Author : Vinayak Dalmia

Published on Jan 04, 2018 Updated 0 Hours ago
दूसरे चिपको आंदोलन की जरूरत
पी.टी.

हाल ही में, नई दिल्ली के चोपड़ाशाह कोटला मैदान में इंडोनेशिया और भारत के बीच होने वाले क्रिकेट मैच को तीन बार रोका गया। बेमौसमी टॉयलेट या खराब लाइटिंग व्यवस्था नहीं होने के कारण, जैसा कि इसके खेल का होना आम बात है। लेकिन इस समय खेल प्रतिबंध की असल वजह थी- दिल्ली में प्रदूषण का लेवल लेवल पर होना। भारतीय क्रिकेट टीम के साथ खेल में प्रदर्शन को लेकर बल्कि भारी प्रदूषण की मार के चलते भी वह संकट में थी। इंटरनेशनल प्लेयर्स को मैदान में मास्क लगाते हुए देखा गया।

इस शरद ऋतु की हवा में एक दोस्त का तनाव है। अभी नवप्रवर्तन पर ही सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्कल की बिक्री पर रोक लगा दी थी। शरद ऋतु की शुरुआत हुई थी और उत्तर भारत कोहरे की चांदनी में समा गया था। इसी तरह, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ऑड-इवान योजना भी चपेट में आ गई है। इसी बीच, एक स्तर पर खतरनाक स्तर पर पहुंच है, बच्चों के ओएयर साथियों को रोजगार की बीमारी से पीड़ित होने का खतरा बढ़ गया है, प्रदूषण से बचाव के लिए स्कूल बंद किए जा रहे हैं और मास्क और हवा को शुद्ध करने वाले हैं यंत्रों की बिक्री आकाश में हो रही है।


ग्लोबल कॉर्बन बजट-2017 के मुताबिक भारत में इस साल रिकॉर्ड 2 परफॉर्म कॉर्बन-उत्सर्जन की उम्मीद है।


एक महीने के भीतर, एक राष्ट्र और एक राजधानी के रूप में हमने अपने सौहार्द का हल निकालने की कोशिश की है। घरेलू स्तर पर छोटी-छोटी मूर्तियों के उपयोग को प्रतिबंधित करना, पंजाब और हरियाणा में स्टॉक में पराली पर रोक लगाना या सोसायटी द्वारा विषैली गैस के उपयोग से फ़ालते प्रदूषण को सीमित करना, ये सभी लोग ही कोशिश करते हैं। कुछ शोध और अध्ययनों के अनुसार दिल्ली के पर्यावरण में सड़क से उड़ने वाली गंदगी का 38 प्रतिशत योगदान है तो 20 प्रतिशत प्रदूषण वाले कूड़ेदान द्वारा छोड़ी जाने वाली गैसें नष्ट हो जाती हैं।

प्लांटेशन से कैसे उपकरण पाया जाए; इसके लिए मुख्य धारा के मीडिया में हाल के समय में कई तरह के प्रस्ताव देखने को मिलते हैं। इकोनोमिस्ट ने हाल ही में अपने अंक में दक्षिण एशिया में प्रदूषण को लेकर काफी चिंताएं जाहिर की हैं।

उत्तर (और मध्य) भारत में सांस लेने के लिए यात्रा चल रही है। अभी के समय में यहां ताजी हवा में सांस लेने तक का समय है। सिटीजन सोसायटी और सिटीजन एनवायर्नमेंटल एसोसिएटेड म्यूजियम का हल ड्रॉ में अहम भूमिका निभाई जा सकती है और वे भी भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन इसमें धर्मनिरपेक्ष-पॉलिटिकल प्रतिष्ठा और कार्यपालिका-दोनो की भूमिकाएं ज्यादा बताई जाती हैं। पर्यावरण की रक्षा करना अब एक अच्छी राजनीति और अच्छा शासन-प्रणाली दोनों की परिचायक हो गई है।


