Public Sphere,” Critical African Studies 9, no. 3 (2017): 350–76.

[xxvi] Max Weber, “Politics as a Vocation,” in From Max Weber: Essays in Sociology, ed. H. H. Gerth and C. W.  Mills (Routledge, 1919 [1970]), 82–83.

[xxvii] Hannah Arendt, Crises of the Republic: Lying in Politics, Civil Disobedience on Violence, Thoughts on Politics, and Revolution, vol. 219 (Houghton Mifflin Harcourt, 1972).

[xxviii] Alex Hern, “Cambridge Analytica: How Did it Turn Clicks into Votes?” The Guardian, May 6, 2018.

[xxix] James H. Smith, The Eyes of the World: Mining the Digital Age in the Eastern DR Congo (University of Chicago Press, 2021).

[xxx] Asta Vonderau, “Scaling the Cloud: Making State and Infrastructure in Sweden,” Ethnos 84, no. 4 (2019): 698–718.

[xxxi] Georg Glasze et al., “Contested Spatialities of Digital Sovereignty,” Geopolitics 28, no. 2 (March 15, 2023): 919–58.

[xxxii] Patrick Brodie, “Data Infrastructure Studies on an Unequal Planet,” Big Data & Society 10, no. 1 (2023): 20539517231182402.

[xxxiii] Oliver Dunnett et al., “Geographies of Outer Space: Progress and New Opportunities,” Progress in Human Geography 43, no. 2 (2019): 314–36.

[xxxiv] Andrew Phillips and J. C. Sharman, Outsourcing Empire: How Company-States Made the Modern World (Princeton, NJ: Princeton University Press, 2020).

[xxxv] Alina Utrata, “Engineering Territory: Space and Colonies in Silicon Valley,” American Political Science Review, 2023.

[xxxvi] Andrejevic, “Automating Surveillance”

[xxxvii] Phillips and Sharman, Outsourcing Empire

 

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