अगर की दिल्ली में हवा राष्ट्रीय मानक 40 के स्तर तक साफ हुई तो लोगों का जीवन प्रत्याशा की उम्र छह साल और बढ़ जाएगी।


पहला , इसलिए कि भारत को प्रदूषण के कारण भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। लैंसेट आयोग ने अपने एक अध्ययन में पाया कि 2015 में 2.51 मिलियन (लगभग 25 लाख) लोग केवल प्रदूषणजनित इमारतों के निर्माण में मृत हो गए। भारत में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाले देशों में सबसे ज्यादा प्रदूषण 25 प्रतिशत की गिरावट के साथ है। इसके अलावा, विश्व बैंक की रिपोर्ट-2013 में कहा गया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीआईपी) का 8.5 प्रतिशत सामाजिक कल्याण पर खर्च करने और आय में कमी का नुकसान हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली में ही2 का वाशिर्क औसत विश्व बैंक के मानक 10 की तुलना में 14 गुना अधिक अंक 143 तक रहता है। लेकिन प्रदूषण के कारण बच्चे समय से पहले ही दमा से पीड़ित हो रहे हैं, गर्भवती महिलाएं कम वजन के हैं और वह भी वैध रूप से बीमार बच्चों को जन्म दे रही हैं तो देश की बुजुर्ग आबादी गंभीर व्याधियों का शिकार हो रही है।

योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का भी कहना है कि विश्व के 20 सबसे बड़े शहर भारत में हैं। आने वाले कुछ दशकों में शहरी चित्रण के विस्तार के प्रतियों और पृथ्वी को आकर्षित करने के लिए हमारे नगरों को अधिक से अधिक रहने योग्य बनाने की आवश्यकता है। दिल्ली को बेहतर बनाने के बारे में पूर्व उपाध्यक्ष के पास कई उपयोगी विचार और सुझाव हैं।

दूसरा , इसलिए कि प्रदूषण अब लोक चर्चा का हिस्सा है। भारतीय (कम से कम शहर) इस मुद्दे पर अपने मूल्य बताने लगते हैं। सोशल मीडिया पर पॉल्यूशन के बारे में फ्यूरीफुल हंटर और कैसे जाने वाले आदिवासियों की नब्ज़ का सही पता दिया गया है। 2015 में प्यू रिसर्च रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि 73 प्रतिशत लोग वैश्विक जलवायु परिवर्तन को लेकर 'बेहद चिंतित' थे। फिर, 2016 की रिपोर्ट में भी मिले-जुले स्वर सुनने को मिले थे- 73 प्रतिशत शहरी और 65 प्रतिशत ग्रामीण भारत के लोगों ने प्रदूषण को 'बहुत बड़ी समस्या' माना था। 47 फीसदी लोग साफ हवा के लिए आर्थिक संवर्द्धन के कार्यक्रम से भी जुड़ने के लिए तैयार थे। इसी तरह, 2011 में नीलसन द्वारा अलग-अलग डिज़ाइन अध्ययन में 90 प्रतिशत भारतीय हवा-पानी के प्रदूषण को लेकर चिंता थी, जबकि 80 प्रतिशत लोगों का जलवायु परिवर्तन एक 'महत्वपूर्ण मिश्रण' था।

हालाँकि समस्या तो नई है और इस पर बहस पहली बार नहीं हो रही है, लेकिन अब इतना हो गया है कि प्रदूषण का समृद्ध लोक समुदाय और वैश्विक दोनों के मुद्दे इसमें शामिल हो गए हैं।

अब जबकि राजनीतिक महानगरीय शहरी भारत में चुनाव की तैयारी हो रही है, हरित ने घोषणा की कि पत्र तैयार करना आवश्यक है। जैसा कि कहा जाता है कि यह केवल नैतिक रूप से शामिल नहीं है बल्कि युक्तिसंगत भी है। इसमें देखा गया है कि बड़े पैमाने पर प्रोटोटाइप के खोखला घोषणापत्रों में हरित एज़ामा का प्रमुख स्थान नहीं बताया गया है। आगामी 2019 के चुनाव में यह बदलाव होना चाहिए या उसके बाद होने वाले चुनावों में बदलाव देखने को मिलेंगे। जरूरी है कि राजनीतिक महानगर भारत के पर्यावरण के मुद्दे पर एक अलग विजन-डॉक्यूमेंट लाए। इधर के दिनों में राजनीतिक विचारधारा के कार्यक्रमों को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम शहरों में उनके प्रचार का अहम केंद्र बिंदु वातावरण होगा। इस भिन्न परिवर्तन की झलक में एक नया राजनीतिक विविधता का समावेश हो सकता है। हालाँकि पश्चिमी देशों में जीवों से पीड़ित होते हैं, लेकिन वास्तव में कुछ सबक सीखे जा सकते हैं। अमेरिका में चुनाव लड़ रहे फाउंडेशन से उम्मीद की जाती है कि वह पर्यावरण के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करें। पूर्व राष्ट्रपति अल गोर ने तो पर्यावरण के सिद्धांतों के उलट-गिरद ही अपना सारा नामांकन अभियान जारी किया था और इस विषय पर एक नैरावेटिव विकसित किया था। ब्रिटेन में तो बा कायदे एक ग्रीन पार्टी ही है, हालांकि अप्रत्यक्ष सीमित सफलता हासिल हो रही है।

भारत में दो स्तरों पर हरित रिवर रोड रोडमैप (ग्रीन रोडमैप) बनाना आवश्यक है। प्रथम, नीति आयोग यू.एन.डी.पी. के शताब्दी वर्ष।

भारत के लिए भी एक हरित लक्ष्य तय किया जा सकता है। हालाँकि शहरों में वायु प्रदूषण एक प्रमुख चमक है, ऐसे में इसे दूर करने के लिए कोई उपाय करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि समग्रता में समस्या के समाधान के लिए अभियान शुरू करना है। दूसरा, राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। उन्हें समुद्र तट, पर्यावरणविद्या और कुछ अवकाश अवकाश न्यायाधीशों से हटा दिया जाना चाहिए।

कुछ लोगों का सुझाव है कि भारत को भी अमेरिका की एनवायरमेंटल संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के मुख्यालय पर एक संघीय हरित अभिकरण (एजेंसी) का गठन करना चाहिए। इस दिशा में सरकार के कुछ जजमेंट स्वागतयोग्य हैं-जैसे 2030 तक केवल बिजली आधारित समुदाय के उपयोग की तैयारी।

चिपको आंदोलन, हरित, प्रदूषण, हरित निधि, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वच्छ वायु का अधिकार, 2030, जीवन का अधिकार, भारत
स्त्रोत:पीटीपी

इस सन्दर्भ में अन्य देशों द्वारा पर्यावरण-सुधार की दिशा में निर्णयों का अध्ययन करना आवश्यक है। अभी कुछ साल पहले तक, दिल्ली की तुलना में चीन में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन 2010-15 तक के आखिरी दौर में चीन में एफएम पर 17 फीसदी की गिरावट थी, जबकी इसी अवधि में भारत में 13 फीसदी की बढ़त दिखाई गई है। इसके अलावा, मैरीलैंड विद्यालय द्वारा रचित अध्ययन से स्पष्ट होता है कि चीन में चार प्रतिशत तक की गिरावट आई है, जबकि भारत में यह 50 प्रतिशत तक बढ़ी है। चीन ने तो कच्चे माल से चलने वाली बिजली उत्पादन इकाइयों में रेलवे के उपयोग को नियंत्रित कर लिया है जबकि भारत में कुछ मामलों में (मौलिक नियम-2015 में लाया गया) इस उपाय को 2022 तक निलंबित कर दिया गया है। प्रमुखता से चीन द्वारा किए गए प्रदूषण नियंत्रण के लिए भारत के एक सरकारी अखबार के नेताओं से प्रेरणा ली गई है।

हरे-भरे पर्यावरण की लड़ाई में हम राजनीतिक चौहद्दी को देखने के शुरुआती संकेत को देख रहे हैं। कई कच्चे पर काम के जा रहे हैं। उत्तर भारतीय राज्यों के लिए 'ताजा हवा का हक' सुनिश्चित करने के लिए उत्तर भारतीय राज्यों में पीएम मोदी की ओर से एक समिति बनाई गई है। इसके अतिरिक्त, एक आरती सूचना में खुलासा हुआ है कि दिल्ली सरकार द्वारा 787 करोड़ रुपये का ग्रीन फंड बनाया गया है। देखने का उद्देश्य यह है कि पर्यावरण का मसला मुख्यधारा की राजनीतिक विचारधारा के विचार-विमर्श में धीरे-धीरे-धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई जा रही है और इस वसंत ऋतु में हमें अभी तक कोई बुरी खबर नहीं मिली है।

शहरीकरण के साथ-साथ आर्थिक विकास भारत के ग्रीन रिपोर्ट कार्ड पर बेताशा दबाव डालेगा। और राजनीतिक नेताओं और सिद्धांतों को संतुलित कलाकारों की कला में शामिल किया जाएगा।


भारत को सतत विकास के साथ तेज गति वाले सकल वृद्धि की आवश्यकता है। विकासशील देशों में बेरोजगारी और गरीबी की लगातार दो मार झेल रही है कि व्यापक स्तर पर पर्यावरण के साधनों की तीव्र गति से औद्योगिकीकरण के साथ संतुलन साधने की आवश्यकता है।


एक अधीर अपील के सिद्धांत में एक कोइला ने प्रकाशित आलेखों में बताया है कि कैसे भारत 'काई टाइम बम' के ऊपर अपना प्रभाव डाला गया है और किस तरह से परमाणु विध्वंस की तरफ जाता है। है. जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण ने हमें अपने और देश के भविष्य को लेकर सबसे बड़ी चिंता पैदा कर दी है। हम उस समय से बहुत आगे बढ़ चुके हैं, जब कुछ साल पहले एक अमेरिकी पत्रकार ने दिल्ली से कूज करने के बारे में अपने फैसले में कहा था कि यह प्रदूषण की राजधानी है। हमें से बहुतों को इस पर बुरा लगा।

यह दस्तावेज है कि हरेक भारतीय को संविधान के अनुसार -21 के अंतर्गत जीवन जीने का अधिकार है और स्वच्छ पर्यावरण इस अधिकार का हिस्सा है। प्रदूषण की अनदेखी करना न केवल व्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन है बल्कि बड़ी आर्थिक, मानवीय और राजनीतिक कीमत भी चुकानी है। भारतीय वोटर चाहते हैं कि पर्यावरण के प्रति वैज्ञानिक भी प्रदूषण के खिलाफ मिशन में शामिल हों। लेकिन इस समय, वास्तविक चेतना के खिलाफ चिंता व्यक्त की जानी चाहिए, राजनीतिक धर्मशास्त्रों के घोषितपत्र तथ्यपरक होने चाहिए और उन्हें प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई का संजीदगी से वादा किया गया है।

1970 के दशक में शुरू हुआ '  छोटा आंदोलन ' न केवल किसी देश में पर्यावरण की रक्षा को लेकर अग्रणी साबित हुआ बल्कि विश्व में भी वह शीर्षस्थ भूमिका अदा करने की थी। उसी तरह, आज राजनीतिक शास्त्र के सिद्धांतों में ही चिपको आंदोलन का दूसरा चरण शुरू करने की जरूरत है।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.